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प्रजातंत्र के चुनावी महायज्ञ में मतदाता आहूति अवश्य ही डाले भले ही वह नोटा हो- खबरी लाल

विश्व के सबसे प्राचीन लोकतंत्र भारत में संविधान द्वारा अपने नागरिक को मतदान का अधिकार दिया है।इन अधिकार का प्रयोग कर मतदाता अपने पसंद के अधिकारो कि रक्षा हेतु अपने जन प्रतिनिधि को अपने मतदान का प्रयोग कर संसद व विधान सभा में चुन कर भेजती है।
लेकिन दुःख की बात यह है कि भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में संसद व विधान मंडलों के चुनावों में शैक्षिक योग्यता का कोई प्रावधान ना होने के कारण पूर्ण रूपेण अशिक्षित व्यक्ति भी वहाँ पहुँच कर राज्य व राष्ट्र के निमार्ण में नीति र्निमाताओं व कानुन के श्रृजन मे अपना योगदान दे रहा है वही दुसरी ओर समाजिक व शासकीय व्यवस्था में किसी भी कर्मचारियो की नियुक्ति की
प्रक्रिया में उनकी शैक्षिक योग्यता है।जिस की समय समय पर उसके पद के अनुसार निर्धारित कि जाती है।

संविधान र्निमार्ण के समय डा० राजेन्द्र प्रसाद ने योग्यता के विन्दू पर अपना मत व्यक्त करते हुए कहा था कि संसद में जन प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हो कर राष्ट्र र्निमाण का कार्य करने वाल व्यक्ति भले ही शैक्षिक रूप सम्पन्न ना हो किन्तु वह निश्चित रूप से सचरित्र हो ,उस के चरित्र पर रांदेह ना हो , जिसे वह विना धर्म जाति आदि के मोह पाश में पडे ‘ समाज व राष्ट्र निर्माण के हित में निर्णय ले सकें।उन्होंने शैक्षिक योग्यता की जगह जन प्रतिनिधि की आचरण व सचरित्र पर लोक तंत्र के लिए आधार माना था।किन्तु इन दिनों व्यवहार मे यह देखा जा रहा है कि पुरी तरह से इस संदर्भ में तस्वीर ही अलग है।

