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‘अमर संदेश’ समाचार पत्र द्वारा आयोजित सेमिनार ‘मेरा भारत, मेरी संस्कृति’ तथा ‘संस्कृति सेवा सम्मान-2023’ सम्पन्न

सी एम पपनैं

 

नई दिल्ली। दिल्ली से प्रकाशित ‘अमर संदेश समाचार पत्र’ द्वारा 28 अक्टूबर को ‘मेरा भारत, मेरी संस्कृति’ विषय पर आयोजित सेमिनार व ‘संस्कृति सेवा सम्मान 2023’ का भव्य आयोजन डिप्टी स्पीकर हाल, कन्स्टिट्युशन क्लब मे मंचासीन अतिथियो समाजसेवी महेश चंद्रा, स्मिता सिंह, हरिपाल रावत, लोकगायक विरेन्द्र सिंह नेगी ‘राही’, व्यवसायी अरुण कुमार, अधिवक्ता सर्वोच्च न्यायालय संजय शर्मा दरमोड़ा, योग गुरु व सेवानिर्वत उच्च अधिकारी भारत सरकार, डाॅ सत्येंद्र सिंह प्रयासी की गरिमामयी उपस्थित मे आयोजित किया गया।

आयोजित सेमिनार व संस्कृति सेवा सम्मान का श्रीगणेश मंचासीन अतिथियों तथा अमर संदेश समाचार पत्र मुख्य संपादक अमरचंद, पॉलिटिकल ट्रस्ट पत्रिका’ मुख्य संपादक निम्मी ठाकुर व वरिष्ठ पत्रकार चंद्र मोहन पपनैं के कर कमलो दीप प्रज्ज्वलित कर व पर्वतीय स्वर सरिता समूह द्वारा मांगल गीत गाकर किया गया।

आयोजक अमर संदेश समाचार पत्र टीम सदस्यों द्वारा खचाखच भरे कन्स्टिट्युशन क्लब, डिप्टी स्पीकर हाॅल मे सभी मंचासीनो को शाल ओढा, पुष्पगुच्छ व स्मृति चिन्ह भैट कर अभिवादन किया गया।

सभागार में विराजमान सभी अन्य गणमान्य अतिथियों, पत्रकारों, साहित्यकारों, संस्कृति कर्मियों व समाज सेवियो का स्वागत अभिनंदन किया गया।

आयोजित सेमिनार विषय ‘मेरा भारत, मेरी संस्कृति’ पर मुख्य वक्ताओ विरेन्द्र सिंह नेगी ‘राही’, चंद्र मोहन पपनैं, डाॅ सत्येंद्र सिंह प्रयासी, पवन कुमार मैठाणी, आलोक कुमार, महेश प्रकाश, स्मिता सिंह, संजय शर्मा दरमोडा तथा हरिपाल रावत द्वारा ज्ञानवर्धक व गूढ़ विचार व्यक्त किए गए।

वक्ताओ द्वारा आयोजक अमर संदेश समाचार पत्र टीम सदस्यों को देश के ज्वलंत विषय पर सेमिनार आयोजित करने की सोच की सराहना करते हुए व्यक्त किया गया, भारत की संस्कृति विश्व की प्राचीन संस्कृतियो मे से एक है। सदियों से विविधताओ और संस्कृति की गाथा गूंजती रही है। सैकड़ों वर्षो की गुलामी मे जीने के बाद भी हमारी संस्कृति अपनी खूबियों की वजह से जीवित रही है। हर धर्म, जाति, वर्ग, संप्रदाय और पंथ को मानने वाले लोग उच्च आचार विचारों को लेकर एक साथ भारत में रहते हैं, जो हमारी संस्कृति की बडी खूबी रही है।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, ऋषि मुनियों के ज्ञान की बात सिर्फ भारत में होती है, जो ज्ञान जनमानस के मध्य आज भी प्रकाश फैलाता नजर आता है। भारत की संस्कृति अतिथि देवो भवो की रही है। भारत का नाम विश्व के देशो मे इज्जत से लिया जाता है।

पारंपरिक खानपान व रीति-रिवाज पीढी दर पीढी भारत मे चलायमान हैं। अलग-अलग बोली भाषा है, पहनावा है विविधता से ओतप्रोत गीत-संगीत मे बहुत शक्ति है। भारत की सम्रद्ध संस्कृति रही है। रिश्तों का महत्व है। अद्भुत प्रकृति व जलवायु है।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, संस्कृति भाषा व पहनावे के साथ-साथ तीज-त्योहारों को मनाऐ जाने वाली परंपराओ व रीति-रिवाजो से पहचानी जाती है। हमारी संस्कृति संरक्षण व संवर्धन का मुख्य आधार देश के ग्रामीण क्षेत्र रहे हैं। देश के विकास का नीति नियोजन स्थापित सरकारों द्वारा अधिकतम शहरो व महानगरो के लिए किया जा रहा है।

