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22वे अंतरराष्ट्रीय ‘भारत रंग महोत्सव’ मे पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली के गीतनाट्य ‘इंद्रसभा’ के मंचन ने छोडी अमिट छाप 

 

सी एम पपनैं

 

नई दिल्ली, 20 फरवरी। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के तत्वाधान मे आयोजित हो रहे, 22वे अंतरराष्ट्रीय ‘भारत रंग महोत्सव’ (भारंगम) मे 19 फरवरी की सांय हाउस फुल कमानी सभागार मे पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली के गीतनाट्य ‘इंद्रसभा’ के मंचन ने दर्शकों व आयोजकों के मध्य अमिट छाप छोड़ अपार ख्याति अर्जित की। उक्त गीतनाट्य का प्रभावशाली नाट्य निर्देशन अमित सक्सेना, नृत्य संरचना दिक्षा व दिव्या उप्रेती द्वारा बखूबी की गई थी। अमानत लखनवी द्वारा रचित तथा स्व.मोहन उप्रेती द्वारा संगीत बद्ध इस गीतनाट्य के संगीत को बबीता पांडे द्वारा असिस्ट किया गया था।

 

विगत सौ वर्ष पूर्व की लोक परंपराओ पर अमानत लखनवी की रचना में ब्रज व अवध की रामलीला, रासलीला, भडैती इत्यादि मे प्रयुक्त राग-रागिनियों की गायन शैली को स्व.मोहन उप्रेती द्वारा तत्कालीन संगीत की धुनों का प्रयोग कर आधुनिक रंगमंच पर नृत्य और संगीत के ताने-बाने का मिश्रण कर मंचित करना, मंचित गीतनाट्य इंद्रसभा की सफलता का मुख्य पैमाना माना जा सकता है।

मंचित गीतनाट्य ‘इंद्रसभा’ का श्रीगणेश राजा इंद्र के दरबार में प्रवेश करने तथा परियों के गीत-नृत्य की फरमाइस से आरंभ होता है। पुखराज परी, नीलम परी व लाल परी के गीतो व नृत्यो का लुफ्त लेकर राजा इंद्र सब्ज परी को सुनना चाहता है। लेकिन निद्रा के कारणवश राजा इंद्र सो जाता है। यह देख सब्ज परी बाग में चली जाती है। काले देव को किसी सहजादे के संग हुई अपनी प्रेम व्यथा से अवगत कराती है। कहती है उस सहजादे को यहां ले कर आओ। काला देव द्वारा उक्त सहजादे को बाग में हाजिर कर दिया जाता है।

 

यह सहजादा गुलफाम है, जो सब्ज परी के द्वारा किए जा रहे प्यार के इजहार के बावत अवगत होता है। उसे यह भी अवगत होता है यह सुंदर परी इंद्र के दरबार में नाचती गाती है। गुलफाम सब्ज परी से कहता है, उसे इंद्र दरबार में जाकर नाच गाना देखना है। सब्ज परी के मना करने पर भी गुलफाम नहीं मानता है। विवश होकर सब्ज परी गुलफाम को रिश्क लेकर उसकी ख्वाइस पूरी करती है, उसे दरबार के समीप छिपा कर। लाल देव छुपे गुलफाम को देख लेता है। इंद्र देव को परीस्तान मे आदम जाद मौजूद होने की सूचना देता है। राजा इंद्र गुस्से मे लाल-पीला होकर गुलफाम को कैद व सब्ज परी के पंख नुचवा कर दरबार से बाहर करवा देता है।

 

