सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण विरोधी फैसले के खिलाफ उदित राज 21 जून को करेंगे वर्चुअल रैली
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को आरक्षण पर बड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। इस टिप्पणी के साथ ही अदालत ने उस याचिका पर सुनवाई से इनकार कर दिया, जिसमें तमिलनाडु के राजनीतिक दलों ने मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी को 50 फीसदी आरक्षण दिए जाने की अपील की थी। परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह कांग्रेस के राष्ट्रिय प्रवक्ता डाॅ. उदित राज ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण के खिलाफ दिए फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा कि- क्या न्यायपालिका संविधान से ऊपर है या अपने आप में स्वयम्भू संस्था है जो संविधान से हटकर के कार्य कर रही है। संविधान का अनुच्छेद 16 में आरक्षण का प्रावधान है जो कि मौलिक अधिकार के अध्याय में है। यह कथन इसलिए सान्दर्भिक है कि तमिलनाडु के विभिन्न दलों के द्वारा याचिका दायर की गयी थी। याचिका में विभिन्न दलों द्वारा 50 प्रतिषत आरक्षण मेडिकल के स्नातक, पी जी और डेंटल पाठ्यक्रमों के लिए अखिल भारतीय कोटे से तमिलनाडु के लिए छोड़ना है, लेकिन नही किया गया। राज्य के कानून के तहत पिछडों के लिए 50 प्रतिषत सीटें केंद्र सरकार को छोड़ने के लिए निर्देशित करे। इसपर सुप्रीम कोर्ट को संविधान के तहत केंद्र सरकार को निर्देशित करना चाहिए था कि पिछड़ों का आरक्षण लागू किया जाय ऐसा न करके खुद आरक्षण के ऊपर प्रश्नचिन्ह खड़ा करके मद्रास हाई कोर्ट भेज दिया।
डाॅ उदित राज ने कहा कि संविधान के जो तीनो अंग – कार्यपालिका, न्यायपालिका एवम विधायिका के बीच संतुलन था वह अब नहीं रहा। अनुसूचित जाति जनजाति परिसंघ ने आह्वान किया है कि आगामी 21 जून को देश स्तरीय वर्चुअल रैली के जायेगी। संविधान के तहत न्यायपालिका को कानून बनाने का अधिकार नहीं है। बल्कि उसकी व्याख्या करनी है। गत दो दशक से न्यायिक सक्रियता कि आड़ में संसद से ज्यादा कानून बनाने का काम कोर्ट कर रही है, जो असंवैधानिक है। डाॅ. उदित राज ने कहा कि न्यायपालिका जातिवादी और भाई भतीजावाद वाली है और जब भी दलित पिछड़ों से सम्बंधित आरक्षण जैसे विषय पर सुनवाई हो इन वर्गों के जज जरुर हों वरना न्याय कि जगह पर अन्याय ही होगा।