सचरित्र व निष्टावान व्यक्ति चुनाव से अपने के दुर रखना पसंद करते है वही माफिया ‘गुडे अपराधिक प्रवृति के लोग जन प्रतिनिधि के रूप अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है।
आज सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव में वाहु बली व माफियाओं को टिकट दे कर अपना पीट थपथपा रही है।भारतीय राजनीति के उपर संकट के काले कारनामों वाले जन प्रतिनिधि के रूप विधायी व्यवस्था में अपनी शक्ति का प्रयोग कर रही है। जिसे समाज के जागरूक नागरिकों द्वारा ऐसी जन प्रतिनिधियों को वापस बुलाने के लिए समय समय पर मांग उठती रहती है।जिस पर अभी तक कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है।हालाकि सन 2013 मे एक जन हित याचिका की सुनवाई के दौरान माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को र्निदेश देते हुए कहा कि चुनाव आयोग को वोटिग मशीन में प्रत्यासियों के नाम एवं उनके चुनाव चिन्ह के साथ नोटा का विकल्प उपलब्ध कराने का दिया गया था ! नोटा Note of the above शब्द का संक्षिप्त रूप है। जिसका हिंदी में अर्थ है इन में सें कोई नहीं ” I सन 2013 में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने पिपुल्स ऑफ सिविल लिबर्टीज की जन हित याचिका पर दिये गये फैसले के परिणाम स्वरूप ई वी एम मशीन में अन्तिम प्रत्याशी के नाम रूप में नोटा को सम्मलित किया गया।जिसका चुनाव चिन्ह के रूप में क्रॉस ई वी एम मशीन सबसे अन्तिम में अंकित किया गया।अब कोई भी मतदाता अपना मतदान कर ते समय अपनी पसंद व सुयोग्य प्रत्यासी नही होने पर नोटा के बटन दबाकर कर अपना मतदान कर सकता है।चुनाव आयोग की व्यवस्था के अनुसार नोटा को प्राप्त मत निर्णायक ना होकर निरस्त मतों की श्रेणी में रखें जाते है।फिर भी उसका अपना महत्व चुनाव परिणामों को करने में दिखाई पड़ते है।इस सम्बन्ध में पूर्व चुनाव आयुक्त टी एस कृष्णा मुर्ति ने यह सुझाव दिया है कि यदि चुनाव में हार जीत का अन्तर नोटा को प्राप्त मतों से कम है तो उस चुनाव को निरस्त कर पुनः चुनाव कराया जाना चाहिए ।
भारतीय लोकतंत्र के लिए महापर्व बर्ष है।सन 2022 के इस चुनावी कैलेंडर साल में 7 राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव होने वाले है।
फिलहाल चुनाव आयोग ने पाँच राज्यो के विधान सभा चुनावों के तारीखों की घोषणा करते ही उत्तरप्रदेश,उत्तराखंड,पंजाब,गोवा और मणिपुर विधानसभा के चुनावी प्रक्रिया चल रही है।सभी प्रमुख राजनीति दलों ने अपनी कमर कस ली तथा अपनी जीत के लिए शाम,दण्ड व भेद का इत्तमाल करने में कोई कसर नही छोड रही है।वहीं इसी साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात के विधान सभाओं के चुनाव कराए जाएंगे।आज भारतीय राजनीति मेंअहम भूमिका निभाने वाले उतर प्रदेश में प्रथम चरण मतदान 61 % से अधिक मतदाताओं ने अपने मतदान किया है।दुसरे चरण का मतदान 14 फरवरी को है।
पाँच राज्यो उत्तर प्रदेश ,उत्तराखंड और पंजाब राज्यों के विधान सभा चुनावों के परिणाम यह बताएंगे कि केन्द्र में नरेंद्र मोदी के नेत्तृत्व मे भाजपा सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए किसान आंदोलन का असर कैसा रहा। हालाकि किसान आन्दोलन के व्यापक विरोध के चलते तीनो नये कृषि कानुन को केन्द्र सरकार द्वारा वापस ले ली गई है ,जिन राज्यों में विधान सभा के चुनाव हो रहे हैं,वहाँ के विभिन्न संगठनो व अन्य श्रोतों से कराये गये सर्वे के अनुमान के मुताबिक कांग्रेस और विपक्षी दलों को इस बार बीजेपी के सामने मु्श्किलें खडा कर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा सकती है।ऐसे में इन पांच राज्यों के विधान सभा के परिणाम संसद के ऊपरी सदन राज्य सभा की तस्वीर तय करेगी।राजनीति के पंडितो के अनुसार ।ऐसे मे बीजेपी के लिए अपनी पसंद के राष्ट्रपति उम्मीदवार चुनने व राज्यसभा में भी अपनी पार्टी का दबदबा बनाए रखने के लिए इन पांच राज्यों में पुराना प्रदर्शन दोहराने के लिए ऐन ,केन व प्रकरण दबाव बना रही है।तो वहीं विपक्ष राजनीति दलों के द्वारा इन पाँच राज्यों के विधान सभा के चुनाव के परिणाम को अपने पक्ष में कर बीजेपी को सबक सिखाते हुए कमजोर करने के लिए अपनी पुरी ताकत लगा रही है।वही केन्द्र की भाजपा सरकार केन्द्र सरकार के पुरी कैबिनेट ‘भा जा पा शासित मुख्य मंत्री ‘सासंद सहित तमाम पार्टी को प्रचार युद्ध झोंक दी है।वही केन्द्र की सता के कुर्शी पर आसीन बीजेपी के लिए अगामी वर्ष 2024 लोक सभा आम चुनाव से पहले यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि भाजपा ही भारत का भाग्य विधाता है।प्रत्येक राष्ट्र प्रेमी का शुभ चितंक है।गृह मंत्री स्वयं घर घर जाग कर मतदाताओं से अपील करने को मजबुर है कि आप अपने बोट विधायक ‘मंत्री या मुख्य मंत्री का चुनाव नही कर रहे ब्लकि भारत का भविष्य बनाने व उसे सुरक्षित करने के लिए हमारी पार्टी को बोट दे रहे है,लेकिन यहाँ तो सच्चाई कुछ और ही है।सन 2019 में आम चुनाव में बड़ी जीत मिलने के बाद भी बीजेपी अलग-अलग मोर्चों पर संकट का समाना करना पड़ रही है।चाहे गुड गवर्नेंस का मसला हो या राजनीति सियासत की पिच, बीजेपी के लिए उतार-चढ़ाव भरे संकेत रहे हैं।भारतीय लोकतंत्र की जनता इतनी भोली भाली नही है जितनी की केन्द्र की सता के सिंधासन पर आसीन अंहकारी भाजपा के स्वंभू चाणक्य व रणनीति कार समझ रही है तभी तो वह दिन के उजाले दिवास्वपन्न देख रही है।वे सत्ता सुःख इतने लिप्त हो गये है कि जैसे कि महाभारत के कौरवों के पिता घृष्टराष्ट्र पुत्र मोह मे कुछ धर्म – अधर्म के मध्य अन्तर दिखाई नही पड़ रहा है। इनके अंध भक्त भी ऐसी भुमिका अदा कर रहेहै।इन्हे पता होना चाहिए कि प्रजातंत्र में जनता ही जनार्दन होती है।वेअपने प्रतिनिधि को पाँच बर्षो के सत्ता के सिंधासन पर बिठाते है।ताकि के उनके प्रतिनिधि के रूप उनकी रक्षा व सुरक्षा के साथ सर्वांगीण विकाश करें।ना कि सत्ता की लोलुपता में हिटलर बन जाए।
पाँच राज्यो के विधान सभा के चुनाव के परिणाम भारतीय राजनीति की दशा व दिशा देने वाली है। ऐसे समय जब देश राजनीति के कठिन दौर से गुजर रहा है। पाँच राज्यों के विधान सभा के मतदाताओं से विन्रम अपील है वह विश्व के सबसे प्रजातंत्र के महापर्व की महायज्ञ में अपनी आहुति के रूप में मतदान अवश्य ही करे भले वह नोटा क्यू ना हो , देश की जनता को इंतजार है 11मार्च 2022 का ‘ जब पाँच राज्यो की जनता जनार्दन के फैसले के रूप विधान सभा के चुनाव के परिणाम राज्यो में सरकार बनाने के साथ अगामी माह राज्य सभा के चुनाव ‘ राष्ट्रपति के चुनाव ‘ वर्षे के अंत में गुजरात व हिमाचल प्रदेश के चुनाव व सबसे महत्वपूर्ण आगानी 2024 लोक सभा के चुनाव को प्रभावित करेंगी |तब तक के लिए यह कहते हुए बिदा लेते है-ना ही काहूँ से दोस्ती ना ही काहूँ से बैर।खबरी लाल तो माँगें सबकी खैर॥
प्रस्तुति
विनोद तकिया वाला
स्वतंत्र पत्रकार / स्तम्भ कार

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