शक्तिकांत दास – अस्थिरता के माहौल में मजबूती से थामे रहे रिजर्व बैंक की कमान
लेखक -महाबीर सिंह
छह साल तक भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे शक्तिकांत दास 10 दिसंबर 2024 को पद से मुक्त हो गये। इसके साथ ही लंबे समय तक रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे कुछ गिने चुने नामों में उनका नाम भी शामिल हो गया। उनके स्थान पर वित्त मंत्रालय में राजस्व सचिव रहे संजय मल्होत्रा को रिजर्व बैंक का 26वां गवर्नर नियुक्त किया गया है। लेकिन मैं आज यहां बात करना चाहता हूं शक्तिकांत दास कि जो कि छह साल तक रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे और अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने गंभीर चुनौतियों का बखूबी सामना करते हुये रिजर्व बैंक की कमान थामे रखी। उन्होंने रिजर्व बैंक को मजबूती देते हुये विश्वास का माहौल बनाया। उनके कार्यकाल में रिजर्व बैंक ने 2023-24 के दौरान सरकार को दो लाख करोड़ रूपये से अधिक का लाभांश दिया। वित्त वर्ष 2018-19 से लेकर 2023-24 तक रिजर्व बैंक ने कुल मिलाकर 6.61 लाख करोड़ रूपये का सरकारी खजाने में योगदान किया।
हालांकि, मुद्रास्फीति पर नियंत्रण को लेकर शक्तिकांत दास की लड़ाई उनके कार्यकाल के आखिरी समय तक जारी रही। महंगाई को काबू करने के लिये उनकी अध्यक्षता में मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर को चार प्रतिशत से बढ़ाते हुये 6.50 प्रतिशत तक पहुंचा दिया लेकिन पिछले छह सालों के दौरान खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर तमाम उतार-चढ़ाव के बावजूद अक्टूबर 2024 में 6.21 प्रतिशत पर पहुंचने के बाद नवंबर 2024 में कुछ कम होकर 5.48 प्रतिशत रही। यह आंकड़ा महंगाई को 4 प्रतिशत के आसपास रखने के संतोषजनक स्तर से काफी उपर है। कोविड महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध और उसके बाद इस्ररायल और हमास के बीच जारी लड़ाई ने रिजर्व बैंक के समक्ष लगातार चुनौतियां खड़ी कीं हैं। इस दौरान दास के नेतृत्व में रिजर्व बैंक ने वृहद आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के लिये परंपरागत और गैर- परंपरागत सभी तरह के नीतिगत कदम उठाये। शक्तिकांत दास के कार्यकाल में ही सितंबर 2024 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब तक के सर्वोच्च स्तर 704.89 अरब डालर तक पहुंच गया। हालांकि, इसके बाद इसमें कुछ कमी आई है।
रिजर्व बैंक गवर्नर के तौर पर शक्तिकांत दास को इसलिये भी याद किया जायेगा कि उन्होंने 2020-21 और 2021-22 में जब कोरोना महामारी के कारण कई देशों की अर्थव्यवस्था संकट में थी तब उन्होंने केन्द्र सरकार के साथ कदम से कदम मिलाते हुये वित्तीय स्थिति को संभाला और राज्यों को भी वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराये। कोरोना काल में जब लाॅकडाउन में लोग महीनों घरों में बंद रहे, आर्थिक गतिविधियां करीब करीब ठप्प पड़ गई थी और राज्यों के खजाने सूखने लगे थे तब केन्द्र सरकार के सहयोग से रिजर्व बैंक ने राज्यों की वित्तीय स्थिति संभालने का भी काम किया।
रिजर्व बैंक केन्द्र सरकार का बैंक होने के साथ ही देश में काम कर रहे सभी वाणिज्यिक बैंकों का नियामक भी है। बैंकों को लाइसेंस देने के अलावा वह उनके कामकाज पर नजर भी रखता है। इसके साथ ही मौद्रिक नीति, मुद्रा प्रसार, मुद्रा मुद्रण और विदेशी मुद्रा प्रबंधन भी करता है। वह आर्थिक वृद्धि और महंगाई पर नजर रखता है और दोनों के बीच संतुलन रखने का प्रयास करता है। शक्तिकांत दास के छह साल के कार्यकाल के दौरान सरकारी क्षेत्र के बैंकों की वित्तीय स्थिति में काफी सुधार आया। हालांकि, इसमें केन्द्र सरकार की नीतियों की भी बड़ी भूमिका रही तभी यह संभव हो पाया। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कर्ज में फंसी राशि जिसे वित्तीय भाषा में गैर-निष्पादित राशि (एनपीए) कहा जाता है, पिछले छह साल में 14.5 प्रतिशत की उंचाई से घटकर सितंबर 2024 में 3 प्रतिशत के आसपास रह गई। यही नहीं वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का कुल मुनाफा 1.41 लाख करोड़ रूपये तक पहुंच गया जो कि अब तक का रिकार्ड है। इन बैंकों ने पिछले तीन साल के दौरान अपने शेयरधारकों को 61,964 करोड़ रूप्ये का लाभांश भी दिया।
शक्तिकांत दास के वित्त मंत्रालय में आर्थिक मामलों के सचिव पद पर रहते हुये ही नरेन्द्र मोदी सरकार ने नोटबंदी जैसा बड़ा निर्णय लिया। नोटबंदी के दौरान उन्होंने जनता की परेशानियों को समझते हुये खुद मोर्चा संभाला और नकदी की तंगी दूर करने के उपाय किये। नोटबंदी से कालेधन को समाप्त करने में कितनी सफलता मिली और कितनी नहीं मैं यहां इसकी बात नहीं कर रहा बल्कि मैं बात कर रहा हूं कि भारत जैसे बड़ी जनसंख्या वाले देश में 500 और 1,000 रूपये के उस समय प्रचलन में जारी नोटों को एक झटके में बंद कर उसके स्थान पर 500 और 2,000 रूपये का नया नोट व्यवस्था में लाना कोई छोटा काम नहीं था। उर्जित पटेल उस समय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। वह सितंबर 2016 से 10 दिसंबर 2018 तक गवर्नर रहे। उन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुये तय समय से पहले ही गवर्नर पद से इस्तीफा दिया। उनसे पहले रघुराम राजन आरबीआई गवर्नर थे।
उर्जित पटेल के जाने के बाद मोदी सरकार ने शक्तिकांत दास को रिजर्व बैंक का गर्वनर नियुक्त किया। उन्होंने दिसंबर 2018 में ऐसे समय रिजर्व बैंक की जिम्मेदारी संभाली जब वहां एक प्रकार से अस्थिरता का माहौल था। तब उन्हें पहले तीन साल के लिये आरबीआई का गवर्नर नियुक्त किया गया, उसके बाद 2021 में उनका कार्यकाल तीन साल और बढ़ाया गया। शक्तिकांत दास ने न केवल रिजर्व बैंक को मजबूत बनाया बल्कि छह साल इस संस्थान के शीर्ष पद पर रहकर अपने आलोचकों को भी एक प्रकार से करारा जवाब दिया। शक्तिकांत दास इतिहास में स्नात्तकोत्तर हैं, यही वजह है कि जब उन्हें नरेन्द्र मोदी सरकार ने रिजर्व बैंक के गवर्नर की जिम्मेदारी सौंपी तब कई राजनीतिज्ञों, विशेषज्ञों ने मोदी सरकार के इस निर्णय को लेकर हैरानी जताई उसका उपहास उड़ाया। लेकिन शक्तिकांत दास ने अपनी कार्यकुशलता और कुशाग्र बुद्धि के बल पर आलोचकों के मुंह पर ताला लगा दिया। अब जब वह रिजर्व बैंक गवर्नर के पद से मुक्त हुये तो उनके आलोचक भी उनकी प्रशंसा कर रहे हैं।
वर्ष 1957 में भुवनेश्वर में जन्में शक्तिकांत दास 1980 बैच के भारतीय प्रशासनिक सेवा के तमिलनाडु कैडर के अधिकारी रहे हैं। आईएएस अधिकारी के तौर पर उन्होंने तमिलनाडु सरकार के अलावा केन्द्र सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। देश में माल एवं सेवाकर यानी जीएसटी व्यवस्था लागू करने में राज्यों के साथ समन्वय स्थापित करने में भी शक्तिकांत दास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रिजर्व बैंक से अपनी विदाई के दिन संबोधन में शक्तिकांत दास ने अप्रत्याशित वैश्विक उठापटक के बीच चीजों को सफलता के साथ आगे बढ़ाने के लिये रिजर्व बैंक की पूरी टीम को ‘‘बिग थेंक्यू’’ कहा। उन्होंने सभी को भविष्य के लिये शुभकामना देते हुये रिजर्व बैंक के एक भरोसे और विश्वसनीयता वाले संस्थान के तौर पर और आगे बढ़ने की कामना की। विदेशी मुद्रा की तंगी के चलते जब कई देशों में हाहाकार मचा ऐसे संकटकाल में रिजर्व बैंक की कमान मजबूती से थामे रखने के लिये शक्तिकांत दास को हमारा भी सल्यूट करने का दिल करता है।