गांव, गरीब और किसान की सुध लेता बजट
इस बार बजट ने नयी परम्परा के साथ राहत की सांसें दी है तो नया भारत- सशक्त भारत के निर्माण का संकल्प भी व्यक्त किया है। इस बजट में कृषि, शिक्षा, कौशल विकास, रेलवे और अन्य बुनियादी ढांचागत क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ किसानों, गांवों और गरीबों को ज्यादा तवज्जो दी गयी है। सच्चाई यही है कि जब तक जमीनी विकास नहीं होगा, तब तक आर्थिक विकास की गति सुनिश्चित नहीं की जा सकेगी। इस बार के बजट से हर किसी ने काफी उम्मीदें लगा रखी थीं और उन उम्मीदों पर यह बजट खरा उतरा है। शहरों के मध्यमवर्ग एवं नौकरीपेशा लोगों को अवश्य निराशा हुई है। इस बार आम बजट को लेकर उत्सुकता इसलिए और अधिक थी, क्योंकि यह मोदी सरकार के कार्यकाल का आखिरी पूर्ण बजट था। संभवतः
इस बजट को नया भारत निर्मित करने की दिशा में लोक-कल्याणकारी बजट कह सकते हैं। यह बजट वित्तीय अनुशासन स्थापित करने की दिशाओं को भी उद्घाटित करता है।
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आशा के अनुरूप ही बजट का फोकस किसानों और ग्रामीण क्षेत्र पर रखा। इसे चुनावी बजट कहें या कुछ और, लेकिन अपने ढांचे में यह पूरे देश का बजट है, एक आदर्श बजट है। इसका ज्यादा जोर सामाजिक विकास पर है। मुखर तबकों को किनारे रखकर धीरे बोलने वाले नागरिकों के हितों का भी ध्यान रखने का प्रयास किया गया है। किसानों की शिकायत दूर करते हुए खरीफ फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत का डेढ़ गुना करने की बात कही गई है। कई मामलों में यह बजट वाकई असाधारण है।
अक्सर बजट में राजनीति, वोटनीति तथा अपनी व अपनी सरकार की छवि-वृद्धि करने के प्रयास ही अधिक दिखाई देते है और ऐसा इस बार भी हुआ है। यह बजट वर्ष 2019 के आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए बना है और इसका लाभ सत्ताधारी पार्टी को मिलेगा, इसके कोई संदेह नहीं है। भले ही हम इस बजट को आगामी आम चुनाव की तैयारी से जोड़कर देखे लेकिन इस बजट में ऐसे प्रयत्न भी हुए हैं जो ग्रामीण एवं गरीब तबके के जीवन स्तर को ऊंचा उठायेंगे। गरीब तबके और ग्रामीण आबादी की बढ़ती बेचैनी को दूर करने की कोशिश इसमें स्पष्ट दिखाई देती है जो इस बजट को सकारात्मकता प्रदान करती है। इस बजट में किसानों की बढ़ती परेशानियों को दूर करने के भी सार्थक प्रयत्न हुए हैं, जिसे मेहरबानी नहीं कहा जाना चाहिए। सरकार जहां आलू, टमाटर और प्याज पैदा करने वाले किसानों के लिए ऑपरेशन फ्लड की तर्ज पर ऑपरेशन ग्रीन शुरू करने जा रही है वहीं खरीफ की उपज के लिए डेढ़ गुना एमएसपी देने की तैयारी कर रही है। खेती और किसानों की दशा सुधारना सरकार की प्राथमिकता में होना ही चाहिए, क्योंकि हमारा देश ग्रामीण आबादी की आर्थिक सुदृढ़ता और उनकी क्रय शक्ति बढ़ने से ही आर्थिक महाशक्ति बन सकेगा। और तभी एक आदर्श एवं संतुलित अर्थव्यवस्था का पहिया सही तरह से घूम सकेगा। यह अच्छा हुआ कि सरकार ने यह समझा कि किसानों को उनकी लागत से कहीं अधिक मूल्य मिलना ही चाहिए। यह भी समय की मांग थी कि ग्रामीण इलाकों के ढांचे पर विशेष ध्यान दिया जाए। ग्रामीण