ग्रामीण क्षेत्र विकास के क्रम मे बहुत पिछड़ से गए हैं। अछूते व पिछडने से बडी संख्या में ग्रामीणों द्वारा गांवो से पलायन कर शहरो का रुख किया है। पलायन के इस क्रम का बड़ा प्रभाव भारत की सम्रद्ध क्षेत्रीय लोकसंस्कृति पर पड़ा है। नगरों महानगरों मे लोग अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं या एक संस्कृति दूसरी क्षेत्रीय संस्कृतियो से द्वंद मे फसती नजर आ रही हैं।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, आधुनिकता व भू-मंडली करण की दौड़ मे पारंपरिक लोकसंस्कृति का हास हो रहा है। आज की शहरी प्रवासी युवा पीढी आजीविका की उधेड़बुन मे अपनी संस्कृति को अलविदा करता नजर आ रहा है। नगरों व महानगरों मे अपनी क्षेत्रीय लोकसंस्कृति को संजोकर रखने वाली प्रवासी पीढी के संस्कृति कर्मियों तथा उनकी संस्थाओ व संगठनो को राजनैतिक तानेबाने व संस्कृति विहीन सोच ने द्वंद मे फसा कर संस्कृतिकर्मियों व उनकी संस्थाओ को घर घाट का नहीं छोडा है। व्यक्त किया गया ऐसी खडी हो चुकी परिस्थिति मे मेरा भारत महान का नारा व संस्कृति की बात करना कितना सार्थक है समझा जा सकता है।

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, विश्व की अन्य संस्कृतियां हास की कगार पर खडी हो चुकी हैं। भारत की संस्कृति आज भी सम्रद्ध है, कब तक रहेगी कहा नहीं जा सकता है। संस्कृति को बचाने के लिए श्रद्धा और अनुशासन की जरूरत है। संस्कृति वाहको की जरूरत है। संस्कृति का संरक्षण व संवर्धन बडे फलक पर नहीं होगा तो संस्कृति विलुप्त हो जायेगी। शरीर में आत्मा नहीं होगी शरीर का मतलब नहीं है, इसी प्रकार समाज संस्कृति विहीन है तो उस समाज का कोई महत्व नहीं है। आज संस्कृति पर विचार विमर्श जरूरी है। किसी भी समाज और संस्कृति का देश को महान बनाने मे बड़ा योगदान होता है। हमारे बुजुर्ग आज की युवा पीढी को अपनी लोक संस्कृति से जरूर अवगत कराऐ, उन्हे जडो से जोड़ कर रखै, पंखो से उड़ने दै।

आयोजन के इस अवसर पर उत्तराखंड के लोकगायक व संगीत निर्देशक वीरेन्द्र सिंह नेगी ‘राही’ व शिवदत्त पंत तथा गायिका किरन ईष्टवाल लखेडा व मौनी वैदेही द्वारा लोकधुनों मे लोकगायन कर संस्कृति से जुडे आयोजित आयोजन को विविधता प्रदान कर यादगार बनाया।

आयोजकों द्वारा मंचासीन अतिथियो के कर कमलो प्रमुख वक्ताओ पवन कुमार मैठाणी, चंद्र मोहन पपनैं व महेश प्रकाश को शाल ओढा कर व स्मृतिचिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया।

‘संस्कृति सेवा सम्मान 2023’ से सम्मानित होने वालो मे पत्रकार क्रमश: सुनील नेगी, महावीर सिंह बिष्ट, मनीषा उपाध्याय, खुशाल जीना, योगेश भट्ट, दीप सिलोडी, लोकगायक जगदीश बकरोला व शिव दत्त पंत, रंगकर्मी सुमित्रा व किरन लखेडा, समाजसेवी क्रमश: हरदा उत्तरांचली, उदय ममगई राठी,श्रीमती वाणीश्री पस्थय कौल,प्रबंध निदेशक , विद्यार्थी हब,दयाल सिंह व भूम्याल ग्रुप सदस्यों, अनिल पंत, दीपक, द्विवेदी, श्रीमती यशोदा घिल्डियाल,आजद नेगी,व गढ़वाल हितैषिणी सभा सदस्यों के साथ-साथ मौनी वैदेही, महेश प्रकाश, दीवाना मुकेश सिह,मनोज शर्मा. नीरज बवाडी, तथा पर्वतीय स्वर सरिता ग्रुप सदस्य इत्यादि इत्यादि प्रमुख नाम रहे।

आयोजन के इस अवसर पर अमर संदेश मुख्य संपादक अमर चंद द्वारा, सेमिनार को सफल बनाने के लिए सभी प्रायोजको के प्रति आभार व्यक्त किया गया। अमर संदेश समाचार पत्र संरक्षक महेश चंद्रा द्वारा सभी वक्ताओ तथा सभागार में उपस्थित प्रबुद्धजनो का सेमिनार मे उपस्थित होकर आयोजन को सफल बनाने हेतु आभार व्यक्त किया गया, आयोजित आयोजन समापन की घोषणा की गई। आयोजित सेमिनार व संस्कृति सम्मान का प्रभावशाली मंच संचालन सुमित्रा व नीरज बवाडी द्वारा बखूबी संचालित किया गया।

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