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वरिष्ठ साहित्यकार और हिंदी अकादमी के पूर्व सचिव डॉ.हरि सुमन बिष्ट के कृतित्व व व्यक्तित्व पर आयोजित परिचर्चा सम्पन्न 

सी एम पपनैं

 

नई दिल्ली। चाणक्य पुरी स्थित प्रतिष्ठित उत्तराखंड सदन में ‘रूपान्तिका’ द्वारा 31 अगस्त को ‘जीवन में हरिसुमन बिष्ट’ शीर्षक पर हरिसुमन बिष्ट का लेखन विषयक खुली परिचर्चा का आयोजन प्रतिष्ठत साहित्यकार पंकज बिष्ट की अध्यक्षता, मुख्य अतिथि भगत सिंह कोश्यारी, पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड एवं पूर्व राज्यपाल, महाराष्ट्र व गोवा सरकार, प्रतिष्ठित समीक्षक एवं संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त दीवान सिंह बजेली की प्रभावी उपस्थिति तथा विशिष्ट अतिथियों आईएएस डॉ.कुलानंद जोशी (पूर्व शिक्षा निर्देशक), डॉ.अनीस आजमी (सचिव उर्दू अकादमी), प्रो.गोबिंद सिंह, पी सी नैनवाल, प्रो.(डॉ) नवीन चंद्र लोहनी इत्यादि के सानिध्य में आयोजित किया गया।

आयोजित खुली परिचर्चा का श्रीगणेश कथाकार व साहित्यकार डॉ.हरिसुमन बिष्ट द्वारा सभी मुख्य व विशिष्ट अतिथियों, वक्ताओं तथा उपस्थित अन्य साहित्यकारों तथा पत्रकारों का स्वागत अभिनन्दन कर तथा मंच संचालिका सुषमा जुगरान ध्यानी द्वारा सरस्वती वंदना के स्वर गुंजायमान कर डॉ.हरिसुमन बिष्ट के व्यक्तित्व व कृतित्व पर सारगर्भित प्रकाश डाल कर तथा आयोजक ‘रूपान्तिका’ तथा साहित्यकार डॉ.हरिसुमन बिष्ट द्वारा सभी मुख्य व विशिष्ट अतिथियों के साथ-साथ मुख्य वक्ताओं महेश दर्पण, अशरफ अली, डॉ.आशा जोशी, चंद्र मोहन पपनैं, भूपेश जोशी, मदन मोहन सती, सुषमा जुगरान ध्यानी, सुश्री प्रियंका, ओम सपरा, रमेश एस लाल, डॉ.रेनु पंत, डॉ.लालित्य ललित, प्रो.संजय पंत, प्रो.शैलेय, हरियश राय, हेम पन्त, चारू तिवारी, मनोज चंदोला, एस बौड़ाई, डॉ.विनोद बछेती इत्यादि इत्यादि को स-सम्मान शाल ओढ़ा कर तथा पाठ्य सामग्री भैंट कर स्वागत अभिनन्दन किया गया।

आयोजित परिचर्चा में बतौर मुख्य अतिथि भगत सिंह कोश्यारी पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड एवं पूर्व राज्यपाल, महाराष्ट्र व गोवा सरकार द्वारा कहा गया, उत्तराखंड के पहाड़ी अंचल से बाहर आकर लोग सोना बन जाते हैं। पहाड़ और मैदान के पुल बन जाते हैं। समझना होगा राजनीति में न मधुरता चलती है न कटुता चलती है, लेकिन साहित्य रचना में सब चलता है। कहा गया, डॉ.हरि सुमन बिष्ट की रचनाओं में बहुत कुछ दिखाई देता है। ऐसे अवसर कुछ सीखने का अवसर प्रदान करते हैं। रचनाओं से सीखना चाहिए।

