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सरकारी विज्ञापनों पर रोक की सोनिया गांधी की राय दुर्भाग्यपूर्ण : के पी मलिक

नई दिल्ली। वैश्विक महामारी करोना संक्रमण के कारण अन्य संस्थानों के साथ-साथ मीडिया पर भी इसके दुष्प्रभाव साफ-साफ दिखाई दिए हैं।
‘दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन’ के महासचिव के पी मलिक ने कहा कि पिछले कई सालों से मीडिया संस्थान मंदी की चपेट में है और सरकारी विज्ञापनों की कमी से जूझने के कारण पहले से ही आर्थिक संकट झेल रहे है। कई छोटे व मझोले समाचार पत्रों को आर्थिक परेशानी के कारण अपना प्रकाशन बंद करना पड़ है। ऐसे समय पर कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी द्वारा प्रधानमंत्री मोदी को दो साल तक सरकारी विज्ञापन पर रोक लगाये जाने वाला पत्र उनकी मीडिया के खिलाफ मानसिकता को दर्शाता है। मीडिया के लिए दिया गया सोनिया गांधी का यह बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। जिसकी दिल्ली पत्रकार संघ कड़े शब्दों में भर्त्सना करता है। गौरतलब है पहले से ही मंदी की मार झेल रहा मीडिया जगत कोरोना महामारी के कारण तबाह होने के कगार पर आ खड़ा हुआ है। ऐसे में यदि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दो साल तक सरकारी विज्ञापनों पर रोक लगाने की मांग को यदि प्रधानमंत्री मोदी स्वीकार करते हैं। तो बचे हुए समाचार पत्र और कई समाचार चैनलों के बंद होने से हजारों पत्रकार बेरोजगार होकर सड़क पर आ जाएंगे।

श्री मलिक ने कहा कि अच्छा होता कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपनी पार्टी की सदस्यों, पूर्व मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को चंदा इकट्ठा करने सरकारी सुविधाएं न लेने और कुछ सालों तक वेतन व पेंशन नहीं लेने के निर्देश देती। तो यही मीडिया आज उनकी सराहना कर रहा होता। उन्होंने कहा कि आज कांग्रेस पार्टी का अपनी गलत नीतियों के कारण सभी राज्यों से उसका सफाया हो रहा है। कांग्रेस पार्टी जनसमस्याओं को उठाकर उनका निदान कराने में भी असमर्थ है। जबकि समाचार पत्र व चैनल जनता की समस्याओं को सरकार के समक्ष उठाकर जन समस्याओं का समाधान कराने के लिए सरकार को विवश करती है समाचार पत्र बंद होने से जनता की समस्याओं को उजागर कर पाना संभव नहीं होगा।

श्री मलिक ने कहा कि आज जिलों और देहाती इलाकों में काम करने वाले ग्रामीण पत्रकारों को तो जीवनयापन करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। तमाम अखबारों ने कर्मचारियों को वेतन देने से हाथ खड़े कर दिए है। उन्होने ने कहा कि इसमें दो राय नहीं है कि कोरोना महामारी के दुष्प्रभाव से बचाव के उपायों की जानकारी देने में मीडिया कर्मियों ने अपनी जान जोखिम में डालकर बड़ी भूमिका निभाई है। आज सभी राज्यों में पत्रकारों व समाचार पत्रों के समक्ष आर्थिक संकट पैदा हो गया है इसलिए नेशनल यूनियन आफ जर्नलिस्ट्स (इंडिया) एवं दिल्ली जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (डीजेए) संगठन ने मांग की है कि केंद्र और राज्य सरकारें पत्रकारों व लधु एंव मध्यम समाचार पत्रों को शीघ्र आर्थिक पैकेज देने की घोषणा करें तथा समाचार पत्रों व समाचार चैनलो के बकाया विज्ञापन बिलों का शीघ्र भुगतान करें। ताकि जनमानस को सही सूचनाएं मिलती रहें। उन्होंने कहा कि हमारी संस्था सरकार से पहले ही पत्रकारों के लिए सरकारी स्तर पर 50 लाख का बीमा शुरू करने की मांग कर चुकी है है।

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