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हिमालय बचाओ-बसाओ जन चेतना जगाने वाले ऋषिबल्लभ सुंदरियाल की 50वी पुण्य तिथि पर आयोजित संगोष्ठी सम्पन्न

सी एम पपनैं

नई दिल्ली। हिमालयी सरोकारों के चिंतक, गढ़वाल विश्व विद्यालय आंदोलन के स्तंभ और उत्तराखंड राज्य के शिल्पी ऋषिबल्लभ सुंदरियाल की 50वी पुण्यतिथि के अवसर पर ऋषिबल्लभ सुंदरियाल विचार मंच, क्रिएटिव उत्तराखंड, म्यर पहाड़, कुमांऊनी भाषा, साहित्य एवं सांस्कृतिक समिति, अभिव्यक्ति कार्यशाला तथा धूरी फाउंडेशन के सौजन्य से चाणक्य पुरी स्थित प्रतिष्ठित उत्तराखंड सदन में हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ अभियान के तहत “उत्तराखंड के मौजूदा सवाल और उनका समाधान” विषय पर 30 जून को उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारी प्रताप शाही की अध्यक्षता में प्रभावशाली संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

आयोजित संगोष्ठी का श्रीगणेश ऋषिबल्लभ सुंदरियाल व प्रेम सुंदरियाल के चित्रों पर गुलाब की पंखुड़ियां अर्पित कर तथा किरन पंत व रमेश उप्रेती के द्वारा प्रस्तुत उत्तराखंड के जनगीत-
उत्तराखंड मेरी मातृ भूमि, मेरी पितृ भूमि… तेरी जय जय कारा….। से की गई।

आयोजन के इस अवसर पर संगोष्ठी संयोजक चारू तिवारी द्वारा सभागार में उपस्थित उत्तराखंड के विभिन्न राजनैतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक संगठनों से जुड़े पदाधिकारियों, साहित्यकारों, पत्रकारों व सुंदरियाल परिवार से जुड़े परिजनों इत्यादि का स्वागत अभिनन्दन कर अवगत कराया गया, हिमालयी सरोकारों के चिंतक रहे ऋषिबल्लभ सुंदरियाल की पचासवीं पुण्य तिथि आगामी 1 जुलाई व प्रेम सुंदरियाल की पुण्य तिथि आगामी 11 जुलाई के अवसर पर “उत्तराखंड के मौजूदा सवाल और उनका समाधान” विषय पर संगोष्ठी आयोजित कर ऋषिबल्लभ सुंदरियाल को याद करने के साथ-साथ एक कालखंड तथा देश-दुनिया के लोगों के भावों को समझने की कोशिश है।

चारु तिवारी द्वारा अवगत कराया गया, 1924 उत्तराखंड के मझगांव में जन्मे ऋषिबल्लभ सुंदरियाल की बेसिक शिक्षा गांव के स्कूल में व उसके बाद की शिक्षा हरिद्वार में हुई थी। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से उनका जुड़ाव बाल्य काल से ही आरंभ हो गया था। 1951 में वे जनसंघ से जुड़ गए थे। छोटी उम्र में ही वे एक प्रखर वक्ता, कुशल रणनीतिकार व सशक्त विचारधारा के बल राष्ट्रीय पहचान बनाने में सफल रहे थे। देश के तत्कालीन दिग्गज नेता उनके विचारों व जन के प्रति उनकी अपार निष्ठा व भावना को देख प्रभावित रहते थे, उनके आदर्शो के वे अपार प्रशंसक थे।

अवगत कराया गया, 1953 कश्मीर संघर्ष में ऋषिबल्लभ सुंदरियाल को श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ तथा गोवा संघर्ष में मधु लिमए तथा बाद के दिनों में दत्तोपंत ठेंगड़ी इत्यादि इत्यादि जैसे धुरंधरों से जुड़ने का अवसर मिला था। उन्होंने अपने आदर्शो को आगे रख अपनी पूरी जिंदगी हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ जैसे संवेदनशील मुद्दे पर दाव पर लगा कर रखी। हिमालय बचाओ आंदोलन में उनकी सक्रियता व उनके सामाजिक योगदान ने जनमानस के मध्य अमिट छाप छोड़ी थी।

अवगत कराया गया, 1963 में हिमालय बचाओ सम्मेलन आयोजित किया गया था, ऋषिबल्लभ सुंदरियाल ने नारा दिया था ‘हिमालय बचाओ तथा हिमालय के गांव बसाओ’। उनके विचारों व वक्तव्यों ने सबका ध्यान खींचा था। अटल बिहारी वाजपेई, मधु लिमए, दलाई लामा, राम मनोहर लोहिया उनके विचारों के प्रशंसक बन गए थे।