भगत सिंह कोश्यारी द्वारा कहा गया, समाज में समरसता लाने हेतु साहित्य का बड़ा महत्व होता है। आशावादी दृष्टिकोण व रचनाओं के माध्यम से आगे बढ़ना होगा। साहित्य ने समाज की निराशा के बीच आशा की किरण दी है। रचा साहित्य कभी समाप्त नहीं होता है। कई कालखंडों तक हवा में जीवित रहता है, उद्देश्य की पूर्ति होती है। साहित्य का सृजन साहित्यकार की उपलब्धि है।

 

अन्य प्रबुद्ध वक्ताओं व साहित्यकारों द्वारा कहा गया, डॉ.हरि सुमन बिष्ट जाने माने कलम के सिपाही हैं। सम्पूर्ण जीवन सादगी का प्रयाय रहा है।लेखन में न्याय है, मनुष्यता का मादा भरा हुआ है। सेवानिवृति के बाद भी सक्रिय हैं। कहा गया, रचित उपन्यास ‘अरण्य की ओर’ तथा ‘बत्तीस राग गाओ मौला’, बार-बार पढ़ने योग्य हैं। कहा गया, डॉ.हरि सुमन बिष्ट के रचित साहित्य का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। रचित कहानियों पर नाटक मंचित किए गए हैं।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, हरि सुमन बिष्ट को उनके उत्कृष्ट लेखन से देश-विदेश में जाना पहचाना जाता है। जीवन में हरि सुमन बिष्ट और उनके लेखन पर लंबी परिचर्चाओ का आयोजन किया जा सकता है। समाज से जुड़ी बातों पर गहन चिंतन कर उन्होंने जो लिखा है, उनके लेखन की कला को दर्शाता है, अवगत कराता है। रचित साहित्य में तासीर बदलने वाला व तीखा स्वर भी दिखाई देता है।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, पर्वतीय समाज के लोग विनम्र रहते हैं। ‘आछरी-माछरी’ के बाद लगने लगा था यह रचयिता बहुत आगे तक जाएगा। हम जिस अंचल से आए हैं उसे न भूले, उसके परिवेश को न भूले। हरि सुमन बिष्ट ने अपने लेखन में सदा नए विषय की खोज की है, जो उनकी ख्याति को सदा आगे बढ़ाता नजर आया है।

 

वक्ताओ द्वारा कहा गया, लिखा बहुत जा रहा है, जो लुप्त हो रहा है। अच्छा क्या लिखा जा रहा है इसकी पहचान और खोज जरूरी है। हरि सुमन बिष्ट की भाषा तरल तथा सरल है जो प्रवाह में बहती देखी जा सकती है। घुमक्कड़ पन ने हरि सुमन बिष्ट को बहुत कुछ दिया है। विपुल लेखन किया है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, हरि सुमन बिष्ट की हर बात पहाड़ की तरह ठोस व बाते सहज होती हैं। हिंदी अकादमी में सचिव पद पर रहते हुए अकादमी के कार्यक्रमों में बाल रंगमंच की शुरुआत करने का श्रेय आपको ही जाता है। कहा गया, बाल रंगमंच के माध्यम से अनेकों लोगों को मौका मिला जो वर्तमान में भी कार्य कर रहे हैं, हरि सुमन बिष्ट की नीतियों व कार्यों को आज भी याद करते हैं, सराहते हैं।

 

