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हिमवंत कवि चन्द्रकुँवर बर्त्वाल की साहित्यिक विरासत’ विषय पर हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न

सी एम पपनै

श्रीनगर (गढ़वाल)। हिमवंत कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की जयंती के उपलक्ष्य में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा चौरास परिसर के एकेडमिक एक्टिविटी सेंटर में “हिमवंत कवि चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की साहित्यिक विरासत” विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का प्रभावशाली आयोजन 20 अगस्त को आयोजित किया गया। आयोजन उद्देश्य चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्यिक योगदान को राष्ट्रीय फलक पर उजागर करना और उनकी रचनाओं को शैक्षणिक पाठ्यक्रमों में समावेश हेतु प्रेरित करना था।
आयोजित कार्यक्रम शुभारंभ विश्वविद्यालय के गणमान्य पदाधिकारियों, प्रोफेसरों, शोधार्थियों तथा छात्र-छात्राओं की उपस्थित में दीप प्रज्वलन कर किया गया। हिंदी विभाग विभागाध्यक्ष प्रो. गुड्डी बिष्ट पंवार द्वारा माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश सिंह को उनके अमूल्य सहयोग एवं मार्गदर्शन के लिए धन्यवाद दिया गया तथा सभी आगंतुक अतिथियों, वक्ताओं और प्रतिभागियों का हार्दिक स्वागत अभिनन्दन किया गया।
प्रोफेसर गुड्डी बिष्ट पंवार द्वारा चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालते हुए तथा संगोष्ठी के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए कहा गया, चन्द्रकुंवर बर्त्वाल हिंदी साहित्य के एक अनमोल रत्न हैं, जिनकी रचनाओं में प्रकृति, राष्ट्रीय चेतना और मानवीय संवेदनाओं का अनुपम समन्वय देखने को मिलता है। आयोजित संगोष्ठी उनकी साहित्यिक विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का एक प्रयास है।
आयोजन विशिष्ट अतिथि प्रो. मोहन सिंह पंवार, विभागाध्यक्ष (भूगोल) और संकायाध्यक्ष (भर्ती एवं प्रोन्नति), हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा उद्बोधन में चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की शोध पीठ स्थापित करवाने का आश्वासन देते हुए कहा गया, चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की रचनाएं हिंदी साहित्य में एक अनूठा स्थान रखती हैं। उनकी कविताओं में हिमालय की भव्यता और मानवीय भावनाओं का गहरा चित्रण है। गढ़वाल विश्वविद्यालय में उनकी शोध पीठ की स्थापना एक ऐतिहासिक कदम होगा जो उनके साहित्य को और अधिक शोध और अध्ययन का विषय बनाएगा। उन्होंने विश्वविद्यालय के इस प्रयास को सराहा और इसे भविष्य की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया गया।
आयोजित संगोष्ठी मुख्य वक्ता प्रो. नवीन चंद्र लोहनी, कुलपति, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय, हल्द्वानी द्वारा चन्द्रकुंवर बर्त्वाल के बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला गया। उन्होंने कहा, चन्द्रकुंवर बर्त्वाल न केवल एक प्रकृति प्रेमी कवि थे बल्कि उनकी रचनाओं में राष्ट्रीय चेतना और मानवीय संवेदनाओं का भी समावेश है। उनके साहित्य पर व्यापक शोध कार्य होना चाहिए। उनकी कविताओं को स्कूल और विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में बड़े पैमाने पर शामिल किया जाना चाहिए, ताकि नई पीढ़ी उनके विचारों और दर्शन से परिचित हो सके। प्रो. लोहनी द्वारा बर्त्वाल की रचनाओं को वैश्विक फलक पर ले जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।
