गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड मे दर्ज हुआ उत्तराखंड मे उत्पादित सुगंधित व औषधीय धनिया पौंधा
सी एम पपनैं
नई दिल्ली। उत्तराखंड, अल्मोड़ा जनपद, ताड़ीखेत विकास खंड, बिल्लेख गांव के केवलानंद उप्रेती के सिविल इंजीनियर पुत्र गोपाल दत्त उप्रेती द्वारा व्यक्तिगत प्रयासो के बल अपने बिल्लेख गांव स्थित सेव बगान में सात फुट एक इंच ऊंचे सुगंधित व औषधीय धनिये के पौंधे जैविक विधि से उत्पादित कर, कृषि उघम के क्षेत्र मे नई वैश्विक क्रान्ति की अलख जगा, कृषि वैज्ञानिकों, काश्तकारों तथा उद्यम विकास मे संघर्षरत उद्यमियो का ध्यान अपना नाम गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड मे दर्ज करा, वैश्विक फलक पर ख्याति अर्जित की है। इससे पूर्व यह रिकॉर्ड छह फुट एक इंच का था।
जैविक विधि से उत्पादित उक्त धनिया पौंधों का वैज्ञानिक अध्ययन करने के लिए 21 अप्रैल को विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा के वैज्ञानिक डॉ गणेश चौधरी द्वारा उत्पादित पौंधों का निरीक्षण कर इसकी पुष्टि की गई थी। माह मई प्रथम सप्ताह मे इस उपलब्धि को लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्स में दर्ज किया जा चुका था।
आईसीएआर वैज्ञानिक डॉ गणेश चौधरी व उत्तराखंड के चीफ हॉर्टिकल्चर आफिसर टी एन पांडे, उत्तराखंड आर्गेनिक बोर्ड रानीखेत-मजखाली इंचार्ज डॉ देवेन्द्र सिंह नेगी, उद्यान सचल दल केंद्र बिल्लेख प्रभारी राम सिंह नेगी के द्वारा उक्त सुगंधित व औषधीय गुणों से युक्त तथा पाचन तंत्र को मजबूत करने वाला अम्बेलीफेरी कुल के धनिया पौंधे को विटामिन ‘ए’, ‘सी’ तथा ‘के’ गुणों के साथ-साथ कैल्शियम, कॉपर, आयरन, कार्बोहाइट्रेड, थियामिन, पोटेशियम, फास्फोरस से युक्त बताया गया था। वैज्ञानिकों के मुताबिक आमतौर पर धनिया पौंधों की ऊंचाई वैश्विक स्तर पर दो से छह फुट एक इंच तक देखी जाती रही। पहली बार उत्तराखंड मे सात फुट एक इंच धनिये पौंधे की अदभुत व आश्चर्य चकित कर देने वाली पैदावार कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अवलोकित की गई थी।
कृषि वैज्ञानिकों द्वारा की गई प्रत्यक्ष पुष्टि के बाद, उत्पादित पौंधों के पुनर्वालोकन तथा डाक्यूमेंटेशन कराने हेतु गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड तथा लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स से जुड़े पदाधिकारियों को 23 अप्रैल को पत्र भेज आमंत्रित किया गया था।
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड मे इस उपलब्धि के अंकित हो जाने पर उघमी गोपाल उप्रेती सहित उत्तराखंड राज्य सरकार को भविष्य मे वैश्विक फलक पर कृषि उघमिता विकास के क्षेत्र मे लाभ मिलने की संभावना है।
