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उत्तराखंड के परिवेश पर बनी फिल्म ‘केदार’ के प्रीमियर शो मे पहुचे अजय भट्ट

सी एम पपनैं

फिल्म ‘केदार’ प्रीमियर शो समाप्ति पर मुख्य अतिथि केन्द्रीय रक्षा व पर्यटन राज्यमंत्री अजय भट्ट व विशिष्ठ अतिथि पूर्व केन्द्रीय कपड़ा राज्यमंत्री व सांसद अजय टम्टा का आयोजकों द्वारा स्वागत अभिनंदन किया गया, पुष्पगुच्छ व स्मृतिचिन्ह भैंट किया गया। फिल्म की प्रभावशाली कहानी व फिल्म निर्माण पर केन्द्रीय मंत्री अजय भट्ट द्वारा व्यक्त किया गया निर्मित फिल्म प्रेरणादायी है। पहाड़ के जनमानस की पीड़ा फिल्म में दिखाई गई है। फिल्म के दृश्यों के माध्यम से उत्तराखंड के नैसर्गिक सौंदर्य व सुंदर पर्यटन क्षेत्रों को दिखाया गया है। फिल्म का निर्देशन अच्छा है। फिल्म के संवादो मे उत्तराखंड की बोली भाषाओं का प्रयोग अच्छा लगा। फिल्म नायक द्वारा व्यक्त कुछ संवाद दिल को छू गए, जो हर उत्तराखंडी को भायैंगे।

सांसद अजय टम्टा द्वारा व्यक्त किया गया, उत्तराखंड संस्कृति बहुल अंचल है, देश दुनिया इसे देखना चाहती है। उत्तराखंड के व्यक्ति की विशेष पहचान है, फिल्म ‘केदार’ ने इसे सिद्ध किया है। प्राकृतिक सौंदर्य हमारे पास है। उत्तराखंड फिल्म निर्माण में पीछे रहा है। सुरेश पांडे उद्योग जगत से जुडे लोगों के आगे आने से उत्तराखंड के अन्य लोगों को भी फिल्म निर्माण की प्रेरणा मिलेगी सोचा जा सकता है।

आयोजन के इस अवसर पर फिल्म के सभी कलाकारों, निर्देशको व तकनीशियनों का परिचय कराया गया, सभी को मुख्य अतिथि के कर कमलो पुष्पगुच्छ व स्मृतिचिन्ह देकर सम्मानित किया गया।

उत्तराखंड की हसीन वादियों चंपावत, भीमताल, खटीमा, देहरादून के साथ-साथ गुड़गांव (हरियाणा) व दिल्ली मे शूट हुई ‘केदार’ फिल्म की कहानी उत्तराखंड के एक युवा केदार सिंह नेगी के संघर्ष की कहानी को बया करती है। केदार नामक यह हट्टा-कट्टा साधारण परिवार का युवक पहाड़ मे रह कर अपने अस्तित्व को खोजता नजर आता है। बचपन मे स्वास्थ सुविधाओ के अभाव में पिता की मृत्यु उसको अक्सर कचोटती नजर आती है। गांव-देहात के गुंडों की गुंडागर्दी से भी केदार खूब निपट कर उनको सबक सिखाता है। केदार के जीवन की खूबियो को देख उसकी प्रेमिका की नजदीकिया भी बढ़ जाती हैं। नौकरी की तलाश में केदार द्वारा गांव से दिल्ली-गुडगांव को पलायन करने पर जितना दुख केदार की मां व छोटी बहन को होता है, उससे कहीं ज्यादा उसकी प्रेमिका को होता है। यहीं पर फिल्म का मध्यांतर भी है।

मध्यांतर के बाद फिल्म का नायक केदार मामा के घर दिल्ली पहुचता है। मामा बीएससी पास केदार की नौकरी गुडगांव में बतौर सेक्क्युरिटी गार्ड लगवा देता है। बाजार में एक दबंग द्वारा खरीदारी कर रही अकेली महिला के साथ छेड़छाड़ करना केदार को ठीक नहीं लगता। प्रवास मे भी अपने स्वभाव के अनुकूल केदार उस दबंग की पिटाई कर महिला को मुक्त करवाता है। उक्त मार-पिटाई को खेल स्टेडियम का पूर्व राष्ट्रीय बाक्सिंग कोच भी देख रहा होता है।

स्टेडियम मैनेजमैंट द्वारा बाक्सिंग की एक फाइट आयोजन का निर्णय लिया जाता है, जिसमे पाकिस्तान के जानेमाने बाक्सर मूसा से भिडंत रखी जाती है। भारत का कोई भी बाक्सर मूसा से लडने की हिम्मत नहीं रख पाता है। आयोजक जीतने वाले की राशि पच्चीस लाख से बढ़ा कर पचास लाख घोषित कर देते हैं।