अवगत कराया गया, 1968, 1970 व 1972 में भी इस प्रेरणादाई आंदोलनकारी ने हिमालयी सरकारों के लिए रैलियां की थी। 1970 में किया गया संघर्ष अंचल में उच्च शिक्षा हेतु किया गया था। अंचल की उच्च शिक्षा हेतु किए गए संघर्ष में उनका साथ उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूरी की माता दुर्गा देवी खंडूरी ने दिया था। उत्तराखंड अलग राज्य गठन सोच की दस्तक सबसे पहले ऋषिबल्लभ सुंदरियाल ने ही दी थी।

अवगत कराया गया, ऋषिबल्लभ सुंदरियाल का आलोक बहुत बड़ा था। उन्होंने चुनाव भी लड़े, जीते भी, हारे भी। बलराज मधोक के साथ दूसरी जनसंघ भी बनाई। 1974 में अंचल के तराई क्षेत्र के गन्ना किसानों के लिए भी उन्होंने संघर्ष किया था। अवगत कराया गया, बिजनौर में किसानों के हित में आंदोलन चलाने के दौरान उन्हें थाने में कैद कर रखा गया था, उक्त थाने में ही उनकी मृत्यु हुई। जनमानस द्वारा उनकी मृत्यु पर शंका व्यक्त की गई थी। जनभावना रही उनको मारा गया था। चारु तिवारी द्वारा कहा गया, आज अपने अंचल के आजीवन जुझारु व संघर्षरत रहे नायकों को न जानने की बात कटोचती है। कहा गया, आज हिमालयी अंचल के जंगल, जमीन व नदियां सुरक्षित नहीं हैं। ऋषिबल्लभ सुंदरियाल ने इन्हें ही बचाने के लिए संघर्ष किया था, आंदोलन किए थे, इसीलिए उन्हें आज याद करते हैं।

आयोजित संगोष्ठी के इस अवसर पर खचाखच भरे उत्तराखंड सदन सभा कक्ष में उपस्थित प्रबुद्ध जनों द्वारा अपना-अपना परिचय देकर ऋषिबल्लभ सुंदरियाल के कृतित्व व व्यक्तित्व पर प्रकाश डालने के साथ-साथ “उत्तराखंड के मौजूदा सवाल और उनका समाधान” विषय पर गंभीरता पूर्वक विचार व्यक्त किए गए।

आयोजित संगोष्ठी में प्रमुख रूप से संबंधित ज्वलंत विषय पर विचार व्यक्त करने वाले प्रबुद्ध जनों में रमेश घिल्डियाल, दिनेश मोहन घिन्डियाल, कुसुम कन्डवाल भट्ट, रोहित सुंदरियाल, अजय बिष्ट, मनु पंवार, किरन पंत, मनोज चंदोला, चंद्र मोहन पपनैं, चंदन सिंह गुसाईं, सुनील नेगी, ब्रज मोहन उप्रेती, पवन मैठाणी, भगत सिंह रावत, कमल किशोर भट्ट, ललित प्रसाद ढोंढियाल, उदय ममगाई राठी, देव सिंह रावत, बहादुर सिंह बिष्ट, कुलदीप बिष्ट, मनोज पांडे, महेश उपाध्याय, प्रतिविंब वर्थवाल, विरेंद्र सिंह गुसाई, दिग मोहन नेगी, चंद्र सिंह रावत ‘स्वतंत्र’, शीतल आर्या, डॉ. बिहारी लाल जलंधरी इत्यादि इत्यादि द्वारा विचार व्यक्त कर कहा गया, ऋषिबल्लभ सुंदरियाल भारतीय स्वयं सेवक संघ से जरुर जुड़े हुए थे, लेकिन उनकी विचारधारा समाजवादी थी।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, हिमालय बचाओ आंदोलन की शुरुआत करने वाले राम मनोहर लोहिया थे, ऋषिबल्लभ सुंदरियाल किसानों व मजदूरों से जुड़े आंदोलनकारी थे। आज उन्हें उनके द्वारा किए कार्यों के बल ही याद किया जा रहा है। कहा गया, चीन और भारत का अस्तित्व अगर बचा है तो उसकी वजह हिमालय ही है। हिमालय बचेगा तो देश की संस्कृति बची रहेगी। हिमालय बचाने का संघर्ष लंबे कालखंड से चल रहा है, आज भी चल रहा है, परंतु हित सधता, लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। हिमालय की दुर्गति होती जा रही है। संसाधनों पर बाहरी लोगों का कब्जा हो जाने से अनियंत्रित दोहन कर हिमालयी भू-भाग को विनाश के कगार पर खड़ा किया जा रहा है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, उत्तराखंड राज्य आंदोलन का मकसद था हिमालय बचाया जाए, हिमालयी अंचल के गांव बसाए जाए। वक्ताओं द्वारा कहा गया, नेतृत्वकारियों को आज की राजनीति ने अलग थलग कर दिया है। सामाजिक सौहार्द व चेतना नहीं रह गई है। जरूरत है एक जुट होकर मुक्ति आंदोलन चलाने की। हिमालय को अगर बचाना है तो अंचल के गांवों को बचाना जरूरी हैं। पुरखों की पीढ़ियों से जमी जमाई जायदाद को बचाना जरूरी है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, नशेडी बच्चे कितना हिमालय बचा पाएंगे, सोचा जा सकता है। हर तंत्र में सुधार की जरूरत होती है, कार्य योजना होनी चाहिए। उत्तराखंड राज्य निर्माण पहाड़ी राज्य निर्माण के नाम पर हुआ था। आज भाषणों की जरूरत नहीं, जुनून की जरूरत है। अंचल की बहुत से संगठन व संस्थाएं काम कर रही हैं लेकिन उनका असर होता नहीं दिखाई दे रहा है, क्योंकि हम बटे हुए हैं। संगठित होना जरूरी है। हिमालयी अंचल की प्रकृति को बचाने के लिए स्वयं की व राजनैतिक तुष्टिकरण की नीति से हट कर, कफन बांध कर आन्दोलन करना समय की मांग है।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, उत्तराखंड अलग राज्य गठन के बाद राज्य का विकास जरुर हुआ है, लेकिन गांव खाली हो गए हैं। जंगली जानवरों के आतंक से अंचल की खेती-किसानी चौपट हो गई है। काश्तकार घोर निराशा की ओर बढ़ गए हैं, पलायन करने को बाध्य हैं।

