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यूपीएस की घोषणा के बाद निजी क्षेत्र के कर्मचारियों में भी सम्मानजनक पेंशन की उम्मीद जगी

लेखक -महाबीर सिंह

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में 24 अगस्त को हुई केन्द्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया गया। इस बैठक में केन्द्रीय कर्मचारियों के लिये एकीकृत पेंशन योजना (यूनिफाइड पेंशन स्कीम) को मंजूरी दी गई। इस नई पेंशन योजना के महत्वपूर्ण बिंदु इस प्रकार हैं।

1. कम से कम 25 साल की नौकरी के बाद सेवानिवृत्ति पर आखिरी 12 माह के औसत मासिक बेसिक वेतन का 50 प्रतिशत पेंशन के रूप में मिलेगी। वहीं 25 साल से कम और न्यूनतम 10 साल तक की सेवा के लिये यह राशि आनुपातिक होगी।

2. पेंशनभोगी की मृत्यू होने पर उसे मिलने वाली अंतिम पेंशन की 60 प्रतिशत राशि पारिवारिक पेंशन के रूप में मिलेगी।

3. कम से कम 10 साल की नौकरी के बाद सेवानिवृत्ति पर 10,000 रूपये मासिक पेंशन दी जायेगी।

4. सुनिश्चित पेंशन, पारिवारिक पेंशन और सुनिश्चित न्यूनतम पेंशन पर औद्योगिक कर्मचारियों के अखिल भारतीय उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर के अनुसार महंगाई भत्ता दिया जायेगा।

5. सेवानिवृत्ति के समय ग्रेच्अुटी के अलावा समूचे सेवा काल के प्रत्येक छह माह की पूरी हुई सेवा के लिये वेतन प्लस महंगाई भत्ते की मासिक राशि के 10वें हिस्से का एकमुश्त भुगतान किया जायेगा। इस राशि का पेंशन राशि पर कोई असर नहीं होगा।

केन्द्रीय कर्मचारियों के लिये लाई गई यह नई एकीकृत पेंशन योजना एक अप्रैल 2025 से लागू होगी। कर्मचारियों के समक्ष यह पेंशन योजना का एक नया विकल्प होगा। इसमें पेंशन के मामले में गारंटी शब्द वापस आया है। कम से कम 10 साल की सेवा के बाद सेवानिवृत होने पर न्यूनतम 10 हजार रूपये पेंशन की गारंटी है। पेंशन योजना के मुद्दे पर यह नई योजना कर्मचारियों की शिकायत को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

केन्द्र सरकार ने एक जनवरी 2004 के बाद सरकारी सेवा में आने वाले कर्मचारियों के लिये (सशस्त्र सेना को छोड़कर) नई पेंशन प्रणाली (एनपीएस) लागू की गई। इस योजना में कर्मचारी और सरकार दोनों अपना अंशदान करते हंै। जहां एनपीएस में यह निश्चित नहीं है कि कितनी पेंशन मिलेगी, यानी कम से कम कितनी पेंशन मिल सकती है। वहीं यूपीएस न्यूनतम दस हजार रूपये मासिक पेंशन का वादा करती है। कर्मचारी संगठन शुरू से ही एनपीएस का विरोध करते रहे हैं। वह फिर से पुरानी पेंशन योजना लागू करने की मांग करते रहे हैं। यह बड़ा चुनावी मुद्दा भी रहा है। विपक्षी पार्टियां अपने चुनाव घोषणापत्र में पुरानी पेंशन योजना वापस लाने का वादा करती रही हैं। हालांकि, इस घोषणा पर कितना अमल हुआ यह अस्पष्ट रहा है।

एकीकृत पेंशन योजना में सरकारी योगदान को 18.5 प्रतिशत किया गया है जबकि एनपीएस में यह 14 प्रतिशत है। वहीं कर्मचारी का योगदान दोनों में 10 प्रतिशत पर ही रखा गया है। कर्मचारियों को मिलने वाले लाभ की यदि बात की जाये तो एकीकृत पेंशन योजना काफी कुछ पुरानी पेंशन योजना जैसी ही है। अंतर केवल इतना ही है कि पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारियों की तरफ से कोई योगदान नहीं होता था और पूरी पेंशन सरकारी बजट से दी जाती है। वहीं, यूपीएस में कर्मचारी और सरकार दोनों का योगदान होगा। इसमें सुनिश्चित पेंशन का वादा पूरा करने के लिये जमा कोष में यदि राशि कम रहती है तो सरकार की देनदारी बढ़ सकती है। वर्ष 2017-18 में सरकार का पेंशन खर्च जहां 1,45,745 करोड़ रूपये रहा वहीं 2024-25 के लिये बजट अनुमान 2,43,296 करोड़ रूपये रखा गया है। जबकि वर्ष 2023-24 में इसका संशोधित अनुमान 2,38,049 करोड़ रूपये रहा।

