देवभूमि उत्तराखंड : शिव का ससुराल , पार्वती का मायका
लेखक-सुरेंद्र हालसी
स्वतंत्र पत्रकार
उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है। यहां की हर घाटी, हर पर्वत और हर धारा में अध्यात्म और आस्था का अनोखा संगम दिखाई देता है। पुराणों और लोकगाथाओं में उत्तराखंड को भगवान शिव का ससुराल और मां पार्वती का मायका बताया गया है। यही कारण है कि यह प्रदेश न केवल तीर्थाटन का केंद्र है, बल्कि श्रद्धा, संस्कृति और परंपरा का जीवंत स्वरूप भी है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार हिमालय पर्वत की पुत्री पार्वती का जन्म यहीं उत्तराखंड की पवित्र धरा पर हुआ था। हिमालय को पार्वती का पिता और मैती (मायका) माना जाता है। भगवान शिव, जो कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं, ने पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार कर हिमालय से गहरा नाता जोड़ा। इसीलिए उत्तराखंड को शिव का ससुराल और पार्वती का मायका कहा जाता है।
केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर जैसे पंचकेदार मंदिरों से लेकर बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री जैसे धाम, सभी शिव-पार्वती की उपस्थिति और आशीर्वाद का प्रतीक माने जाते हैं। हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आकर अपने जीवन को पवित्र मानते हैं।
गौरीकुंड, त्रियुगीनारायण और कैलाश मानसरोवर की ओर जाने वाले मार्ग इसी दिव्य संबंध की कथा सुनाते हैं।
उत्तराखंड की लोकसंस्कृति और लोकगीतों में भी पार्वती को “हिमालय की बेटी” और “मैती” के रूप में गाया जाता है। यहां की बेटियों को विदा करते समय आज भी माता-पिता यह आशीर्वाद देते हैं –
“मैती की धज-धज डोली निकली,
हिमाल को आँगन रुवाँला,
पार्वती ब्वारी कैलास जांली,
गाँव-गाँव रैणू छायाला।
बाबू कंठ लगाइ रुवाँल,
म्यरि ब्वारी दूर देश जांली,
शिव के ससुराल पै जांली,
देवभूमि की लाज बनाली।”
वहीं, देवों के देव महादेव को उत्तराखंड का दामाद मानकर विशेष सम्मान दिया जाता है। गांव-गांव में “शिव-गौरा” की पूजा और मेले इसी भावना को जीवंत बनाए रखते हैं।
इन्हीं लोकधुनों में जब पहाड़ों की बाखली में गूंजता है –
“शिवो को डमरू बाजो, बाज हिमाला डम डम”
तो लगता है जैसे स्वयं कैलाशपति शिव यहां की वादियों में नृत्यरत हों। यह गीत न केवल भक्ति का प्रतीक है बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक आत्मा को भी दर्शाता है।
शिव और पार्वती का यह संबंध हमें यह भी सिखाता है कि जीवन में शक्ति और शिव का संगम ही सृष्टि का आधार है। उत्तराखंड इस दिव्य संगम का साक्षी प्रदेश है, जहां आस्था के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्य भी ईश्वर की अनंत लीला का परिचय देता है।
उत्तराखंड को देवभूमि कहना केवल धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि एक गहरी सांस्कृतिक सच्चाई भी है। यहां शिव के ससुराल और पार्वती के मायके की मान्यता न केवल पौराणिक गौरव है, बल्कि उत्तराखंड की पहचान और स्वाभिमान का हिस्सा भी है। यही कारण है कि इस प्रदेश का हर शिखर, हर नदी और हर घाटी शिव-पार्वती के मिलन की अनोखी गाथा सुनाती है।