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सांसद और विधायक: जवाबदेही का सवाल?संसद भवन में उठी एक अनोखी आवाज़

सांसद उमेश पटेल की इस पहल की आम जनता ने की सराहना

 

Amar sandesh नई दिल्ली। लोकतंत्र का मंदिर कहे जाने वाले संसद भवन में हाल ही में केंद्र शासित प्रदेश दमन और दीप से निर्दलीय सांसद उमेश पटेल ने मानसून सत्र के दौरान एक अनोखे अंदाज़ में सांसदों और मंत्रियों को आईना दिखाने का काम किया। उन्होंने हाथ में बैनर लेकर संसद परिसर में रैली निकाली और दो टूक कहा“सासद जनता से माफ़ी मांगे, क्योंकि यहां बहस की जगह शोर-शराबा और विरोध ने सत्र को बेकार बना दिया है। जिन सांसदों ने बहस रोकी है, उनके वेतन-भत्तों से कटौती की जानी चाहिए।”
यह मांग सीधे तौर पर जनता की भावना को झकझोरती है। आम नागरिक. करो से देश चलाता है, लेकिन जब उसके चुने हुए प्रतिनिधि संसद में सिर्फ नारेबाज़ी और हंगामा करते हैं तो यह लोकतंत्र की आत्मा पर चोट है।
भारत के हर नागरिक से टैक्स वसूला जाता है ताकि देश की नीतियां, योजनाएं और विकास कार्य आगे बढ़ सकें। लेकिन जब संसद या विधानसभा सत्र सिर्फ हंगामे और दिखावे में निकल जाएं, तो यह न केवल करदाताओं का पैसा बर्बाद है बल्कि जनता के भरोसे के साथ भी विश्वासघात है।
एक दिन का संसद सत्र औसतन 2.5 करोड़ रुपये के खर्च से चलता है।
यदि लगातार हंगामा हो, तो यह रकम व्यर्थ चली जाती है।
हाल ही में लोकसभा और राज्यसभा के कई घंटे शोर-शराबे में ही निकल गए, जिससे कोई ठोस विधायी कार्य नहीं हो पाया।
इसी कड़ी में उत्तराखंड का उदाहरण भी चौंकाने वाला है। हाल ही में गैरसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र केवल दो दिन चला। जिस जगह को राज्य की ‘ग्रीष्मकालीन राजधानी’ का दर्जा दिया गया है और जो जनता की भावनाओं से जुड़ा है, वहां विधायक और मंत्री पिकनिक स्पॉट की तरह सत्र में शामिल होते दिखे।
जब राज्य कर्ज में डूबा हो, बेरोज़गारी और पलायन जैसी गंभीर समस्याएं मुंह बाए खड़ी हों, तब इस तरह का रवैया जनता का अपमान ही है।
निर्दलीय सांसद उमेश पटेल का यह तर्क सही है कि— संसद और विधानसभा में शोर मचाने वालों पर आर्थिक दंड लगे।
 जनता का पैसा बर्बाद करने पर सांसदों और विधायकों की सैलरी और भत्तों से कटौती हो।
सत्र में अनुपस्थित या हंगामा करने वाले सदस्यों का नाम सार्वजनिक किया जाए।
यह कदम लोकतंत्र को मजबूती देगा और नेताओं को जिम्मेदारी का एहसास कराएगा।
लोकतंत्र सिर्फ चुनाव जीतने का साधन नहीं, बल्कि जनता की उम्मीदों और सपनों को साकार करने का दायित्व है। अगर सांसद और विधायक अपना काम ईमानदारी से नहीं करते, तो उनका वेतन और सुविधाएं जनता के प्रति अन्याय हैं।
सांसद उमेश पटेल का उठाया गया यह मुद्दा एक बड़ी बहस की शुरुआत है।
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