उत्तराखंड के लोक कलाकारों का ‘सांस्कृतिक संगम’ कार्यक्रम अनूठी पहल
सी एम पपनैं
नई दिल्ली । दिल्ली प्रवास मे उत्तराखंड की सांस्कृतिक संस्था पर्वतीय लोक कला मंच के तत्वाधान मे 24 मार्च की सायं आईटीओ स्थित प्यारेलाल भवन मे भव्य ‘सांस्कृतिक संगम’ कार्यक्रम का आयोजन गंगादत्त भट्ट के निर्देशन, वीरेन्द्र नेगी राही के संगीत निर्देशन, लक्ष्मी रावत पटेल की कोरियोग्राफी व हेम पंत की परिकल्पना मे आयोजित किया गया। विशिष्ट अतिथि नरेंद्र सिंह लडवाल, सुरेश चंद्र पांडे, गणेश सिंह रौतेला, संजय जोशी तथा पूरन चंद्र नैनवाल का संस्था के प्रमुख पदाधिकारियों एच पी कांडपाल, के एस पांडे, दिनेश फुलारा, खुशाल सिंह रावत व संस्था अध्यक्ष गंगादत्त भट्ट द्वारा पुष्प गुच्छ भेट कर सम्मान किया गया। द्वीप प्रज्वलित कर ‘सांस्कृतिक संगम’ कार्यक्रम का गणेश कैप्टन (डॉ.) बी एस बिष्ट पूर्व डीआईजी लिखित हिंदी पुस्तक ‘धूल से शिखर तक’ व डॉ एस सी जोशी लिखित अंग्रेजी पुस्तक ‘सोशियल चेंज एंड डभलपमेंट अमंग ट्राइबल वोमिन’ का लोकार्पण आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों व संस्था के वरिष्ठ पदाधिकारियों के कर कमलो द्वारा किया गया।
संस्था के महासचिव हेम पंत ने संस्था की स्थापना वर्ष 1987 से वर्तमान तक संस्था के क्रियाकलापो व मिली सफलता पर प्रकाश डाला। अवगत कराया, संस्था उत्तराखंड अंचल की सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखने मे प्रयासरत है। ‘सांस्कृतिक संगम’ कार्यक्रम संस्था का नया सांस्कृतिक प्रयोग है। नए उभरते गायकों को मौका देने के लिए। विशिष्ट अतिथि नरेंद्र सिंह लडवाल ने अपने संबोधन मे पर्वतीय लोक कला मंच के द्वारा दिल्ली प्रवास मे अंचल की सांस्कृतिक लोक धरोहर के संवर्धन व उसके उत्थान हेतु किए जा रहे प्रयास को सराहा। उन्होंने खचाखच भरे सभागार मे बैठै प्रबुद्ध प्रवासी जनो को अपने मूल गावों मे जाकर उसकी भी सुध लेने की बात कही, जिससे उत्तराखंड के पलायन से खाली हो रहे गांव भी आबाद हो, फलै-फूलै।
इस अवसर पर आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों, संस्था के पदाधिकारियों व कार्यकारिणी सदस्यों को स्मृति चिन्ह भेट कर सम्मानित किया गया।
‘सांस्कृतिक संगम’ कार्यक्रम का शुभारम्भ गणेश बंदना से आरम्भ हुआ। बोल थे-
1- शगुना देश….गणेश… रामीचंद्र…शत्रुघ्न…
2- होली का गणेशा…होली का नरैणा…
3- सांझ पड़ी संधवाली…लक्ष्मी पूजन
4- संध्या झूली ग्य्यै…कृष्ण की द्वारका मे संध्या झूली ग्य्यै…
‘सांस्कृतिक संगम’ कार्यक्रम में उत्तराखंड के प्रवासी गायकों व पर्वतीय लोक कला मंच द्वारा प्रस्तुत लोकगीतो व नृत्यो का क्रम अति प्रभावशाली था।
मधु बेरिया- (मैलोडी/ लोकगीत)
1- गोरि गंगा भागीरथी को…खोली दे माता खोलि भवानी, धरमा किवाड़ा…
2- पारा भीड़ा को छै भागी सू सू मुरली बाजिगै…….
3- …हाय जुनाली राता….
