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जनता भ्रष्ट लोगों को न तो भूलती है और न ही माफ करती है

अरुण जेटली
राहुल गांधी उन कई विषयों पर बोलते हैं जिनके बारे में उन्हें जानकारी जरा भी नहीं है। वह सभी पर बेबुनियाद अप्रमाणित आरोप लगाते हैं। वह सिर्फ उस विषय पर नहीं बोलते हैं जिसकी सच्चाई वह खुद जानते हैं जैसा कि उनके खाते। जब इस बात के रिपोर्ट आने लगे कि उनका व्यक्तिगत पूंजी निर्माण कार्यक्रम स्वीटहार्ट डील और रातों-रात उड़न छू होने वाले ऑपरेटरों पर आधारित है तो उन्होने अपने आप पर और कांग्रेस पार्टी के हमेशा बड़बोलापन दिखाने वाले मीडिया सेल पर भी सेंसरशिप लगा दिया। मेरा निष्कर्षः जब ईमानदारी से संबंध रखने वाले ऐसे मुद्दे पर कोई उत्तर नहीं दिया जाए तो देश को अधिकार है कि वह यह मान ले कि कभी भी इसका उत्तर या स्पष्टीकरण नहीं है। इस मामले में चुप्पी किसी भी तरह के फर्जी स्पष्टीकरण से भी ज्यादा कुछ बता रही है।
अगस्ता वेस्टलैंड चार्जशीट में रहस्योद्घाटन
अगस्ता वेस्टलैंड मामले में दाखिल चार्जशीट में साफ तौर से वर्णन है कि स्विटज़रलैंड के लुगानो में स्विस पुलिस द्वारा गुईदो हशके की मां के घर मारे गए छापे में जो दस्तावेज बरामद हुए उसमें अंग्रेजी की वर्णमाला के कुछ अक्षर हैं। ये कुछ नेताओं/ शख्सियतों के नाम हैं जो यूपीए सरकार में दखल रखते हैं। यहां यह कहना प्रासंगिक है कि जब अगस्तावेस्टलैंड के चेयरमैन और सीईओ को फरवरी 2013 में इटली में गिरफ्तार किया गया तो सीबीआई ने शुरूआती PE लिखे थे। जब भारत सरकार ने 4 दिसंबर, 2018 को जेम्स मिशेल और 30 जनवरी, 2019 को राजीव सक्सेना को भारत लाने में सफलता मिली तो जांच तेजी से आगे बढ़ी। चार्जशीट मौखिक साक्ष्य और दस्तावेज पर आधारित भी है। आखिर RG, AP और FAM कौन हैं जिनके बारे में बात हो रही है? जांचकर्ताओं ने संबद्ध व्यक्तियों के बयान का जिक्र किया है। इटली से बरामद दस्तावेज भारत में एकत्र किए गए प्रमाणों से मेल खाते हैं।
प्रमाण के तौर पर डायरी
भारत के राजनीतिज्ञों में यह गलत धारणा है कि एक डायरी किसी भी तरह से प्रमाण के तौर पर नहीं मानी जा सकती है, जैसा कि जैन हवाला कांड में हुआ। कोई भी डायरी लिखित में स्वीकरोक्ति है और जिसने लिखा है उसके विरुद्ध स्वीकार्य है। इतना ही नहीं यह सहअभियोगियों के विरुद्ध भी स्वीकार्य है, अगर यह उस समय लिखी गई जब षडयंत्र हो रहा था और इसमें लिखी गई बातों को सिद्ध करने योग्य प्रमाण हैं। यह कानून प्रिवी काउंसिल द्वारा “मिर्ज़ा अकबर” के मुकदमे में बनाया गया था और उसके बाद से यह लागू ही रहा है।
ईमानदारी पर बहस
सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी कई तरह के जवाब मांगती है। क्या RG, AP और FAM काल्पनिक चरित्र हैं? या फिर क्या वे सौदे को प्रभावित करने की स्थिति में हैं? यह कैसे हो सकता है कि जब कोई विवादस्पद रक्षा सौदा होता है और प्रमाण इकट्ठे किए जाते हैं तो कांग्रेस पार्टी के पहले परिवार का नाम सामने आने लगता है? बोफोर्स मामले में मार्टिन आर्दोबो की डायरी में उल्लिखित Q अक्षर सामने आया तो यह भी सामने आया कि Q को हर हालत में बचाया जाए। उस समय भी पार्टी खंडन की मुद्रा में थी। वह तो जब 1993 मे स्विस अधिकारियों ने बोफोर्स में पैसा लेने वालों के नाम बताए तो एक लाभार्थी ओटावियो क्वात्रोच्ची का नाम भी सामने आया तो नरसिंह राव सरकार ने 24 घंटे में उसके भारत से भागने की व्यवस्था कर दी। लेकिन इससे Q का भूत भाग नहीं पाया जिससे कांग्रेस के चेहरे पर बदनुमा दाग लगा दिया और अब RG, AP और FAM के नाम भी ऐसा ही करेंगे। जनता भ्रष्ट लोगों को न तो भूलती है और न ही माफ करती है। चुप्पी भ्रष्टाचार के दस्तावेजी प्रमाण का कभी भी कोई उत्तर नहीं हो सकती। किसी अपराधी को तो चुप रहने का अधिकार तो हो सकता है लेकिन प्रधान मंत्री पद के किसी आकांक्षी को नहीं।

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