अर्थव्यवस्था संवारने की दिशा में इस बजट को मील का पत्थर कहा जा सकता हैं। इस बजट में जो नयी दिशाएं उद्घाटित हुई है और संतुलित विकास, भ्रष्टाचार उन्मूलन, वित्तीय अनुशासन एवं पारदर्शी शासन व्यवस्था का जो संकेत दिया गया है, सरकार को इन क्षेत्रों में अनुकूल नतीजे हासिल करने पर खासी मेहनत करनी होगी। यही बात 10 करोड़ गरीब परिवारों के लिए सालाना 5 लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा योजना समेत अन्य योजनाओं पर भी लागू होती है। देश में डिजिटल व्यवस्थाओं को सशक्त एवं प्रभावी बनाने का भी सरकार ने संकल्प व्यक्त किया है, इसी से दुनिया की सबसे बड़ी स्वास्थ्य बीमा योजना ढंग से जमीन पर उतर सकेगी। इसके लिए राज्यों को भी अपनी मशीनरी को दुरुस्त करना होगा। दरअसल सरकारी तंत्र को ठोस नतीजे देने वाले सिस्टम में तब्दील करके ही वे सभी वायदे पूरे हो सकते हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में सुधार को लेकर किए गए हैं। लेकिन इस बजट को कसने की बुनियादी कसौटी भारत का विकास ही है। अपना घर, स्टार्टअप, मेक इन इंडिया, महिला एवं वृद्धों को राहत की दृष्टि से भी यह बजट उल्लेखनीय है।
यह बजट सही आर्थिक दिशा के एजेंडे के रूप में प्रस्तुत हुआ है, इसे हम कृषि, किसान, गांव एवं गरीब का बजट भी कह सकते हैं। 2000 करोड़ रुपये की लागत से कृषि उपजों के बाजार का इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने की बात कही गई है। किसानों को कर्ज के लिए बजट में 11 लाख करोड़ रुपये का प्रस्ताव किया गया है। सरकार चाहती है कि गांवों में न सिर्फ बुनियादी जरूरतें उपलब्ध हों बल्कि वहां तकनीकी सुविधाएं भी जुटाई जाएं ताकि किसानों का हर स्तर पर विकास हो सके। इसके लिए वहां 2 करोड़ शौचालय बनाने, बिजली और गैस कनेक्शन देने के अलावा गांवों में इंटरनेट के 5 लाख हॉटस्पॉट बनाए जाएंगे। नए उपायों से उन्हें कितना लाभ पहुंचेगा, यह समय बताएगा। उद्योगों को गति देने और रोजगार देने के मामले में तो अनिवार्य तौर पर इस पर निगाह रखनी होगी कि वांछित नतीजे अवश्य सामने आएं। बजट एक तरह से चुनौतियों के बीच संतुलन साधने की कला है। चूंकि सरकार को संतुलन साधने के साथ ही आगामी आम चुनाव का भी ध्यान रखना था इसलिए इस पर हैरानी नहीं कि बजट में काफी कुछ लोकलुभावन है। अगर अर्थव्यवस्था आगे बढ़ती दिखती रहे तो इसमें हर्ज नहीं।
जब-जब बजट प्रस्तुत होता है, आम-आदमी की दिक्कतें कम नहीं होती। लोक-कल्याणकारी बजट क्या होता है, कैसा होता है, लोग जानते ही नहीं थे। बल्कि इस शब्द से एलर्जी हो गई थी। आयकर छूट की सीमा बढ़ाने मात्र को ही हम अच्छा बजट मानते रहे हैं, लेकिन इस बार मध्यमवर्ग को इनकम टैक्स में यथावत रखकर सरकार ने एक जोखिम तो उठाई है लेकिन कभी-कभी किसी बड़े घाव को दूरस्त करने के लिये कड़वी दवाई देनी ही पड़ती है। लेकिन सरकार ने अन्य दिशाओं में इस बजट के माध्यम से रोशनी को उतारने का काम किया है। जिनमें मुख्य है कि सरकार इस साल देश में 70 लाख नए रोजगार पैदा करेगी और 50 लाख युवाओं को नौकरी के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा। रेलवे