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अनाथ बच्चों की समस्याओं के समाधान’ विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार सम्पन्न


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सी एम पपनै

नई दिल्ली। आशक्त और बेसहारा बच्चों के उत्थान के लिए विगत बीस वर्षो से प्रयासरत ‘नई उड़ान ट्रस्ट’ द्वारा 18 जनवरी को एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर के सभागार में ‘अनाथ बच्चों की समस्याओं के समाधान’ विषय पर प्रभावशाली राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन दो सत्रों में अयोजित किया गया। दिल्ली सहित देश के विभिन्न नगरों से आए प्रबुद्ध समाजसेवियों की उपस्थिति के मध्य उक्त राष्ट्रीय आयोजन में हर ‘बच्चे को परिवार’ दत्तक ग्रहण प्रक्रिया का सरलीकरण पर अनेकों प्रबुद्ध चिंतकों द्वारा गूढ व स्वागत योग्य विचार व्यक्त किए गए।

आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन का श्रीगणेश मंचासीन मुख्य व विशिष्ट अतिथियों में प्रमुख डॉ प्रशांत हरतोलकर (प्रभारी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ), प्रियंक कानूनगो (अध्यक्ष राष्ट्रीय बाल विकास आयोग), डॉ पी के कोचर (विभागाध्यक्ष एम्स दिल्ली), डॉ अक्षय ठक्कर (विश्व कल्याण मिशन), के सी पांडे (अध्यक्ष विश्व ब्राह्मण फैडरेशन), जे सी पुन्तोक (भारत तिब्बत सहयोग मंच), अवतार रावत (महाधिवक्ता सर्वोच्च न्यायालय), डॉ राज कुमार बर्थवाल (आईएएस), मोहन सिंह बिष्ट (विधायक भजनपुरा दिल्ली), रामदास मलिक, विशाखा सेलानी, डॉ इग्न्वीश प्रभु, आचार्य विक्रमादित्य, डॉ पीयूष सक्सेना (महासचिव नई उड़ान ट्रस्ट) इत्यादि द्वारा दीप प्रज्ज्वलित कर व डॉ मनोज कुमार द्वारा सभागार में उपस्थित प्रबुद्ध जनों को सहज योग साधना के बावत अवगत करा कर व योग करवा कर किया गया।

आयोजक ट्रस्ट द्वारा सभी मंचासीनों का स्वागत अभिनंदन माल्यार्पण व स्मृति चिन्ह प्रदान कर किया गया। सोनीपत के बाल नृत्यकारों मनसा गौतम, रोनिका नेगी इत्यादि इत्यादि द्वारा मनमोहक नृत्य प्रस्तुत किए गए। राष्ट्रीय आयोजन के इस अवसर पर सभी नृत्यांगनाओं के साथ-साथ अन्य प्रबबुद्ध जनों में प्रमुख अक्षय ठाकुर, पीयूष सक्सेना, रमेश पहलवान, अक्षय ठक्कर, आलम सिंह रावत, विष्णु खरे इत्यादि इत्यादि का भी माल्यार्पण कर स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए।

आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के दोनों सत्रों में ‘अनाथों की समस्याओं के समाधान’ विषय पर मंचासीन प्रबुद्ध जनों के साथ-साथ प्रोफेसर श्रुति सहरावत, दयानंद सरस्वती, बालयोगी, राजेश कुमार मिश्रा (विधायक बरेली, उत्तर प्रदेश) इत्यादि इत्यादी वक्ताओं द्वारा अवगत कराया गया, यह विषय बहुत महत्वपूर्ण है। अनाथ बच्चों को किस प्रकार परिवार से जोड़ा जाए? उनकी परवरिश कैसे होनी चाहिए? उक्त महत्वपूर्ण विषय पर छह विषयों में शिक्षा प्रदान की जा रही है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, भारत में गोद लेने की परंपरा परिवार केन्द्रित परंपरा है जो युगों से चली आ रही है। पहले गुरुओं द्वारा ही इस कार्य को किया गया था। गोद लिए बालक देश के सम्राट बने, जिसके कई उदाहरण हैं। शकुन्तला को भी गोद लिया गया था जिसकी शादी राजा दुष्यंत से हुई थी। जिसके पुत्र भरत के नाम से भारत का नाम पड़ा। कहा गया, पहले जो योद्धा मारे जाते थे उनके बच्चों को अनाथालय में डाल दिया जाता था। अनाथ बच्चों को तलवार पकड़वा कर युद्ध भी लड़वाया गया। वे मारे भी गए। वाडिया राज घराने में राजा वही बंनता है जो गोद लिया हुआ हो। गोद लिए बच्चों ने वंश चलाए हैं। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने भी बच्चा गोद लिया था, अंग्रेज नहीं चाहते थे गोद लिया बच्चा राज चलाए। रानी लक्ष्मी बाई को संघर्ष करना पड़ा था।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, अलग-अलग परम्पराओं व सांस्कृतिक विचार धाराओं का यह विषय है। 1950 में कानून लागू हुआ था, बच्चे उससे पहले भी गोद लिए जाते रहे हैं। 2700 बच्चे विगत वर्ष गोद लिए गए थे। अर्जी आई थी सत्ताईस हजार। किशोर अधिनियम भी बना है। कहा गया, देश में अनाथ बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया का सरलीकरण होना चाहिए। पूरी दुनिया में गोद लेने की प्रक्रिया व नियम जरूरी हैं। अनाथ बच्चों को समाज की धारा में कैसे जोड़ा जाए? जिन स्थानों में इन अनाथ बच्चों को रखा जाता है, उस पर गौर फरमाना जरूरी है। बनाए कानून के अनुसार कार्य होना चाहिए। लोगों को जागरूक करना जरूरी है। संतो को भी इस मुहीम में आगे आना चाहिए।

