हमारे 30 हजार से अधिक समर्थकों को पुलिस ने रामलीला मैदान में आने नही दिया : उदित राज
नई दिल्ली, डॉ. उदित राज के नेतृत्व में लाखों की संख्या में पूरे देश से अजा/जजा,पिछड़े एवं अल्पसंख्यक वर्ग से कर्मचारी-अधिकारी एवं आरक्षण समर्थक नई दिल्ली के रामलीला मैदान में अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ और डीओएम परिसंघ के तत्वावधान में अपने संवैधानिक अधिकार और देश की प्रगति के लिए एकत्रित हुए। रैली के पश्चात् डॉ. उदित राज ने रामलीला मैदान से एलान करते हुए सुप्रीम कोर्ट तक के लिए मार्च निकाला लेकिन दिल्ली पुलिस ने बीच रास्ते में ही डॉ. उदित राज एवं हजारों समर्थकों को गिरफ्तार कर राजेन्द्र नगर पुलिस स्टेशन लेकर गए |
डॉ. अम्बेडकर ने संदेह व्यक्त किया था कि “अगर मुख्य न्यायधीश जजों कि नियुक्ति में प्राथमिकता लेता है तो यह अनुचित होगा और इस चीज़ के लिए हम तैयार नही है” | संविधान निर्माता डॉ. अम्बेडकर का कथन सत्य हो रहा है और 1993 से सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र को लांघा और जजों की नियुक्ति करना शुरू कर दिया | संविधान में न्यायपालिका को कानून का व्याख्यान और लागू करना है लेकिन अंतराल में कार्यपालिका एवं विधायिका के क्षेत्र में अतिक्रमण किया और कानून बनाना, जजों की नियुक्ति करना जांच एजेंसी का काम करना और शासन-प्रशासन को चलाने का कार्य शुरू कर दिया है | वर्तमान में मोनेटरिंग कमिटी के माध्यम से दिल्ली से संपत्तियों को सील करने का कार्य करना शुरू कर दिया है | न्यायपालिका खुद सरकार बन गयी है और मोनेटरिंग कमिटी सरकारी विभाग | चाहे प्रदूषण करने वाले प्रतिष्ठान हो या न, सबको सील किया जा रहा है | अनिधिकृत निर्माण की भी सीलिंग हो रही है जो कि न्यायपालिका के न्यायक्षेत्र में नही है, भले ही कार्यपालिका इस मामले में असफल रही हो फिर भी न्यायपालिका कार्यपालिका का कार्य करे, उचित नही है | न्यायपालिका ने अपने क्षेत्र से बाहर जाकर काम करना शूरू कर दिया और तमाम ऐसी जिम्मेदारियों को ओढ़ लिया है जिससे मुख्य कार्य जैसे मुक़दमे आदि का निपटारा नही हो पा रहा है |सीलिंग कर रहे तमाम अधिकारी पैसे की वसूली कर रहे है,जब दिल्ली भाजपा अध्यक्ष श्री मनोज तिवारी ने गलत रूप से की गयी सीलिंग को रोका तो सुप्रीम कोर्ट ने अवमानना की कार्यवाही चालू की और अंत में अशोभनीय टिपण्णी करके मामले को ख़त्म कर दिया लेकिन जिन अधिकारियों ने गलती की थी उनके खिलाफ क्यों नही कार्यवाही की गयी |
दुनिया में कहीं भी एक न्यायधीश दूसरे न्यायधीश की नियुक्ति नही करता है | जजों की नियुक्ति कि कोई योग्यता नही रह गयी है | जब कोई हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश किसी वकील को जज बनाने की सिफारिश करता है तो क्या उस वकील का कोई साक्षात्कार या परीक्षा होता है या उसके द्वारा लड़े गए मुक़दमे की गुणवत्ता की जांच होती है | अनुसूचित जाति/जनजाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ और दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक (डीओम) परिसंघ मांग करता है कि संसद मूल संविधान को बहाल करे और न्यायपालिका अपनी सीमा में रहकर काम करे, इससे न केवल आम आदमी के लिए न्याय पाना संभव हो गया है बल्कि दलित, आदिवासी और पिछड़े अल्पसंख्यक के लिए जज बनने की सम्भावना ख़त्म हो गयी है | यदि मेरिट पर भी नियुक्ति होती तो कुछ दलित, पिछड़े जज बन गए होते लेकिन भाई-भतीजावाद, जातिवाद और गुरु-शिष्य के गठजोड़ से ऐसी कोई संभावना नही रह गयी है |समयान्तराल दलित, पिछड़े विभिन्न प्रतियोगिता में टॉप भी कर रहे हैं जैसे आईएएस, आईटी आदि में, लेकिन वर्तमान समय में इन वर्गों से योग्यतम व्यक्ति भी जज नही बन पायेगा | इनकी उपस्थिति हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में हो तो उसके लिए केवल आरक्षण ही एक मात्र उपाय है |
आम आदमी के लिए न्याय इतना महंगा हो गया है कि वह सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में पहुँचने की हिम्मत नहीं कर सकता | देश में वकीलों की कमी नही है लेकिन जजों की मेहरबानी से कुछ फेस वैल्यू वाले पैदा हो गए है और इसी वजह से लाखों -करोंडो में फीस मांगी जाती है | जनहित याचिका से नुकसान ज्यादा हुआ और फायदा कम, कुछ जजों के कृपापात्र वकील और एक या दो नागरिक जनहित याचिका के द्वारा ऐसा नियम कानून बनवाने लगे हैं जो एक वर्ग और देश की आबादी को प्रभावित करता है जिसमे इनकी कोई राय शामिल नही होती है | यह जनतंत्र के खिलाफ है,यह कैसे संभव है कि कुछ चंद लोगों की सोंच पूरे देश के ऊपर थोप दी जाये, वर्तमान में जो काम 545 सांसद नही कर पा रहे हैं , सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीश चंद समय में कर लेते हैं| 2014 में सरकार ने संविधान संशोधन करके नेशनल जुडिशल कमीशन अपॉइंटमेंट बनाया, जिसको न कि संसद ने मंजूरी दी बल्कि 21 राज्यों ने भी पास किया लेकिन जनहित याचिका के माध्यम से संशोधन ख़ारिज कर दिया गया |संविधान में संतुलन बनाने के लिए यह जरुरी है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका एवं विधायिका, सरकार के ये तीनो अंग अपने अधिकार क्षेत्र में काम करे और उसके लिए या तो एनजेएएसी या अखिल भारतीय न्यायिक सेवा लागू हो | न्यायापालिका का स्वरुप जातिवादी है और वह 20मार्च के फैसले, अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के प्रावधान में बड़ा बदलाव करके स्थापित कर दिया और दिन प्रतिदिन के आधार पर दलित,पिछड़ों एवं अल्पसंख्यकों के हितों के खिलाफ फैसले आते ही रहते है |
दलितों और आदिवासियों के सशक्तिकरण में सरकारी नौकरी, शिक्षा और राजनीति की अहम भूमिका रही है लेकिन सरकारी नौकरी एवं शिक्षा में इनकी भागेदारी ख़त्म कर दी गयी है और उसके लिए तमाम हथकंडे अपनाये हैं जैसे ठेकेदारी, निजीकरण, सरकारी काम को बाहर से कराना(आउटसोर्सिंग) आदि | मंडल कमीशन को 1993 से लागू किया गया लेकिन अब तक 7% से ज्यादा आरक्षण पूरा न किया जा सका | शिक्षा का एक बड़ा हिस्सा निजीकरण में जा चुका है जिससे इन वर्गों के लिए अवसर समाप्त हो गया है| न केवल दलित, आदिवासी पिछड़े बल्कि