वक्ताओं द्वारा कहा गया, साहित्य वह विधा है जो समाज को बदल देता है। हरि सुमन बिष्ट जो लिखते हैं सच्चा लिखते हैं। समाज की वेदना पर लिखते हैं। लेखन को अपना धर्म बनाया है। विष्णु प्रभाकर को अपना आर्दश माना है। गांव और पहाड़ के द्वंद पर जो अपनी शब्दावली जोड़ी है अद्भुत है। कहा गया, हरि सुमन बिष्ट धैर्यवान व मिलनसार हैं। सभी से अच्छे संबंध रहे हैं। खोजी लेखक हैं। उनके द्वारा लिखे गए साहित्य में जीवन, कर्म और लेखन तीनों का संतुलन है। यात्राओं के बाद जो लिखा उसमे कल्पनाशीलता को जोड़ते हैं। नई परिस्थितियों व कल्पनाओं के साथ लिखते हैं। विभिन्न विधाओं में लिखते हैं। अनुवाद और संपादन में बहुत ख्याति अर्जित की है। वक्ताओं द्वारा कहा गया, लोक तत्वों को हरि सुमन बिष्ट ने अपनी रचनाओं में चुना है। यह सब वैश्विक लेबल पर उन्हें ले जाता है। मन और चिंतन पहाड़ केंद्रित रहा है। लेखन प्रेरणाप्रद रहा है।

 

परिचर्चा पूर्ण होने के पश्चात् डॉ. हरिसुमन बिष्ट द्वारा कहा गया, वे सदा डरे रहे हैं। आज उनकी कृतियों के बावत अति विस्तार से विद्वत जनों द्वारा बात रखी गई, आभार। कहा गया, वे स्वतन्त्र जीवन नहीं अपना पाए, इस शहर को अपना नहीं पाए हैं। पहाड़ जाने को मन करता है। जो जीवन का समय बचा है बहुत कुछ करना है। कहा गया, यहा के शहरों के अलावा ग्रामीण जीवन को देखो। पहाड़ में आज कुछ नहीं है। किसी को दोष देना ठीक नहीं। अंचल की संस्कृति समृद्ध रही है, उसके बावत सोचना है, कार्य करना है।

 

अध्यक्षीय उद्बोधन में सुप्रसिद्ध साहित्यकार पंकज बिष्ट द्वारा कहा गया, सबका उद्देश्य सही के पक्ष में खडा होना है, पक्ष विपक्ष में जाए। बेहतर समाज को बनाने के लिए साहित्य सृजन होना चाहिए।

 

आयोजक ‘रूपान्तिका’ संजीव अग्निहोत्री द्वारा सभी अतिथियों, साहित्यकारों, पत्रकारों का परिचर्चा में विचार व्यक्त करने हेतु आभार व्यक्त कर परिचर्चा समाप्ति की घोषणा की गई। प्रभावशाली व ज्ञानवर्धक मैराथन परिचर्चा का मंच संचालन वरिष्ठ पत्रकार सुषमा जुगरान ध्यानी द्वारा बखूबी किया गया।

 

हिंदी साहित्य जगत में एक नामी उपन्यासकार व साहित्यकार के रूप में जाने जाने वाले व देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजे जा चुके छियासठ वर्षीय डॉ.हरि सुमन बिष्ट मूल रूप से उत्तराखंड अल्मोड़ा जनपद के गांव कुन्हील (सल्ट) निवासी हैं। प्राथमिक शिक्षा गांव की पाठशाला, मानिला इंटर कालेज मानिला से हाईस्कूल एवं इंटर तथा कुमाऊं विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर तथा आगरा विश्वविद्यालय आगरा से पीएचडी प्राप्त हैं।

 

अलग-अलग समय पर हिंदी, मैथिली, भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार में सचिव पद पर रहते हुए डॉ.हरि सुमन बिष्ट द्वारा विभिन्न प्रभावशाली कार्य योजनाओ के माध्यम से देश को एक सूत्र में बांधने के उद्देश्य से सांस्कृतिक एवं साहित्यक कार्यक्रमों के ध्यान आकर्षित करने वाले आयोजन कर चर्चा में बने रहे। हिंदी को भारतीय भाषाओं से जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए। बच्चों और युवाओं को हिंदी से जोड़ने के लिए नाट्य मंच का सहारा लेकर विशेष प्रशिक्षण कार्यशालाएं आयोजित की ताकि बच्चों में आत्मविश्वास पैदा हो सके और स्वरोजगार के लिए स्वयं तैयार हो सकें।

