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स्मृति सभा- स्वतंत्रता सेनानी, सांसद, पत्रकार, साहित्यकार स्व.परिपूर्णानन्द पैन्यूली की याद मे

सी एम पपनैं
नई दिल्ली । प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी, सांसद, साहित्यकार व पत्रकार दिवंगत परिपूर्णानंद पैन्यूली की स्मृति मे गढ़वाल हितैषिणी सभा द्वारा गढ़वाल भवन मे स्मृति सभा का आयोजन किया गया। पांचवी लोकसभा 1971 के चुनाव मे टिहरी के पूर्व नरेश मानवेन्द्र शाह को भारी मतों के अंतर से हराकर लोकसभा सांसद 1971-1977 रहे परिपूर्णानंद पैन्यूली का विगत 13 अप्रैल को 96 वर्ष की आयु मे देहरादून मे लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया था। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ हरिद्वार गंगा तट पर उनकी बेटियों द्वारा मुखाग्नि देकर सम्पन्न किया गया। गढ़वाल भवन सभागार मे आयोजित स्मृति सभा मे उपस्थित राजनीतिज्ञयों, समाज सेवियों, पत्रकारों, साहित्यकारो, सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़े प्रबुद्ध जनों के साथ-साथ दिवंगत परिपूर्णानंद पैन्यूली के परिजनों ने उनके चित्र पर गुलाब की पंखुड़ियां चढ़ा श्रद्धासुमन अर्पित किए।
गायिका मीरा गैरोला के गीता श्लोक व भजन-

तुझे फूल चढाऊँ, माला चढाऊँ, गीतों की माला तुझे चढाऊँ….मेरा कृष्ण तू…रहीम है… करीम है…मेरा राम तू…मेरा एक ही नदीम है…मेरा राम, गायन की समाप्ति के बाद गढ़वाल हितैषिणी सभा के अध्यक्ष मोहब्बत सिंह राणा व महा सचिव पवन मैठाणी ने सभा की ओर से उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों को अवगत कराया कि दिवंगत परिपूर्णानंद पैन्यूली का गढ़वाल महासभा के प्रति काफी लगाव व जुड़ाव रहा। समय-समय पर वे गढ़वाल भवन मे आकर मदद करने मे मुस्तैद रहते थे। नई पीढ़ी के लिए वे एक आदर्श थे। एक जिम्मेदार सामाजिक संगठन होने के नाते ऐसी महान विभूति को याद करना गढ़वाल हितैषिणी सभा के साथ-साथ हम सभी का कर्तव्य बनता था कि इस दुःख की घड़ी मे उनके पारिवारिक जनों व मित्रो को साहस बधाए, शांतवना दे,मृत आत्मा की शान्ति के लिए सामूहिक प्रार्थना करे। दिवंगत परिपूर्णानन्द जी द्वारा देश की आजादी के लिए दिए योगदान, आजन्म निष्ठापूर्ण निभाए दायित्वो व कार्यो को याद करे। उनके द्वारा दी गई प्रेरणा व उनके आदर्श जीवन पथ पर चलने का प्रयास करे। गढ़वाल हितैषिणी सभा की ओर से दिवंगत परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी को यही सच्ची श्रद्धाजंलि होगी। स्मृति सभा के इस अवसर पर स्व. परिपूर्णानंद पैन्यूली के अति निकट रहे दोस्तों, परिचितों, मित्रो व परिवार के अनेकों प्रबुद्ध जनो ने अपने विचार रख, उन्हे याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए। वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा, आशीष जोशी, अनिल नोरिया, मनीष खंडूरी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मोहसिना किदवई, पूर्व केंद्रीय मंत्री व पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड हरीश रावत, मनोज गैरोला, पूर्व मंत्री व उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष किशोर उपाध्याय तथा धीरेन्द्र प्रताप, राजेश्वर पैन्यूली, जयंत मिश्रा, चंद्रपाल सिंह रावत, नरेंद्र सिंह नेगी व स्व.