उत्तरैणी लोक गीत काले कावा काले रिलीज
अमर संदेश,दिल्ली। यू के म्यूजिक इंडिया ने मकर संक्रांति के अवसर पर उत्तराखण्ड में मनाये जाने वाले स्थानीय त्यौहार उत्तरैणी (उत्तरायणी) पर केंद्रित लोकगीत, काले कावा काले, घुग्ति मावा खाले’ की शानदार प्रस्तुति संगीत प्रेमियों के लिये जारी की है। यह उत्तरैणी लोकगीत जगदीश आगरी ने अपनी कर्णप्रिय आवाज में गाया है तथा इसे विनोद थपलियाल ने संगीत से सजाया है। यह गीत जगदीश आगरी ने खुद लिखा है।
पोेराणिक लोककथाओं के अनुसार तथा सनातन धर्म की मान्यताओं के आधार पर विक्रमी संवत् के माघ मास के प्रथम दिन अर्थात् एक गते को उत्तराखण्ड में उत्तरैणी या उत्तरायणी त्यौहार मनाया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में घुग्तिया भी कहा जाता है। यह त्यौहार या पर्व मकर संक्रांति के मौके पर सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश के कारण उत्तरायणी कहलाता है जबकि स्थानीय धार्मिक विश्वासों के आधार पर इसे बागेश्वर में भगवान शंकर के अवतार बागनाथ जी के मंदिर की सीढ़ियों से स्पर्श करते हुए प्रवाहित हो रही पतित पावनी सरयू गंगा (नदी) में कव्वे के प्रथम बार स्नान करने से जोड़ते हुए,‘घुग्तिया त्यार’ के रूप में मनाने की परंपरा है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सारे संसार के कौव्वे पवित्र नदियों,सरोवरों व स्रोतों में स्नानोपरांत भगवान शिव के दर्शन करते हैं। इसी दिन छोटे-छोटे बच्चे अपने-अपने घरों में बने एक स्थानीय खाद्य पकवान घुग्तिया खाने के लिए कव्वों को आमंत्रित करते हैं। इस अवसर पर बच्चे घुग्तों की माला भी पहनते हैं। कौओं को आमंत्रित करते हुए बच्चे गाते हैं,‘ काले कावा काले, घुग्तिया मावा(माला) खाले’। इस त्यौहार पर घुग्तिया या घुग्तों के अलावा बड़ा या बौड़, जोकि उड़द की भीगी हुई दाल को पीसकर पकौड़ियों की तरह फिर उन्हें तेल में तलकर बनाये जाते हैं और पुड़ियां भी बनायी जाती हैं। इन सब पकवानों को पहले कौओं को भोग लगाया जाता है और उसके बाद घर के सभी लोग प्रसाद रूप में ग्रहण करते हैं। कव्वे घरों के छज्जों पर टॅगी हुई घुग्तों की माला को घास में छहुपाकर ले जाते हैं। जिस दिन कौओं ने सरयू गंगा में पहली बार स्नान किया उसी दिन से यह लोकविश्वास भी प्रचलित है कि कव्वे भगवान के संदेशवाहक के रूप में हमारे घरों में आने वाले मेहमानों की पूर्व सूचना हमें देते आ रहे हैं।
सनातन धर्म पर आधारित इस पौराणिक आख्यान तथा उत्तराखंड की लोकमान्यताओं को सम्मिलित करते हुए जगदीश आगरी द्वारा रचा गया यह लोगगीत काफी कर्णप्रिय और मौलिक है।