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धरोहर है साहित्यकार नीलांबर पाण्डेय द्वारा रचित ‘कुमाऊनी शब्द सम्पदा व्युत्पत्ति कोश’

सी एम पपनै

पुस्तक समीक्षा
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उत्तराखंड की बोली-भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन हेतु अनेक स्तर पर अलग-अलग कालखंडों में अनेकों विद्वत जनों द्वारा अपनी दूद बोली से अगाध लगाव के चलते अपने ज्ञान व योग्यतानुसार सराहनीय कार्य किया गया है। वर्ष 2024 के अंतिम महीनों में विद्वान लेखक, साहित्यकार और हिंदी, संस्कृत तथा कुमाऊनी बोली-भाषा में गहरी पकड़ तथा उसे प्रकट करने में माहिर रहे नीलांबर पाण्डेय द्वारा ‘कुमाऊनी शब्द सम्पदा व्युत्पत्ति कोश’ शीर्षक से कुमाऊनी शब्दों के मूल स्रोत के साथ उक्त शब्दों की व्याख्या कर उक्त प्रकाशित पुस्तक के माध्यम से अद्वितीय कार्य किया गया है जो आंचलिक बोली-भाषा प्रेमियों और पाठकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती, उन्हें प्रभावित करती तथा भविष्य की पीढ़ी हेतु बहुत उपयोगी नजर आती है। उक्त प्रकाशित पुस्तक के महत्व को अंचल की एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में देखा जा सकता है।

प्रकाशित शब्दकोष का पठन पाठन कर ज्ञात होता है, कुमाऊनी बोली-भाषा संस्कृत मूल की है अधिकांश शब्द संस्कृत भाषा के हैं या उसके अपभ्रंश हैं। भाषा वैज्ञानिक कुमाऊनी बोली-भाषा को खड़ी बोली हिंदी की उप-भाषा मानते हैं। प्रकाशित पुस्तक का पठन-पाठन कर विदित होता है कुमाऊनी बोली भाषा में नेपाली, अरबी, फारसी, प्राकृत, पालि, पुर्तगाली तिब्बती और अंग्रेजी मूल के भी अनेक शब्द घुले-मिले हैं। उक्त भाषाओं के शब्दों से कुमाऊनी बोली-भाषा का शब्द भंडार समृद्ध हुआ दिखाई देता है। कुमाऊनी बोली-भाषा में प्रमुख रूप से बोले जाने वाले अन्य भाषा के शब्दों को नीलांबर पाण्डेय द्वारा प्रकाशित पुस्तक में हिंदी वर्णमाला शब्दों के क्रमानुसार उक्त शब्दों की व्युत्पत्ति उजागर करने का प्रभावशाली व ज्ञानवर्धक प्रयास किया गया है जो प्रकाशित पुस्तक की महत्ता को बढ़ाता नजर आता है।

विभिन्न प्रकार की विविधताओं से ओतप्रोत जन समाज में बोली-भाषा भी विविधता का एक हिस्सा है जो भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक किसी भी आधार पर विविधता लिए हुए होती है। मध्य हिमालय उत्तराखंड में बोली जाने वाली बोली-भाषाओं के शब्दों में बहुत विविधता है, शब्दों में श्रेष्ठता निहित है।

नीलांबर पाण्डेय द्वारा रचित व प्रकाशित पुस्तक की शब्द समाहार शक्ति अदभुत है, सरल रचना विन्यास है। यथार्थ ध्वनि मूलकता वाले शब्दों की भी बहुलता है। शब्दों के पर्यायवाचियों का वैविध्य है। कुमाऊनी बोली भाषा मूलतः संस्कृत निष्ट होने से गौरवपूर्ण और सर्व समावेशी भाषा है। उक्त श्रेष्ठता को नीलांबर पाण्डेय की प्रकाशित पुस्तक में की गई शब्दों की व्युत्पत्ति से जाना व समझा जा सकता है।

प्रकाशित पुस्तक के माध्यम से नीलांबर पाण्डेय द्वारा अवगत कराया गया है, कुमाऊं और गढ़वाल की बोली-भाषाओं का उद्भव बहुत प्राचीन है। वर्तमान में कुमाऊनी सोलह उप बोलियों के रूप में बोली जाती है। व्यवहार रूप में बोली जाने वाली बोली को पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी कुमाऊनी बोली के रूप में नीलांबर पाण्डेय द्वारा वर्गीकृत किया गया है। प्रकाशित पुस्तक में कुमाऊनी और गढ़वाली के समान शब्दों का भी उल्लेख किया गया है। कुमाऊनी आंचलिक बोली-भाषा के उक्त ज्ञान को प्रकाशित पुस्तक के माध्यम से पाठकों के मध्य रख निश्चय ही नीलांबर पाण्डेय द्वारा बहुत ही सराहनीय, प्रभावशाली और वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी के लिए उपयोगी कार्य किया गया है।

‘कुमाऊनी शब्द सम्पदा व्युत्पत्ति कोश’ पुस्तक रचयिता, साहित्यकार तथा भाषा विज्ञान में डिप्लोमा प्राप्त नीलांबर पाण्डेय मूल रूप से ग्राम गुडौली जिला पिथौरागढ़ के रहवासी हैं। भारत सरकार के स्वास्थ्य, वित्त , खाद्य प्रसंस्करण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालयों के साथ-साथ योजना आयोग में उच्च पदों पर पदस्थ रह कर रक्षा मंत्रालय भारत सरकार में निदेशक पद से सेवानिवृत हैं। साहित्यिक एवं प्रकाशन कार्यों में सिद्धहस्त रहे हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में लिखते रहते हैं। सामाजिक और बौद्धिक कार्यों में उत्तराखंड के प्रवासी जनों व गठित संस्थाओं के साथ बढ़-चढ़ कर मददगार बने रहते हैं। वर्तमान में राष्ट्रपति भवन सोसाइटी, द्वारका, नई दिल्ली में स्थाई रूप से निवासरत हैं।

प्रकाशित पुस्तक का मूल्य 400/- रुपया मात्र तथा पुस्तक प्रकाशक कमल ग्राफिक्स, पटेल गार्डन, द्वारका मोड़, नई दिल्ली-110078 द्वारा किया गया है।

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