योग, ध्यान, अध्यात्म और मोटिवेशनल गुरु रमेश कांडपाल की पुस्तक ‘मेरे देवदूत’ पर तथा उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर आयोजित परिचर्चा संपन्न
सी एम पपनै
नई दिल्ली। उत्तराखंड सदन चाणक्यपुरी सभाकक्ष में 27 मई की सायं योग, ध्यान, अध्यात्म और मोटिवेशनल गुरु के रूप में देश-विदेश में ख्यातिरत अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास से जुड़े वरिष्ठ प्राध्यापक रमेश कांडपाल द्वारा रचित पुस्तक ‘मेरे देवदूत’ एवं उक्त पुस्तक रचयिता के व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक उद्देश्य परक परिचर्चा का आयोजन सुप्रसिद्ध साहित्यकार सविता चड्डा की अध्यक्षता में हिमालयन रिसोर्स सोसायटी के सौजन्य से आयोजित की गई।
उक्त परिचर्चा शुभारंभ पूर्व उत्तराखंड सदन सभाकक्ष में उपस्थित उत्तराखंड प्रवासी परिषद उपाध्यक्ष एवं राज्यमंत्री पूरन चंद्र नैलवाल, सुप्रसिद्ध साहित्यकार व उत्तराखण्ड मीडिया सलाहकार समिति अध्यक्ष प्रो. (डॉ.) गोविंद सिंह, भारतीय विश्वविद्यालय संघ उपसचिव आलोक मिश्रा, दिल्ली शिक्षक विश्वविद्यालय वाइस चांसलर धनंजय जोशी, वरिष्ठ आइएएस व कामधेनु गो-धाम अध्यक्ष एस पी गुप्ता, वरिष्ठ आईएएस अजय गर्ग, मुख्यमंत्री उत्तराखंड मीडिया कॉर्डिनेटर मदन मोहन सती, नव भारती पब्लिक स्कूल प्राचार्य संजय भारतीय, राज्यसभा निदेशक मीना कण्डवाल, हिन्दी अकादमी पूर्व सचिव एवं साहित्यकार डा. हरिसुमन बिष्ट, दिल्ली पैरामेडिकल मैनेजमेंट अध्यक्ष विनोद बछेती, कैन्टवरी पब्लिक स्कूल निदेशक के सी गुप्ता, बाल भवन प्राचार्य विविध गुप्ता, भारत नेशनल पब्लिक स्कूल निदेशक कवलजीत खुंगर, तेरापंथ प्रोफेशनल फोरम से जुड़े श्रील जैन के साथ-साथ अन्य उपस्थित जनों में प्रमुख वरिष्ठ साहित्यकार क्रमशः रमेश घिल्डियाल एवं दिनेश ध्यानी, वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश जुगरान एवं चारू तिवारी तथा पी सी नैनवाल, लक्ष्मी रावत, सूर्यप्रकाश सेमवाल, हेम पंत, मनोज चन्दोला, संजय दडमोडा, रोहित खेरीवाल, कनिष्क यादव, सुयश राज इत्यादि इत्यादि का आयोजकों द्वारा भारतीय परम्परानुसार तिलक लगाकर व अंग वस्त्र पहना कर स्वागत अभिनन्दन किया गया।
आयोजित परिचर्चा में लगभग सभी वक्ताओं द्वारा सरल, सहज और विनम्र स्वभाव के धनी रमेश काण्डपाल द्वारा रचित पुस्तक ‘मेरे देवदूत’ के अनेकों प्रेरणादाई बिंदुओं तथा महत्वपूर्ण घटनाओं का जिक्र किया गया तथा उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया। प्रबुद्ध वक्ताओं द्वारा परिचर्चा में कहा गया, जीवन के अनुभवों का सार है, रमेश कांडपाल द्वारा रचित पुस्तक ‘मेरे देवदूत’। रचित पुस्तक जीवन में एक सकारात्मक चिंतन देने वाली पुस्तक है। समाज में सकारात्मक विचारों के संवहन करने में पुस्तक सहायक है। कहा गया, यह पुस्तक वास्तव में समाज के लिए प्रेरणादाई होगी।
