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माताश्री राजेश्वरी देवी : करुणा , ज्ञान एवं वात्सल्य की प्रतिमूर्ति

देवभूमि उत्तराखण्ड प्राचीन काल से ही ज्ञान, भक्ति, योग, साध्ना, समाज सेवी तथा रणबांकुरों की जन्म एवं कर्मस्थली रही है। इस पावन भूमि ने वीर चंद्रसिंह गढ़वाली, तीलू रौतेली, पंडित गोविन्द बल्लभ पंत, योगीराज श्री हंसजी महाराज, समाज सेवी डॉ. स्वामी राम, श्री भक्तदर्शन, श्री हेमवतीनंदन बहुगुणा, श्री नारायणदत्त तिवारी तथा कवि सुमित्रानंदन पंत जैसी अनेक महान विभूतियों को जन्म दिया जिन्होंने अपने व्यक्तित्व तथा सत्कर्मों के द्वारा पूरी दुनिया में उत्तराखण्ड का नाम रोशन किया।
उत्तराखण्ड में जन्मे ऐसे ही महान पुरफषों की श्रृंखला में एक नाम है आध्यात्मिक विभूति, विचारक एवं समाज सेवी माताश्री राजेश्वरी देवी का, जिन्हें देश-विदेश में पफैले उनके करोड़ों भक्त ‘जगतजननी माता’ के नाम से भी पुकारते हैं। दया, करुणा, ज्ञान एवं वात्सल्य की प्रतिमूर्ति माता श्री राजेश्वरी देवी का जन्म पौड़ी गढ़वाल जिले के अन्तर्गत मेलगांव, पट्टी तलाई में 6 अप्रैल, 1932 को हुआ। उनके पिता श्री गोपालसिंह तथा माता श्रीमती चन्द्रादेवी धर्मिक प्रवृत्ति के थे और उनके घर पर सन्त-महात्माओं का आना-जाना लगा रहता था। उस समय पहाड़ में स्कूल व पाठशालाएं नहीं होने के कारण राजेश्वरी देवी की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई। वे बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि की धनी थीं तथा बचपन से ही उन्हें रामायण, गीता तथा वेद-पुराण आदि धर्मशास्त्र को पढ़ने का शोक था। सत्संग तथा प्रभु चर्चा का वातावरण मिलने से उनके अन्दर सेवा तथा भक्ति के संस्कार अंकुरित होने लगे थे।
राजेश्वरी देवी का विवाह पौड़ी जिले के पोखड़ा ब्लाक स्थित ‘गाड़ की सेड़िया’ नामक गांव में योगीराज श्री हंसजी महाराज के साथ सम्पन्न हुआ। उस समय श्री हंसजी महाराज अपने आध्यात्मिक गुरु स्वामी स्वरूपानन्द जी महाराज के सान्निध्य में अध्यात्म ज्ञान का पूरी तन्मयता से प्रचार-प्रसार कर रहे थे। उन्होंने कठोर परिश्रम कर लाखों लोगों को प्रेम, ज्ञान एवं भक्ति के मार्ग पर लगाया और कई वर्ष तक भक्तों को आनन्द देते रहे। देश-विदेश में सत्संग व ज्ञान का प्रचार करते हुए सन् 1966 में श्री हंसजी महाराज ने हम सबसे विदा लेकर परमधम को चले गये। उनका महानिर्वाण लाखों भक्तों एवं संत-महात्माओं के लिए अत्यंत कष्टदायक तथा असहनीय था।
इस दुखद घड़ी से उबरना किसी के लिए भी आसान नहीं था। उनके परलोक गमन की घटना ने भक्त समाज के साथ ही माताश्री राजेश्वरी देवी को भी बुरी तरह झकझोर दिया था। ‘आया है सो जायेगा’ की उक्ति को स्वीकार करते हुए माता राजेश्वरी ने धीरे धीरे अपने आप को संभाला तथा भक्तों को भी ढाढ़स बंधकर ज्ञान और भक्ति के मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। माताश्री राजेश्वरी देवी का पहला विशाल सत्संग समारोह सन् 1970 में लंदन के ओल्ड टाउन हाल में हुआ जहां पर कई हजार लोगों ने उनके प्रवचन सुने तथा अध्यात्म ज्ञान की दीक्षा ली। जब वे पहली बार लन्दन गईं तो वहां हवाई अड्डे पर उनका जोरदार स्वागत किया गया। न्यू कैसल के लार्ड मेयर ने माताश्री राजेश्वरी देवी अभिनन्दन करते हुए कहा-‘‘यह हमारे देश के लिए सौभाग्य की बात है कि भारत से आकर मां राजेश्वरी शान्ति का संदेश दे रही हैं। उनका सन्देश तथा शिक्षाएं आदर के साथ ग्रहण करने योग्य हैं।’’