परिपूर्णानंद पैन्यूली की छोटी पुत्री तृप्ति गैरोला विचार व्यक्त करने वालो मे मुख्य वक्ता थे। सभागार मे उपस्थित प्रबुद्ध राजनीतिज्ञयों, संस्कृति कर्मियों, समाज सेवियों, साहित्यकारो, पत्रकारों मे हरीश लखेड़ा, सुनील नेगी, डी एस रावत, डॉ सत्येन्द्र प्रयासी, खुशाल सिंह बिष्ट, ब्रजमोहन शर्मा, संयोगिता ध्यानी, रमेश चंद्र घिंडियाल, वी के पाल, सी एम बहुगुणा, अनिल पंत, खुशाल जीना, चंद्र मोहन पपनैं, अजय सिंह नेगी, राजेंद्र बिष्ट, विजय सास्वत, प्रीतम सिंह, हरिपाल रावत इत्यादि मुख्य थे। वक्ताओं ने अपने संबोधन मे स्व.परिपूर्णानंद पैन्यूली के साथ बिताए यादगार क्षणों को याद कर अवगत कराया कि वे एक कड़क मिजाज, ईमानदार, स्पष्टवादी, समाज के प्रति समर्पित व कर्मठ, निष्ठावान, सरल जीवन व उसूलों के पक्कै राजनेता थे। सामाजिक विषमताओं के बीच उनका विद्रोह समाज के निचले तबके के लिए होता था। अपनी पारिवारिक व शैक्षिक हैसियत के बलबूते वे अच्छी नोकरी प्राप्त कर सकते थे परंतु वे आजन्म समाज के लिए समर्पित रहे। उन्होंने काशी विघापीठ बनारस व उच्च शिक्षा एमए समाज शास्त्र आगरा विश्व विघालय से प्राप्त की थी।वक्ताओं ने कहा उनमे दूरदर्शिता थी, सोच बहुत आगे की थी। स्वच्छ समाज व राष्ट्र निर्माण मे उनके त्याग, तपस्या, संकल्प जैसे व्यक्तित्व व कृतित्व पर शोध किया जा सकता है। वक्ताओं ने अवगत कराया 1946 मे वे टिहरी राजशाही के विरोध मे बिगुल बजा चुके थे।

उन्होंने 84 दिन तक भूख हड़ताल की, 1947 मे टिहरी जेल मे कैद कर दिए गए। जेल से भाग कर पैदल ही यात्रा कर दिल्ली प्रवास मे रामेश्वर शर्मा नाम से अपने मूल लक्ष्य की प्राप्ति मे संघर्षरत रहे। असहनीय कष्ट सहे, परिवार ने दुःख झेले। 1949 मे टिहरी रियासत के भारतीय संघ मे विलय मे उनका बड़ा योगदान रहा। विलय दस्तावेज के हस्ताक्षर करने वालो मे महाराजा टिहरी, भारत सरकार के गृह सचिव व परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी तीन लोग थे। वे गरम मिजाज के राजनेता थे। 22 वर्ष की उम्र मे उनके नेतृत्व की असीम क्षमता को देख उन्हे प्रजामंडल टिहरी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। 18 वर्ष की आयु मे वे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन मे कूद पड़े थे। उन्हे 6 वर्ष की जेल मेरठ व लखनऊ मे आजादी के संघर्ष के दौरान काटनी पड़ी। जेल मे उनकी देश की आजादी के कुछ बड़े आंदोलनकारी नेताओ से मुलाक़ात हुई। सांसद के नाते दिवंगत पैन्यूली जी ने पर्वतीय क्षेत्रों के पिछड़ेपन, अनुसुचित जाती-जनजाति की समस्याओं की पुरजोर संसद में आवाज उठाई, जिसके प्रतिफल सरकार द्वारा 1973 मे एकीकृत जनजाति विकास समिति अस्तित्व मे लाई गई। पैन्यूली जी का उत्तराखंड के पहाड़ो के प्रति अति लगाव व कर्तव्य निष्ठां को परख प्रांतीय सरकार ने पैन्यूली जी को 1972-74 मे उत्तर प्रदेश