नई दिल्ली। 12 जुलाई को उत्तराखंड सदन चाणक्यपुरी में भेंट-भिटौली कार्यक्रम के तहत उत्तराखंड की सुप्रसिद्ध रंगकर्मी लक्ष्मी रावत और उनकी विगत तैतीस वर्षों की रंगयात्रा पर एक प्रभावशाली चर्चा का आयोजन मुख्य अतिथि उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व महाराष्ट्र तथा गोवा के राज्यपाल रहे भाजपा वरिष्ठ नेता भगत सिंह कोश्यारी की प्रभावी उपस्थित तथा मुख्यमंत्री उत्तराखंड मीडिया सलाहकार समिति अध्यक्ष डॉ. गोविंद सिंह की अध्यक्षता तथा उत्तराखंड सरकार संस्कृति, साहित्य एवं कला परिषद उपाध्यक्ष मधु भट्ट व संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त दिवान सिंह बजेली मंचासीनों की उपस्थित में आयोजित किया गया।
आयोजित भेंट-भिटौली कार्यक्रम का शुभारंभ आयोजक संस्था पदाधिकारियों द्वारा उत्तराखंड सदन सभाकक्ष में बड़ी संख्या में उपस्थित शिक्षा, संस्कृति, साहित्य तथा पत्रकारिता से जुड़े प्रबुद्ध जनों की उपस्थित के प्रति आभार व्यक्त कर भेंट-भिटौली कार्यक्रम के उद्देश्य और विगत वर्षों में संस्था द्वारा किए गए कार्यों व मिली उपलब्धियों पर सारगर्भित प्रकाश डाला गया। आयोजक संस्था पदाधिकारियों द्वारा मंचासीनों का शाल ओढ़ा कर व पुष्पगुच्छ भेंट कर स्वागत अभिनन्दन किया गया। रंगकर्म, फिल्म, निर्देशन इत्यादि इत्यादि विभिन्न विधाओं में निपुण सुप्रसिद्ध लक्ष्मी रावत द्वारा किए गए कार्यों को निर्मित वीडियो के माध्यम से स्क्रीन पर दिखाया गया। उत्तराखंड मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मीडिया कॉर्डिनेटर मदन मोहन सती द्वारा मुख्य अतिथि भगत सिंह कोश्यारी का स्वागत अभिनन्दन उनके व्यक्तित्व और जन सरोकारों से जुड़े रहे कृतित्व पर प्रकाश डाल कर किया गया।
विगत तैंतीस वर्षों से रंगमंच के क्षेत्र में सक्रिय व श्रीराम सेंटर से रंगमंच विधा में दो वर्षों का डिप्लोमा प्राप्त तथा पच्चीस से अधिक नाटकों में अभिनय तथा करीब बीस नाटकों का निर्देशन कर चुकी, देश में आयोजित विभिन्न प्रतिष्ठित नाट्य उत्सवों में भागीदारी कर चुकी, टीवी धारावाहिकों व फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कार्य कर अनुभव प्राप्त तथा उत्तराखंड की अनेकों प्रवासी सामाजिक संस्थाओं व संगठनों से जुड़ कर अपना कर्तव्य निर्वाह कर अनेकों प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाजी जा चुकी सुप्रसिद्ध रंगकर्मी लक्ष्मी रावत के प्रभावशाली क्रिया कलापों पर संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त दिवान सिंह बजेली द्वारा आयोजन विशिष्ट अतिथि के तौर पर कहा गया, लक्ष्मी रावत एक थिएटर आर्टिस्ट के रूप में शुरुआती दौर से ही नाट्य विधा के विभिन्न प्रारूपो में निष्ठा पूर्वक कार्य कर नाट्य विधा का संवर्धन कर रही हैं। लक्ष्मी रावत का कला संसार विस्तृत है, बहुमुखी कृतित्व की धनी हैं, उक्त सभी का संकलन कर उसे किताब रूप में लाना चाहिए। कहा गया, पर्वतीय कला केंद्र के संस्थापक मोहन उप्रेती व बी एम शाह के बाद अंचल की लक्ष्मी रावत नाट्य जगत के क्षेत्र में अच्छा व प्रभावी दूरगामी कार्य कर रही हैं।
रंगकर्म की विभिन्न विधाओं में निपुण लक्ष्मी रावत के द्वारा उक्त विधा के संरक्षण और संवर्धन हेतु किए गए कार्यों पर पहली आंचलिक फिल्म निर्देशिका सुशीला रावत, रंगकर्मी व नाटककार डॉ. सतीश कालेश्वरी, लेखक, वरिष्ठ पत्रकार और पर्वतीय कला केंद्र दिल्ली अध्यक्ष चंद्र मोहन पपनै, रंगकर्मी कुसुम चौहान, साहित्यकार क्रमशः डॉ. हरिसुमन बिष्ट व रमेश चन्द्र घिल्डियाल, वरिष्ठ पत्रकार सुनील नेगी, आंचलिक फिल्म अभिनेता पदमेंद्र रावत, रंगकर्मी क्रमशः हेम पंत, मीना कंडवाल , डॉ. कुसुम भट्ट इत्यादि इत्यादि द्वारा लक्ष्मी रावत की रंगयात्रा पर सारगर्भित विचार व्यक्त किए गए।
