नई उमंग पैदा करता है उत्तराखंड का लोकपर्व फूलदेई
अमर चंद्र दिल्ली।हमारे देश में लोक संस्कृति लोक परंपराओं के अनेक हर्षोल्लास बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं वही देवभूमि उत्तराखंड जहां देवताओं वास के साथ-साथ प्रकृति की अनोखी छटा बिखरी हुई है।
जहां ऊंचे ऊंचे पहाड़ नीचे गहरी नदिया कल कल की आवाज मधुर संगीत अपने आप अपनी ओर आकर्षित करती रहती है प्रकृति ने यहां इतनी सुंदरता बिखेरी हुई है कि हर कोई यहां आकर मंत्रमुग्ध हो जाता है।
देवभूमि उत्तराखंड में वैसे तो कई पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाए जाते हैं आज चैत्र संक्रांत के शुभ अवसर पर और डिजिटल मीडिया माध्यम से लोक पर्व को एक दूसरे को बधाई दे रहे है उत्तराखंड के लोक पर्व फूलदेई की आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं, सोशल मीडिया के माध्यम से एवं अन्य माध्यमों से भी लोग एक दूसरे को इस पर्व के लिए जागरूक करते दिखते रहते है।वहीं प्रदेश सरकार के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ने फूलदेई पर्व की सभी प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी और प्रदेश वासियों की उज्जवल भविष्य की कामना की।
उत्तराखंड से राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी लोक गायक पदम श्री प्रीतम भरतवाण समाजसेवी संजय शर्मा दरमोडा व लोक गायक मुकेश कठैत एवं लोक गायिका बसंती बिष्ट और कई लोगों ने जो समाज के कई महत्वपूर्ण स्थानों पर बैठे हुए हैं उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से इस पर्व को जोर शोर से मनाने की अपील की। आज हमारे पहाड़ों मे इसे बसंत ऋतु के स्वागत के त्योहार के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन छोटे बच्चे सुबह उठकर जंगलों की ओर चले जाते हैं और वहां से फ्यूंली, बुरांस, आडू, खुबानी व पुलम आदि के फूलों को तोड़कर टोकरी में रखते हैं। इसके बाद बच्चे गांव के प्रत्येक घर की दहलीज फूलों को चावल के साथ रखते हैं। जिसके बदले घर के लोग जिस घर के द्वार पर फूल डाले जाते हैं उस घर के लोग बच्चों को गुड़ व पकवान और दक्षिणा देते हैं। इस दौरान बच्चे ‘फूल देई, छम्मा देई, देणी द्वार, भर भकार, ये देली स बारंबार नमस्कार, फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई गाते हैं।उत्तराखंड में चैत्र महीने के पहले दिन बच्चे लोगों के घरों में जाकर उनकी दहलीज पर फूल चढ़ाते हैं और सुख-शांति की कामना करते हैं I इसके बदले में उन्हें परिवार के लोग गुड़, मिठाई या पकवान के साथ दक्षिणा भी देते हैं
फूलदेई पर्व जहां एक ओर पहाड़ की संस्कृति को उजागर करती हैं तो वहीं दूसरी ओर यह प्रकृति के प्रति पहाड़ के लोगों के सम्मान व आपसी भाईचारे को भी दर्शाती है। उत्तराखंड का फूल सक्रांति के इस पर्व पर लोग अपने घरों के आंगन व दहलीज को मिट्टी पर गोबर से लिपाई पुताई करके घर के सारे कोने कोने की सफाई करके फूल डालने वाले बच्चों का पलक बिछाकर इंतजार करते हैं बच्चे आकर उनके परिवार को फूलों फलो परिवार में खुशहाली खुशहाली आए इसकी दुआए देते हैं बदले में लोग उनको गुड. पकौड़ी स्वाले आदि पकवान व कुछ दक्षिणा देकर उपहार स्वरूप भेंट करते हैं बच्चे उपहार व पकवान पाकर बहुत प्रसन्न होते हैं घरों की दहलीज पर दुआओं की छड़ी लगा देते हैं यह पर्व नया जोश नया वर्ष की स्वागत करता दिखता है।
इस त्योहार को फूल संक्रांति भी कहा जाता है, इसका सीधा संबंध प्रकृति से है। इस समय उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में चारों ओर हरियाली प्रकृति की खूबसूरती देखने को बनती है चारों तरफ खिले रंग बिरेगे फूल पीली सरसों के फूल और पेड़ पौधों पर नई पत्तियां अपने आप में एक नया जोश भर देती है।
देवभूमि उत्तराखंड अपने आप में कुदरत की एक ऐसी धरोहर है जिसे देखकर हर प्रवासी भी उसकी ओर आकर्षित हो जाता है वहां की सीधे-साधे लोग वहां के लोगों का कठिन जीवन अपने आप में एक प्रेरणा देने वाला है। हमारी कुछ परंपराएं लोग पर्व लुप्त हो रहे हैं उसे हमारी कुछ सामाजिक संस्थाएं कुछ प्रदेश के नेता एवं समाजसेवी उन्हें दोबारा जागृत करने का जो प्रयास कर रहे हैं वह अपने आप में सराहनीय है।