अल्पसंख्यकों का शोषण भेदभाव और बहिष्कार बढ़ा है, जिसका प्रभाव पूरे राष्ट्र और अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है | क्या कोई देश इतने बड़े आबादी को अलग-थलग करके विकास कर सकता है |परिसंघ निजीक्षेत्र में आरक्षण की मांग करता आ रहा है और संसद में प्राइवेट मेम्बर बिल डॉ. उदित राज ने निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए पेश भी किया है और हम मांग करते हैं कि इसको सरकारी बिल बनाकर संसद में पास किया जाये |
अल्पसंख्यकों के ऊपर हमला ही नही हो रहा बल्कि शोषण भी तेज़ हुआ है | दिनों-दिन वातावरण सांप्रदायिक होता जा रहा है | भारत कभी विभिन्न संस्कृतियों का समागम हुआ करता था लेकिन अब बिखराव हो रहा है, कोई भी बुद्धिमान समाज जाति और धार्मिक आधार पर समाज का बटवारा करके तरक्की नही कर सकता | जिस तरह से अनुसूचित जाति/जाति का आर्थिक उत्थान के लिए स्पेशल कमोनेंट प्लान और ट्राइबल सब प्लान बना है उसी तरह से अल्पसंख्यकों के लिए भी बनाया जाए |
अनुसूचित जाति /जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, जिसका मैं राष्ट्रीय चेयरमैन हूं, यह पहली संस्था है, जिसने निजी क्षेत्र में सबसे पहले आरक्षण की मांग की थी। यूपीए सरकार ने 2004 में मंत्रियों की एक समिति निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए गठित की थी, इसके बाद प्रधानमंत्री कार्यालय में भी कोर्डिनेशन कमेटी और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में अधिकारियों की एक समिति गठित की थी, पर ये गंतव्य तक नहीं पहुंच पाए। सरकार पर निजी क्षेत्र में आरक्षण के लिए दबाव बनता हुआ देख फिक्की, एसोचेम एवं सीआईआई जैसी उद्योगपतियों की संस्थाओं ने सरकार से दरख्वास्त की कि उन पर आरक्षण थोपा न जाए बल्कि वे स्वयं दलितों को उद्यमी बनाने के लिए कोचिंग, ट्यूशन एवं ट्रेनिंग इत्यादि प्रदान करेगें, पर उन्होंने यह वायदा भी नहीं निभाया। डॉ. उदित राज ने संसद में प्राइवेट मेम्बर बिल पेश किया है कि निजी क्षेत्र में आरक्षण दिया जाये और इसे सरकारी बिल में परिवर्तित करके संविधान में प्रावधान किया जाये ताकि आरक्षण निजी क्षेत्र में दलितों एवं पिछड़ों को दिया जा सके |
निजीकरण ने ऐसे शोषण का रूप धारण कर लिया है, जो कि विश्व में शायद ही अन्यत्र देखने को मिलता है। चौथी श्रेणी की लगभग सभी भर्तियां ठेके पर की जा रही हैं, जहां वेतन तो कम है ही, ये वेतन भी मजदूरों को पूरा नहीं दिया जाता। ठेकेदारी प्रथा को तुरंत बंद करना चाहिए और जहां यह प्रथा चल रही है, वहां सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बनती है कि ये देखें कि मजदूरों का वेतन बिना कटौती के उनके बैंक खातों में जमा हो। इस ठेकेदारी प्रथा के सबसे ज्यादा शिकार सफाई कर्मचारी हैं। एक प्रदेश से बना जाति प्रमाण-पत्र को सभी प्रदेशों में मान्यता मिले। खाली पड़े पदों को विशेष भर्ती अभियान चलाकर भरा जाए। दिल्ली में 20 सूत्रीय कार्यक्रम में आबंटित जमीन के मालिकों को 30-40 साल बाद भी मालिकाना हक नहीं दिया गया है।