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उत्तराखंडी बोली-भाषा, गीत-संगीत व वाद्ययंत्रों के संरक्षण व संवर्धन हेतु कक्षाओ व कार्यशालाओ का शुभारंभ

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। उत्तराखंड लोक भाषा साहित्य मंच दिल्ली तथा उत्तराखंड एकता मंच दिल्ली के सौजन्य से 14 मई की सांय डीपीएमआई सभागार अशोक नगर दिल्ली में कुमांऊनी, गढ़वाली और जौनसारी बोली-भाषाओ, गीत-संगीत तथा लुप्त हो रहे उत्तराखंडी वाद्ययंत्रों के संरक्षण व संवर्धन हेतु कार्य योजना का भव्य शुभारंभ किया गया। दिल्ली एनसीआर सहित उत्तराखंड के कई कस्बो मे वृहद स्तर पर वर्ष 2023 मे आयोजित की जा रही नि:शुक्ल कक्षाओ व कार्यशालाओ के आयोजन के बावत सूचना देने के साथ-साथ बोली-भाषा, गीत-संगीत तथा वाद्ययंत्र विधाओ मे निपुण गायको, वादको व भाषा विदो जो कक्षाओ व कार्यशालाओ मे प्रशिक्षण देगें के नामों से आयोजकों द्वारा अवगत कराया गया।

आयोजित कार्यक्रम का श्रीगणेश ढोल वादक हरीश शर्मा के ढोल की मंगल गूंज व सभागार में उपस्थित विशिष्ट प्रबुद्ध जनो के कर कमलो दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। आयोजकों द्वारा विभिन्न विधाओ मे निपुण मुख्य प्रशिक्षण कर्ताओ राम चरण जुयाल, विरेन्द्र सिंह नेगी ‘राही’, हरीश शर्मा, सतेन्द्र, विक्रम सिंह रावत तथा लक्ष्मी रावत को शाल ओढा कर स्वागत अभिनंदन किया गया।

मुख्य आयोजन कर्ता व डीपीएमआई चेयरमैन डाॅ विनोद बछेती द्वारा सभागार में उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनो का स्वागत अभिनंदन कर अवगत कराया गया, 2012 से उत्तराखंड की बोली-भाषा के संवर्धन पर दिल्ली महानगर मे उत्तराखंड प्रवासी बहुल इलाको मे यह कार्य चल रहा था। 2016 मे इस प्रतिबद्धता को धरातल पर उतारा गया। बोली-भाषा की कक्षाऐ आरंभ की गई। सम्पूर्ण एनसीआर मे प्रवासियो के बच्चों द्वारा बडे स्तर पर बोली-भाषा सीखने मे रुचि दिखाई गई। उत्तराखंडी बोली-भाषा मे भाषण, नाटक व गीत गायन के कार्यक्रम आयोजित किए गए। उद्देश्य मे सफलता मिलती देख 2023 से एक और नई विधा, संगीत से जुडी वाद्ययंत्रों की शिक्षा व विलुप्ति की कगार पर खडे वाद्यो के संरक्षण व संवर्धन पर कार्यशालाऐ व प्रशिक्षण की योजना नौनिहालो सहित सभी वर्ग के लोगों के लिए आयोजित की जा रही हैं। उक्त विधा से जुडे निपुण व प्रतिभावान वादको द्वारा 50 कार्यशालाओ व प्रशिक्षण केन्द्रो मे शिक्षा दिल्ली एनसीआर सहित उत्तराखंड के कई कस्बो मे आयोजित की जा रही हैं। आगामी रविवार 21मई से हर रविवार सांय 4 से 7 बजे तक दस सप्ताह तक उक्त कक्षाओ व कार्यशालाओ का आयोजन किया जायेगा।

डाॅ विनोद बछेती द्वारा व्यक्त किया गया, बुजुर्गो की देन हमारी बोली-भाषा विश्वास की भाषा है। यह कैसे संरक्षित रहेगी, प्रयास करना होगा। अपनी परंपराओ को छोड़ हम कही भी रहैं चैन से नहीं रह सकते। अपनी परंपराओ से जुडे रहना जरूरी है, जो हमे सकुन देती है। परंपराओ, बोली-भाषा, वाद्ययन्त्र, खानपान को बचाना जरूरी है। जो उत्तराखंडी बोली-भाषा मे साहित्य रचा व लिखा जा रहा है, उसको पढने वाली पौंध भी तैयार करनी होगी। हमे अपनी जडो को मजबूत करना होगा।

 

