संकट काल में बड़े मीडिया घरानों का व्यवहार निंदनीय : के पी मलिक
नई दिल्ली| वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से निपटने के लिए माननीय प्रधानमंत्री के द्वारा लॉकडाउन अभियान का सहयोग करते हुए देश में कोरोना से बचाव के तरीके तथा संक्रमण की जानकारियां लोगों तक पहुंचाने और लोगों की समस्या को सरकार तक पहुंचाने का कार्य मीडिया सफलता पूर्वक कर रहा है। ‘दिल्ली पत्रकार संघ’ के महासचिव के पी मलिक ने हैरानी जताते हुए कहा है कि छोटे और मझोले समाचार पत्र जहां इतना शानदार काम कर रहे हैं। वही बड़े मीडिया घरानों का रवैया प्रधानमंत्री के इस आह्वान को पलीता लगाता दिखाई पड़ रहा है। जिस प्रकार छोटे और मझोले समाचार पत्र प्रधानमंत्री का सहयोग कर रहे हैं। वहां बड़े मीडिया घरानों का अपने पत्रकारों को बाहर करने का रवैया ठीक दिखाई नहीं पड़ता है। पत्रकारों के हितों की चिंता करते हुए दिल्ली पत्रकार संघ ने पिछले महीने की 31 तारीख को प्रधानमंत्री को अवगत कराया था। कि छोटे, मझोले और स्वतंत्र पत्रकारों को आर्थिक परेशानी से जूझना पड़ रहा है। इनमें से अधिकतर समाचार पत्र बंद हो चुके हैं और पत्रकारों की आर्थिक स्थिति दयनीय हो चली है। लेकिन हद तो तब हो गई है। जब प्रधानमंत्री के आह्वान के बावजूद देश के कुछ बड़े मीडिया घराने अपने समाचार पत्रों और चैनलों से पत्रकारों को निकालना शुरू कर दिया। इसके अलावा हमे सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि देश के कुछ सबसे बड़े मीडिया घराने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर अनुरोध करने जा रहें है। जिसका ड्राफ्ट लगभग तैयार हो चुका है। उसमें उनका कहना है कि करोना महामारी के संकट काल में समाचार पत्रों और चैनलों को चलाना कठिनाई भरा है इसमें भारत सरकार को मीडिया संस्थान के कर्मचारियों का आधा वेतन सरकार दे। इसके अलावा बिजली आदि के बिल माफ किये जाएं, अगर अगर माफ नहीं होते हैं तो बिजली बिल को आधा करके सरकार हमें राहत देने का काम करें। यहां सवाल यह खड़ा होता है। इन संस्थानों में कई ऐसे कर्मचारी हैं जिनका वेतन करोड़ों और लाखों में है तो क्या ऐसे में सरकार इन सबका भी आधा वेतन वहन करे?
उन्होंने कहा कि यहां पर मैं सवाल पूछना चाहता हूं कि क्या ये देश के बड़े संस्थानों का इस महामारी के दौरान इस तरह का रवैया चकित और हैरान कर देने वाला है। क्या इससे साफ नहीं हो जाता कि यह बड़े मीडिया संस्थान इस महामारी का फायदा उठाकर कर्मचारियों की छटनी, और सरकार से राहत लेना चाहते हैं। यहां सवाल यह भी बनता है कि इतने सालों से यह इतने विज्ञापन और इतनी सुविधाएं सरकार से लेने के बावजूद इस संकट की घड़ी में प्रधानमंत्री के आह्वान को भी नहीं मान रहे हैं। यहां सवाल यह भी उठता है कि प्रधानमंत्री के आह्वान पर देश का व्यापारी, किसान और दूसरे अन्य वर्ग प्रधानमंत्री का सहयोग कर रहे हैं तो ये मीडिया घराने क्यों नहीं?
श्री मलिक ने कहा कि जनमानस को सचेत करने वाले छोटे और मझोले समाचार पत्रों एवं मीडिया संस्थान इस विकट परिस्थिति में प्रधानमंत्री की अपील और आह्वान का सम्मान करते हुए। इस विकट परिस्थिति में सीमित संसाधनों के साथ अपना कार्य बखूबी कर रहे हैं। वही इन बड़े घरानों का इस तरह का व्यवहार इनकी धन लोलुपता को दर्शाता है। अतः ‘दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन’ (डीजीए) जो कि नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट (इंडिया) से संबद्ध संस्था है। सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती है कि इन बड़े मीडिया संस्थानों को इस संकटकाल में पत्रकारों की आर्थिक स्थिति के विषय में विचार करना। ताकि इनसे जुड़े मीडियाकर्मियों को राहत और उनके परिवार को भी आर्थिक सुरक्षा मिल पाये। हम सरकार से यह भी मांग करना चाहते है कि सरकार अगर इन बड़े मीडिया घरानों की मांग पर कोई विचार करती है तो सरकार को सर्वप्रथम छोटे, मझोले समाचार पत्रों और सोशल मीडिया के पत्रकारों को पर भी अवश्य विचार करना चाहिए ताकि वह भी इस संकटकाल में जिंदा रह सके।