उत्तराखंड के प्रवासियो की रिवर्स पलायन योजना असमंजस मे
सी एम पपनै
नई दिल्ली। उत्तराखंड राज्य नीति-निर्माताओ द्वारा निरंतर, रिवर्स पलायन को बल दिया जाता रहा है। आजीविका हेतु, विभिन्न क्षेत्रों में योजनाऐ बना, भुतहा हो चुके गांवो को दुबारा, गुलजार करने का वायदा किया जाता रहा है। भयावह कोरोना विषाणु संकट मे, राज्य सरकार के समक्ष, रिवर्स पलायन को अवसर मे बदलने की चुनोती मिली। देश-विदेश के विभिन्न नगरों व महानगरों मे प्रवासरत प्रवासियो द्वारा रिवर्स पलायन बडी संख्या मे किया गया।
अवलोकन कर ज्ञात होता है, नीतिकारों द्वारा, प्रबुद्ध प्रवासियो को दिखाए गए सब्जबाग व किए गए वायदे, धरातल पर, कही भी कारगर होते नजर न आने के कारणवश, पांच-छह महीनों के अंतराल मे ही, रिवर्स पलायन, नीतिकारो के लिए वरदान न बन, अभिशाप मे बदलने लगा है।
पलायन आयोग, 2018 के आंकड़ों के मुताबिक, पर्वतीय जनपदों से बडी संख्या मे हुए पलायन के कारणवश, 17 सौ गांव वीरांन हो चुके थे। एक हजार गांवो मे, सौ से कम लोग रह गए थे। पलायन के मुख्य कारणों मे, 41 फीसद ने गरीबी व 16 फीसद ने बेरोजगारी के कारण पलायन किया था।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना संकट मे, 30 से 45 आयु वर्ग के, करीब चार लाख प्रवासी, देश-विदेश के विभिन्न स्थानों से जून पहले सप्ताह तक, उत्तराखंड के अपने घर-गांव वापस लौट चुके थे। पौडी व अल्मोड़ा जनपद, जहा से विगत दो दशकों मे, सबसे ज्यादा पलायन हुआ था, घर-गांव लोटने वालों की संख्या, दिल्ली, नोएडा व गुड़गाव से सबसे ज्यादा आंकी गई। राज्य पलायन आयोग द्वारा, सरकार को दी गई सूचना के मुताबिक, वापस आए लोगों मे, 30 फीसद राज्य के ही दूसरे जनपदो से व 60 से 65 फीसद, देश के अन्य राज्यो तथा 5 फीसद बाहरी देशो से, घर-गांव लोटने वालो मे, 58 फीसद प्रबुद्ध प्रवासी, प्राईवेट नोकरी मे थे।
उत्तराखंड राज्य सरकार द्वारा, पर्वतीय अंचल मे रिवर्स पलायन ज्यादा से ज्यादा हो, इस सोच के तहत, देश के विभिन्न महानगरों व शहरो मे फंसे अंचल के प्रवासियो को रेल और बस भाडे की मद मे, लाखो रुपये खर्च कर, प्रतिबद्ध होकर, प्रवासियो की घर वापसी सिद्दत से करवाई गई। सैकडो प्रवासी ऐसे भी रहे, जो लंबी दूरी तय कर, पुलिस प्रताड़ना सह, फिर से वापस शहर न लोटने की कसम खा, पैदल ही गांव पहुचे थे।
घर-गांव लौटे प्रबुद्ध प्रवासियो से, सरकार के नुमाइंदो द्वारा क्वारनटीन सेंटर मे, उनके कौशल के बावत, पूछा गया था। वापस पलायन न करने की सलाह के साथ, उनके हुनर व कौशल मुताबिक, प्रत्येक को काम देने का वायदा किया गया था। प्रवासियो के ग्रामीण क्षेत्रों मे लौटने से, वीरांन पडे गांव के आंगनो मे रोनक लौटी। तालो मे बंद घरो मे, प्रकाश जगमगाया। रंग रोगन हुआ। खेती-बाडी मे हरियाली लौटी। बदलाव की नयी बयार, गांवो मे बहने से, ग्रामीण क्षेत्र, गुलजार हुए।
मन में कुछ कर गुजरने की ठान, प्रबुद्ध प्रवासी, घर-गांव वापस लौटे थे। विगत कुछ दशकों से बन्जर पडी खेती मे, कुछ नया व अद्भुत करने की चाहत मे, घर परिवार व गांव वालों की मदद से, बैलों के अभाव के बावजूद, फावडे, कुदाल व गैन्डी तथा कही-कही, छोटे हाथ ट्रैक्टरो से खेतो की जुताई-बुआई कर, हरियाली लौटाई।