4- नीलिमा चाँदी को बटना…
5- बुराशी को फूलो को तुम…अबीर गुलाल की धूल उड़ी…हिमाल डना लाल गुलाल…मोहित डोभाल (गजल)-…झिकुड़ी की पीड़ा…सुख की आसम जिंदगी न्है गीछा…दीपा पंत (लोकगीत)-
पहाड़ कि याद आई…क्य्यै भोल लागुछ हमरो पहाड़…खट्ठो-मिट्ठो पाणी हों छो…सत्येन्द्र परंडियाल- (लोकगीत)
म्यारा पीरू मछेरा रे अब खाले माछा…. ढक ढुकी ढुगी मा खुट नी धरणी….अरविंद सिंह रावत दीपा पंत-
(लोकगीत)डांडयू बिच ली ज्यूल दिखै हैं…अरविंद सिंह रावत- (लोकगीत)
मेरी झिगुड़ी यो रंग रूप…तरू.. त्येरी मुखड़ी मै देखणं लागू…भुवन रावत (न्योली)-
मेरी हीरू न्हैगै रंगीला भाबर…चंद्रकांता सुन्दरियाल शर्मा-
(न्योली)सौली घूरा घूर दगड़िया…तुयुले धारो बोला…सत्यम तेजवान (मैलोडी/लोकगीत)-
1-ऊंचा धुरा…मुरली शोर सुणी जिया भरी ऐगो..स्वामी परदेशा म्यारा…
2- कैलै बजे मुरली बैणा ऊँचा नीचा डांडुमा….
3- रूपसा रमौली घुंघुर नि बजा छमा छमा…हरीश रावत- (लोकगीत)
दातुलै की धार बीच गंगा छोड़ि एछै… बजार कमला ह् मार झटका।
भुवन गोस्वामी- (लोकगीत)
गोरख्यिए च्यैली भागुली होशिया बना त्युलै धारो बोला …
नरेश बिष्ट- (लोकगीत)
पारे भिड़े कि बसन्ती छोरी रूमा झुमा..बसन्ती तेरी गुलाबी साड़ी…मोहना..
बिशन बाबू गोस्वामी- (न्योली)
तेरी बटी का माया हिमुली…दिन नि रया…गई दिन नि आना हिमुली….
पर्वतीय लोक कला मंच की नृत्य व गीतों की झलक मे-
1-बेडू पाको बारा मासा…लोकगीत नृत्य-गायन द्वारा कुछ नए अंदाज मे प्रभावशाली तौर पर पेश किया गया।
2- झोड़ा, थड़िया व चोफला गायन व सामूहिक नृत्य की मिलीजुली प्रस्तुति ने दर्शको को झूमने को मजबूर किया।
3- हुड़का नृत्य-गायन-घुरु रू रू मुरली बाजिगे…सरयू किनारा सुआ..तू मेरी लाडली…मै त्येरो भंवरा …
4- हिट-हिट ओ मेरी कमला अल्मोड़ म्यर बंगला..बसिजा म्यारा दिल मा…चादी को बटना… हास्य गीत ने दर्शको को बड़ी देर तक तालियां बजाने को मजबूर किया। गंगादत्त भट्ट ने अपनी अदाओं से दर्शको के बीच प्रभावशाली छाप छोड़ी।
5- श्रोताओं की तालियों का यही क्रम जौनसारी नृत्य व गीत मे दिखा। बोल थे-ले वोटी काला लत्युड़ा…ल्यै फूली चला लत्युडा… कलमा म्यरो प्यारो…
कार्यक्रम का समापन बहुत ही खूबी व प्रभावशाली अंदाज मे उत्तराखंड की खड़ी होली गायन-नृत्य के साथ किया गया। खड़ी होली गायन के बोल थे-
1- कैलै बाधी चीर हो रघुनन्दन राजा …कैलाश मे शिव शंकर बांधे..गौरी बांधे…
2- हो हो मोहन गिरधारी ऐसो अनारी चुनर गयो फाड़ी…
3- गोरी प्यारो लगे त्येरो झंकारों…मंचित नृत्य-गीतों के प्रभावशाली गायको वीरेन्द्र नेगी, हरीश रावत, सत्येन्द्र परडियाल, मधु बेरिया व चंद्रकांता सुन्दरियाल शर्मा का गायन प्रभावी था। अनुराग नेगी तबला, सुभाष पांडे ढोलक, किरण शर्मा बांसुरी, विजय बिष्ट पैड व वीरेन्द्र नेगी की बोर्ड मे लाजवाब संगत व मधुर पहाड़ी अंचल की धुनों की रंगत थी।
कार्यक्रम संचालक हेम पंत द्वारा श्रोताओं व कलाकारों को होली आशीष
हो हो होलक रे…के साथ ही आयोजित सफल व शानदार ‘सांस्कृतिक संगम’ कार्यक्रम कलाकारों के परिचय भी दिया गया।