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गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान द्वारा आयोजित उत्तराखंड साहित्योत्सव-2023 सम्पन्न

सी एम पपनैं

 

नई दिल्ली। दिल्ली प्रवास मे उत्तराखंड के प्रवासियो द्वारा 1984 देहरादून मे स्थापित प्रतिष्ठित ‘गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान’ दिल्ली द्वारा 22 जुलाई को आईटीओ स्थित गांधी शान्ति प्रतिष्ठान के सभागार मे ‘उत्तराखंड साहित्योत्सव-2023’ का आयोजन प्रतिष्ठान अध्यक्ष रमेश चंद्र घिल्डियाल की अध्यक्षता, उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच संयोजक दिनेश ध्यानी के सानिध्य व उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध साहित्यकारो, कवियों, पत्रकारों तथा सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थाओं से जुड़े प्रबुद्धजनो की उपस्थिति मे तीन सत्रों मे आयोजित किया गया।

 

आयोजन के प्रथम सत्र मे उत्तराखंड की प्रमुख बोली-भाषाओं कुमांऊनी, गढ़वाली व जौनसारी पर भाषा विदो द्वारा परिचर्चा। दूसरे सत्र में उत्तराखंड के लोकसंगीत, नाटक तथा फिल्मों की दशा व दिशा पर परिचर्चा तथा आयोजन के तीसरे सत्र में युवा और वरिष्ठ कवियों द्वारा प्रभावशाली काव्य पाठ किया गया। आयोजन के इस अवसर पर ‘गढ़वाल अध्ययन प्रतिष्ठान’ द्वारा ‘महाकवि अबोध बन्धु बहुगुणा साहित्य सम्मान’ व ‘ललित मोहन थपल्याल नाट्य कला सम्मान’ भी प्रदान प्रदान किए गए।

 

‘उत्तराखंड साहित्योत्सव-2023’ का श्रीगणेश मंचासीन वरिष्ठ साहित्यकार ललित केशवान, कुमांउनी कवि गिरीश बिष्ट ‘हंसमुख’, गढ़वाली कवि व साहित्यकार दिनेश ध्यानी, वरिष्ठ पत्रकार चारु तिवारी व रंगमंच निर्देशक डाॅ स्वर्ण रावत के कर कमलो व साहित्यकार डाॅ हेमा उनियाल द्वारा कर्णप्रिय सरस्वती वंदना वाचन के साथ किया गया। प्रतिष्ठान पदाधिकारियों द्वारा मंचासीन प्रबुद्धजनो का फूल-मालाओ से स्वागत अभिनंदन किया गया।

 

आयोजन के इस अवसर पर उत्तराखंड लोकभाषा साहित्य मंच संयोजक दिनेश ध्यानी द्वारा अवगत कराया गया, उत्तराखंड की कुमांऊनी, गढ़वाली व जौनसारी बोली-भाषा समर्थ बोली-भाषाऐ हैं जिनको संविधान की आठवी अनुसूची मे शामिल करवाने हेतु निरंतर प्रत्येक स्तर पर प्रयास व संघर्ष किया जा रहा है। दिल्ली मे आयोजित ऐसे आयोजनों का बड़ा प्रभाव पड़ता है। कुमांऊ व गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा उक्त बोली-भाषा कार्यक्रम शुरू हो चुके हैं। उत्तराखंड मे अन्य कई जगह भाषा पर काम हो रहा है। भाषा के पठन-पाठन मे पाठकों का होना व भाषा की समृद्धि में भाव का होना जरूरी है। भाषा का नेतृत्व गूढ़ व ज्ञानी व्यक्तियों द्वारा होना चाहिए। भाषा के मामलों में केन्द्र व राज्य सरकार की बडी भूमिका होती है। आगामी जनगणना पर राष्ट्रीय व मातृभाषा के बावत सूचित करना होगा। अपनी दुधबोली भाषा को हर उत्तराखंडी जनगणना सारणी सूची में जरूर सूचित करे।

 