वक्ताओं द्वारा कहा गया, रमेश कांडपाल द्वारा अपनी रचित पुस्तक के माध्यम से अपने जीवन यात्रा के छोटे-छोटे अनुभवों, प्रसंगों और उनसे हासिल की गई छोटी-बड़ी सीखों को एक सूत्र में पिरोया है। अपनी जीवन यात्रा के सहयात्रियों के प्रति अपनी कृतज्ञता ज्ञापित की है और उन्हें देवदूत की संज्ञा दी है।
वक्ताओं द्वारा कहा गया, रमेश कांडपाल जी का सानिध्य हमेशा सकारात्मक ऊर्जावान सरीखा रहा है। उनकी सहजता, सरलता में जादूई आकर्षण है। अपने अनुभवों से सीखने की तुलना में वे दूसरों के अनुभवों से सीखना अधिक लाभकर समझते हैं। उक्त सीख उक्त पुस्तक के पठन पाठन में भी मिलती है। उन्होंने पुस्तक में कई अनुभवों को जोड़ा है। रमेश कांडपाल जी के जीवन के प्रसंग व अनुभव सबके लिए प्रेरक है। यह पुस्तक जीवन में एक समझ युक्त चिंतन देने वाली है। छोटे-छोटे प्रसंग जहां जीवन की दिशा बदलेंगे वहीं राष्ट्र भक्ति के भाव भी भरेंगे।
वक्ताओं द्वारा कहा गया, ‘मेरे देवदूत’ पुस्तक में दूसरों को जो सम्मान का भाव रमेश कांडपाल जी ने दिखाया है वह काफी काबिले तारीफ है। रमेश जी की सादगी व व्यक्तित्व देखकर उन जैसा बनने की इच्छा करती है। उन्होंने समाज के लिए जो भी कार्य किया है वह विरल है। लगभग तीन हजार से अधिक विद्यालयों और पांच लाख छात्रों को नैतिक मूल्यों, ध्यान व अणुव्रत की रचनात्मक गतिविधियों को पहुंचाने का विहंगम कार्य किया गया है। सेवा कार्य में सदैव तत्पर रहने वाले रमेश काण्डपाल का जीवन अत्यधिक प्रेरक है।
अनेकों वक्ताओं द्वारा रमेश कांडपाल जी के साथ अपने अनुभवों को भी साझा किया। कहा, रमेश जी का व्यक्तित्व अनेक गुणों से युक्त है। ‘मेरे देवदूत’ पुस्तक लिखकर जो सबका सम्मान किया गया है उसके लिए सब ऋणी हैं। वक्ताओं द्वारा बताया गया, जैन समाज के बाहर से आने के बाबजूद रमेश कांडपाल जैन समाज का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्हें वक्ताओं द्वारा कल्याण मित्र से भी अलंकृत किया गया।
आयोजित परिचर्चा की अध्यक्षता कर रही सुप्रसिद्ध साहित्यकार सविता चड्डा द्वारा रमेश कांडपाल को विरल व्यक्तित्व से संबोधित किया गया। स्वयं के अनुभव साझा करते हुए उन्होंने बताया, रमेश कांडपाल जी ने कभी भी अपनी स्वयं की अर्थव्यवस्था को प्राथमिकता नहीं दी और हमेशा समाज कल्याण में संलग्न रहे। इन्होने जिन्हें देवदूत बनाया है अब उनकी बारी है कि रमेश जी पर एक पुस्तक रची जाए। कहा, वे स्वयं भी उक्त पुस्तक को एक प्रभावी रूप देने का प्रयास करेंगी।
मूलतः अल्मोड़ा उत्तराखंड के रहवासी पुस्तक रचयिता रमेश काण्डपाल द्वारा अपने वक्तव्य में सभागार में उपस्थित सभी श्रोताओं का स्वागत अभिनन्दन कर सबके प्रति आत्मिक भाव से अभिवादन किया गया। परिचर्चा आयोजक हिमालयन रिसोर्स सोसायटी, उत्तराखंड सदन व उत्तरायणी संस्था की ओर से मंच संचालक नीरज बवाडी द्वारा सभी उपस्थित प्रबुद्ध जनों का परिचर्चा में उपस्थित होने पर आभार व्यक्त किया गया, परिचर्चा समाप्ति की घोषणा की गई।
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