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पंचेश्वर बांध के डूब क्षेत्र के लोगों की समस्या को गंभीरता से ले सरकार

 

    नई दिल्ली। भारत-नेपाल सीमा में महाकाली नदी पर पंचेश्वर बांध परियोजना का निर्माण कार्य शुरू करने से पहले इसके प्रभावों पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए, खासकर प्रभावितों की चिंताओं पर सरकार मानवीय दृष्टिकोण अपनाए। उनके समुचित पुनर्वास के बिना विकास के कोई मायने नहीं हैं। नई दिल्ली के उत्तराखण्ड सदन में ‘पंचेश्वर बांध प्रभावित समिति’ की ओर से ‘‘पंचेश्वर बांध प्रभाव’’ विषय पर आयोजित एक चर्चा में राजनेताओं, बुद्धिजीवियों, पर्यावरणविदों और डूब क्षेत्र के प्रतिनिधियों ने ये विचार व्यक्त किये।

चर्चा की भूमिका में पंचेश्वर बांध प्रभावित समिति के मुख्य संयोजक जगदीश भट्ट ने कहा कि इस देश को सोचना होगा कि जो लोग अपने इतिहास, संस्कृति और पैतृक धरती से उजाड़े जाएंगे, आखिर बदले में उन्हें क्या मिलना चाहिए। अगर विकास के लिए परियोजना का बनना इतना ही जरूरी है तो जब तक अंतिम व्यक्ति का समुचित पुनर्वास नहीं हो जाता तब तक परियोजना का कार्य शुरू नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पंचेश्वर परियोजना के पुनर्वास संबंधी जो भी फैसले हों, उनमें डूब क्षेत्र के लोगों को शामिल किया जाए।

लंबे समय तक डूब क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा कि सरकार को चाहिए कि डूब क्षेत्र के लोगों को विश्वास में लेकर उनकी आशंकाओं का समाधान करे। आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हरीश अवस्थी ने कहा कि कांग्रेस और भाजपा जैसी पार्टियां जनता के हितों के प्रति गंभीर नहीं रही हैं। दुखद है कि प्रभावितों की जनसुनवाई भी संतोषजनक तरीके से नहीं हुई है। आईआईटी दिल्ली में हाइड्रोलॉजी के प्रोफेसर डा. आनंद वर्धन ने कहा कि योजनाकारों की गलती के कारण भारत में जल संसाधनों का सही उपयोग नहीं हो पा रहा है। हम बड़े बांध बनाकर पानी का दुरुपयोग कर रहे हैं जबकि छोटे बांध ज्यादा लाभदायक हैं। वाइब्रेंट उत्तराखंड के प्रणेता एवं पूर्व प्रशासनिक अधिकारी बी. बी. तिवारी ने कहा कि प्रशासनिक अधिकारी विकास परियोजनाओं को सिर्फ अपनी जेबें भरने का जरिया समझते आ रहे हैं। पंचेश्वर में भी ऐसे ही हो रहा है। प्रजातंत्र में लोगों को उनका हक मिलना ही चाहिए।

राज्य सभा सांसद प्रदीप टम्टा ने आशंका व्यक्त की कि विस्थापितों के पुनर्वास को लेकर सरकार के पास न तो कोई ठोस नीति है और न उसकी नीयत सही लगती है। राज्यसभा सांसद महेन्द्र सिंह माहरा ने कहा कि डूब क्षेत्र का निवासी होने के नाते मैं जनता की चिंताओं से वाकिफ हूं। लोगों के संघर्ष में हमेशा उनके साथ रहूंगा। उत्तराखंड जर्नलिस्ट फोरम  के अध्यक्ष सुनील नेगी ने कहा कि पंचेश्वर बांध प्रभावित समिति ने अपने ज्ञापन में जो मांगें उठाई हैं उन पर सरकार को गंभीरता से सोचना चाहिए। पत्रकार परिषद के पूर्व महासचिव दाताराम चमोली ने चेताया कि कहीं पंचेश्वर परियोजना उजड़े हुए लोगों की दास्तान ही न बनकर रह जाए। प्रभावित सतर्क रहें कि उनके हित सिर्फ विरोध की राजनीति की भेंट न चढ़ जाएं। उत्तराखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एवं डूब क्षेत्र के विधायक गोविंद सिंह कुंजवाल ने विश्वास दिलाया कि वे प्रभावितों के साथ खड़े रहेंगे।

कार्यक्रम के अध्यक्ष पूर्व पुलिस महानिदेशक के. एस. जंगपांगी ने आगाह किया कि नौकरशाही को अपनी बात मनाने के लिए राजी करना आसान नहीं होता है। प्रभावितों को लंबी लड़ाई के लिए तैयार रहना पड़ेगा। इस कार्यक्रम  के सयोजक व समिति के सहसयोजक  नन्दन सिंह रावत एवंम संचालक जगदीश जोशी ने सयुक्त भाषण में बतया की पंचेश्वर बांध प्रभावित समिति की ओर से प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन भी सौंपा गया। जिसमें प्रभावितों के पुनर्वास संबंधी करीब 20 मांगें उठाई गई हैं। मसलन बांध से होने वाली आय में प्रभावितों का हिस्सा तय हो। फलदार वृक्षों, चरागाहों और कई पीढ़ियों से संजोकर रखे हुए वनों का भी मुआवजा दिया जाए। आगामी बीस साल के लिए भूमिहीनों और दलितों के भरण-पोषण का खर्चा सरकार उठाए।

 

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