गिरीश बिष्ट ‘हंसमुख’, चारु तिवारी, डाॅ स्वर्ण रावत व डाॅ हेमा उनियाल द्वारा द्वारा व्यक्त किया गया, हमारे राज्य की अपनी भाषा हो। इसका हक हमे हमारे संविधान से प्राप्त होता है। हमारी बोली-भाषा जडो से कट रही है, उसका हास हो रहा है। भाषा की लिपि पर चर्चा कम होती है। भाषा का मानकीकरण कर एक खास जगह जिसमे अल्मोडा या अन्य कोई भी अन्य कस्बा या शहर उपयुक्त हो सकता है को केन्द्र बनाना होगा। मानकीकरण होने से भाषा को पहचान मिलेगी। भाषा की उन्नति उसके मूल मे है। सबके विचार एक जैसे हों। समूह मे चलै। युवाओ को अपनी बोली-भाषा का संरक्षण व संवर्धन करने के लिए आगे आना होगा। भाषा को मान्यता मिलने पर बहुत से लाभ विभिन्न क्षेत्रों में मिलने आरंभ हो जायैगे। विभिन्न भाषाओं में लिखित साहित्य का अनुवाद होना शुरू हो जायेगा।

 

व्यक्त किया गया, बोली-भाषा के इतिहास को वर्तमान परिपेक्ष मे कैसे देखै? भाषा की बात सरल भाषा में रखी जाए। वर्तमान मे हमारी बोली भाषा के जो गीत खूब संवाद कर रहे हैं, वे सरल हैं। उक्त गीतों के माध्यम से पेश हमारी बोली-भाषा व संस्कृति की गहराई का पता चलता है। कोई सृजन कर रहा है, कोई उसे लोगों के बीच ले जा रहा है। वक्ताओ द्वारा अवगत कराया गया, पहले जमीनों के खसरा-खतोनी भी हमारी स्थानीय बोली-भाषा में ही लिखे गए थे। अंग्रेजो ने भी हमारी बोली-भाषा को समझने व उसमे खपने की रुचि रखी थी। हम लोग अपनी बोली-भाषा मे बात क्यों नहीं कर सकते? लोकगाथाओ के माध्यम गीत आगे बढे, आज से सौ साल पहले हमारी बोली-भाषा के गीत रिकार्ड होने शुरू हो गए थे। हमारी भाषा खत्म नही उसका विस्तार हुआ है। भाषा में काम करने वालो को मदद व प्रोत्साहन देना चाहिए।

 

आयोजन के दूसरे सत्र मे मंचासीन साहित्यकारों मे डॉ हरिसुमन बिष्ट, डाॅ जीतराम भट्ट, डाॅ हरेन्द्र असवाल तथा चंद्र मोहन पपनैं का आयोजकों द्वारा फूल मलाओ से स्वागत अभिनंदन किया गया। ‘महाकवि अबोध बन्धु बहुगुणा साहित्य सम्मान’ वरिष्ठ साहित्यकार ललित केशवान को मंचासीन साहित्यकारो के कर कमलो प्रदान किया गया। सम्मान स्वरूप साहित्यकार ललित केशवान को शाल ओढा कर तथा स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र व चैक प्रदान कर तालियों की गडगड़ाहट के मध्य सम्मानित किया गया।

 

प्रतिष्ठान अध्यक्ष रमेश घिल्डियाल द्वारा 17 अगस्त 1939 को पौडी गढ़वाल मे जन्मे वरिष्ठ साहित्यकार ललित केशवान द्वारा छह दशकों तक हिंदी व गढ़वाली बोली-भाषा के साहित्य सृजन व उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला गया। कुमांऊनी कवि गिरीश बिष्ट ‘हंसमुख’ द्वारा साहित्यकार ललित केशवान पर रचित एक प्रभावशाली कविता वाचन किया गया।

 

उत्तराखंड के लोकसाहित्य, नाटकों व फिल्मों की दशा व दिशा पर मंचासीन प्रबुद्धजनो द्वारा व्यक्त किया गया, जो समाज अपने लेखको व कलाकारों का सम्मान करता है वह समाज निरंतर आगे बढ़ता है। इनका सम्मान करने पर निश्चय ही भाषा व कला का संवर्धन होगा। मंचासीन साहित्यकारों द्वारा व्यक्त किया गया, ऐसे आयोजनो मे मुख्य समस्या को पकडने की कोशिश की जाती है। कलाकारों, वादको, सृजन कर्ताओ को संगठित करना मुख्य कार्य है। लम्बी रेस मे वही आगे जाता है जिसमे शक्ति होगी।

 

वक्ता साहित्यकारों द्वारा व्यक्त किया गया, अपनी बोली-भाषा न बोलने से हम बिखरे हुए हैं। दुधबोली न बोलना हमे अन्य समाजों से पीछे धकेल रहा है। हम लोगों के बीच झगडे का कारण रहा है। हमारी बोली-भाषा सभी भाषाओं की जननी संस्कृत के नजदीक रही है। भाषा हमे जोड़ती है। प्रेम के भाव सिखाती है। इजराइल अपनी स्थानीय बोली-भाषा के विकास के बल विश्व के राष्ट्रो के मध्य अपना नाम रखता है।