वक्ताओं द्वारा कहा गया, आधारभूत मूल समस्याएं आज भी यथावत हैं। दोष हमारा ही है, प्रवास में रह कर गांव से जुड़ना नहीं चाहते हैं। सोच में परिवर्तन आ गया है। फिल्में कुमाऊं, गढ़वाल की मूल समस्याओं से हट कर मनोरंजन के लिए बन रही हैं। चारधाम यात्रा अभिशाप के रूप में उभर रही है। जमीन बेच कर लीज पर दी जा रही है। विकास अंचल का नहीं नेताओं का हो रहा है।

वक्ताओं द्वारा गंभीरता पूर्वक कहा गया, विकास के साथ विकास योजनाओं पर बात करनी होगी। दूरदर्शी भावों को लेकर हिमालय बचाने व हिमालयी गांव बसाने के लिए नीति नियोजन करना बहुत जरूरी है। हिमालय व हिमालयी अंचल का निरंतर विघटन होते रहने से देश बहुत गहरे संकट की ओर बढ़ जायेगा। दूरदर्शिता इसी में है, हिमालय बचाओ, हिमालय बसाओ।

आयोजन के इस अवसर पर वक्ताओ द्वारा प्रेम सुंदरियाल को भी याद कर श्रद्धा सुमन अर्पित किए गए। आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे प्रताप शाही द्वारा ऋषिबल्लभ सुंदरियाल को एक प्रेरणादाई विभूति कहा गया, उनके संघर्ष को याद कर वर्तमान पीढ़ी को हिमालयी सरोकारों के प्रति सजग रहने की बात पर बल दिया गया।

ऋषिबल्लभ सुंदरियाल की 50वी पुण्य तिथि पर आयोजित संगोष्ठी का समापन सामूहिक रूप से गाए दो जनगीतों को गाकर किया गया-
(1)
बैठकों में हल टके हैं, बल हमारे गांव में।
बस पधानों के मजे हैं, बल हमारे गांव में।
कैसे कह दूं किलकारियों की गूंज है..
दादा दादी रह गए हैं, बल हमारे गांव में।
अब नहीं सुनाई देती कूक कोयल की वहां..
पास के जंगल जले हैं, बल हमारे गांव में।
बैठ कर बस में जवानी, शहर को जाने लगी।
गांव सड़कों से जुड़े हैं, बल हमारे गांव में।
जंगलों को छूना मना है, बल हमारे गांव में।
बाघ के पहरे लगे हैं, बल हमारे गांव में।
(2)
ततुक नि लगा उदेख, घुनन मुनई नि टेक।
जैंता एक दिन तो आलो, उ दिन यो दुनी में।
जो दिन नान ठुलो नि रौलो, जो दिन त्यौर म्यौर नि हौल, जैंता…।
चाहे हम नि ल्यै संकू, चाहे तुम नि ल्यै सको,
मगर क्वे न क्वे त ल्यालो उ दिन यो दुनी में।
जैंता एक दिन तो आलो, उ दिन यो दुनी में।

हिमालयी सरोकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने वाली चार घंटे तक चलायमान प्रभावशाली संगोष्ठी का मंच संचालन नीरज बवाड़ी द्वारा बखूबी किया गया।

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