कहा गया, कोरोना महामारी के दौरान 3843 बच्चे हर की पैड़ी हरिद्वार में मिले थे जो फुटपाथ में रह रहे थे। ऐसे बच्चों को गोद क्यों नहीं लिया जाता। देश में 7138 अनाथों के नाम पर संस्थाए चल रही हैं जिनमें करोड़ों बच्चे रह रहे है। दो करोड़ अठानब्बे लाख अनाथ बच्चे गांवों में निवासरत हैं, उन बच्चों के पास पहुंचने व योजनाए बनाने की जरूरत है। पहले गोद लिए बच्चों को देश से बाहर भेज दिया जाता था। प्रशासनिक हील-हवाली से 35 हजार बच्चे माल्टा पहुचाए जा चुके हैं। अन्य कुछ और देशों को भी ऐसे बच्चे बहुतायत में पहुंचाए गए हैं।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, दिव्यांग बच्चे भी हमारे बच्चे हैं। इन्हे गोद लेने की व्यवस्था बने। दिव्यांग बच्चे का प्रमाण पत्र मेडिकल बोर्ड देता है। समाज को बच्चों को गोद लेने के लिए स्वयं को आगे आना होगा। अवगत कराया गया, कोरोना महामारी में चार हजार बच्चे अनाथ हुए थे। उन अनाथ बच्चों की सरकार की देख रेख में हर तरह की मदद की जा रही है। उक्त बच्चों की देखरेख के लिए अधिकारियों की नियुक्ति की गई है। पहले अनाथ आश्रमों का सोशियल आडिट नहीं होता था, अब हो रहा है। दो लाख छप्पन हजार अनाथ बच्चों में से अधिकतर दक्षिण के राज्यों से हैं।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, अनाथों की स्थिति दयनीय है, अनाथ बच्चे दुखी हैं, उन्हे प्यार नहीं मिल रहा है। वे परिवार भी चिंतित हैं जिनके बच्चे नहीं हैं। हमारा समाज बहुत जटिल समाज है। विभिन्न प्रकार की संस्कृतियां हैं। आर्थिक उन्नयन के साथ-साथ मानवीयकरण सबसे बड़ा मानवीय धर्म है। जो बच्चा आ गया है मानवीय व्यवहार जरूरी है। आज मानवीय व्यवहार में बदलाव आ रहा है, हास की कगार पर जा रहा है। कानून निर्माताओ ने इन जटिलताओं को समझ कर ही कानून बनाए, कानून में बदलाव भी हुए। मन में इच्छया अच्छी होनी चाहिए। गोद लेने के बाद अन्याय न हो कानून का सही पालन हो।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, हमारे समाज में भावना की कमी नहीं रही है। चाहते हुए भी परिवार बच्चे गोद नहीं ले सकते हैं। सामाजिक कारण भी रहे हैं, अनाथ बच्चों को गोद लेने में। लोगों को भावना से ऊपर उठना होगा। गोद लिए बच्चों पर परिवार के संस्कारों का बड़ा प्रभाव पड़ता है। आज अच्छे शोध कर्ताओ की जरूरत है। विगत माह नवंबर में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी आर्डर रिलीज हुआ है। अब अनाथ बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया आसान हो गई है। आजतक गोद लेने की प्रक्रिया जो धीमी थी, अब नया कानून लागू होने से गोद लेने का क्रम बढ़ेगा।

कहा गया, ऐसे विषय पर आमतौर पर चर्चा नहीं की जाती है। यह वृहद विषय है। सनातन संस्कृति में गोद लेने पर कभी मनाही नहीं रही। दत्तक संस्कार हिन्दू संस्कृति में उदार हैं। कहा गया, कृष्ण भी गोद लिए गए थे। किसी और संस्कृति को हमारी संस्कृति से न जोड़ा जाए। कहा गया, पहले अनाथ शब्द था ही नहीं, यह नाम अंग्रेजों ने रखा।

‘नई उड़ान ट्रस्ट’ द्वारा ‘अनाथों की समस्याओं के समाधान’ विषय पर आयोजित प्रभावशाली राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन में प्रमुख रूप से ट्रस्ट पदाधिकारियों में महेंद्र सिंह रावत, महेश चंद्रा, पीयूष सक्सेना इत्यादि इत्यादि की सोच व निभाई गई भूमिका अति प्रशंसनीय कही जा सकती है। दो सत्रों में आयोजित मैराथन सेमिनार का प्रभावशाली मंच संचालन अनुराधा बर्थवाल द्वारा बखूबी किया गया।
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