उदाहरण स्वरूप, जोशीमठ गोख गांव लौटे, प्रवासी जनो द्वारा, सामूहिक रूप से, सौ नाली (पांच एकड़) बन्जर जमीन, उपजाऊ बना डाली गई। पौडी गढ़वाल स्थित ग्राम नाई के युवाओ द्वारा, जलाशय निर्माण मुहिम को अंजाम दे, जल संचय कार्य किया गया।
हरेला कृषि पर्व पर ‘हरेला से हरियाली’ के तहत, सामुदायिक प्रयास से, फरीदाबाद से गाँव लौटे, नीरज बवाडी द्वारा, बवाडी किचार व ढैया किचार, तल्ला चोकोट, भिकियासैण में, ‘प्रोजैक्ट सांगेर’ के तहत, गांव के बुजुर्गो को भरोसे मे ले, उनको कार्ययोजना बता, स्वरोजगार, व्यवसायिक कृषि तथा सामुहिक रूप से बंजर भूमि को आबाद करने के लक्ष्य के तहत, कार्य शुभारंभ किया गया। गड्डे खोद, कलमी आम, लीची, नींबू, सेव, कटहल, संतरा, चंदन, पीपल इत्यादि के पौंधै रोपे गए।
नीरज बवाडी द्वारा दीर्घ कार्य योजनाओ के तहत, बन्जर खेती की बहाली, व्यवसायिक कृषि की जागृति, प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग, गांव के युवाओ को स्वरोजगार के प्रति जागरूकता इत्यादि मुख्य कार्य योजनाओ को प्राथमिकता दी गई। विगत चार-पांच महीनों मे, बन्जर खेतो मे हरियाली व फलो के पेड़ों को उत्साह जनक, बढ़ता देख, आसपास के ग्रामीण भी प्रभावित हुए बगैर नही रह सके। उक्त ग्रामीणों द्वारा, मिसाल बने बवाडी किचार गाँव की राह पर चल, सामूहिक रूप से अपने बन्जर खेतो को आबाद करना आरंभ किया।
प्रवासी युवा, नीरज बवाडी की उपलब्धियों व कार्य योजनाओ को जान, राज्य कृषि उद्यान विभाग से जुडे अधिकारी भी प्रभावित हुए वगैर नही रह सके। कार्य योजना का अवलोकन करने उक्त गांव पहुच, कार्यो व योजनाओ की पुष्टि कर, सराहना की।
कोरोना संकट मे, प्रवासियो द्वारा, लगभग ग्रामीण इलाको मे, सामुहिक रूप से कृषि क्षेत्र मे हासिल की गई उपलब्धियों का, अवलोकन कर ज्ञात होता है, विगत पांच-छह महीनों मे, प्रवासियो की घर वापसी के बाद, उत्तराखंड की कृषि जोत मे, बृद्धि हुई है।
कोरोना संकट मे, प्रवासियो दवारा की गई, घर वापसी के बाद, राज्य के नीति निर्माताओं के सम्मुख, कृषि व कृषि से सब्बद्ध क्षेत्र मे नए समीकरण पैदा हुए। कृषि आधारित गतिविधियो का प्रभावी क्रियान्यवन, रोजगार का एक महत्वपूर्ण साधन के रूप में आंका गया। प्रवासियो की पर्वतीय अंचल के ग्रामीण क्षेत्रों मे समस्या सुलझाने के लिए, स्थापित सरकार के मंत्रीमंडल द्वारा 21मई 2020 को उत्तराखंड पर्वतीय जोत चकबंदी और भूमि व्यवस्था नियमावली 2020 को मंजूरी दे दी गई। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत द्वारा 150 से अधिक कामो के लिए, जरूरत मन्दो को मदद का ऐलान किया गया। स्वरोजगार के लिए, ऋण और उचित अनुदान की घोषणा की गई। किसानों की आमद बढ़ाने के लिए, केन्द्र व राज्य सरकारो द्वारा, प्रतिबद्धता जताई गई। उक्त योजनाओ व व्यक्त की गई प्रतिबद्धताओ का, प्रभावी स्तर पर प्रचार-प्रसार भी किया गया।
प्राप्त सूचना व आंकड़ों के मुताबिक उत्तराखंड मे, 20 अप्रैल से बंद पडे, मनरेगा योजना के तहत, कार्य आरंभ कर दिए गए थे। 6,32,964 ग्रामीण श्रमिको को 47,769 प्रकार के कार्यो मे, सौ दिन का काम दिया गया था। लगभग 75 हजार गांव लौटे प्रवासियो को भी मनरेगा के तहत काम दिया गया।
उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल मे कृषि ही मुख्य उद्योग व व्यवसाय रहा है। घर-गांव लौटे प्रवासियो की मुख्य आस व उम्मीद भी कृषि पर ही मुख्य रूप से निर्भर रही है। कृषि से जुडी सरकारी व्यवस्था का धरातल पर अवलोकन कर ज्ञात होता है, प्रदेश सरकार की वैबसाइड पर कृषि से जुडी जानकारियों के अपडेट नदारद हैं। जिन पर सरकार द्वारा लाखों रुपया खर्च किया जाता रहा है। निरंतर, पुरानी सूचनाऐ ही परोसे जाने का क्रम चलायमान है। कृषि विभाग निर्देशक स्वय इस तथ्य से अनभिज्ञ नजर आते हैं। सूचनानुसार राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र की टीम ही, कृषि से जुडे राष्ट्रीय डाटा को अपडेट करती है। वेबसाइड मे 2015-16 तक का ही डाटा दृष्टिगत है। 2019-20 की कोई सूचना नही है। किसानो के लिए क्या योजनाऐ हैं? प्रधानमन्त्री फसल बीमा योजना क्या है? उक्त महत्वपूर्ण जानकारियों का जिक्र, कही नहीं है। किसान योजनाओ से अनभिज्ञ रहे हैं।
उक्त लापरवाही से, सूचना विज्ञान केन्द्र की कार्यप्रणाली व राज्य के प्रति, उसके द्वारा निभाई जा रही, जिम्मेवारी को, समझा जा सकता है। केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा कोरोना संकट मे किसानो व बेरोजगारो के लिए, कृषि की अनेको योजनाऐ जारी की गई थी। दुर्भाग्यवश! राज्य कृषि मंत्रालय की वेबसाइड पर, ये सब, दर्ज नहीं हैं। राज्य के उक्त विभागों से जुडे अधिकारियों को पता ही नहीं, वेबसाइड अपडेट कोन करता है? कैसे होती है? कारणवश प्रदेश के आम किसानो व घर-गांव लौटे प्रवासियो को सूचनाऐ उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। प्रदेश सरकार के कृषिमन्त्री सुबोध उनियाल भी क्या इन सब तथ्यों से अनभिज्ञ हैं? अंचल का काश्तकार लाजमी, कृषि से जुडी सूचना की इस घोर लापरवाही के बावत, जानना चाहेगा, ऐसा क्यों?
उत्साही युवा खस्ताहाल जिंदगी शहरो मे नहीं जीना चाहते। कोरोना संकट मे पैसों की कमी और भुखमरी के डर से गांव लौटा प्रवासी युवा, अपने गांव में ही अपना कैरियर तलाशने के लिए उत्साहित थे, जो आज असमंजस मे हैं। गांव मे भी बेरोजगारी, प्रमुख समस्या है। रिवर्स पलायन ने, प्रवासी युवाओ की मुश्किले बहुत बढा दी हैं। सरकारी विभागों व निर्मित योजनाओ का हाल किसी से छिपा नहीं है। प्रवासी युवाओ की ऊर्जा और हुनर का सही इस्तेमाल ग्रामीण क्षेत्रों मे, हो नहीं पा रहा है। सरकार व सब्बद्ध विभागों के मध्य सामंजस्य के अभाव का खामियाजा, प्रवासियो के साथ-साथ, अन्य सभी ग्रामीण जन भुगतते नजर आ रहे हैं।
विगत दो दशक से, उत्तराखंड से बढ़ता पलायन, आर्थिक और सामाजिक फलक पर बड़ा मुद्दा रहा है। लम्बे समय से यह सब, राज्य की राजनीति को भी प्रभावित करता रहा है। राज्य से बाहर, अन्यत्र जा बसे प्रवासियो की उत्तराखंड की आर्थिकी को मजबूती देने मे महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसका अवलोकन करने पर ज्ञात होता है, कोरोना लाकडाऊन मे प्रवासियो के ग्रामीण क्षेत्रों मे रिवर्स पलायन के बाद, राज्य सरकार को जीडीपी मे झटका लगा है। प्रवासियो द्वारा देश-विदेश से रुपये भेजने का अर्थशात्र, लाकडाऊन से ब्रेक हुआ है। साथ ही उत्तराखंड की आर्थिकी पर भी प्रतिकूल असर पड़ा है।
