कुमाऊँ केसरी बद्रीदत्त पांडे की 137वी जयंती सम्पन्न
सी एम पपनैं
नई दिल्ली। गढ़वाल भवन में उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान द्वारा क्रांतिवीर, स्वतंत्रता सेनानी, इतिहासकार, राजनीतिज्ञ व पत्रकार रहे कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडे की जयंती पर कार्यक्रम आयोजित किया। इस क्रांतिवीर द्वारा जीवन पर्यन्त कमजोर ,पीड़ित व शोषित समाज के लिए किए गए कार्यो व स्वतंत्रता आंदोलन मे उनके द्वारा दिए योगदान पर एक विचार गोष्ठी भी की गई।
कार्यक्रम के आरंभ में कश्मीर पुलवामा में 14 फरवरी 2019 को शहीद हुए CRPF के 40 जवानों सहित सेना के शहीद मेजर चित्रेश बिष्ट को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की गई । पहले से नियोजित इस कार्यक्रम में कोई सांस्कृतिक आयोजन नहीं हुआ । एक गमगीन परिदृश्य में सभी शहीदों का स्मरण किया गया । सभी वक्ताओं ने भी किसी न किसी तरह अपना रोष प्रकट किया और शहीद परिवारों के प्रति कृतज्ञता प्रकट की ।
जवानों को समर्पित देशप्रेम के गीत किरन लखेड़ा-
सलाम उन शहीदो को, खो गए जो वतन को जगा कर, खुद सो गए। उठे लाडले अपनी माओ के लाल, मगर हो गए गोलियों के हवाले। आजादी के बदले जवानी मिटा दी, वतन को जगा कर खुद सो गए….।
सुप्रसिद्ध लोकगायक महेंद्र रावत के गाए-
ऐ मेरे वेतन के लोगो, जरा आंख मे भर लो पानी। जो शहीद हुए हैं उनकी, जरा याद करो कुर्बानी….।
कार्यक्रम संगीत निर्देशक कृपाल सिंह रावत के गाए –
हे मातृभूमि तुझको करते हम बारंबार प्रणाम, उचे-उचे पर्वत, झरने और लहराते खेत, गंगा जमुना….हिम्मत से हमको जीना, संकट जब-जब आऐ, देखो साहस न टूटे प्रस्तुतिकरण के बाद आयोजकों द्वारा द्वीप प्रज्वलन की रस्म मुख्य अतिथि लक्ष्मण सिंह रावत, कांग्रेस के राष्ट्रीय सह सचिव हरिपाल रावत व संस्थान द्वारा आमंत्रित अतिथियों व संस्था के पदाधिकारियों द्वारा सम्पन्न किया गया। कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडे के चित्र पर माल्यार्पण व फूल अर्पित किए गए।
इस अवसर पर संस्थान द्वारा आयोजित होने वाली सम्मान समारोह के कार्यक्रम मृत सैनिकों के गमगीन माहोल मे रद्द कर दिए गए।
मुख्य अतिथि लक्ष्मण सिंह रावत व विशिष्ट अतिथि हरिपाल रावत ने कश्मीर पुलवामा मे मारे गए 43 वीर सैनिकों की मृत्यु पर गहरा दुख व्यक्त किया, बताया कि इसमे 3 सैनिक उत्तराखंड के भी थे। क्रांतिवीर बद्रीदत्त पांडे के जीवन पर भी इन मुख्य व विशिष्ट अतिथियो ने प्रकाश डाला।
उत्तराखंड फिल्म एवं नाट्य संस्थान की अध्यक्षा संयोगिता ध्यानी, संस्थान संरक्षक कुलदीप भंडारी, सचिव सुमित्रा किशोर, जगमोहन सिंह रावत ने अपने वक्तब्य मे संस्थान को विगत वर्षों मे मिली उपलब्धियों की जानकारी श्रोताओं को दी व भविष्य के कार्यक्रमो व योजनाओं के बावत अवगत कराया। कुमाऊ केसरी बद्रीदत्त पांडे की जयंती के इस आयोजन की खूबी रही इस स्वतंत्रता सेनानी की नातिन श्रीमती वसुधा पांडे की उपस्थिति व उनका वक्तब्य। पांडे