केदार अपने किसी अन्य साथी की परिवार की भलाई के लिए अपनी नौकरी छोड़ देता है। पार्क में बैठ चिंतित रहता है। तभी वह महिला जिसको केदार ने एक दबंग से मुक्त किया था, केदार को पहचान उसको चिंतित देख एक पत्रकार की हैसियत से केदार को अवगत कराती है, वह आयोजित हो रही बाक्सिंग मे भाग ले और पचास लाख जीत कर अपने जीवन को खुशहाल बनाऐ। यही सूचना पूर्व राष्ट्रीय बाक्सिंग कोच जिसने युवक केदार को एक दबंग को बुरी तरह पीटते हुए देखा था, सूचित करता है और उसे पाकिस्तानी बाक्सर मूसा से लडने हेतु मना लेता है। केदार को बाक्सिंग के सारे गुर व बारीकिया बता, कोचिंग देता है। रिंग में मूसा व केदार की कई दौर की भिडंत होती है। आयोजक मूसा को जीतना देखना चाहते थे, उन्होंने अपने स्तर पर यह कोशिश भी की। लेकिन आयोजकों की नीति को दरकिनार कर, पचास लाख रुपयो से अपने गांव मे अस्पताल खुलवा कर अपने गांव के लोगों के स्वास्थ की चिंता की चाहत मे केदार हिम्मत होंसले से विख्यात बाक्सर से लड़ता चला जाता है और विजय हासिल कर सब को आश्चर्य चकित करने मे सफल रहता है।

फिल्म में केदार नामक युवक के माध्यम से पुष्टि की गई है, हालात और परिस्थितियां आज उत्तराखंड ही नहीं समस्त देश के युवाओ को रोजगार की तलाश में कहा से कहा पहुचा रही हैं। निर्मित फिल्म ‘केदार’ का मुख्य उद्देश्य युवा वर्ग को दिशा दिखाना माना जा सकता है, जो अपने सपनों के पहाड को छोड़कर नौकरी की तलाश में पलायन करने को मजबूर हैं। साथ ही आंशिक रूप में पहाड की स्वास्थ व शिक्षा व्यवस्था तथा स्वस्थ आचार-विचार की संस्कृति तथा प्राकृतिक सुंदरता की ओर भी ध्यान आकर्षित करने का प्रयास फिल्म निर्माण के द्वारा किया गया है।

हिल्स वन स्टूडियो और देशी इंजन प्रोडक्शन वैनर तले निर्मित फिल्म ‘केदार’ मे एक्शन के नाम पर मारपीट तथा नायक व नायिका का रोमांश व पारिवारिक ड्रामा आंशिक है। मुख्य अभिनेता देवा धामी तथा गणेश सिंह रौतेला ने फिल्म में प्रभावशाली भूमिका का निर्वाह किया है। फिल्म की नायिका की भूमिका में सुमन खंडूरी, नायक की मां की भूमिका में संयोगिता पंत ध्यानी व अन्य कलाकारों मे विरेन्द्र व देव रौतेला का अभिनय भी सराहनीय रहा है। फिल्म मे संजोये गए गीतो के बोल व संगीत अंचल के अनुकूल हैं। गीतों के गायन मे सत्य अधिकारी, सतेन्द्र फरंडियाल, दीपा पंत व विरेन्द्र नेगी ने अपनी सुरीली आवाज से प्रभाव छोडा है। कैमरामैंन साजन भंडारी उत्तराखंड के प्राकृतिक सौंदर्य को और अच्छी तरह निखार सकते थे।

उत्तराखंड के परिवेश तथा पलायन, शिक्षा, स्वास्थ्य व संस्कृति जैसे मुद्दों का ताना-बाना बुन कर निर्मित हिंदी फिल्म ‘केदार’ का प्रीमियर शो देख कर, कयास लगाया जा सकता है, उक्त निर्मित हिंदी फिल्म युवा दर्शकों के मध्य छाप छोड़ने व अच्छा व्यवसाय करने मे सफलता हासिल कर सकती है। फिल्म प्रोड्यूसर सुरेश पांडे व जतिंदर भट्टी तथा फिल्म निर्देशक कमल मेहता व याशिका बिष्ट के लिए फिल्म ‘केदार’ भविष्य के बहुत बडे फिल्म व्यवसाय का जरिया बन सकती है। ऐसा सोचा जा सकता है, कयास लगाया जा सकता है।

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