उत्तराखण्डदिल्ली

राज्य आंदोलनकारी की जयंती के अवसर पर परिचर्चा का आयोजन

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। उत्तराखंड प्रवासियो द्वारा गठित ‘बुरांस साहित्य एवं कला केन्द्र’ द्वारा उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी, साहित्य सेवी, संस्कृति प्रेमी स्व.दीवान सिंह नयाल की 66वी जयंती के अवसर पर गांधी शांति प्रतिष्ठान मे परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा का श्रीगणेश स्व.दीवान सिंह नयाल के चित्र पर अमित चौहान द्वारा पुष्प माला पहना कर व प्रथम सत्र मे मंचासीन उत्तराखंड की मातृशक्ति मे प्रमुख बसंती नयाल, सुषमा जुगरान ध्यानी, राजेश्वरी कापडी, मृदुला जुगरान, अंजना गौण, प्रीति रमौला गुसाई, कुसुम कंडवाल भट्ट, वीना नयाल, दीपा नयाल द्वारा गुलाब की पंखुड़ीया अर्पित कर किया गया। आयोजकों द्वारा सभी मंचासीनो का स्वागत अभिनंदन पुष्पमाला भैट कर किया गया। आयोजित प्रथम सत्र मे मंचासीन मातृशक्ति द्वारा स्व.दीवान सिंह नयाल के कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए व्यक्त किया गया, प्रवासी जनसमाज में उनका कद इतना बड़ा रहा जिस बल आज उनकी जयंती पर उन्हे सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु बडी संख्या में विभिन्न विधाओ व क्षेत्रों मे प्रवीण प्रवासीजन सभागार में मौजूद हैं। उत्तराखंड की संस्कृति से जुडे त्योहारों के साथ-साथ बोली-भाषा के संरक्षण व संवर्धन पर उनका कार्य बहुत कुछ व्यक्त करता नजर आता था। जिस योगदान व प्रेरणा को भुलाया नहीं जा सकता है। वक्ता मातृशक्ति द्वारा व्यक्त किया गया, स्व. दीवान सिंह नयाल की जो सोच थी, उन्होंने प्रवासी जनो को जो दिशा देने का काम किया था प्रेरणादायी रहा है, दुर्भाग्य उनके द्वारा दी गई दिशा पर कार्य नही हो पा रहा है। बोली-भाषा पर भी नहीं। हमे उनकी इच्छा अनुरूप कार्यो को आगे बढ़ाना होगा, यही उन्हे सच्ची श्रद्धांजलि होगी। वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, उनकी मधुर स्मृति के लिए यहां बडी संख्या मे लोग उपस्थित हैं। इसलिए कि नयाल जी गुमनामी मे नहीं जिए, जन सरोकारों के मुद्दे पर वे सड़क पर होते थे। उत्तरैणी-मकरैणी पर दिल्ली प्रवास मे वे प्रवासी जनो के मध्य एक ऐसा कार्य व दिशा दे गए हैं जिस बल उन्हे लम्बे समय तक याद किया जाता रहेगा। उन्होंने उत्तराखंडी बोली-भाषा अकादमी के लिए नीव के पत्थर का काम किया। उदार व्यक्ति, विचारों से संपन्न, अपने आदर्शो से समाज को आचरण सिखाने वाले व नि:स्वार्थ भाव काम करने वाले ऐसे व्यक्ति को समय आने पर नकार दिया गया। व्यक्त किया गया, स्व.दीवान सिंह नयाल पर शोध कार्य कराने का प्रयास किया जायेगा।

वक्ताओ द्वारा स्व.दीवान सिंह नयाल के व्यक्तित्व व कृतित्व पर रची प्रभावशाली कविताओं का पाठ भी किया गया। आयोजित परिचर्चा के दूसरे सत्र में मंचासीन महेश चंद्रा, प्रभात ध्यानी, डाॅ हरेन्द्र असवाल, नरेन्द्र लड़वाल, हरिपाल रावत, डाॅ विनोद बछेती, रोहताश तथा दिनेश नयाल का आयोजकों द्वारा पुष्पमाला से स्वागत अभिनंदन किया गया। वेद विलास उनियाल के सम्बोधन से दूसरे सत्र का शुभारंभ किया गया। सभी प्रबुद्ध मंचासीनो तथा अन्य वक्ताओ मे राजू पांडे, कैलाश धस्माना, सुनील भट्ट, पवन मैठाणी, मितेश्वर आनंद तथा विरेन्द्र द्दयोपा द्वारा व्यक्त किया गया, स्व.दीवान सिंह नयाल मे पहाड़ की छवि दिखती थी। वे संघर्षशील व्यक्ति थे। जन समस्याओं के संघर्ष के लिए सदा तत्पर रहते थे। राजनेता कम समाज हितैषी ज्यादा थे। वक्ताओ द्वारा अवगत कराया गया, अभाव ग्रस्त होने के बावजूद दो बार उन्होंने सत्ताधारी राष्ट्रीय पार्टी के टिकट पर एक कद्दावर नेता के रूप में दिल्ली प्रवास मे यमुना विहार व करावल नगर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लडा, चंद सौ वोटों से सिकश्त झेली। वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, पर्वतीय अंचल दाणिम खोला (अल्मोडा) मे जन्मे स्व.दीवान सिंह नयाल द्वारा दिल्ली प्रवास में उत्तराखंड बोली-भाषा अकादमी के लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया। इस अभियान को मुकाम तक पहुचाया। सादगी ही उनकी शौहरत थी। प्रत्येक राजनैतिक दल नेताओ से उनके अच्छे संबंध थे। सीधी बात करते थे। उनका विराट व्यक्तित्व था। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। अपनत्व व सेवा भावना के गुण उनमे कूट-कूट कर भरे हुए थे। स्व. दीवान सिंह नयाल जीवन पर्यंत किए गए कार्यो के बल याद किए जाते रहैगे। वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, उनके किए कार्यो की विरासत को आगे बढ़ाने की जरूरत है। चिंता और विमर्श करने की जरूरत है। समस्याओं के समाधान की ओर बढ़ने की जरूरत है। राजनैतिक चेतना की जरूरत है। स्व.दीवान सिंह नयाल द्वारा दी गई दिशा को याद कर, उस पथ पर चल कर उन सपनो को साकार करना होगा। यही उन्हे सच्ची श्रद्धांजलि होगी। परिचर्चा आयोजक संस्था बुरांस साहित्य एवं कला केन्द्र द्वारा स्व. दीवान सिंह नयाल की पुत्रियों क्रमश: दीपा व वीना नयाल तथा पुत्रो क्रमश: विनय व सुरेश नयाल को मंचासीन वक्ताओ के कर कमलो स्मृति चिन्ह स-सम्मान प्रदान किए गए। सुरेश नयाल द्वारा आयोजकों व सभागार में उपस्थित सभी प्रबुद्धजनो का आभार व्यक्त कर परिचर्चा समापन की घोषणा की गई। आयोजित परिचर्चा संचालन बुरांस साहित्य एवं कला केन्द्र अध्यक्ष प्रदीप वेदवाल व डाॅ सूर्यप्रकाश सेमवाल द्वारा बखूबी किया गया।

 

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