पर्वतीय विकास का चेयरमैन नियुक्त किया। पैन्यूली जी ने अपने जीवन काल मे पत्रकारिता के साथ साथ अनेकों किताबे भी लिखी। उन्हे साहित्य रचना मे अनेकों सम्मानों से नवाजा गया, जिनमे दलित साहित्य रचना पर 1996 मे डॉ अम्बेडकर अवार्ड प्रमुख था। गांधी की विचार धारा को उन्होने अपने जिस्म मे उतारा था। गढ़वाल मे गांधी जी द्वारा स्थापित अशोक आश्रम जिसकी विनोबा भावे ने भी देखरेख की बाद के दिनों मे परिपूर्णानन्द पैन्यूली की देखरेख मे 200 बालिकाओं का यह आश्रम बड़ी सिद्दत से चलायमान रहा। अटल सरकार के दिनों मे आश्रम की केंद्र सरकार ने राहत बंद कर दी थी, लेकिन परिपूर्णानन्द जी के संघर्ष व सत्यता से अटल जी की केंद्रीय सरकार को राहत पुनः जारी करनी पडी। उनके द्वारा समाज के दलित वर्ग के उत्थान व आजादी के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए ओएनजीसी अस्पताल मे इलाज की सुविधा जैसे किए गए कार्यो की आज भी सराहना होती है। उनका शोषित समाज के प्रति संघर्षशील व्यक्तित्व लोगो को प्रभावित करता था, यही कारण था लोग उनसे जुड़ते थे। संसद मे उठाए उनके प्रश्न दूरदर्शिता लिए होते थे, जो आज की वर्तमान राष्ट्रीय परिस्थितियों मे भी सटीक महत्व रखते हैं। अनेकों वक्ताओं ने कहा, आज आरोप लगते हैं, परंतु पैन्यूली जी इस अपवाद मे बेदाग लोगो मे जाने गए। वक्ताओं ने अफसोस जता व्यक्त किया कि इस पारदर्शी, ईमानदार, भ्रष्टाचार विरोधी व संघर्षशील प्रख्यात राजनेता को सियासतदारो द्वारा सियासत से दूर रखना, उन्हे एक स्वतंत्रता सेनानी व सांसद के नाते भुलाना, व किसी भी सम्मान से उन्हे अछूता रखना सवाल खड़े करता है। अखिल भारतीय काग्रेस कमेटी के सह सचिव व पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड हरीश रावत ने अवगत कराया कि स्वछ व मजबूत समाज निर्माण के वे पक्षधर थे जिसके लिए वे आजन्म संघर्षरत रहे। उनकी राय थी की छोटा राज्य बनने पर उसकी नींव स्थानीय संस्कृति आधारित व उसकी प्रकृति के अनुरुप हो। उन्होंने अवगत कराया 15 अगस्त व 26 जनवरी को जब प्रतिवर्ष उन्हे आजादी के स्वतंत्रता सेनानी के नाते सम्मानित किया जाता था, उनका साफगोई से कहना होता था, राज्य व देश का भला करो, समाज के गरीब व शोषितों को सम्मानित करो। स्पष्टवादी होने से उन्होंने कभी भी किसी के साथ समझौता नही किया। उनके लिए समाज व राष्ट्र हित सर्वोपरि था। वे समन्वयवादी द्रष्टिकोण के मानुष थे। दलितों के शोषण पर वे काफी चिंतित रहते थे। उन्होंने टिहरी की आजादी को देश की आजादी के रूप मे लिया। वे जन्मजात विद्रोही थे। ऐसे महान व प्रख्यात व्यक्ति को याद कर हम नैतिक कार्य कर रहे हैं। हमे प्रवास मे रहते अपने मूल स्थानों के साथ संपर्क बनाए रखना है, मूल्यों को स्थापित रखना है। दिवंगत परिपूर्णानन्द पैन्यूली जी की सोच, उनकी भावना व समर्पण हम सबको एक दूजे से जोड़ सके यही उन्हे सच्ची श्रद्धाजंलि होगी। हरीश रावत ने अंत मे कहा ‘श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं, समाजसेवी समाजशास्त्री को।’

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