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लॉकडाउन में फंसे उत्तराखंड के असहाय प्रवासी मजदूरों के हित मे धरना

सी एम पपनैं

भतरोंज (नैनीताल)। देश की अनेकों राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न नगरों व महानगरों मे लाकडाउन मे फसे राज्य के अपने प्रवासी मजदूरों को अपने-अपने राज्यो मे वापस लाने का बीड़ा उठाया गया है। उत्तराखंड की राज्य सरकार को भी देखा-देखी शर्मा-शर्मी यह बीड़ा उठाने को मजबूर होना पड़ा है। सर्वविदित है, देश के अन्य राज्यो की भांति उत्तराखंड के भी हजारों बेहाल प्रवासी मजदूर भी थक-हार, पैदल चल कर, पहले ही उत्तराखंड पहुच चुके हैं।

घोषित नए नियमो के तहत वापसी की सुगबुगाहट के बीच इतवार तक करीब एक लाख सैंतीस हजार से अधिक उत्तराखंड के प्रवासी श्रमिको द्वारा उत्तराखंड लौटने हेतु रजिस्ट्रेशन करवाने की खबर है। रजिस्ट्रेशन की पहली खेप मे चौदह सौ प्रवासी मजदूरों को उत्तराखंड पहुचा दिए जाने की खबर सुर्खियों में बनी हुई है।

लॉकडाउन मे डेढ़ महीने से अधिक समय तक रोजी-रोटी गंवा कर देश भर के विभिन्न स्थानों पर प्रवासी मजदूर फंसे रहे। लाखों की संख्या में मजदूर हैरान-परेशान रहे। मजबूरन कोई चारा न देख, बदहाली मे अपने गंतव्यों की तरफ पैदल ही निकल पड़ने का साहस किया। सैकड़ों किलोमीटर भूखे-प्यासे चलने के कारण अनेक मजदूरों के जान गवाने की खबरो ने जनमानस को विचलित किया है।

डेढ़ माह के बाद नगरों व महानगरो मे फसे प्रवासी मजदूरों को उनके अपने गंतव्यों तक पहुंचाने का केंद्र सरकार द्वारा फैसला जरूर लिया गया, परंतु पीड़ित व असहाय प्रवासी मजदूरों से गंतव्य तक पहुचाने का भाड़ा बढ़ाई गई दर पर वसूल किए जाने की खबरों ने लोगों को अचंभित व आश्चर्य चकित किया है। देश के जनमानस द्वारा इसे निर्दयतापूर्ण कह, खेद व्यक्त किया जा रहा है। ऐसे में रोजगार गंवा चुके, खाने को मोहताज मजदूरों से ज्यादा भाड़ा वसूल किए जाने पर जनमानस के बीच स्थापित सरकारों के खिलाफ दुर्भावना का पैदा होना लाजमी है। जिसे स्थापित सरकारो की संवेदनहीनता की पराकाष्ठा कहा जा रहा है।

लाकडाउन मे बंद जनमानस द्वारा महसूस किया जा रहा है केंद्र व राज्यो के बीच आपसी सामंजस्य के न होने से, लिए जा रहे निर्णय संकट की घड़ी में लोगो को खल रहे हैं। खासकर उन लोगों को जो अन्यत्र अपने घरों से बाहर अपने वाहनों के साथ पति-पत्नी, बुजुर्ग माता-पिता व एकाद बच्चे सहित चालीस दिनों से फंसे हुए हैं। जेब में रखी रकम खर्च कर, सरकार के विचित्र निर्णयों मे घरो से बाहर उलझे व सहमे हुए हैं। यहां तक कि उत्तराखंड के ग्रीन जोन से ओरेंज जोन में तक अपना बाहन होने पर भी अपने परिजनों के साथ प्रस्थान करने का कोई चारा न पा मुसीबतों मे फंसे हुए हैं। सरकार के अंधेरे मे हांके जा रहे निर्णयों को कोश रहे हैं।