पुरानी पेंशन योजना के स्थान पर नई पेंशन योजना लाने के पीछे एक सबसे बड़ी वजह यह भी रही है कि केन्द्रीय बजट पर पेंशन बोझ लगातार बढ़ता जा रहा था। किसानों के लिये उर्वरक सब्सिडी, गरीबों को मु्फ्त अनाज सब्सिडी का बोझ भी बढ़ता गया। पेट्रेालियम सब्सिडी पर भी सरकारी बजट से खर्च होता है। योजना आयोग और आर्थिक विशेषज्ञ समय समय पर सरकार को पेंशन खर्च के लिये अलग पेंशन कोष बनाने का सुझाव देते रहे। जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इन सुझावों पर अमल करते हुये एक जनवरी 2004 के बाद सरकारी सेवा में आने वाले कर्मचारियों के लिये नई पेंशन योजना शुरू की। इसी कड़ी में केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने मई 2015 में सामाजिक सुरक्षा की बेहतरी के लिये अटल पेंशन योजना शुरू की जिसमें न्यूनतम पेंशन की गारंटी दी गई और अब सरकारी कर्मचारियों के लिये यूनिफाइट पेंशन स्कीम की घोषणा की गई है।

अब सवाल यह उठता है कि एनपीएस का क्या होगा। क्योंकि करीब करीब सभी सरकारी कर्मचारी एकीकृत पेंशन योजना में जायेंगे, हालाांकि, फिलहाल सरकार की तरफ से कहा गया है कि यह वैकल्पिक है। केन्द्र सरकार कें 50 लाख में से करीब 27 लाख कर्मचारी एनपीएस में है। राज्यों के भी 67 लाख कर्मचारी एनपीएस में हैं। एनपीएस को वर्ष 2009 में सभी क्षेत्रों के लिये खोल दिया गया था। जिसके बाद कार्पोरेट क्षेत्र के 21 लाख से अधिक लोग एनपीएस से जुड़े हैं। एनपीएस में कर्मचारियों को कर छूट लाभ भी मिलता है। परिपक्वता पर कर्मचारी के खाते में उपलब्ध कुल कोष के 60 प्रतिशत को बिना कर कटौती कर्मचारी खाते में डाल दिया जाता है जबकि शेष 40 प्रतिशत राशि से कर्मचारी को कोई पेंशन योजना लेनी होती है जिससे उसे पेंशन मिलती है। अब जबकि एनपीएस को लागू हुये 20 साल हो चुके हैं आने वाले सालों में इसका प्रतिफल और आकर्षण बेहतर रह सकता है।

देश में निजी क्षेत्र के कर्मचारियों का भी बड़ा वर्ग है जो अपने लिये सम्मानजक पेंशन की उम्मीद लगाये बैठे हैं। संगठित निजी क्षेत्र के 78 लाख से अधिक कर्मचारी आज भी न्यूनतम 1,000 रूपये मासिक पेंशन पर मजबूर हैं। निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को भविष्य निधि संगठन (पीएफ) पेंशन देता है। कर्मचारी संगठनों का कहना है कि निजी क्षेत्र में काम करने वाले कर्मचारी आयकर भुगतान के साथ ही देश की जीडीपी में बड़ा योगदान करते है, इसलिये उन्हें भी सम्माजनक पेंशन मिलनी चाहिये। सरकारी कर्मचारियों के लिये जब सरकार 18.5 प्रतिशत अंशदान कर सकती है तो निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिये भी ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिये। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन के साथ जुड़ने वाले कर्मचारियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ सालों से हर साल एक करोड़ से अधिक कर्मचारी ईपीएफओ से जुड़ रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सितंबर 2017 से इस साल मार्च तक 6.3 करोड़ कर्मचारी ईपीएफओ से जुड़े हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने ईपीएफओ पेंशन से जुड़े एक मामले में निर्णय देते हुये निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को बढ़ी बेसिक-पे पर अंशदान का विकल्प देकर अधिक पेंशन देने के लिये ईपीएफओ को निर्देश दिया था। लेकिन ईपीएफओ की ओर से इस दिशा में अब तक कुछ ठोस होता नहीं दिखा है।

केन्द्रीय कर्मचारियों के लिये यूपीएस की घोषणा के बाद निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को भी उम्मीद बंधी है कि उन्हें भी सम्मानजनक पेंशन मिलने का मार्ग प्रशस्त होगा।

 

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