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पौष त्योहार तथा उत्तरैणी-मकरैणी पर्व से दिल्ली एनसीआर में गठित उत्तराखंड की प्रवासी संस्थाओं के कार्यक्रमो का शुभारंभ

सी एम पपनैं

 

दिल्ली एनसीआर में प्रवासरत उत्तराखंड के उत्साही प्रवासी बन्धुओं द्वारा सैंकड़ों की तादात में गठित सांस्कृतिक व जन सरोकारों से जुड़ी सामाजिक संस्थाओं द्वारा नववर्ष 2024 के पहले पौष त्योहार व उत्तरैणी-मकरैणी के पावन पर्व से प्रवासी बहुल मुहल्लों, हाउसिंग सोसायटियों व स्थानीय क्षेत्र के बड़े मैदानों में जगह-जगह पर एकजुट एकमुट होकर कुमाऊ, गढ़वाल व जौनसार अंचल में पीढ़ी दर पीढ़ी पारंपरिक रूप में मनाएं जा रहे तीज-त्योहारों से जुड़ी रही समृद्ध लोक सांस्कृतिक गतिविधियों का श्रीगणेश कर दिया गया है।

नववर्ष 2024 के शुभारम्भ में ही जौनसार बावर जनजातीय कल्याण समिति द्वारा 7 जनवरी को कमला नेहरू नगर, गाजियाबाद स्थित एनडीआरएफ के विशाल प्रांगण में पौष त्योहार के अवसर पर जौनसार बावर की पारम्परिक लोकसंस्कृति से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमो का भव्य आयोजन किया गया था।

इसी कड़ी को प्रधानता देते हुए कुमाऊं व गढ़वाल अंचल की सैकड़ों सांस्कृतिक व समाजिक सरोकारों से जुड़ी रहीं संस्थाओं द्वारा दिल्ली एनसीआर के लगभग प्रवासी बहुल इलाकों में 12 जनवरी से 15 जनवरी तक उत्तरैणी-मकरैणी त्योहार के सु-अवसर पर प्रभावशाली सांस्कृतिक आयोजनों के साथ-साथ, झांकियों, नंदा यात्रा तथा कवि सम्मेलनो का आयोजन बड़े स्तर पर किया गया।

उत्तरैणी-मकरैणी त्योहार के सु-अवसर पर प्रभावशाली सांस्कृतिक आयोजन करने वाली संस्थाओ में शुमार रही उत्तराखंड भ्रातृ संगठन वसुंधरा, गाजियाबाद, उत्तराखंड एकता मंच तिमारपुर, उत्तरांचल भ्रातृ समिति शालीमार गार्डन, उत्तराखंड जन सेवा समिति करावल नगर, कुमाऊं सांस्कृतिक कला मंच संत नगर, बुराड़ी, उत्तराखण्ड जन समूह कर्मपुरा,

कुमाऊं मंडल सांस्कृतिक मंच बलजीत नगर, श्रीगुरुमणिकनाथ सर्वजन कल्याण सेवा संस्था सूरघाट वजीराबाद, पर्वतीय प्रवासी जन कल्याण परिषद इंदिरापुरम, कल्याणी सामाजिक संस्था संगम विहार, उत्तराखंड उत्तरायणी महोत्सव समिति द्वारका इत्यादि इत्यादि का नाम विशेष तौर पर लिया जा सकता है।

दिल्ली सरकार द्वारा 2019 में गठित गढ़वाली, कुमाऊनी एवं जौनसारी अकादमी दिल्ली द्धारा अकादमी वर्तमान उपाध्यक्ष कुलदीप भंडारी व अकादमी सचिव संजय कुमार गर्ग के सौजन्य से उत्तरैणी-मकरैणी के पावन पर्व पर सांस्कृतिक व कवि सम्मेलन का यादगार आयोजन पटपड़ गंज स्थित डीडीए पार्क रास विहार में खचाखच भरे हजारों दर्शकों के मध्य आयोजित किया गया।