बजट भी अब आम बजट का हिस्सा बन चुका है। इस बजट में रेलवे को लेकर कुछ घोषणाएं की गई हैं, बजट में 3600 किमी रेल पटरियों के नवीनीकरण और इस साल 700 नए रेल इंजन तैयार करने की बात है। मोबाइल, लैपटॉप और टीवी के दाम निश्चित तौर पर बढ़ेंगे लेकिन इन उपभोक्ता एवं सुविधावादी क्षेत्रों में भले ही बजट को लेकर आलोचनाएं हो, लेकिन जिस तबके की सुध इस बजट में ली गई है, उस तक चीजें पहुंच सकीं तो देश में एक नये सूरज के अवतरित होने का माहौल बनेगा और यही नये भारत को निर्मित करने का सार्थक उपक्रम होगा।
आजादी के सात दशक बीत रहे हैं, इन वर्षों में सरकारों की सबसे बड़ी जिम्मेदारी शिक्षा एवं चिकित्सा का लगातार धुंधलाना एवं जर्जर होना गंभीर स्थिति का भान कराता रहा है। दोनों ही बुनियादी क्षेत्रों की जर्जर अवस्था एक बदनुमा दाग बनी गई हैं। चिकित्सा एवं शिक्षा क्षेत्र की दुर्दशा खत्म करना बहुत जरूरी है। सरकार इसके लिये प्रयासरत है, यह खुशी की बात है। गनीमत है कि इस बार के बजट में ऐसी कुछ घोषणाएं मौजूद हैं, जिनसे शिक्षा क्षेत्र की चुनौतियों पर सरकार की नजर होने का संकेत मिलता है। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी चुनौती है सरकारी स्कूलों में लगातार गिरता शिक्षा का स्तर। इस लिहाज से प्राइमरी शिक्षा पर चार साल में एक लाख करोड़ रुपये खर्च करने के अलावा वित्तमंत्री की यह घोषणा भी महत्वपूर्ण है कि 13 लाख से ज्यादा शिक्षकों के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाएगी। इंटीग्रेटेड बीएड प्रोग्राम के तहत शिक्षक अपनी सेवा के दौरान ही बीएड कर सकेंगे। तकनीकी डिजिटल पोर्टल ‘दीक्षा’ इस मामले में खासा मददगार हो सकता है। उम्मीद करें कि शिक्षकों के प्रशिक्षण का सीधा फायदा उन स्टूडेंट्स को मिलेगा जो अपनी पढ़ाई के अलावा व्यक्तित्व के विकास के लिए भी काफी हद तक इन शिक्षकों पर निर्भर करते हैं। प्रधानमंत्री फेलोशिप स्कीम इस बजट की एक और अहम घोषणा है। इसके तहत बीटेक कर रहे 1000 प्रतिभाशाली युवाओं को चयनीत कर उन्हें आईआईटी और आईआईएससी जैसे संस्थानों में उच्चतर शिक्षा के अवसर मुहैया कराए जाएंगे। 50 फीसदी से ज्यादा आदिवासी आबादी वाले इलाकों में एकलव्य स्कूलों की स्थापना और जिला स्तर के मेडिकल कॉलेजों को अपग्रेड कर 24 नए मेडिकल कॉलेज व अस्पताल बनाने जैसे ऐलान भी सही दिशा में उठाए गए कदम हैं। प्राथमिक स्तर की शिक्षा का पूरा सरकारी ढांचा लगभग ध्वस्त हो चुका है। इसे संवारने के लिए केंद्र को राज्य सरकारों के साथ मिलकर प्रभावी प्रयत्न करने होंगे।
बढ़ते एवं जानलेवा प्रदूषण को लेकर भी यह बजट जागरूक दिखाई दिया। इस दृष्टि से दिल्ली-एनसीआर को प्रदूषण से राहत दिलाने की आम बजट में की गई केंद्र सरकार की चिंता स्वागतयोग्य है। इस पहल के बाद ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए कि इस क्षेत्र में प्रदूषण पर नियंत्रण की दिशा में योजनाबद्ध तरीके से काम होगा।ं दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण पर नियंत्रण के लिए दिल्ली के साथ ही हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश सरकारों के प्रयासों में मदद करने और खेतों में पराली जलाने से रोकने के लिए आवश्यक मशीनरी पर सब्सिडी देने की विशेष योजना पर कार्य करने का प्रस्ताव किया है। इस बजट को तैयार करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय चुनौतियों के दबाव एवं पेट्रोलियम पदार्थों की मूल्य वृद्धि सरकार के सामने रहे हंै।