भारतीय स्टेट बैंक रिवर्स विंग सर्वे के द्वारा, 3 सितंबर को जारी, राष्ट्रीय आंकड़ों के मुताबिक, उत्तराखंड के तेरह जनपदों के करीब दस हजार ग्रामीण क्षेत्रों की जीडीपी, 79 फीसद की गिरावट से, अठ्ठाइस हजार करोड़ का नुकसान हुआ है। शहरी क्षेत्र की जीडीपी, 21फीसद गिरावट को जोड़कर, प्रदेश का कुल नुकसान 36,680 करोड़ रुपयो का हुआ है। उक्त आंकड़ों से, उत्तराखंड के प्रवासियो द्वारा राज्य की जीडीपी की बढ़ोत्तरी मे दिए जा रहे, महत्व व योगदान को समझा जा सकता है। कोरोना संकट के इस दौर मे, रिवर्स पलायन किए इन प्रवासियो के हित मे, आज राज्य सरकार, कुछ खास कर गुजरने मे, लाचारी महसूस कर रही है।
कोरोना संकट मे, प्रदेश सरकार को घर-गांव लौटे प्रवासियो के बावत, यह धारणा बनानी होगी, प्रत्येक प्रवासी मे उघमी बनने की क्षमता नही है। प्रवास से लौटा अधिकतर युवा, नोकरी पेशा है। वर्तमान राजनैतिक सब्जबागो के तहत, युवाओ को स्वयं का स्वरोजगार शुरू कर, आत्मनिर्भर बनने का स्वप्न दिखाया जा रहा है। यह सब धरातल पर कितना व्यवहारिक व तर्कसंगत होगा, योजनाकारों को सूक्ष्म अध्ययन, मनन कर सोचना होगा।
कोरोना संकट के विगत पांच-छह महीनों के आंकड़ों का अवलोकन कर ज्ञात होता है, घर-गांव लौटे प्रवासियो को, स्वरोजगार योजना का कोई भी सहारा नही मिला है। प्रवासियो द्वारा जमा किए गए, अधिकतर स्वरोजगार योजना प्रस्ताव, लंबित पडे हैं। मनरेगा योजना के कामो से भी अधिकतर प्रवासी दूर या वंचित हैं।
अवलोकन कर ज्ञात होता है, घर-गांव लौटे कुछ प्रवासियो के लिए समस्या ज्यादा जटिल बनी हुई है, जिनके परिवार के पास खेत, पूंजी या कोई कौशल नहीं हैं। या उनके कौशल मुताबिक, राज्य के संसाधन उपयोगी नही हैं। ऐसे प्रवासियो के कौशल को जांचने की बात, अभी धरातल पर न उतर, कागजो मे सिमटी पडी हुई है। शोर-शराबे के साथ आरंभ मुख्य मंत्री स्वरोजगार योजना भी कागजो मे ही, सिमटी पडी है। आत्मनिर्भर बनने के विज्ञापन। प्रस्ताव पास न होने या बैंकों की लोन जारी करने मे, धीमी गति के आडे आने से, सरकारी योजनाऐ, खयाली पुलाव साबित हो रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के संसाधन और अवसर, नीति निर्माताओं द्वारा कम ही पैदा किए जा रहे हैं। स्थानीय स्तर पर रोजगार पैदा करने के लिए, विस्तृत रोड मैप, बना ही नहीं है।
सरकार के क्रियाकलापो से निराश हो, प्रवासी युवाओ की सोच मे बदलाव आ रहा है। वे सोचने लगे हैं, कोरोना का जितना खतरा पहले शहरो मे था, उतना ही अब गावों मे हो गया है। खतरा दोनो जगह है। कम से कम, शहर मे पेट पालने के लिए, रोजी-रोटी तो मिल जाऐगी। धरातल पर प्रवासी युवाओ के लिए, अंचल मे, रोजगार या स्वरोजगार के लिए, सरकारी योजनाओ की हील-हवाली की स्थिति में, झूठी उम्मीद देकर, उनको रोकना, कितना घातक या सार्थक होगा, समझा जा सकता है।
कोरोना संकट प्रदेश के नीति-निर्माताओं के लिए रिवर्स पलायन का एक अवसर लेकर आया था। ऐसे मे योजनाकारों को समय का सदुपयोग कर, प्रवासियो के हित मे दीर्घ कल्याणकारी योजनाऐ बना, पलायन पर अंकुश लगा, सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भुतहा गांवो को सदा के लिए आबाद करने की सोच बनानी चाहिए। कौशल के अनुरूप प्रवासियो को रोजगार के साधन मुहैया कराए जाने चाहिए। जिस बल, प्रबुद्ध प्रवासी, महत्वपूर्ण मानव संसाधन साबित हो सके। उक्त योजनाओ के परिणाम स्वरूप, निसन्देह, ग्रामीण क्षेत्रों की रोनक सदा के लिए लोटेगी, ग्रामीण क्षेत्र खुशहाल होंगे। युवा, उघम विकास के भागीदार बन, राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान कर सकैंगे।
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