जी की नातिन वसुधा दिल्ली विश्वविद्यालय मे प्रोफैसर के पद पर कार्यरत हैं। अपने संबोधन मे इस जयन्ती के आयोजन पर उन्होने अपार हर्ष व्यक्त किया व संस्थान को बधाई दी। उन्होंने कहा जिन समस्याओं के खातमे के लिए पांडे जी ने संघर्ष कर उन्हे जड़ से ख़त्म किया वे समस्याऐ उत्तराखंड मे फिर से उभर आई हैं। जल, जंगल व जमीन की लड़ाई पुनः जीवित हो गई हैं। पलायन अभिशाप बन चुका है। उभरती ग्रामीण समस्याओ पर सियासतदार चुप्पी साधे हैं। खेती किसानी से ग्रामीणो मे अलगाव पनप रहा है। पानी की समस्या उजागर हो गई है। पहाड़ो का तापमान बढ़ रहा है। उत्तराखंड के लोगो के लिए संघर्ष कर राहत पहुचानी होगी। उन्होंने कहा आज के कार्यक्रम आयोजक रचनात्मक कार्य कर रहे हैं। ऐसे संस्थानों को लोगो को मदद करनी चाहिए। कुमाउं केसरी बद्रीदत्त पांडे की इस जयन्ती आयोजन मे मोहब्बत सिंह राणा, पवन मैठाणी, वीरेन्द्र चौहान, आनंद प्रकाश शर्मा, दाताराम जोशी, सूरज रावत, कुसुम बिष्ट, कुसुम चौहान, सुनीता बेलवाल, पुष्पा जोशी, व्योमेश जुगरान, के सी रवि, विजय सिंह नेगी, शशि बडोला, गजेंद्र चौहान व गिरीश बिष्ट ‘हँसमुख’ इत्यादि मुख्य तौर पर मौजूद थे। आयोजकों द्वारा साहित्यकार, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी व इतिहासकार कुमाऊं केसरी बद्रीदत्त पांडे पर रखी गई विचार गोष्ठी मे विस्तृत चर्चा हेतु आमंत्रित विशिष्ठ अतिथियों मे पत्रकार चारु तिवारी व सुषमा जुगरान ध्यानी, रंगकर्मी हेम पंत, कुमाउंनी लोक कवि पूरन चंद्र कांडपाल, लेखक दिनेश ध्यानी व लेखक, रंगकर्मी व प्रिंट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया से जुड़े चंद्रमोहन पपनैं ने श्रोताओं के बीच बद्रीदत्त पांडे के जीवन पर्यंत किए गए कार्यो, देश की आजादी मे दिए योगदान, कुली बेगार आंदोलन, पत्रकारिता व कुमाउं के समृद्ध इतिहास लेखन मे दिए योगदान पर सारगर्भित विचार रखे। वक्ताओं ने अपने संबोधन मे कहा कि कुमाउं केसरी बद्रीदत्त पांडे यह भली भांति जानते थे कि समाज के लोग जब स्मृद्ध होते हैं तब राष्ट्र स्मृद्ध होता है, इससे उनकी प्रसासंगिकता परिलक्षित होती थी। उनके जन्म 15 फरवरी 1882 पर चेतना के एक युग का श्रीगणेश हो रहा था। उनके जीवन का प्रत्येक दशक चेतना का दशक रहा है। हम इस क्रांतिकारी की याद मे उनके वक्त के संपूर्ण इतिहास को भी याद करते हैं। इसी समय पहाड़ के रंगमंच व निर्भिक पत्रकारिता का भी जन्म हुआ। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ इन अखबारों मे खूब लिखा गया, जनजागरण किया गया। सभी का सानिध्य लेकर उन्होंने जल, जंगल व जमीन आंदोलन को भी आगे बढ़ाया। यही प्रेरणा बद्रीदत्त पांडे को उनकी जयन्ती पर कार्यक्रम आयोजित कर मिलती है। वक्ताओं ने बताया कि सात वर्ष की उम्र मे माता पिता का साया उठ जाने के बाद वे हरिद्वार कनखल से अपने अल्मोड़ा आए व शिक्षा पूर्ण कर नैनीताल मे 1903 मे शिक्षण कार्य मे लगे। यह कार्य छोड़ देहरादून मे सरकारी नोकरी मे लगे। वहा से भी त्यागपत्र दे 1903-1910 मे लीडर नामक अखबार से पत्रकारिता की शुरुआत की। 