जनमानस द्वारा व्यक्त किया जा रहा है, जहां एक ओर बदहाल बीच में फंसे लोग व मजदूर अपने घरो को जाने हेतु बेहाली मे आतुर हैं। दूसरी ओर लॉकडाउन नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के करीबी अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश द्वारा उत्तर प्रदेश के एक विधायक जिस पर हत्या के आरोप हैं, उसे उत्तराखंड में घूमने का पास जारी कर, केंद्र के लाकडाउन के नियमो के विपरीत कार्य किया गया है। गुजरात के लोगों को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा विशेष रूचि लेकर, गुजरात भेजा गया है। ऐसा ही निर्णय अन्य के लिए क्यों नही? प्रश्न बनकर खड़ा है।

साथ ही, जरूरतमंदों को राशन व पीड़ित मजदूरों को टिकट तथा संकट की घड़ी मे थोड़ी बहुत धनराशि उपलब्ध करवाने के बजाय शराब की दुकाने को खोलने के सरकारी निर्णय को भी जनमानस द्वारा सरकार की खोट भरी नियत के रूप मे देखा जा रहा है।

महासंकट की इस घड़ी में स्थापित सरकारों की खोटी नियत का अवलोकन कर उत्तराखंड की वामपंथी,जनवादी पार्टियां और संगठन इस विपदा काल में मेहनतकश तबके के प्रति केंद्र व राज्य सरकार के इस उपेक्षापूर्ण रवैये के विरोध मे 05 मई को धरना देने का ऐलान कर चुका है। सूचनानुसार उक्त पार्टियां धरना लॉकडाउन के नियमों का पालन करते हुए घरों के अंदर ही देंगी।

उक्त धरने के जरिये केंद्र व राज्य सरकार से जिन मांगो को पूर्ण करवाने की अपेक्षा की जा रही है, उनमे प्रवासी मजदूरों को स्पेशल ट्रेनों से निशुल्क उनके गंतव्यों तक पहुंचाए जाने। रोजगार गंवा चुके मजदूरों को दस हजार रुपया लॉकडाउन भत्ता दिए जाने। उन सभी लोगों को जिनके पास राशन कार्ड है या नहीं सभी को तीन माह का राशन निशुल्क दिए जाने की मांग मुख्यरूप मे रखी गई है। उक्त मदों मे खर्च होने वाली धनराशि को जारी करने का प्रावधान पीएम केयर्स फंड से करने की मांग रखे जाने की सूचना है। उक्त पार्टियों द्वारा व्यक्त किया गया है, पीएम केयर्स फंड का घोषित उद्देश्य ही कोरोना संकट के चलते उपजने वाले हालातो से निपटने के लिए धनराशि एकत्र करना मुख्य उद्देश्य बताया गया था। उक्त संगठनों का कहना है, पीएम केयर्स फंड में एकत्रित हजारों करोड़ रुपये की धनराशि का उपयोग संकटग्रस्त मजदूरों को राहत पहुंचाने के लिए किया जाना चाहिए।

सूचनानुसार 5 मई को इस सामूहिक धरने के उपरान्त भाकपा के राज्य सचिव समर भण्डारी, माकपा के राज्य सचिव राजेन्द्र नेगी, भाकपा (माले) के राज्य सचिव राजा बहुगुणा, उत्तराखंड लोक वाहिनी के कार्यकारी अध्यक्ष राजीव लोचन साह, उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पी.सी.तिवारी, उत्तराखंड महिला मंच की केंद्रीय संयोजक कमला पंत, क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के अध्यक्ष पी.पी.आर्य, अंबेडकर मिशन के बी.आर टम्टा, उत्तराखंड पीपल्स फोरम के जयकृत कंडवाल, भार्गव चंदोला के साथ-साथ उक्त आयोजित धरने में सिरकत करने वाले परिवर्तन कामी छात्र संगठन तथा आइसा से जुड़े लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम उपरोक्त मांगो पर ज्ञापन प्रेषित कर केंद्र सरकार को चेतायेंगे।

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