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उत्तराखंड मे जन चेतना जगाने वाले ऋषिबल्लभ सुंदरियाल व मथुरादत्त मठपाल की याद में आयोजित संगोष्ठी सम्पन्न

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। हिमालयी सरोकारों के चिंतक, गढ़वाल विश्व विद्यालय आंदोलन के स्तंभ और उत्तराखंड राज्य के शिल्पी ऋषिबल्लभ सुंदरियाल की 47वी पुण्यतिथि व उत्तराखंड की दुदबोलि के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले मथुरादत्त मठपाल की 83वे जन्मदिवस के अवसर पर कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति, दिल्ली द्वारा गढवाल भवन नई दिल्ली मे हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ और उसकी प्रासंगिकता पर प्रभावशाली संगोष्ठी का आयोजन दो सत्रो मे आयोजित किया गया।

संगोष्ठी के प्रथम सत्र मे मंचासीन रमेश घिन्डियाल, महेश चंद्रा, दिनेश मोहन घिन्डियाल, कुसुम कन्डवाल भट्ट व रोहित सुंदरियाल प्रबुद्ध वक्ताओ द्वारा गढ़वाली बोली-भाषा मे ऋषिबल्लभ सुंदरियाल के कृतित्व व व्यक्तित्व पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर व्यक्त किया गया, ऋषिबल्लभ सुंदरियाल छोटी उम्र मे ही एक प्रखर वक्ता, कुशल रणनीतिकार व सशक्त विचारधारा के बल राष्ट्रीय पहचान बनाने मे सफल रहे। उनके विचारों व जन के प्रति अपार निष्ठा व भावना को देख प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता था। उन्होंने अपने आदर्शो को आगे रख, अपनी पूरी जिंदगी हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ जैसे संवेदनशील मुद्दे पर दाव पर लगा कर रखी। हिमालय बचाओ आंदोलन में उनकी सक्रियता व उनके सामाजिक योगदान ने जनमानस के मध्य अमिट छाप छोडी थी। 1974 मे उनकी मृत्यु पर जन द्वारा शंखा व्यक्त की गई थी। जनभावना रही उनको मारा गया था। आयोजन के इस अवसर पर वक्ताओ द्वारा प्रेम सुंदरियाल को भी याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए।

संगोष्ठी के दूसरे सत्र में कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति दिल्ली महासचिव सुरेन्द्र रावत द्वारा मंचासीन पुरुषोत्तम शर्मा, नवेन्द्र मठपाल, डाॅ हरेन्द्र असवाल, पी आर आर्या (कुमाउनी) तथा सुशीला रावत के साथ-साथ सभागार में उपस्थित सभी प्रबुद्धजनो का स्वागत अभिनंदन किया गया। आयोजित संगोष्ठी को आयोजित करने मे मददगार रहे लोगों व संस्थाओ के प्रति आभार व्यक्त किया गया। सभी मंचासीनो के साथ-साथ अन्य वक्ताओ मे चंद्र मोहन पपनैं, डाॅ स्वर्ण रावत तथा गिरीश बिष्ट ‘हंसमुख’ द्वारा उत्तराखंड की दुदबोलि के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले मथुरादत्त मठपाल के कृतित्व व व्यक्तित्व पर कुमाउनी बोली-भाषा मे बोलते हुए व्यक्त किया गया, मथुरादत्त मठपाल को उत्तराखंड का जनमानस उत्तराखंड की लोक थातियों का पितर पुरुष मानते हैं। उत्तराखंड में बोली जाने वाली लोकभाषाओं के लिए उनका काम हमेशा याद किया जायेगा।

 

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, कुमाउनी में कविता-कहानी के अलावा उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं पर काम किया। कुमाउनी कवियों की कविताओं का हिन्दी और हिन्दी के कवियों की कविताओं का कुमाउनी में अनुवाद कर उन्होंने लोकभाषाओं को समृद्ध करने का प्रभावी कार्य किया। उन्होंने ‘दुदबोलि’ नाम से पत्रिका निकालकर कुमाउनी, गढ़वाली, जौनसारी, नेपाली और हिमालयी भाषाओं के लिए प्रभावशाली पहल की जिसे भुलाया नहीं जा सकेगा

 

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, मथुरादत्त मठपाल जी की मृत्यु के बाद सवाल खड़ा हो गया था, ‘दुदबोलि’ पत्रिका का प्रकाशन किया जाए या नही। भाषा से जुड़ा काम समझदारी भरा था, जो सवाल खड़ा कर रहा था। सोचा गया जनसमाज की मदद से पत्रिका प्रकाशित की जाए। यह सम्भव हुआ सबके सहयोग से पत्रिका का अंक दिल्ली से प्रकाशित हुआ, जो आज सबके सामने है। व्यक्त किया गया, एकाद अंक किसी तरह प्रकाशित हो जायेगा, सवाल है पत्रिका का निरंतर प्रकाशन कैसे होगा? यह कठिन होगा। व्यक्त किया गया जब उत्तराखंड की संस्कृति व सभ्यता संरक्षित रहेगी तभी बोली-भाषा भी संरक्षित रहेगी व ‘दुदबोलि’ पत्रिका का प्रकाशन सम्भव हो पायेगा।

 