उक्त वक्ताओं द्वारा कहा गया, अब लग रहा है कलाकारों की कदर होने लगी है। एक कलाकार के रूप में जो प्रतिभा लक्ष्मी रावत में है वे किसी और में नहीं। कहा गया, निर्देशन की बारीकियां भी खूबसूरत होती हैं। अपने दमखम पर यहां तक पहुंची है। वक्ताओं द्वारा कहा गया, एक दौर था जब नाटकों का कोई प्रचार- प्रसार या उनकी कोई समीक्षा होती थी। लक्ष्मी रावत ने नाटक की विभिन्न विधाओं में प्रभावशाली कार्य कर गरिमा प्रदान की। कहा गया, रंगमंच करना कोई आसान कार्य नहीं, फिल्म करना आसान है।
आयोजन मुख्य अतिथि भगत सिंह कोश्यारी द्वारा आयोजित आयोजन के मुख्य उद्देश्य की प्रशंसा करते हुए कहा, नेता अच्छा भी करते हैं तो उसे नौटंकी कहा जाता है। कहा गया, जीवन स्वयं ही रंगमंच है जो आदिकाल से चलायमान है। कहा गया, भाव विश्व के लोगों में जरूर होते हैं। कुछ रचना करते हैं, नाटककार नाटक बना देते हैं। उत्तराखंड में कला की दुर्दशा पर भगत सिंह कोश्यारी द्वारा कहा गया, समाज में उच्च श्रेणी के कलाकार हमेशा नहीं रहते, कभी कभी जन्म लेते हैं, समाज सूना रहता है। हमारे अंदर जो कला है वह पूर्वजों का आशीर्वाद स्वरूप है। कहा गया, वर्तमान में सुमित्रा नंदन पंत, शिवानी इत्यादि इत्यादि जैसे रचनाकारों जैसा किसी का स्तर ना हो कोई बात नहीं, खेतों में फसल भी बदल बदल कर बोई जाती है, कभी कभार खेती खाली भी छोड़ी जाती है। समाज में भी बदलाव होता है, प्रकृति सब कराती है।
मुख्य अतिथि भगत सिंह कोश्यारी द्वारा कहा गया, विगत पच्चीस वर्षों में अनेकों आंचलिक फिल्में बनी, अच्छा लगता है। बेडू पाको जैसे गीत व नरेंद्र सिंह नेगी तथा गोपाल बाबू के गीत चलते हैं, दिल्ली वालों के भी पैर उन गीतों में थिरकते हैं। जो हो रहा है उसे भी देखो, जो नहीं हो रहा है उसे भी देखो। कहा गया, लाखों लोग जब उत्तराखंड जाते हैं तो वह समग्र हो जाता है। प्रधानमंत्री मोदी जी उत्तराखंड बार बार जाते हैं हिमाचल वाले कहते हैं वे यहां नहीं आते हैं। मोदी जी जहां गए वहां का उद्धार हुआ। सभा कक्ष में बैठे साहित्यकारों की ओर मुखातिब होते हुए मुख्य अतिथि द्वारा कहा गया, आपके साहित्य को समझना उनके बस की बात नहीं है। रंगकर्मी लक्ष्मी रावत को भगत सिंह कोश्यारी द्वारा सम्मान स्वरूप शाल ओढ़ा कर संबोधन समाप्त किया गया।
रंगकर्मी लक्ष्मी रावत के सम्मान में आयोजित आयोजन में अति विशिष्ठ अतिथि के तौर पर देहरादून से दिल्ली पहुंची उत्तराखंड सरकार संस्कृति, साहित्य एवं कला परिषद उपाध्यक्ष मधु भट्ट द्वारा कहा गया, भावनात्मक कार्यक्रम आयोजित हुआ है। मैं कड़ी हूं सरकार और रंगकर्मियों के बीच की। आज जो भी उत्तराखंड की कला संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन हेतु प्रबुद्ध जनों द्वारा विचार व्यक्त किए गए हैं वे उत्तराखंड राज्य सरकार तक पहुंचेंगी। कहा गया, हमारे अंचल की आध्यात्मिक संस्कृति रही है। हमारे अंचल की लोक संस्कृति अति समृद्ध रही है। अवगत कराया गया, आगामी महीनों में हिमालयी राज्यों का एक समागम आयोजित होगा उसमें उत्तराखंड के सांस्कृतिक दल आमंत्रित होंगे। कुसुम भट्ट द्वारा कहा गया, आधुनिकता के इस दौर में बहुत कुछ बदल रहा है, लेकिन अंचल की समृद्ध परंपराओं को बचाना चाहिए।
