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गढ़वाळी भाषा मानकीमरण पर देहरादून में तीन दिवसीय कार्यशाला सम्पन्न

देहरादून,   दून विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय गढवाली भाषा मानकीकरण कार्यशाला में हिन्दी एवं गढवाली के साहित्यकार दिनेश ध्यानी के गढवाली कविता संग्रह धार वोर-धार पोर लोकार्पण किया गया। वरिष्ठ साहित्यकार  देवेन्द्र जोशी,  मदन मोहन डुकलाण, प्रो. नन्द किशोर ढा़ैंडियाल, डाॅ. जयन्ती प्रसाद नौटियाल, धाद के संयोजक  लोकेश नवानी एवं उत्तरकाशी में जाड़ भाषा पर दशकों से कार्य करने वाले भाषावद, साहित्यकार प्रोफेसर सुरेश कुमार मंमगांई आदि विद्वानों ने उक्त पुस्तक का लोकार्पण किया।  मदन मोहन डुकलाण ने कहा कि दिनेश ध्यानी देश की राजधानी में गढ़वाली भाषा के प्रति अपने समाज को जागृत कर रहे हैं  साथ ही साहित्य सृजन में लगातार लगे हुए हैं।
उत्तराखण्ड भाषा संस्थान के तत्वाधान में आयोजित एवं  रमाकान्त बेंजवाल एवं श्रीमती बीना बेंजवाल व गणेश खुगशाल गणी के संयोजकत्व में आयोजित उक्त कार्यशाला गढवाली भाषा के मानकीकरण में मील का पत्थर साबित होगी। इस आयोजन में तीन दिनों तक विद्वानों ने गढवाली भाषा के लिए खासकर साहित्य सृजन हेतु करीब पाॅच सौं शब्दों के मानकीकरण पर चचा्र की और गढ़वाली भाषा के लिए कुछ मार्ग दर्शक सिद्धान्तों पर भी एक राय व्यक्त की। जैसा कि पूर्व में भी श्रीनगरीय गढ़वाली को राजकाज की भाषा के रूप में अंगीकार किया जाता रहा है। इसलिए इस गोष्ठी में भी एकमत से यह राय बनी की श्रीनगरीय गढ़वाली को की साहित्य सृजन में मानक भाषा माना जाए एवं क्षेत्रीय शब्दों एवं बोलचाल में उनकी अपनी पहचान बनी रहे। इस दिशा में काफी लम्बे अन्तराल बाद यह प्रयास किया गया था। सभी ने आशा की कि आने वाले समय में गढ़वाली भाषा के मानकीकरण एवं संविधान की आठवीं अनुसूची में इस भाषा को स्थान दिलाने हेतु प्रयास तेज करने होंगे।  उक्त तीन दिवसीय कार्यशाला में गढ़वाली के कई भाषाविदों एवं साहित्यकारों ने भाग लिया जिनमें भाषाविद डाॅ. अचलानन्द जखमोला, उत्तराखण्ड भाषा संस्थान के निदेशक  बी.  देवेन्द्र जोशी,  मदन मोहन डुकलाण, प्रो. नन्द किशोर ढा़ैंडियाल, डाॅ. जयन्ती प्रसाद नौटियाल, धाद के संयोजक  लोकेश नवानी एवं उत्तरकाशी में जाड़ भाषा पर दशकों से कार्य करने वाले भाषावद, साहित्यकार प्रोफेसर सुरेश कुमार मंमगांई डाॅ. जगदम्बा
कोटनाला,श्रीमती नीता कुकरेती,  शान्ति प्रकाश जिज्ञासु,  ओम बधाणी,  धनेश कोठारी, श्रीमती बीना कण्डारी, श्रीमती सुमित्रा जुगलाण, डाॅ. सत्यानन्द बडोनी,  वीरेन डंगवाल पार्थ,  वीरेन्द्र बत्र्वाल,  अरविन्द पुरोहित, अरविन्द प्रकृति प्रेमी सहित  रमाकान्त बेंजवाल एवं श्रीमती बीना बेंजवाल व  गणेश खुगशाल गणी कई विद्वानों ने शिरकत की। अन्त में इस आशा और विश्वास के साथ तीन दिवसीय गोष्ठी का समापन हुआ कि आने वाले समय में गढ़वाली भाषा के मानकीकरण हेतु सार्थक प्रयास होंगे और हमारी यह भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में स्थान पायेगी।
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