आर्थिक शुचिता एवं वित्तीय अनुशासन को प्रभावी ढंग से लागू करने का संकल्प और सन्देश इस बजट ने दिया है। राजनीतिक चंदे में पारदर्शिता, भ्रष्टाचार पर नकेल कसने एवं कालेधन के प्रवाह रोकने की दिशा में भी सरकार के दृढ़ इरादें हैं, पर इसमें कितनी कामयाबी मिल पाएगी या राजनीतिक दलों में कितना आर्थिक अनुशासन स्थापित होगा, कहना मुश्किल है। कहा गया था कि धनी लोग काले धन से मौज-मस्ती करते हैं, जबकि कर चोरी का बुरा नतीजा गरीबों को भुगतना पड़ता है। अरस्तु ने सावचेत किया था कि करदाता को जब यह ज्ञान होता है कि सरकार को दिये गये कर को चुनिंदे व्यक्ति और नौकरशाह अपनी समृद्धि के लिए दुरुपयोग कर रहे हैं, तो करदाता इसे कत्तई बर्दाश्त नहीं करेगा।“
तमाम प्रयासों के बावजूद आज भी राष्ट्रीय आय का 30 से 40 प्रतिशत तक काला धन बन रहा है। आप देखेंगे कि सार्वजनिक उद्योग बीमार पड़ते हैं पर पांच सितारा होटल, अंग्रेजी स्कूल, पांच सितारा अस्पताल, शराब बनाने वाले उद्यम, महंगे कपड़े बनाने वाली मिलें, कभी बीमार नहीं पड़ते। इसीलिये सरकार में सबसे अधिक चिंता कालेधन पर रोक लगाने को लेकर देखी गई है। हर नागरिक प्रतिदिन सरकार को किसी न किसी रूप में कुछ देता है और हर रोज किसी न किसी रूप में देने से अधिक चोरी कर लेता है। इस स्थिति पर नियंत्रण करके ही हम भ्रष्टाचार को समाप्त करने की दिशा में आगे बढ़ सकेगे।
भारत की अर्थव्यवस्था कर व्यवस्था पर ही निर्भर है। कारण सरकार की आय का साधन आयकर, जीएसटी ही है। सरकार टैक्स के दायरे में ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाने की बात तो करती है, लेकिन वास्तविकता में ऐसा कोई ठोस उपक्रम सामने नहीं आया है। चाणक्य नीति में कहा गया है कि जिस प्रकार फूल से भंवरा मधुकरी कर बिना फूल को नुकसान पहुंचाए काम चलाता है, ठीक उसी प्रकार सरकार को जनता से कर लेना चाहिए, अधिक नहीं। यह बजट इस दर्शन एवं संतुलन के सिद्धान्त को चरितार्थ कर रहा है। लेकिन एक आदर्श शासन व्यवस्था वह है जिसमें हर व्यक्ति कर देना अपनी जिम्मेदारी समझे। ऐसा तभी संभव है जब ईमानदार बजट हो और ईमानदार ही करदाता हो। सरकारी बजट को आम लोग समझते ही नहीं कि उनके धन का कितना उपयोग या दुरुपयोग हो रहा है। जो समझते हैं वे सिवाय विरोध के कुछ नहीं करते। ऐसी स्थिति में जब नैतिकता और मूल्य संरचना का सारा आर्थिक ढांचा चरमरा उठा है, तब देश को एक सशक्त वित्तीय अनुशासन की आवश्यकता है। खर्च पर प्रतिबन्ध हो। फिजूलखर्ची एवं सुविधा के खर्च रोक दिए जायें। मितव्ययता की वृत्ति अपनाकर हम देश की अस्मिता एवं अखण्डता को बचा सकते हैं। ऐसा करके ही हम दुनिया में एक आर्थिक महाशक्ति बनकर उभर सकेंगे और इसके लिये मोदी सरकार और उनकी सरकार का यह बजट अनंत संभावनाओं की बंद खिड़कियों को खोल रहा है।