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, कुमाउनी बोली भी उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तरह से बोली जाती है। व्यक्त किया गया, दूद मे जो मिला दूदबोलि। व्यक्त किया गया, पत्रिका प्रकाशन मे कुमाउनी शब्दों पर ध्यान देना आवश्यक होगा, जिसका पालन मथुरादत्त मठपाल जी किया करते थे। उक्त बातो पर ध्यान देने से ही बोली भाषा के साथ-साथ संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन होगा। संस्कृति नही बचेगी तो बोली-भाषा भी नही बचेगी। जब हमारे जल,जंगल,जमीन बचेंगे तभी संस्कृति और भाषा भी बचेगी। इसलिए भाषा, संस्कृति बचाने की लड़ाई को उत्तराखंड के जल, जंगल, जमीन को कारपोरेट घरानों से बचाने की लड़ाई से जोड़ना होगा। व्यक्त किया गया, ब्रह्म लिपि व पाली लिपि मर गई, हम उसे नहीं बचा पाए। पहले हमारे अंचल मे बग्वाई व ईगास मनाई जाती थी। पशुओ की पूजा की जाती थी। उनके लिए पकवान बनाऐ जाते थे। यह लोक जीवन से जुड़ा त्यौहार था। आज दीपावली मनाई जाती है, राम पूजा हो रही है। बम पटाखे फोडे जा रहे हैं। आज त्यौहारो पर बाजार हावी है। भाषा की जरूरत है। बाजार भाषा को खत्म कर रहा है। समझ ठीक करने की जरूरत है। संस्कृति, सभ्यता तभी बचेगी। यह सब रौंदने की कोशिश हो रही है। भावी पीढी को जागृत करना जरूरी है, तभी हमारे सरोकार बचैंगे।

 

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, पत्रिका प्रकाशित करने वाले का संघर्ष सबसे बड़ा है। मठपाल जी के संघर्ष को याद करना होगा। मठपाल जी की प्रेरणा से ही कुमाउनी बोली-भाषा मे गीत लिखने का हौसला मिला, बच्चों को अंचल की बोली-भाषा सिखाना जरूरी है। संस्कृति व सभ्यता‌ को बचाना जरूरी है। भाषा में व्यापकता होनी चाहिए। बोली-भाषा को सम्रद्ध करने के लिए अन्य बोली-भाषाओं का भी ज्ञान जरूरी है।

 

व्यक्त किया गया, बोली इतनी महत्वपूर्ण है जब तक बोली नहीं जाती एक दूसरे के बावत अवगत नहीं हुआ जा सकता। बोली-भाषा एक दूसरे को जोडती है। अपनी बोली के गीतों मे प्यार झलकता है। अपनी बोली-भाषा के गीतों के माध्यम से बातो को समझाया जा सकता है। अंचल की बोली-भाषा को लिपिबद्ध करना कठिन है, निरंतर प्रयास से यह सम्भव हो सकता है। अपने बच्चों के साथ अपनी बोली मे बोले। अपनी बोली दूसरो के मध्य भी पहुचानी चाहिए।

 

आयोजित संगोष्ठी के प्रथम सत्र में हरिदत्त मठपाल, गोबिंद चातक, खुशी राम आर्य व कुंती देवी वर्मा के पोस्टरों का लोकार्पण तथा द्वितीय सत्र मे मथुरादत्त मठपाल की जयन्ती के अवसर पर ‘कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति दिल्ली’ द्वारा प्रकाशित ‘दुदबोलि’ का नए अंक का लोकार्पण मंचासीनो व समिति पदाधिकारियों के कर कमलो किया गया। आयोजकों द्वारा आयोजन के इस अवसर पर अवगत कराया गया पोस्टर लोकार्पण का यह क्रम वर्ष 2006 से चलायमान है। विगत वर्षों से अभी तक उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों मे चेतना का नया रास्ता दिखाने वाले 63 प्रेरणाश्रोत लोगों के पोस्टरों का लोकार्पण किया जा चुका है।

 

“मथुरादत्त मठपाल स्मृति न्यास” द्वारा प्रत्येक वर्ष दिया जाने वाला मथुरादत्त मठपाल स्मृति पुरस्कार इस बर्ष कुमाउनी के नवोदित कवि उत्तराखंड चम्पावत जिले के गांव ‘चाँदनी’ के बहादुर सिंह बिष्ट को दिया गया। सम्मान स्वरूप नवोदित कवि को स्मृति चिन्ह, शाल व पांच हजार रुपए की नगद धनराशि प्रदान की गई।

 

आयोजित संगोष्ठी के प्रथम व द्वितीय सत्र का ज्ञानवर्धक मंच संचालन क्रमश: प्रदीप वेदवाल व चारु तिवारी द्वारा बखूबी किया गया। आयोजित संगोष्ठी का समापन कुमाउनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति दिल्ली अध्यक्ष डाॅ. मनोज उप्रेती द्वारा सभी वक्ताओ, उपस्थित प्रबुद्धजनो व आयोजन मे मददगार रहे क्रिएटिव उत्तराखंड, म्यर पहाड़, ऋषिसुंदरियाल विचार मंच तथा मथुरादत्त मठपाल स्मृति न्यास रामनगर का आभार व्यक्त कर किया गया।

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