1913 मे स्वयं का अखबार ‘अल्मोड़ा समाचार’ अल्मोड़ा से प्रकाशित किया। अग्रेजो के उत्पीड़न व बंदिश के बाद शक्ति नामक अखबार का शुभारंभ किया। स्वतंत्रता आंदोलन मे कूद गांधी जी का सहयोग किया व अनेको बार जेल गए। 1921 मे एक वर्ष, 1930 मे 18माह, 1932 मे एक वर्ष, 1941 मे 3 माह व फिर गांधी जी के 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन मे जेल गए। उन्होंने कुमाउं मे अंग्रेजो के द्वारा अधिकार स्वरूप चलाए जा रहे कुली बेगार प्रथा का विरोध किया। जनजागरण कर लोगो को 14 फरवरी 1921 के पावन पर्व मकर संक्रांति के दिन बागेश्वर गोमती व सरयू संगम के निकट स्थित मैदान पर 40 हजार उत्पीड़ित ग्रामीणों को संबोधित कर जमींदारों, मालगुजारों व ग्राम प्रधानो को पवित्र सरयू जल लेकर बागनाथ मंदिर को साक्षी मानकर सबको प्रतिज्ञा करवाई कि आज से कुली बेगार, उतार व बर्दाइस नही देंगे। ग्राम प्रधानों व मालगुजारों ने रजिस्टरों को फाड़ कर संगम मे प्रवाहित किया व ग्रामीणों को उत्पीड़न से मुक्ति मिली।
इस आंदोलन का समर्थन ही नही, कड़ाई से पालन भी हुआ। जो अंग्रेजी हुकूमत आंदोलनकारियों पर अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर डायबिल के निर्देश पर गोली चलना चाहती थी, उसी अंग्रेजी हुकूमत ने विधेयक लाकर कुली बेगार प्रथा को समाप्त किया। बागेश्वर का उत्तरायणी मेला आजादी की लड़ाई का भी अहम माध्यम रहा, जिसका सन्देश पूरे कुमाउं व गढ़वाल मे गया। इस आंदोलन की खूबियों को सुन 1929 मे गांधी जी ने कोसानी यात्रा के दौरान बागेश्वर व ताड़ीखेत की यात्रा की लोगों को संबोधित किया व इसका बखान यंग इंडिया मे कुली बेगार आंदोलन की सफलता को ‘रक्तहींन क्रान्ति’ का दर्जा देकर किया। इस आंदोलन के बल समाज के लोगो ने बद्रीदत्त पांडे को कुमाउं केसरी के नाम से संबोधित करना आरम्भ किया। 1937 मे प्रकाशित कुमाउं केसरी बद्रीदत्त पांडे की किताब कुमाउं का इतिहास भी बहुत प्रसिद्ध हुआ। इस पुस्तक मे मध्य हिमालय कुमाउं का सात भागों के 735 पृष्ठों मे विस्तृत इतिहास प्रकाशित होने के बाद बद्रीदत्त पांडे को एक ख्याति प्राप्त इतिहासकार के रूप मे भी जाना जाने लगा। देश का यह निष्ठावान व कर्तव्यनिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी 1931-32 मे डिप्टी बोर्ड चेयरमैन अल्मोड़ा। 1937 मे एमएलए व 1957 मे पंडित हरगोबिन्द पंत की मृत्यु पश्चात हुए लोकसभा उपचुनाव मे अल्मोड़ा से सांसद चुना गया। वर्तमान मे भी कुमाउं केसरी बद्रीदत्त पांडे को प्रशासन भूला नही है। उत्तराखंड की वर्तमान त्रिवेन्द्र सरकार ने देहरादून मे नए खुले मीडिया सेंटर का नाम कुमाउं केसरी बद्रीदत्त पांडे के नाम रखा है। इन सब कृत्यों से एक क्रांतिकारी की सार्थकता की पुष्ठि वर्तमान मे भी द्रष्टिगत होती है। आयोजित जयन्ती के कार्यकर्मो का संचालन प्रसिद्ध रंगकर्मी बृज मोहन शर्मा ने बखूबी संचालित किया।