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पूर्णबंदी अवधि विस्तार से जनमानस का हित-अहित

सी एम पपनैं

भतरोज (नैनीताल)। कोरोना विषाणु संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए संपूर्ण देश मे 25 मार्च से 14 अप्रैल तक 21 दिनों की पूर्णबंदी की स्थिति जारी है। पूर्णबंदी की अवधि के विस्तार पर बुधवार को सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्ण बंदी की अवधि 14 अप्रैल से आगे बढ़ाए जाने के संकेत दिए हैं। उन्होंने कहा, कई राज्यो व विशेषज्ञयो ने पूर्णबंदी अवधि बढाने का सुझाव दिया है। उक्त सुझाओ पर मन्त्रणा कर, उचित फैसला लिया जायेगा।

अभी तक उत्तराखंड सहित अन्य 9 राज्यो ने पूर्णबंदी की अवधि बढ़ाने पर अपनी सहमति व्यक्त की है। इन राज्यो मे तेलंगाना, उत्तर प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, असम, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा मध्य प्रदेश हैं। उक्त राज्यो के कुछ राज्य प्रमुखों द्वारा जनमानस की जान को ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है, तो कुछ राज्यो ने चरणवद्ध तरीके से स्थिति की समीक्षा कर पूर्णबंदी पर अपनी सहमति व्यक्त की है।

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने भी मंगलवार को अपनी राय व्यक्त कर कहा था, पूर्णबंदी का आखिरी सप्ताह उससे बाहर निकलने की रणनीति तय करने की दृष्टि से बड़ा अहम है। क्योंकि कोरोना वायरस के फैलने के संबंध में प्राप्त आंकड़ो का सरकार द्वारा लिए जाने वाले निर्णय पर असर होगा।

लाकडाउन के ताजा हालात पर केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता मे मंत्री समूह की बैठक भी समय सीमा पर चर्चा हेतु आयोजित हो चुकी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय व स्वास्थ मंत्रालय के आला अधिकारियों के अनुसार आयोजित इस बैठक मे भी अभी तक किसी भी प्रकार का फैसला नहीं लिया गया है।

कोरोना विषाणु संक्रमण के पसरे विकट संकट में नागरिकों व निजी चिकित्सा संस्थानों का भी फर्ज बनता है कि संकट की इस घड़ी में वे समाज के लिए सकारात्मक स्थिति को बनाए रखने में सहयोग करे। लेकिन देश के अनेक शहरों व कस्बो में पुलिस, स्वास्थ्य कर्मियों व डॉक्टरों पर कोरोना संक्रमण पर क्वैरनटाइन किए गए लोगों तथा पूर्णबंदी के कानून का उल्लघन कर बेबाक घूम रहे लोगों द्वारा पुलिस प्रशासन पर हमले करने की सूचनाओं ने प्रशासन व सरकार की चिंता बढ़ाई है। साथ ही कोरोना संक्रमण की जांच हेतु निजी प्रयोगशालाओं द्वारा मनमानी कीमत वसूली जा रही है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दायर जनहित याचिकाओ के सम्बन्ध मे कहा है, चिकित्सा व स्वास्थ्य कर्मी योद्धा हैं, इनकी सुरक्षा की जानी चाहिए। निजी जांच प्रयोगशालाऐ मनमानी कीमत नही वसूले।

पूर्णबंदी के दौरान सामाजिक संगठन भी बढ़-चढ़ कर प्रभावित जनमानस की मदद कर रहे हैं। भोजन उपलब्ध करा रहे हैं। लेकिन पूर्णबंदी की अवधि विस्तार से उक्त सामाजिक संगठनों के सम्मुख चुनोती जरूर खड़ी होगी। कितने दिनों तक वे भोजन इत्यादि की सुविधा जरूरतमन्दों को उपलब्ध करा सकेंगे।

पूर्णबंदी की घोषणा के बाद देश के विभिन्न हिस्सों में हजारों ट्रकों का चक्का थम गया है। वे जहां-तहां फंसे हुए हैं। इससे आपूर्ति श्रंखला टूटने का अंदेशा हो गया है। कुल 40 लाख ट्रकों मे 10 लाख मात्र ही अनिवार्य सामान की ढुलाई मे लगे हुए थे, प्राप्त आंकड़ो के मुताबिक इनमे से पूर्णबंदी के दौरान सत्तर फीसद की कमी हो गई है। बन्दरगाहो, कार्गो का करीब अस्सी फीसद माल एआईटीडब्लूए के अनुसार किसी न किसी वजह से अटका पड़ा है।

पूर्णबंदी से अर्थव्यवस्था को प्रतिदिन 4.64अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है। कारोबारी गतिविधियों के रुकने से जनमानस को हो रही दिक्कतों तथा श्रमिकों के जीवन पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को लेकर भी चिंता बढ़ना स्वभाविक है।

पूर्णबंदी की अवधि के विस्तार की मांग भले ही स्वभाविक है, परंतु घोषणा से पूर्व हमारी सरकारों, विशेषज्ञयो तथा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मानवहित मे मंथन कर सोचना होगा, वह छुटपुट जनमानस जो 21 दिनों से देश के विभिन्न हिस्सों मे या अपने ही राज्य मे चंद किलोमीटर की दूरी पर अपने घर से बाहर असहाय बन अपने नाते- रिश्तेदारों, दोस्तों, मित्रों या जरूरी कार्यवश कही जाकर फसे हुए हैं, उन असहायों की नाजुक पीड़ा समझ, उन्हे अपने मूल घरो को लौटने हेतु मानवहितार्थ एक या दो दिनों का समय प्रदान करने की घोषणा करनी चाहिए। ततपश्चात राज्य प्रशासन चाहे लाकडाउन की अवधि बेहद संवेदनशील संक्रमित इलाकों को सील कर करे या कोरोना महामारी का उदगम स्थल चीन के बुहान की 76 दिनों की पूर्णबंदी की तर्ज पर करे, किसी भी देशवासी के लिए पीड़ा दायक नही होगा।

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