दिल्लीराष्ट्रीय

काव्य संग्रह “सांचों में बंद गहने” अब समाज के सम्मुख। ..

.डॉ. हेमा उनियाल

(ग्रंथकार एवं वृत्तचित्र निर्मात्र

प्रसिद्ध रंगकर्मी,नाट्य निर्देशक, रचनाकार श्री हेम पंत साहित्य व नाट्य जगत का एक चिरपरिचित ,प्रबुद्ध नाम हैं। बीते रविवार उनके द्वारा लिखित काव्य संग्रह “सांचों में बंद गहने” पुस्तक का लोकार्पण उत्तराखंड सदन,चाणक्यपुरी,नई दिल्ली में अनेक प्रबुद्ध जनों की उपस्थिति में, गरिमामय स्वरूप में संपन्न हुआ।

पुस्तक का प्रकाशन: “द इनक्रेडिबल पहाड़ी” गौतमबुद्ध नगर ,नोएडा से डॉ. सुरेंद्र सिंह रावत जी के प्रकाशन से किया गया है।पुस्तक की पृष्ठ संख्या :117 और पेपरबैक मूल्य Rs 200 है।

इस पुस्तक के नाम का भावार्थ जहां साहित्यिक रूप में विशिष्ट अर्थों में लगाया जा सकता है,वहीं कविताएं विविध रूपों में भी सरलता से समझी जा सकती हैं जो अर्थपूर्ण एवं भावपूर्ण हैं।

निःसंदेह काव्य वही रच सकता है जिसके हृदय में प्रेम,करुणा,दया,सद्भाव के साथ सरलता,सहजता,मानवता और अनुभव करने की शक्ति होती है । जिसका हृदय संवेदनशील होता है। कबीरदास जी कहते हैं :- कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर/पीछे- पीछे हरि फिरत , कहत कबीर कबीर।

जब मन निर्मल होता है,तब अपने भीतर कुछ टटोलता हुआ मन और कुछ समाज के भीतर की वस्तुस्थिति को सहजता से अपने शब्दों में अभिव्यक्त करता हुआ ,काव्य रूप में प्रस्फुटित हो जाता है।यही इस काव्य संसार का सत्य भी है और “सांचों में बंद गहने ” पुस्तक लेखन का अभिप्राय,मंतव्य भी इससे सार्थक हो जाता है।

जब मन की बात होती है तो रचनाकार श्री हेम पंत, पहला गीत “मन” शीर्षक को ही सामने रखते हुए लिखते है:-

मन को तू अपने बहने दे/क्या कहता है वह कहने दे/बस मंजिल बनकर देख उसे /कुछ करने से न रोक उसे/वो धड़कन में बस जाता है/वो सांसों में रम जाता है.. एहसासों की इस दुनियां में /उम्र की सांसें बढ़ने दे/ उड़ता है ज्यों चंचल पक्षी/ पिंजरे में न रहना दे/मन को अपने तू बहने दे/क्या कहता है वो कहने दे।

मन की बात यहीं आकर नहीं थम जाती हैं वरन रचनाकार इस पुस्तक की विषयवस्तु को चार अध्यायों में विभाजित करते हुए इसे व्यापक रूप प्रदान करते हैं जिसमें पहले अध्याय में गीत,दूसरे अध्याय में व्यंग,तीसरे अध्याय में कविता और चौथे अध्याय में मुक्तक और गजल को स्थान दिया गया है।

हर विधा में रचना ,रचनाकार की एक बहुमुखी प्रतिभा को दर्शाता है। जैसे कविता “खुली किताब” के अंतर्गत रचनाकार हेम पंत लिखते हैं :

मैं हूं/मेरे साथ हैं/बहुत सी यादें /कुछ लम्हे, कुछ तकरार/अनायास सी बनी गलतफहमियां/वो पल जिनका जन्म भी क्षणिक परंतु अहसास चिरकाल/जीवन की परिस्थितियों में मित्रों का साथ /सत्य,निष्ठा और समर्पण से /बीते दिन और रात/ मुझे हर कोण से/परखो तुम /मैं हूं एक /खुली किताब… ।

इसी तरह राजनीति में व्यंग करते हुए शीर्षक “आपका क्या है” के अंतर्गत हेम पंत लिखते हैं:-

आपका क्या है /आप तो दिल्ली चले जाएंगे/दिल्ली जाकर टोपी चमकाएंगे/खीज तो मिटानी है/कुर्सी भी बचानी है/रेल का तो लंबा चौड़ा जाल है किसी की जान गई /किसी का हो ट्रांसफर/पर आप तो दिल्ली चले जाएंगे /दिल्ली जाकर टोपी चमकाएंगे।

चाहे बात संसद की हो ,संघर्ष की हो, अंतर्द्वंद्व की ,प्रेम की ,अस्तित्व की , आत्म चिंतन की ,जीवन की ,अहसास की ,दोस्ती की;अपने देश भारत की,पहाड़ की नारी की , हर विषय पर बेबाकी से आपने अपने उद्गार व्यक्त किए हैं।

“दीप होना चाहता हूं ” शीर्षक के अंतर्गत रचनाकार हेम पंत बड़ी खूबसूरती से अपने भावों को अभिव्यक्त करते हुए लिखते हैं:-

मैं अंधेरी रात का दीप होना चाहता हूं।

जलधि में जो सीपियां हैं मोती बनना चाहता हूं।

तुम हवा हो मंद बहती, धूलि – कण बन चाहता हैं।

सच कहूं तो आपका विश्वास होना चाहता हूं । मैं अंधेरी रात का दीप होना चाहता हूं।अर्थात एक रचनाकार इस जीवन से इतर भी बहुत कुछ सोचता है,चाहता है और बनना चाहता है।

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