आरबीआई की आगामी बैठक में बढ़ सकता है जोखिम बफर, अधिशेष हस्तांतरण पर पड़ेगा असर
Amar sandesh नई दिल्ली। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की 23 मई को होने वाली महत्वपूर्ण बैठक में आर्थिक पूंजी ढांचे (Economic Capital Framework – ECF) की समीक्षा के तहत आकस्मिक जोखिम बफर (Contingent Risk Buffer – CRB) का दायरा बढ़ाने पर विचार किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, केंद्रीय बैंक ने इस प्रस्ताव को लेकर केंद्र सरकार से मंजूरी मांगी है।
फिलहाल आरबीआई के पास मौजूद जोखिम बफर, बिमल जालान समिति की सिफारिशों के अनुसार, कुल बहीखाते का 5.5 से 6.5 प्रतिशत है। इस सीमा के भीतर ही यह तय होता है कि सरकार को कितना अधिशेष (surplus) हस्तांतरित किया जा सकता है। यदि जोखिम बफर की सीमा बढ़ती है, तो सरकार को हस्तांतरित होने वाला अधिशेष घटेगा, जबकि सीमा में कमी होने पर अधिशेष की राशि बढ़ सकती है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “जालान समिति की सिफारिशों पर आधारित मौजूदा ढांचे ने पिछले पांच वर्षों में संतुलित रूप से कार्य किया है। लेकिन मौजूदा वैश्विक और घरेलू आर्थिक अस्थिरताओं को देखते हुए, इस ढांचे के दायरे को और व्यापक करने पर विचार जरूरी हो गया है।”
23 मई को प्रस्तावित अगली बोर्ड बैठक में रिजर्व बैंक के खातों को अंतिम रूप दिया जाएगा। इसके बाद केंद्र सरकार की स्वीकृति मिलने पर अधिशेष हस्तांतरण की राशि तय की जाएगी। यह निर्णय सीधे तौर पर सरकार की वित्तीय स्थिति पर प्रभाव डाल सकता है, क्योंकि केंद्रीय बैंक द्वारा प्राप्त अधिशेष का उपयोग बजट प्रबंधन और विभिन्न योजनाओं में किया जाता है।
उल्लेखनीय है कि 2019 में लागू किया गया वर्तमान आर्थिक पूंजी ढांचा आरबीआई की पूंजी आवश्यकताओं और अधिशेष हस्तांतरण नीति के बीच संतुलन बनाने के उद्देश्य से तैयार किया गया था। बिमल जालान की अध्यक्षता वाली विशेषज्ञ समिति ने सुझाव दिया था कि इस ढांचे की हर पांच साल में समीक्षा की जानी चाहिए, और अब समय आ गया है कि इस समीक्षा को नए आर्थिक परिदृश्य के अनुरूप परखा जाए।
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