 

आयोजन के तीसरे सत्र में आभा थपल्याल, मनोज चंदोला, खुशाल सिंह बिष्ट, डाॅ कुसुम भट्ट, डाॅ स्वर्ण रावत व चंद्र मोहन पपनैं मंचासीनो द्वारा व्यक्त किया गया, हम देश-विदेश कही भी प्रवासरत रहे अपनी थाती व बोली-भाषा को न भूले। कला, साहित्य, संगीत जीवन से अलग नहीं हैं। हमे पीढी दर पीढी अपने बुजुर्गो से मिली सांस्कृतिक विरासत को पारंपरिक रूप मे आगे प्रवाहमान करना होगा, बोली-भाषा इसका मुख्य अंग है।

 

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, उत्तराखंड राज्य गठन को तेइस वर्ष हो गए हैं हमारी आंचलिक बोली-भाषा, लोकगीत-संगीत, लोक साहित्य, नाटकों व फिल्मों के मंचन व उत्थान पर स्थापित सरकारों की कभी कोई रुचि नहीं रही है। सम्बंधित कार्यो से जुडी अकादमी का गठन अभी तक राज्य मे नही हुआ है। जो उक्त विधाओ से जुडे प्रबुद्ध जनमानस को अखरता है। अगर यही क्रम बना रहा तो उत्तराखंड की कला-संस्कृति से जुडी विधाओ का हास् होगा। आंचलिक संस्कृति की पहचान का नामो निशान मिट जायेगा।

 

वक्ताओ द्वारा व्यक्त किया गया, देश की राजधानी दिल्ली मे उत्तराखंड के करीब पच्चीस लाख जन प्रवासरत हैं। स्थापित सरकारों द्वारा हर क्षेत्र मे उत्तराखंड के प्रवासीजनो को सदा दरकिनार कर रखा गया है। कोई भी आवश्यक मूलभूत सुविधा किसी भी क्षेत्र मे गठित प्रवासी सांस्कृतिक व सामाजिक संस्थाओ को प्रभावी रूप मे उपलब्ध नहीं कराई गई हैं, जो उत्तराखंड के लाखों प्रवासीजनो को निराशा की ओर धकेलता प्रत्यक्ष नजर आता है। व्यक्त किया गया, क्या उत्तराखंड के लाखों प्रवासीजनो के सामाजिक व सांस्कृतिक उत्थान के लिए केन्द्र व राज्य की डबल इंजन सरकार के सौजन्य से एक भव्य सेंटर जिसमे एक बड़ा सभागार हो, विभिन्न तालीम व सभा कक्ष हो, कला गैलरी हो इत्यादि इत्यादि का नव निर्माण नहीं करवाया जा सकता है? व्यक्त किया गया, हर चीज सम्भव है, सत्ता में बैठे सत्ताधारियों मे इच्छा शक्ति होनी चाहिए। यह सब असंभव नहीं है। जो किया जाय सशक्त व संतोष जनक हो।

 

आयोजन के इस अवसर पर ‘ललित मोहन थपल्याल नाट्य कला सम्मान’ उत्तराखंड की सुप्रसिद्ध गढ़वाली फिल्म व रंगमंच अदाकारा, निर्देशिका तथा लेखिका सुशीला रावत को मंचासीन प्रबुद्धजनो के कर कमलो शाल ओढा कर, पुष्पमाला पहना कर तथा स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र व चैक प्रदान कर सम्मानित किया गया। उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध प्रवासी कुमांऊनी व गढ़वाली आंचलिक कवियों मे प्रमुख जयपाल सिंह रावत ‘छिपड दा’, उदय ममगई, नीरज बवाडी, दर्शन सिंह रावत, गिरधारी सिंह, उमेश बंदूनी, डाॅ केदारखंडी, रमेश हितैषी द्वारा आंचलिक बोली-भाषा मे रचित कविताओ का प्रभावशाली वाचन कर श्रोताओं के मध्य समा बाधा। कार्यक्रम के मध्य विगत माह दिवंगत रंगकर्मी गंगादत्त भट्ट व लोकगायक व वादक देवराज रंगीला को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

 

आयोजित आयोजन के प्रथम सत्र का मंच संचालन मीडिया कर्मी प्रदीप वेदवाल तथा द्वितीय व तृतीय सत्र का मंच संचालन सुप्रसिद्ध गढ़वाली रंगमंच व फिल्म कलाकार ब्रजमोहन शर्मा वेदवाल द्वारा बखूबी किया गया।

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