सब्ज परी जोगन वेश रख, गुलफाम को खोजने निकल पडती है। काला देव इंद्र को सूचित करता है परीस्तान मे एक सुंदर जोगन आई है। बखूबी गायन भी करती है। गीतों का रसिया इंद्र जोगन को सभा में बुलाता है। गीत गायन के लिए कहता है। जोगन बनी सब्ज परी इंकार करने के बाद मान जाती है। अपने गीत गायन का प्रभाव इंद्र पर डालती है। इंद्र खुश होकर जोगन को पान, रुमाल, हार उपहार मे देने की कोशिश करता है। जोगन हर बार उपहार लेने से मना कर देती है। इंद्र अंत मे मुह मांगा इनाम मांगने को कहता है। जोगन अपने प्यार गुलफाम को इनाम के तहत मांगती है। तब इंद्र को पता चलता है, जोगन सब्ज परी है। इंद्र, की गई गलती पर पछताता है। गुलफाम को सब्ज परी के हवाले कर देता है। सब्ज परी व गुलफाम का दरबार में मिलन होता है। सभी परिया एकत्रित होकर मुबारक गीत गाती हैं। यही पर इस प्रभावशाली गीतनाट्य का देर तक बजती तालियों की गडगड़ाहट के मध्य अंत होता है।

 

संसार के बहुत से प्रसिद्ध नाटक तत्कालीन समय के किस्से-कहानियों से लिए गए हैं। ‘इंद्रसभा’ गीत नाट्य की गाथा जिसमे गीत, गजले, पद्य से लिखे हुए संवाद हैं, हिंदूधर्म की पवित्र पुस्तकों मे कथित व वर्णित गाथाओ से लिए गए हैं। ‘मसनवी गुलजारे नसीम’ नामक पुस्तक में भी इंद्र की सभा मे नाचने-गाने वाली परियों का जिक्र आता है।

 

राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फलक पर ख्याति प्राप्त, सांस्कृतिक संस्था ‘पर्वतीय कला केन्द्र दिल्ली’ द्वारा मंचित गीतनाट्य ‘इंद्रसभा’ के किरदारों मे महेन्द्र लटवाल-इंद्र, राहुल-गुलफाम, लाल देव-खिला नंद भट्ट, काला देव-जितेन्द्र कुमार तथा सब्ज परी की भूमिका मे क्रमश: चंद्रा बिष्ट व स्वेता चांद, पुखराज परी-दीक्षा उप्रेती, लाल परी-दिव्या उप्रेती तथा नीलम परी- पुष्पा जोशी द्वारा प्रभावशाली भूमिकाऐ निभाई गयी। अन्य नृत्यकारों व नृत्यंग्नाओ मे गोबिंद महतो, नवीन चंद, सावित्री छेत्रि व रितु नायर तथा कोरस गायको मे पंकज कुमार रावत, हर्ष मनु, दीपक राना, जोगिंदर सिंह, सोनिया मनराल जोशी, धनलक्ष्मी महतो, नीमा गुसाई इत्यादि द्वारा कर्ण प्रिय कोरस गायन कर, गीत नाट्य को सफलता के शिखर पर पहुचाने मे सराहनीय प्रयास किया गया।

 

मंचित गीतनाट्य कलाकारों की रूप सज्जा कार्य हरि खोलिया द्वारा, प्रोपर्टी कार्य भुवन रावत द्वारा, सैट व लाइट डिजाइनिंग श्याम कुमार साहनी द्वारा बेहतरीन तरीके से की गई थी। बबीता पांडे के सानिध्य में संगीत वाद्ययंत्रों हारमोनियम मे हेमंत सेकिया, तबला व परकशन मे मनीष कुमार, सितार मे सईद खान, सारंगी मे अनिल मिश्रा तथा ढोलक मे मनीष गंगानी की वाद्ययंत्रों की संगत ने श्रोताओं के मध्य गहरी छाप छोडी।

 

‘भारत रंग महोत्सव’ सन् 1999 से प्रतिवर्ष आयोजित किया जा रहा है। यह एशिया का सबसे बडा, प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय रंगमंच उत्सव है। जिसे नाटकों का महाकुंभ भी कहा जाता है। 14 से 26 फरवरी 2023 तक देश के विभिन्न नगरों व महानगरों दिल्ली, नासिक, जयपुर, राजमुंदरी, भोपाल, जम्मू, कश्मीर, गुवाहाटी, रांची और केवडिया के प्रमुख सभागारो मे आयोजित किया जा रहा है। दुनियाभर के अस्सी से ज्यादा नाटकों का मंचन इस महोत्सव मे होना है।