आयोजन के इस अवसर पर उत्तराखंड के विलुप्ति की कगार पर खडे वाद्ययन्त्र हुड़का व विणाई के विशेष जानकार व प्रमुख वादक देहरादून से आए राम चरण जुयाल द्वारा हुड़का व विणाई वाद्ययंत्र बजा कर, ढोल-दमाउ व तबला के साथ उक्त वाद्यो के सुर व ताल को प्रभावशाली अंदाज में संगत देकर खचाखच भरे सभागार में बैठे श्रोताओं को हैरत मे डाल वाह-वाही लूटी। उक्त वाद्ययंत्रों की विलुप्ति पर तथा इन वाद्यो के संरक्षण व संवर्धन पर राम चरण जुयाल द्वारा बल देकर व्यक्त किया गया, उत्तराखंड मे संगीत की ताल को ‘चाल’ कहा जाता है। हुड़का उत्तराखंड का ऐसा वाद्य है जो लोकगीत गायन व जागर गायन दोनों मे प्रयुक्त होता है। विलुप्त हो चुकी विणाई वाद्य के बावत अवगत कराया गया, विभिन्न तालो मे विभिन्न स्वरो के लिए विभिन्न प्रकार की विणाई ताल स्वारो वाली बनाई जाती है।अवगत कराया गया, उत्तराखंड कुछ मे कुछ तालै ऐसी हैं जो सम्पूर्ण विश्व में कही नहीं है।

 

ढोल, दमाउ व मसकवीन वादन के माहिर वादक हरीश शर्मा द्वारा ढोल के प्राचीन इतिहास, महत्व व उक्त वाद्य को बजाकर विभिन्न तालो के बावत विस्तृत जानकारी से श्रोताओं को प्रभावी अंदाज मे अवगत कराया। ढोल वादक हरीश शर्मा के वादन मे दमाउ पर मोहित शर्मा द्वारा प्रभावशाली संगत की गई। वादक हरीश शर्मा द्वारा अवगत कराया गया, विश्व प्रसिद्ध ढोल वाद्य हमारी संस्कृति से जुडा वाद्य है। ढोल पर सर्वप्रथम ‘मंगल बढई ताल’ औजी द्वारा बजाई जाती है, जो बधाई और मंगल का प्रतीक है। जागर की प्रमुख ताल को ‘धुयाल ताल’ कहा जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य तालो मे ‘घुडया रासो’ व ‘मंडाड ताल’ मुख्य हैं।

 

आयोजन के इस अवसर पर भुवन रावत द्वारा मार्मिक कुमांउनी लोकगीत की प्रभावशाली प्रस्तुति दी गई। बाल कलाकारों द्वारा उत्तराखंड के गीतों पर नृत्य की प्रस्तुतियां मंचित की गई। प्रशिक्षण कर्ताओ मे विरेन्द्र सिंह नेगी ‘राही’ द्वारा लोकगायन तथा लक्ष्मी रावत द्वारा रंगमंच से जुडे प्रमुख तथ्यों पर प्रकाश डाल कर व्यक्त किया गया, बच्चो के अंदर सीखने की लगन होनी चाहिए। गीत व नाटक बच्चो का विकास करते हैं। शब्दों को कैसे बोलना है, शरीर को कैसी अवस्था मे रखना है, नाटक में प्रयोग किया जाता है। अभिनय सिखाता है जो देखा है उसे उसी रूप मे प्रस्तुत करना है। शारीरिक अदाऐ, भाषा कैसी होनी चाहिए यह सब अभिनय से जुड़ा विषय है। अवगत कराया गया प्रशिक्षण समाप्ति के बाद उत्तराखंड बोली-भाषा मे उत्तराखंड से जुडे किसी एक विषय पर प्रशिक्षण प्राप्त कलाकारों के द्वारा नाटक का मंचन किया जायेगा।

 

उत्तराखंड के समाजसेवी रमेश कांडपाल द्वारा व्यक्त किया गया, उत्तराखंड मे प्रचलित वाद्य दिव्य शक्तियों से ओत-प्रोत रहे हैं। वाद्य व वादक साधारण नहीं असाधारण हैं। जहा ये वाद्ययन्त्र बजते हैं वहा नकारात्मक्ता नहीं रहती। जो नकारात्मक सोच रखते हैं, वे नाच उठते हैं। उन्हें ही जगाने वाले ये वाद्ययन्त्र हैं। देवभूमि उत्तराखंड मे देवताओ का आहवान इन वाद्ययंत्रों के द्वारा ही किया जाता है।

 

आयोजन के इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश ध्यानी द्वारा वर्ष 2016 से दिल्ली एनसीआर मे प्रवासरत प्रवासी बच्चो को उत्तराखंडी बोली-भाषा का प्रशिक्षण दे रहे साहित्यकारों का परिचय कराया गया। साहित्यकारों ओम प्रकाश आर्य, डाॅ सतीश कालेश्वरी, दर्शन सिंह रावत, वृजमोहन शर्मा, जयपाल सिंह रावत, जगमोहन रावत, रमेश हितैषी, दिनेश ध्यानी, चंदन प्रेमी तथा गिरीश चंद्र भावुक को मंच पर आमन्त्रित कर आयोजकों द्वारा शाल ओढा कर सम्मानित किया गया। आयोजित कार्यक्रम का मंच संचालन डाॅ सतीश कालेश्वरी व दयाल सिंह नेगी द्वारा बखूबी किया गया।

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