सत्तर नाली जमीन मे निर्मित सेव बगान मे पर्याप्त मात्रा में वर्षा जल संग्रहण से इस उद्यमी की कृषि क्षेत्र मे भावी योजनाओ को भी बल मिलने की संभावना है। सेव उत्पादन के अतिरिक्त निर्मित बगान में सब्जियों मे ब्रोकली, कैप्सिकम, लेमनग्रास के साथ-साथ फ्लोरीकल्चर, मिंट, तुलसी, लहसुन इत्यादि का उत्पादन करने की योजना इस उद्यमी द्वारा बनाई गई है। केल, धनिया, लहसुन, मटर, लाई, मेथी, सरसों का उत्पादन यह उद्यमी शुरू कर चुका है। विगत वर्षों मे अव्वल दर्जे के सेव व पहाड़ी ककड़ियों (खीरे) की भारी मात्रा मे उत्पादन कर यह उद्यमी अच्छा-खासा लाभ अर्जित कर, स्थानीय निराशावादी काश्तकारों के सम्मुख उदाहरण प्रस्तुत कर चुका है।
अल्मोड़ा जिले स्थित बिल्लेख गांव मे कृषि व बागवानी के क्षेत्र मे मिली वैश्विक उपलब्धी के पश्चात राज्य को कल्पनानुसार बनाने, संसाधनों का दोहन राज्य स्मृद्धि मे करने तथा विषम भौगोलिक परिस्थितियों में स्थानीय स्तर पर युवाओं में बागवानी, कृषि, साग-सब्जी, मसाले, फूलों इत्यादि से जुडी तकनीकी दक्षता की ललक पैदा कर, उनकी सोच बदल, अंतरमन मे आत्मविश्वास पैदा कर, उन्हे उघमी गोपाल उप्रेती की तरह उद्यमता विकास की ओर अग्रसर कर, पलायन व बेरोजगारी जैसी जटिल समस्याओं से निदान दिलवाने हेतु सोचा जा सकता है, जिस हेतु सरकार की कृषि व बागवानी नीतियों के साथ-साथ काश्तकारों हेतु आर्थिक मदद अहम हो सकती है।
उत्तराखंड के पलायन व अभावग्रस्त जटिल पिछड़े क्षेत्रो के काश्तकारों तथा युवाओं की आर्थिक तंगी व उनके तकनीकी ज्ञान के अभाव, जंगली जानवरों का उत्पात तथा चकबंदी का न होना, लोगों की उद्यमिता भावना को बहुत अधिक प्रभावित करती रही है।
वर्तमान मे कोरोना विषाणु संक्रमण की दहशत तथा पूर्णबंदी के कारणवश हजारों की संख्या में उत्तराखंड के प्रवासी युवा अपने छोटे-मोटे रोजगार छोड़ अपने मूल गांवो को भी लौट आए हैं। सरकार इसको रिवर्स पलायन मान रही है। सोच रही है, अब ये युवा नगरों व महानगरों की ओर वापस न लौटे। अपने खेत-खलिहानों को आबाद करे।
ऐसे में केंद्र व प्रदेश मे स्थापित डबल इंजन की सरकार का दायित्व बनता है, वे मुहैया की जा रही सब्सिडी तक सीमित न रह कर, अंचल के समग्र उद्यम विकास तथा युवाओ के स्वरोजगार हेतु संवेदनशील होकर भूमि बिक्री के कड़े कानून लाकर, चकबंदी जैसे बड़े कदम उठा कर तथा ग्रामीण काश्तकारों द्वारा जटिल परिश्रम से उत्पादित फसलों, साग-सब्जियो तथा फलों को बंदरो, लंगूरों तथा सुअरों द्वारा की जा रही बर्बादी पर लगाम लगाने के प्रबंध कर, लोगों मे कृषि व बागवानी के प्रति विश्वास जगा, उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल को स्वरोजगार व उद्यम विकास के क्षेत्र मे अग्रसर करे। प्रदेश को आत्मनिर्भर बनाए। इस सबका नतीजा होगा उत्तराखंड मे गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड मे दर्ज गोपाल उप्रेती जैसे अनेकों समर्पित व निष्ठावान उघमी पैदा होंगे, जो राज्य व देश की अर्थव्यवस्था की मजबूती व बेरोजगारो को स्वरोजगार मुहैया करवाने में सहायक होने के साथ-साथ वैश्विक फलक पर देश व उत्तराखंड का नाम रोशन करेंगे।