अकादमी द्वारा आयोजित व समृद्ध भारत ट्रस्ट द्वारा निवेदित उत्तराखंडी बोली-भाषा कवि सम्मेलन में प्रतिभाग करने वाले कुमांऊ, गढ़वाल एवं जौनसार के प्रमुख कवियों व कवित्रियों में रमेश हितैषी, जयपाल सिंह रावत ‘छीपड़ दा’, पूनम तोमर, हेमंत बिष्ट, गिरीश सुंदरियाल, प्रोफेसर प्रभा पंत, रोशन लाल, पूरन चंद्र कांडपाल, उपासना सेमवाल, खजान दत्त शर्मा, डा.जीतराम भट्ट व गिरीश चंद्र बिष्ट ‘ हंसमुख’ मुख्य रहे।

श्रीगुरुमणिकनाथ सर्वजन कल्याण सेवा संस्था द्वारा सूरघाट वजीराबाद में आयोजित उत्तराखंडी बोली-भाषा के कवि सम्मेलन में जयपाल सिंह रावत, रघुवीर शर्मा, अंजली भंडारी, दिनेश ध्यानी, वीर सिंह राणा तथा अनूप नेगी ‘खुदेड’ द्वारा कवि सम्मेलन में भाग लिया गया।

 

उक्त आयोजित दोनों कवि सम्मेलनो में अंचल के आमन्त्रित कवियों द्वारा स्वरचित प्रभावशाली अंदाज में काव्य पाठ किया गया। मुख्य रूप से कवियों द्वारा अंचल के तीज त्योहारों, प्रकृति से जुड़े पहलुओं, अंचल की महिलाओ के कष्ट व जनजीवन, अंचल में बने भू-कानून, देशप्रेम, शहीद स्मरण, उत्तराखंड की व्यथा, समसामयिक पृष्ठभूमि से जुडी रचनाओ को मुखर होकर प्रस्तुत किया गया। प्रस्तुत रचनाओ ने श्रोताओ को न सिर्फ भाव विभोर किया, खूब हसाया, गुदगुदाया तथा मंत्रमुग्ध व मनोरंजन कर श्रोताओ को तालियो की गड़गड़ाहट करने को मजबूर किया। श्रोताओं द्वारा मंचासीन कावियों द्वारा रचित रचनाआओं की प्रसंशा की गई व आयोजित कवि सम्मेलनो की सराहना की गई।

 

उत्तराखंड अंचल की उक्त सांस्कृतिक व समाजिक संस्थाओं तथा अकादमी द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों की झलक देखने के लिए हज़ारों की संख्या में उत्तराखंड के प्रवासी परिवारों को बाल बच्चों सहित पूरे एनसीआर के अयोजित आयोजनों में उमड़ते हुए देखा गया।

 

आयोजित आयोजनों में प्रवासी सांस्कृतिक दलों द्वारा उत्तराखंड अंचल के प्रभावशाली लोकगायन को संगीत की कर्ण प्रिय धुनों व नृत्यों के साथ-साथ नंदा देवी यात्रा व कवि सम्मेलनो के माध्यम से अपार जनसमूह के मध्य मंचित किया गया। उक्त सांस्कृतिक कार्यक्रमो में हजारों उत्साही श्रोताओं को मंत्रमुग्ध व मदहोश होकर नाचते-गाते हुए देखा गया।

 

उत्तराखंड के प्रवासी लोकगायकों व गायिकाओं में पद्मश्री प्रीतम भरतवाण, भुवन रावत, नरेन्द्र सिंह नेगी, अनुराधा निराला, फौजी ललित मोहन जोशी, गिरीश पटवाल, उषा नेगी, मुकेश कठैत, मनोज आर्या, प्रकाश कहला, रमेश मोहन पांडे, हेमा ध्यानी, सुमित मनराल, नवीन रावत, प्रियंका तिवारी, विजय बिष्ट, शिबू रावत, दीवान महरा इत्यादि इत्यादि के विविधता से ओत-प्रोत लोकगायन ने श्रोताओं को प्रभावित किया।

