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देवभूमि की खुशबू लेकर 19दिसंबर2025 में लौटेगा महाकौथिग मेला — राजेंद्र चौहान

दिल्ली एनसीआर में रह रहे  उत्तराखंड प्रवासियों की दिल की धडकन है महाकौथिक मेला

Amar chand दिल्ली।दिल्ली-एनसीआर में उत्तराखंडी लोककला और हस्तशिल्प का सबसे बड़ा मेला महाकौथिग-2025 इस बार 19 दिसंबर से 25 दिसंबर तक सात दिनों तक नोएडा स्टेडियम में आयोजित होगा। अब तक पांच दिनों तक आयोजित होने वाला यह मेला इस बार और भी विराट और भव्य रूप में प्रस्तुत किया जाएगा।
मुख्य संयोजक राजेंद्र चौहान ने बताया कि पब्लिक डिमांड को देखते हुए इस बार महाकौथिग को सात दिनों तक आयोजित करने का निर्णय लिया गया है। मेले का मंच विशेष रूप से उत्तराखंड के जागेश्वर धाम मंदिर की प्रतिकृति के रूप में सजाया जाएगा, ताकि दिल्ली-एनसीआर में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंडवासी देवभूमि की झलक का अनुभव कर सकें। इस मेले में दिल्ली एनसीआर में रहने वाले लोग अपनी बोली अपनी जड़ों से जुड़े रहने का एहसास भी करते हैं ।
रविवार 17 अगस्त को एनआईई ऑडिटोरियम, सेक्टर-6 नोएडा में पर्वतीय सांस्कृतिक संस्था की ओर से आयोजित बैठक में नई कार्यकारिणी का गठन किया गया। बैठक का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ। इस दौरान सभी पदाधिकारियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया।
 नई कार्यकारिणी इस बार गठित कार्यकारिणी में –चेयरमैन – आदित्य घिल्डियाल,अध्यक्ष – हरीश असवाल,कार्यकारी प्रधान – नरेंद्र सिंह बिष्ट (निंकू भाई),वरिष्ठ उपाध्यक्ष – लक्ष्मण सिंह रावत,उपाध्यक्ष – रेखा चौहान, मंजू बड़थ्वाल, अमित पोखरियाल,महासचिव – देवेंद्र सिंह रावत,सचिव – कविता करोनीति, रेनू उनियाल,संयुक्त सचिव शीला पंत,कोषाध्यक्ष – सुबोध थपलियाल,।
इस अवसर पर मुख्य संयोजक उत्तराखंड के सुप्रसिद्ध संगीतकार राजेंद्र चौहान, संस्थापिका कल्पना चौहान के साथ-साथ सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र से जुड़े कई गणमान्य लोग उपस्थित रहे। सभी ने एकमत से कहा कि महाकौथिग न केवल उत्तराखंड की परंपराओं को जीवित रखता है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का महत्वपूर्ण माध्यम है।
नवनिर्वाचित अध्यक्ष हरीश असवाल ने टीम का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि वे पूरी निष्ठा से अपनी जिम्मेदारी निभाएंगे और इस बार का आयोजन उत्तराखंडी संस्कृति और परंपराओं को नई ऊँचाइयों तक ले जाने वाला होगा।
ज्ञात हो महाकौथिग पिछले 15 वर्षों से दिल्ली-एनसीआर में लगातार आयोजित हो रहा है और यह हर साल यह साबित करता है कि उत्तराखंडवासी चाहे कहीं भी रहें, अपनी लोक संस्कृति और अपनी जड़ों से गहराई से जुड़े रहते हैं।
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