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डाक-टिकट से आकाश तक: एनबीसीसी और भारतीय डाक ने मिलकर शुरू किया शहरी रूपांतरण का ऐतिहासिक मिशन

Amar sandesh दिल्ली।देशभर में फैले सरकारी भूखंड अब सिर्फ कागजों में दर्ज संपत्तियां नहीं रहेंगे, बल्कि आधुनिक भारत की नई पहचान बनेंगे। इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल करते हुए एनबीसीसी (इंडिया) लिमिटेड और भारतीय डाक विभाग ने अप्रयुक्त डाक भूमि को विकसित कर स्व-संधारणीय वाणिज्यिक और आवासीय केंद्रों में बदलने के लिए एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह समझौता सिर्फ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि भारत के शहरी ढांचे को नए सिरे से गढ़ने की दिशा में एक बड़ा कदम है।

इस ऐतिहासिक अवसर पर डाक विभाग के महानिदेशक जितेंद्र गुप्ता, एनबीसीसी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक के.पी. महादेवास्वामी और निदेशक (वाणिज्य) डॉ. सुमन कुमार की गरिमामयी उपस्थिति रही। समझौते पर हस्ताक्षर डाक विभाग की ओर से उप महानिदेशक (संपदा एवं एमएम) परिमल सिन्हा और एनबीसीसी की ओर से कार्यपालक निदेशक (इंजी.) प्रदीप शर्मा ने किए। समारोह में दोनों संस्थाओं के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे, जिन्होंने इस साझेदारी को शहरी विकास के क्षेत्र में एक गेम-चेंजर करार दिया।

देशभर में डाक विभाग के स्वामित्व में 6,465 से अधिक भूखंड हैं, जिनमें से लगभग 1,460 फिलहाल अप्रयुक्त हैं। इन संपत्तियों की वास्तविक क्षमता को उपयोग में लाने के लिए एनबीसीसी और डाक विभाग ने एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की है। इसके तहत शुरुआत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से होगी, जहां सरोजिनी नगर डाक कॉलोनी और नेताजी नगर डिपो को पुनर्विकास के लिए चुना गया है। इन स्थानों को न सिर्फ आधुनिक इमारतों से सजाया जाएगा, बल्कि इन्हें व्यावसायिक गतिविधियों और आधुनिक जीवनशैली के केंद्र के रूप में स्थापित किया जाएगा।

एनबीसीसी, जो कि नवरत्न श्रेणी की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है और देश में मेगा-वैल्यू परियोजनाओं को सफलतापूर्वक अंजाम देने का गौरव रखती है, इस मिशन का नेतृत्व करेगी। परियोजना दो चरणों में आगे बढ़ेगी—पहले चरण में शीर्ष स्तर के परामर्शदाताओं द्वारा गहन साध्यता अध्ययन किया जाएगा, और फिर चयनित भूखंडों को आधुनिक मानकों के अनुरूप विकसित किया जाएगा। यह पूरा विकास कार्य एक स्व-संधारणीय मॉडल पर आधारित होगा, जिसमें नए निर्मित परिसरों की बिक्री और पट्टे से होने वाली आय से परियोजना संचालित होगी, जिससे राजकोष पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।

इस परियोजना की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक संयुक्त एस्क्रो तंत्र बनाया जाएगा, जो निधियों का प्रबंधन करेगा। वहीं, एक उच्च स्तरीय अधिकार प्राप्त समिति परियोजना के अनुमोदन, मूल्य निर्धारण और प्रगति की निगरानी करेगी। नियोजित विकास में ऊर्जा-दक्ष इमारतों, हरित अवसंरचना और स्मार्ट सुविधाओं पर विशेष जोर रहेगा, जिससे ये केंद्र भविष्य की जरूरतों के अनुरूप तैयार हो सकें।

वरिष्ठ अधिकारियों का मानना है कि यह समझौता न केवल सरकारी संपत्तियों से अधिकतम मूल्य प्राप्त करने की दिशा में एक कार्यनीतिक कदम है, बल्कि यह देश के शहरी क्षेत्रों में अप्रयुक्त स्थानों को नई पहचान देने का अवसर भी है। विरासत में मिली इन ऐतिहासिक और प्रमुख जगहों का कायाकल्प होते देखना आने वाले वर्षों में भारत की विकास यात्रा का एक सुनहरा अध्याय होगा।

भारत के विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, एनबीसीसी और डाक विभाग की यह साझेदारी आने वाले समय में शहरी पुनर्विकास की सबसे सफल कहानियों में से एक बन सकती है। यह पहल न केवल आर्थिक दृष्टि से लाभकारी होगी, बल्कि देश के शहरों में रहने वालों को एक नई, आधुनिक और सस्टेनेबल जीवनशैली भी प्रदान करेगी।

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