 

नववर्ष के पहले पौष त्योहार व उत्तरैणी-मकरैणी के शुभ अवसर पर अंचल के प्रवासी बंधुओ द्वारा गठित सांस्कृतिक व जन सरोकारो से जुड़ी रही समाजिक संस्थाओं द्वारा पारंपरिक रूप से मनाए जाने वाले उक्त त्योहार व पर्व उत्तराखंड समाज की धार्मिक आस्था, विश्वास व समर्पण का प्रतीक माने जाते रहे हैं। एक तरह से उक्त त्यौहार हमारी ऋतुओं के साथ-साथ चेतना, प्रकृति और मनुष्य के बीच अंर्तसंबंधो, सामूहिकता में पिरोई सामाजिक संरचना की सामुहिक अभिव्यक्ति तथा नदियों के संरक्षण की चेतना के त्यौहार रहे हैं।

 

दिल्ली एनसीआर के उत्तराखंडी प्रवासी बहुल इलाकों में विगत अनेकों दशकों से छुटमुट रूप से आयोजित होने वाले पौष त्योहार तथा उत्तरैणी-मकरैणी सांस्कृतिक पर्व का रूप बदल कर आज विकराल रूप धारण कर चुका है। दर्जनों क्षेत्रों में अयोजित होने वाले इन महोत्सवों में हजारों प्रवासी परिवारों की भीड़ उमड़ती देखी जा सकती है। जिस भीड़ को देख अनुमान लगाया जा सकता है अपने अंचल की लोक कला व लोक संस्कृति के प्रति प्रवासी बंधुओं की अटूट आस्था व निष्ठा कितनी गहरी तह तक पैठ किए हुए है। प्रवास में भी प्रवासी बंधुओ का अपने अंचल के गीत-संगीत व नृत्य तथा लग रहे मेले में पहाड़ी जैविक उत्पादों के खानपान तथा वस्त्र व आभूषणों से कितना आत्मिक लगाव बना हुआ है।

 

दिल्ली एनसीआर मे उत्तराखंड के प्रवासियों द्वारा गठित दर्जनों संस्थाओं द्वारा बृहद तौर पर हर्षोल्लास व उमंग के साथ मनाए जाने वाले पौष त्योहार तथा उत्तरैणी-मकरैणी पर्व का सीधा संबंध उत्तराखंड की लोकसंस्कृति की समृद्धि से ताल्लुख रखती है। दिल्ली मे प्रवासरत उत्तराखंडियों का उक्त त्यौहार मनाने का उद्देश्य अपनी लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्धन हेतु पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरागत रूप में देखा जाता रहा है।

 

उत्तराखंड अंचल की दिल्ली एनसीआर में प्रवासरत युवा पीढी को निष्ठा पूर्वक अपनी पारंपारिक लोक विधाओं, संस्कृति व बोली-भाषा को समृद्ध करने हेतु जागरूक रहना व ध्वज वाहक बन कर खड़ा रहना समय की मांग है। प्रवासी बंधुओं को जागरूक होकर समझना होगा, कोई भी समाज तब तक तरक्की नही कर सकता, जब तक वह अपने अंचल की मूल लोकसंस्कृति व बोली-भाषा को न जानता हो। दिल्ली में प्रवासरत उत्तराखंड के जनमानस खासकर युवाओं को कुमांऊनी, गढ़वाली एवं जौनसारी लोक संस्कृति व बोली-भाषा के संवर्धन के प्रति संवेदनशील होना अति आवश्यक है, तभी उत्तराखंड के प्रवासी बंधु अपनी पहचान को कायम रख पायेंगे, अपना हक हासिल कर पाएंगे।

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