रंगकर्मी लक्ष्मी रावत द्वारा उनके सम्मान और उनकी रंगमंच यात्रा पर चर्चा आयोजित करने हेतु आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा गया, रंगकर्म के क्षेत्र में अंचल की विभूतियों स्व. मोहन उप्रेती, स्व. बी एम शाह, स्व. बृजेन्द्र लाल साह इत्यादि इत्यादि ने जो अहम कार्य वृहद फलक पर किए सब इतिहास बन चुका है, उनका नाम जरूर लिया जाता है लेकिन उनके किए कार्यों पर कोई सोच नहीं बनाई जाती, न ही उनके किए कार्यों को आगे बढ़ाने हेतु कोई नीति नियोजन किया गया। कहा गया, माह नवंबर में अंचल के चुने हुए नाटकों का एक महोत्सव करने की योजना पर विचार किया जा रहा है। स्थापित सरकार से सहयोग की अपेक्षा है। कहा गया, नाटक करना सरकारों के लिए भी जरूरी है। अंचल के नाटकों का मंचन होने से उत्तराखंड का आंचलिक रंगमंच समृद्ध होगा, सोचा जा सकता है। अंचल की दिल्ली प्रवास में स्थापित सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा दशकों से अपने व समाज के द्वारा दिए गए प्रोत्साहन के बल बूते ही जैसे तैसे नाटकों का निरंतर मंचन किया जाता रहा है, सांस्कृतिक संस्थाओं और उन संस्थाओं से जुड़े कलाकारों की भी हौसला अफजाई अंचल के नाटकों का महोत्सव आयोजित करने से होगा। उक्त आयोजनों से अंचल के रंगमंच को दिल्ली प्रवास में एक नया आयाम मिलेगा, सोचा जा सकता है।
लक्ष्मी रावत द्वारा कहा गया, जीते जी कलाकार को सम्मान मिलना सुखद लगता है, उन्हें आज जो सम्मान दिया गया है, उनकी रंगयात्रा पर जो चर्चा हुई है, सुखद लगा। रंगकर्म के क्षेत्र में अच्छा कर रहे रंगकर्मियों के अंदर भी ऐसे आयोजनों को देख सुन अच्छा करने की जुगत जगेगी, उनमें उत्साह की भावना उमड़ेगी, प्रोत्साहन की उम्मीद जगेगी। लक्ष्मी रावत द्वारा कहा गया, मेरे जीवन पर चर्चा करने व मुझे सम्मान देने से मेरी जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं।
आयोजकों, मंच पर विराजमान डॉ. गोविंद सिंह, दीवान सिंह बजेली, कुसुम भट्ट तथा सदन सभा कक्ष में उपस्थित सभी प्रबुद्ध जनों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए लक्ष्मी रावत द्वारा संबोधन समाप्त किया गया।
आयोजित आयोजन की अध्यक्षता कर रहे डॉ. गोविंद सिंह द्वारा कहा गया, हमारे यहां जीते जी किसी का सम्मान नहीं होता। आज रंगकर्मी लक्ष्मी रावत जी का सम्मान हो रहा है, उनके द्वारा रंगमंच पटल पर किए कार्यों पर चर्चा हो रही है, सुखद लग रहा है। कहा गया, आजादी के बाद भारतीय रंगमंच का सही विकास नहीं हो पाया। पहले शास्त्रीय रंगमंच छाया रहता था। पहले दो हजार वर्ष पूर्व हमारा रंगमंच बड़ा समृद्ध था। गुलामी में उक्त कड़ी टूटी, लेकिन लोकनाट्य की परंपरा निर्बाध चलती रही। कहा गया, उत्तराखंड की संस्कृति अति समृद्ध रही है। लोकनाट्य की परंपरा पूरे देश में है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्थापना के बाद उक्त विधा राष्ट्रीय फलक पर विविधता, समग्रता और एक परम्परा का रूप बनी है।
डॉ. गोविंद सिंह द्वारा कहा गया, हमारा रंगमंच कंफ्यूजन पैदा करता है, पता ही नहीं चलता हम हैं क्या? बंगाल और महाराष्ट्र के अलावा देश के अन्य राज्यों में रंगमंच की स्थिति सोचनीय है। अगर रंगमंच विधा की गतिविधियां चल भी रही हैं तो समाज के प्रोत्साहन और परोपकारी लोगों की मदद की बदौलत। कहा गया, जो दिख रहा है उससे लगता है आगे भी बाजार और जन के समर्थन की बदौलत ही रंगमंच की गतिविधियां चलायमान रहेंगी। कहा गया, उक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है रंगमंच की प्रतिष्ठा नगण्य है। अंत में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के मीडिया सलाहकार समिति अध्यक्ष डॉ गोविंद सिंह द्वारा कहा गया, नाटक उनका भी प्रिय विषय है।