लोहार गढ़िया हमारे समाज का एक बहुत हुनरमंद हिस्सा है
रिपोर्ट खुशी शर्मा । लोहार गढ़िया यह घुमंतू जनजाति दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में रोड किनारे टेंट का घर बनाकर रहते है। लोहार गढ़िया हमारे समाज का एक बहुत हुनरमंद हिस्सा है। किंतु जो आज तक ठीक तरह से उभर कर सामने नहीं आ पाया है। यह पेशे से लोहार होते हैं और लोहे से बनने वाली चीजों का उत्पादन करते हैं।किंतु इसके बावजूद भी इन्हें अपने बच्चों व आगे आने वाली पीढ़ी के भविष्य की चिंता है। इन्हें डर है कि कहीं उनके बच्चे भी इन्हीं की तरह झोपड़ियों में , बहुत कम आय के साथ और कोयले की तपन सह सह कर ही ना मर जाए।
इसीलिए वह अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित कराना चाहते हैं ताकि उनके बच्चे भी विकास कर सके, क्योंकि उन्हें डर है की यदि बच्चों को अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं हुई तो उनके बच्चों को भी अपना पालन पोषण वही काम करके करना पड़ेगा जो पुरातन युग से हम करते आ रहे हैं।
और लोहार गड़ियों के समाज के बारे में एक और बहुत रोचक बात है कि इनकी प्रतिज्ञा कि कभी छत के नीचे अपना बसेरा नहीं बसाएंगे ,खाट पर नहीं सोएंगे, दीया नहीं जलाएंगे आदि और ऐसे निर्णयों का कारण है इनका वचन महाराणा प्रताप के प्रति।
इनकी प्रतिज्ञा के पीछे एक बड़ी रोचक कहानी सांस ले रही है कि चित्तौड़गढ़ के राजा महाराणा प्रताप थे जिनके यहां यह समुदाय लोहे के उपकरण बनाने का काम करता थे।किंतु जब मुगलों के आक्रमण के बाद महाराणा प्रताप को किला छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा तो गड़िया लोहारो वे भी उनके साथ निकल गए और उन्होंने शपथ ली वे फिर कभी चित्तौड़ के किले में नहीं जाएंगे
किंतु अब इतने वर्षों के पश्चात इस समाज को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अब इस प्रतिज्ञा को तोड़ने का समय आ गया है और इससे आगे बढ़कर अपने बच्चों आगे आने वाली पीढ़ी के विकास पर ध्यान देने की आवश्यकता है क्योंकि आज का युग शिक्षा का है, और इनके अनुसार यदि एक पुरानी प्रतिज्ञा को तोड़ा जाएगा तो पूर्वज नाराज नहीं होंगे बल्कि आशीष देते हैं।