 

इस वर्ष भारत रंग महोत्सव की थीम ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ पर आधारित है। इस महोत्सव को आयोजित करने का उद्देश्य भारत की सांस्कृतिक संपदा और रंगमंच के माध्यम से वैश्विक फलक पर देश को सम्रद्ध बनाना रहा है। आयोजन मे समस्त देश के नाटकों के दर्शन हो तथा श्रेष्ठता के बदले सामाजिक न्याय और प्रतिनिधित्व मुख्य मानक हो। उक्त उद्देश्यो को दी जा रही, प्रमुखता के बल ही, विगत 23 वर्षो से निरंतर देश के सबसे बडे और अंतरराष्ट्रीय स्तर के इस नाट्य उत्सव मे दुनिया का चौथा सर्वश्रेष्ठ माना जाने वाला राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के अध्यक्ष परेश रावल व वर्तमान निर्देशक प्रोफैसर (डाॅ) रमेश चंद्र गौड़ हैं।

 

उक्त महोत्सव में प्रतिभाग कर रही, 1968 मे स्थापित, राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय फलक पर ख्याति प्राप्त सांस्कृतिक संस्था, ‘पर्वतीय कला केंद्र’ दिल्ली, भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय द्वारा, सन 1989 से निरंतर 28 वर्षो तक, रंगमंडल का दर्जा प्राप्त, देश की अव्वल दर्जे की सांस्कृतिक संस्थाओ मे सुमार रही है। 2001 मे ‘अमीर खुसरो’ तथा 2005 मे ‘भाना गगंनाथ’ गीतनाट्य का मंचन ‘भारत रंग महोत्सव’ (भारंगम) मे मंचित कर ख्याति अर्जित कर चुकी है। 2018 भारत में आयोजित ‘ओलंपिक थियेटर’ मे ‘पर्वतीय कला केंद्र’ दिल्ली द्वारा मंचित गीतनाट्य ‘राजुला-मालूशाही’ के मंचन ने वैश्विक फलक पर बडी ख्याति अर्जित की थी। राष्ट्रीय व वैश्विक फलक पर ‘पर्वतीय कला केंद्र’ दिल्ली द्वारा, अनेको राज्यो व देशो का भ्रमण कर, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमो मे राज्य व देश का प्रतिनिधित्व कर, उत्तराखंड के साथ-साथ भारतवर्ष का नाम रोशन किया है।

 

दिल्ली प्रवास मे, उत्तराखंड की ख्याति प्राप्त इस सांस्कृतिक संस्था की अनेकों लोकगाथाओं व अन्य कार्यक्रमो का राष्ट्रीय प्रसारण, दूरदर्शन व आकाशवाणी से भी प्रसारित होता रहा है। विगत माह अक्टूबर 2022 मे इस सांस्कृतिक संस्था द्वारा संस्था का यादगार 55वा स्थापना दिवस मनाया गया था, जिसके मुख्य अतिथि केन्द्रीय संस्कृति राज्यमंत्री अर्जुन राम मेघवाल थे।

 

देश के अनेकों महानगरों, नगरों व कस्बो मे भारत सरकार, राज्य सरकारो व स्थानीय संस्थाओं द्वारा आयोजित उत्सवो व समारोहों मे इस संस्था के गीत-संगीत व लोकगाथाओं के कार्यक्रम, मंचित होते रहे हैं। वर्तमान में ‘पर्वतीय कला केंद्र’ दिल्ली, देश की एक मात्र प्रमुख सांस्कृतिक संस्था है, जो गीतनाट्य मंचन के क्षेत्र मे, अव्वल स्थान रखती है।

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