संगोष्ठी विशिष्ट वक्ता प्रो. मृदुला जुगरान, पूर्व विभागाध्यक्ष और संकायाध्यक्ष हिंदी विभाग द्वारा चन्द्रकुंवर बर्त्वाल को प्रेम, पीड़ा, और मृत्यु बोध का कवि बताया गया। कहा गया, बर्त्वाल की कविताएं मानव मन की गहरी अनुभूतियों को व्यक्त करती हैं। उनकी रचनाओं में हिमालय का सौंदर्य और जीवन की नश्वरता का दर्शन एक साथ झलकता है।
आयोजित संगोष्ठी में गौरव सिंह बर्त्वाल, सचिव, चन्द्रकुंवर बर्त्वाल शोध संस्थान देहरादून द्वारा अवगत कराया गया, संस्थान द्वारा बर्त्वाल के अप्रकाशित साहित्य को प्रकाशित करने का कार्य प्रगति पर है। कहा गया, उनका प्रयास है, चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की अनछुई रचनाएं दुनिया के सामने आए और उनके साहित्यिक योगदान को व्यापक मान्यता मिले। चन्द्रकुंवर बर्त्वाल स्मृति शोध संस्थान, अगस्त्यमुनि अध्यक्ष हरीश गुसांई द्वारा कहा गया, चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की कविताओं को स्कूलों के पाठ्यक्रम में बड़े पैमाने पर शामिल करना चाहिए। उनकी रचनाएं बच्चों को प्रकृति और संस्कृति के प्रति संवेदनशील बनाएंगी।
आयोजित संगोष्ठी में डॉ. संजय पांडे द्वारा चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की कविताओं को कर्ण प्रिय गायन के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। उक्त प्रस्तुत कविताओं में पीड़ा, टीस और कसक को उत्पन्न करने वाली बातों का प्रभावी समावेश था।
आयोजित संगोष्ठी में डॉ. सूरज पंवार, मनु पंवार, अनुसूया प्रसाद मलासी, दीपक बेंजवाल, डॉ. मानवेन्द्र बर्त्वाल, डॉ. सृजना राणा, डॉ. शशिबाला, डॉ. सविता मैठाणी, डॉ. गौरीश नंदिनी काला, डॉ. आकाशदीप, रेशमा पंवार, शुभम थपलियाल इत्यादि इत्यादि गणमान्य विद्वानों द्वारा सक्रिय भागीदारी की गई।
आयोजित संगोष्ठी के दूसरे सत्र में लगभग 40 शोध-पत्र ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यमों द्वारा प्रस्तुत किए गए, जिनमें चंद्रकुंवर बर्त्वाल की कविताओं में वर्णित प्रकृति चित्रण, राष्ट्रीय चेतना, छायावाद, और मृत्यु बोध जैसे विषयों पर गहन चर्चा की गई। कुछ प्रतिभागियों द्वारा चंद्रकुंवर बर्त्वाल की कविताओं को प्रभावशाली अंदाज में गीत रूप में प्रस्तुत कर आयोजित संगोष्ठी को जीवंत और यादगार बनाया गया।
आयोजित संगोष्ठी में शोध पत्र प्रस्तुत करने वाले प्रतिभागियों को आमंत्रित अतिथियों के कर कमलों प्रमाणपत्र प्रदान किए गए। प्रो. गुड्डी बिष्ट पंवार द्वारा समापन उद्बोधन में सभी अतिथियों, वक्ताओं, शोधार्थियों और कर्मचारियों का धन्यवाद ज्ञापन किया गया। कहा गया, आयोजित संगोष्ठी चन्द्रकुंवर बर्त्वाल की साहित्यिक विरासत को जीवंत रखने और इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। कहा गया, भविष्य में भी ऐसे आयोजनों के माध्यम से उनके योगदान को प्रचारित, प्रसारित किया जाता रहेगा। आयोजित सत्रों का प्रभावशाली मंच संचालन डॉ. सविता मैठाणी तथा डॉ. गौरीश नंदिनी काला द्वारा बखूबी किया गया। संगोष्ठी को यादगार बनाया गया।
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