माता श्री राजेश्वरी देवी का मातृशक्ति के प्रति बहुत प्रेम था। वे महिलाओं के दुख-दर्द को देखकर द्रवित हो जाती थीं तथा उनके कष्टों को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करती थीं। अपने प्रवचनों में वे कहा करती थीं-‘‘नारी मातृशक्ति है, शक्तिस्वरूपा है। जहां पर नारियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं।’’ उन्होंने महिलाओं को प्रेरित किया कि वे अपने बच्चों में भक्ति तथा सेवा के संस्कार डालें जिससे वे आगे चलकर देश के अच्छे नागरिक बन सकें। भगवान राम, भगवान कृष्ण, स्वामी विवेकानन्द, महात्मा बुद्ध, ध््रुव, प्रहलाद, छत्रापति शिवाजी, महाराणा प्रताप, झांसी की रानी तथा मीराबाई आदि को महान बनाने में उनकी माताओं का बहुत बड़ा योगदान था।
माता श्री राजेश्वरी देवी का सदाचार तथा सत्कर्मं में अटूट विश्वास था और कर्म को वे ईश्वर की आराध्ना मानती थीं। प्रवचन में अक्सर वे कहा करती थीं-‘‘मैं सत्कर्म में विश्वास रखती हूं क्योंकि मनुष्य होने का गौरव कर्मशीलता में ही है।’’ उनका कहना था कि भगवान के नाम का सुमिरण करने से ही दुनिया में शान्ति हो सकती है, बाहरी चीजों के द्वारा यह संभव नहीं है। मनुष्य की वृत्तियों को बदलने की क्षमता केवल भगवान के नाम में ही है जिसका ज्ञान समय के सद्गुरु महाराज देते हैं। माता राजेश्वरी देवी ने बच्चों को सद्शिक्षा देने तथा उनके बेहतर स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक किया। दीन-दुखियों एवं जरूरतमंदों की सेवा को वे ईश्वर की पूजा मानती थीं। माता राजेश्वरी देवी निराश व हताश हो चुके गरीब लोगों के लिए आशा की किरण बनकर ध्रती पर आई थीं।
माता श्री राजेश्वरी देवी ने गरीब एवं असहाय लोगों के ठहरने तथा इलाज कराने के लिए कई जगह धर्मशाला, चिकित्सालयों का निर्माण कराया। 24 नवम्बर 1991 की रात्रि में माताश्री राजेश्वरी देवी हम सबको रोता-बिलखता छोड़कर परमधम को चले गईं। यद्यपि वे शरीर से आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनका आशीर्वाद युगो-युगों तक भक्तों को मिलता रहेगा तथा उनकी शिक्षाएं प्रेरणा बनकर हमेशा हमारा मार्गदर्शन करती रहेंगी। माता श्री राजेश्वरी देवी के महानिर्वाण के बाद उनके सुपुत्रा श्री भोलेजी महाराज अपनी र्ध्मपत्नी मंगलाजी के साथ उनके पदचिन्हों पर चलकर अध्यात्म ज्ञान के प्रचार-प्रसार, मानव सेवा तथा जनकल्याण के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं।
श्री भोलेजी महाराज एवं माताश्री मंगलाजी के मार्गदर्शन में द हंस पफाउण्डेशन एवं हंस कल्चरल सेंटर ‘राजेश्वरी करफणा शिक्षा परियोजना’ का शुभारम्भ किया गया है जिसके तहत सुनैना रावत नवदीप चिल्ड्रन एकेडमी सेड़ियाखाल पोखड़ा, बोक्सा जनजाति बालिका विद्यालय कोटद्वार, मां राजेश्वरी स्मारक मनु मंदिर जूनियर हाईस्कूल, गुरूकुल हरिद्वार, राजेश्वरी करफणा स्कूल कैम्पटी मसूरी, राजेश्वरी करफणा स्कूल, देघाट अल्मोड़ा, राजेश्वरी करफणा स्कूल, मैखण्डा रफद्रप्रयाग तथा राजेश्वरी करफणा एवं आशालता विलकिन्सन स्कूल संजय कालोनी, भाटी माइंस, नई दिल्ली के अलावा देश के कई भागों में स्कूलों का संचालन किया जा रहा है जिनमें गरीब बच्चों को निःशुल्क शिक्षा प्रदान की जाती है। बेसहारा तथा जरूरतमंद लोगों को बीमारियों से राहत दिलाने के लिए सतपुली जिला-पौड़ी गढ़वाल में आधुनिक सुविधओं से युक्त द हंस फाउण्डेशन जनरल हॉस्पिटल तथा बहादराबाद हरिद्वार में द हंस पफाउण्डेशन आई केयर आंखों के अस्पताल का संचालन किया जा रहा है। इन अस्पतालों से प्रतिदिन सैकड़ों मरीज अपने स्वास्थ्य की जांच कराकर निःशुल्क दवाइयां प्राप्त कर रहे हैं।
माताश्री राजेश्वरी देवी की पावन जयन्ती 6 अप्रैल पर हम सब उन्हें कोटि-कोटि नमन करते हैं तथा उनसे प्रार्थना करते हैं कि आप हमें भक्ति दें, शक्ति दें तथा अपना आशीर्वाद प्रदान करें ताकि हम ज्ञान, भक्ति, मानव सेवा एवं जनकल्याण के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहें।

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