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प्रमोशन में आरक्षण का फैसला सराहनीय कदम: डॉ. उदित राज

नई दिल्ली, .डॉ. उदित राज, राष्ट्रीय अध्यक्ष, अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ ने कल पदोन्नति में आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए इसके लिए सरकार को धन्यवाद दिया है। उन्होंने कहा कि अब केंद्र और राज्य सरकारों में नौकरी कर रहे अनुसूचित जाति/ जनजाति (एससी-एसटी) के कर्मचारियों व अधिकारियों  के लिए प्रमोशन में आरक्षण का रास्ता साफ़ हो गया है। डॉ. उदित राज  ने कहा कि अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ के आंदोलन के दबाव में ही 81वां, 82वां एवं 85वां संवैधानिक संशोधन हुआ था। इसमें से 85वां संवैधानिक संशोधन जो पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित था को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी थी, यह मामला एम नागराज एवं अन्य के नाम से जाना जाता है। 2006 में एम नागराज बनाम अन्य के मामले में हमने सरकार से कहकर निजी अधिवक्ताओं से पैरवी करायी थी और उनकी फीस भी सरकार पर दबाव बनाकर दिलाया था। दरसल 2006 में ‘एम नागराज बनाम भारत सरकार’ मामले की सुनवाई करते हुए पांच जजों की ही संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि सरकारी नौकरियों में प्रमोशन के मामले में एससी-एसटी वर्गों को संविधान के अनुच्छेद 16 (4) और 16 (4 ख) के अंतर्गत आरक्षण दिया जा सकता है। पर आरक्षण के इस प्रावधान में कुछ शर्तें जोड़ते हुए अदालत ने यह भी कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देने के लिए किसी भी सरकार को कुछ मापदंडों को पूरा करना होगा। ये मापदंड थे, समुदाय का पिछड़ापन, प्रशासनिक हलकों में उनका अपर्याप्त प्रतिनिधित्व एवं कुल प्रशासनिक कार्यक्षमता।  कुछ राज्य सरकारों ने समिति बनाकर इसकी जांच कराकर उपरोक्त शर्तें पूरी करते हुए पदोन्नति में आरक्षण जारी रखा लेकिन जहां-जहां ऐसा न हो सका वहां के उच्च न्यायालयों ने पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगा दी थी।  अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि प्रदेश सरकारों को एससी-एसटी कर्मचारियों को प्रमोशन देने के लिए अब पिछड़ेपन का डेटा जुटाने की ज़रूरत नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि अभी भी निर्णय को पढ़ा जा रहा है और कुछ स्थानों  में क्रीमीलेयर को लागू करने की चर्चा हो रही है। 2008 में अशोक ठाकुर का जज्मेंट, जो 5 जजों का था और उसमें क्रीमी लेअर को लगाने से इंकार कर दिया था और यह भी निर्णय 5 जजों का ही है तो ऐसे कैसे यह उचित है । इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि पिछड़ेपन का आँकड़ा जुटाना नहीं है अतः यह मान लिया गया है की दलित. आदिवासी पिछड़े हैं तब कैसे पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए क्रीमीलेयर अर्थात आर्थिक मापदंड लागू हो सकता है । प्रथम दृष्टया क्रीमी लेअर का सिद्धांत तो लागू नहीं होता  दिखता अगर ऐसा होता है तो अनुसूचित जाति/जन जाति संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ इसका पुरज़ोर विरोध करेगा।

 

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