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उत्तराखंड ‘राज्य संघर्ष की कहानी’ पर आधारित नाटक का सफल मंचन


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सी एम पपनैं

नई दिल्ली। विगत चार दशकों से दिल्ली प्रवास मे उत्तराखंड की लोकसंस्कृति के संवर्धन हेतु निरंतर प्रयासरत सांस्कृतिक संस्था ‘पर्वतीय लोक कला मंच’ द्वारा 27 नवम्बर की सायं आईटीओ स्थित प्यारे लाल सभागार में अपार श्रोताओं के मध्य संस्था संस्थापक व नाट्य निर्देशक स्व.गंगा दत्त भट्ट की पावन स्मृति में संगीतमय नाटक ‘राज्य संघर्ष की कहानी’ का सफल मंचन हेमपन्त के नाट्य निर्देशन व विरेन्द्र नेगी ‘राही’ के संगीत निर्देशन मे मंचित किया गया।

मंचित नाटक शुभारंभ से पूर्व मुख्य व विशिष्ट अतिथियो मे प्रमुख डाॅ आशुतोष कर्नाटक, डाॅ हरिसुमन बिष्ट, चारु तिवारी, अजय सिंह बिष्ट, संयोगिता ध्यानी, खुशाल सिंह बिष्ट, उदय शर्मा, रमेश कांडपाल, हरि सेमवाल, सुशीला रावत, चंद्र मोहन पपनैं तथा पर्वतीय लोक कला मंच अध्यक्ष हीरा बल्लभ कांडपाल, संयोजक दिनेश फुलारा इत्यादि इत्यादि द्वारा दीप प्रज्वलित कर व स्व.गंगा दत्त भट्ट के चित्र पर गमगीन होकर गुलाब की पंखुड़ियां अर्पित की गई। स्व.गंगा दत्त भट्ट द्वारा रंगकर्म व आंचलिक फिल्मों में आजीवन किए गए प्रभावशाली नृत्य, अभिनय व नाटकों मे दिए गए योगदान व निर्देशन पर वृतचित्र का भावपूर्ण प्रर्दशन कर भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी गई।

आयोजक संस्था पदाधिकारियों द्वारा मुख्य व विशिष्ट अतिथियों के साथ-साथ स्व.गंगा दत्त भट्ट के पुत्रो राजेश व मनोज भट्ट तथा पुत्रियों दिव्या व मधु सिलोढी को पुष्पगुच्छ व शाल ओढा कर स्वागत अभिनंदन किया गया। संस्था अध्यक्ष आनंद बल्लभ द्वारा सभी अतिथियों व सभागार में उपस्थित रंगकर्मियों, समाज सेवियों विभिन्न संस्थाओ से जुडे प्रबुद्धजनो, पत्रकारो व साहित्यकारों का स्वागत अभिनंदन किया गया, स्व.गंगा दत्त भट्ट द्वारा संस्था को दिए गए योगदान पर प्रकाश डाला। सेसंस्था की गतिविधियों के बावत अवगत कराया गया।

हेम पंत द्वारा उत्तराखंड राज्य आंदोलन की परिकल्पना पर रचित नाटक का श्री गणेश उत्तराखंड के लोक जीवन से जुडे शुभमुहूर्त लोक मांगल गीत, सांध्य गीत व नृत्य के साथ-साथ, उत्तराखंड की लोकगाथा राजुला मालूशाही से जुडे फच्चुवा दोर्याव व राजुला के हास्य से भरपूर अंश तथा उत्तराखंड के लोकगीतो व नृत्यों की शृंखला मे प्रमुख चांचरी, थड़िया इत्यादि इत्यादि के प्रभावशाली मंचन के साथ ही उत्तराखंड राज्य गठन की संघर्ष गाथा मे महिलाओ व पुरुषों की राज्य गठन की कल्पना पर भाव पूर्ण विचारों, जन जागरूकता, जनमानस के दिल्ली कूच पर मुज्जफरनगर कांड में पुलिस बर्बरता व राज्य गठन के बाद के हालातो व जन की चाहत व सु-विख्यात लोकगायक स्व. गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ के जनगीत-
ओ जैता एक दिन आलो यो दिन दुनी मे…।

लोकभावना से जुडे गीत को मंचित नाटक में पिरोना निर्देशक की कुटिलता कहा जा सकता है, जो एक सराहनीय प्रयास रहा।

राज्य संघर्ष की कहानी पर आधारित मंचित नाटक दर्शकों द्वारा सराहा गया। करीब तीस स्त्री व पुरुष कलाकारों के अभिनय, नृत्य व गायन का स्तर मंचित नाटक के अनुकूल था। ‘घुघुती सांस्कृतिक कला मंच’ की नृत्य निर्देशिका कोमल राणा नेगी द्वारा प्रशिक्षित नृत्यांगनाओ के नृत्यों ने अच्छी छाप छोडी, मंचित नाटक को सफलता प्रदान करने मे योगदान दिया।

विरेन्द्र नेगी ‘राही’ के संगीत, सत्येन्द्र परंडियाल, भुवन रावत, हरीश रावत, भुवन गोस्वामी, दीपाली प्रसन्ना व प्रियांशी मिश्रा के लोकगीत गायन ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया। ममता कर्नाटक, गीता गुसाई, सविता पंत, लक्ष्मी रौतेला, महेंद्र लटवाल, के एन पांडे ‘खिमदा’, भूपाल सिंह बिष्ट, खुशाल सिंह रावत के अभिनय व कुमांउनी व गढ़वाली बोली-भाषा मे व्यक्त संवादो ने श्रोताओं को प्रभावित किया। सूत्रधार के रूप मे डाॅ कमल कर्नाटक ने विशेष छाप छोड मंचित नाटक को स्तरीय दर्जा दिलवाने की शानदार पहल की। मंच संचालन हेमपंत द्वारा बखूबी किया गया।

निष्कर्ष स्वरूप कलाकारों के अभिनय व व्यक्त संवादो के बल ‘पर्वतीय लोक कला मंच’ द्वारा मंचित नाटक को उत्तराखंड की नाटक मण्डलियों द्वारा मंचित नाटकों के परिपेक्ष मे सफल नाटक का दर्जा दिया जा सकता है।
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