 

डॉ.हरि सुमन बिष्ट द्वारा हिंदी अकादमी की त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका ‘इन्द्रप्रस्थ भारती’ का सत्ताईस वर्ष तक कुशल संपादन किया गया। आकाशवाणी तथा दिल्ली दूरदर्शन के कार्यक्रमों के निर्माण के लिए विषय विशेषज्ञ के रूप में सेवाएं दी गई हैं। साहित्य कला परिषद् दिल्ली सरकार के नाट्य परामर्श मंडल का नामित सदस्य के रूप में सेवाएं दी हैं। उत्तराखंड सरकार की हिंदी अकादेमी देहरादून के पूर्व नामित सदस्य रहे हैं। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में वृत्तचित्र निर्माण के लिए विषय विशेषज्ञ रहे हैं। कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल के अंतर्गत महादेवी वर्मा सृजनपीठ की संचालन समिति का सदस्य के नाते उत्तरदायित्व निभाया है।

 

डॉ.हरिसुमन बिष्ट का हिंदी साहित्य जगत में एक कथाकार एवं उपन्यासकार के साथ-साथ हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार एवं संवर्द्धन के लिए भी प्रशंसनीय कार्य किया है। सामाजिक सरोकारों और संवेदनाओं से भरी अपनी कृतियों से अपना आकाश बनाया है। उनकी रचनाओं का अंग्रेजी सहित भारतीय भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। भारतीय भाषाओं के साहित्य के बीच उनके उपन्यास हिंदी भाषा के प्रचार–प्रसार एवं अवदान के लिए काफी चर्चा में रहे हैं।

 

डॉ.हरि सुमन बिष्ट के प्रकाशित आठ उपन्यास में ममता (1980), आसमान झुक रहा है (1990), होना पहाड़ (1999), आछरी-माछरी (2006) तथा (2012), बसेरा (2011), भीतर कई एकांत (2017), बत्तीस राग गाओ मोला (2021), अपने अरण्य की ओर (2021)।

 

प्रकाशित कहानी संग्रहों में सफ़ेद दाग (1983), आग और अन्य कहानियां (1987), मछरंगा (1995), बिजूका (2003), मेले की माया उत्तराखंड की लोक कथाएं (नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित 2011) और ‘हरिसुमन बिष्ट की चुनी हुई कहानियां’ (2018), प्रेक्षागृह एवम अन्य कहानियां (2021)।

 

प्रकाशित यात्रा वृतांतों में अंतर्यात्रा (1998 तथा 2008), बांग्ला में अनुवाद–आमार ए पोथ (2014), नील के आर-पार (2019)। प्रकाशित नाटक एवं पटकथाओ में आछरी–माछरी, दिसम्बर 1971 का एक दिन, लाटा, प्रेक्षागृह, ख़्वाब एक उड़ता हुआ, परिंदा था फिल्म ‘राजुला’ की पटकथा और संवाद के साथ-साथ डॉ.हरि सुमन बिष्ट की बातचीत से जुड़ी किताबों में ‘होने की सार्थकता न होने के कयास’ (2021) तथा डॉ.हरिसुमन बिष्ट से जयप्रकाश मानस की लम्बी बातचीत पुस्तक रूप में प्रकाशित हैं।

 

ज्ञानवर्धक एवं प्रभावशाली साहित्य लेखन के एवज में डॉ. हरि सुमन बिष्ट को देश-विदेश के अनेकानेक प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा सम्मान और पुरुष्कारों से नवाजा गया है। जिसमें शैलेश मटियानी चित्र कुमार कथा पुरस्कार, राष्ट्र भाषा प्रचार समिति मध्य प्रदेश, विजय वर्मा कथा पुरस्कार मुंबई, सृजनगाथा डॉट कॉम पुरस्कार मिस्र, गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार एथेंस प्रमुख हैं।

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