मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट, क्या दिखेगी गठबंधन की मजबूरी
लेखक———(महाबीर सिंह वरिष्ठ पत्रकार)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगातार तीसरी बार केन्द्र सरकार ने कामकाज शुरू कर दिया है। वित्त मंत्रालय का कार्यभार एक बार फिर से निर्मला सीतारमण को दिया गया है और उन्होंने कार्यभार ग्रहण करते ही बजट की तैयारियां शुरू कर दी। इससे पहले एक फरवरी 2024 को सीतारमण ने 2024-25 का अंतरिम बजट पेश किया था और जैसे ही नई सरकार बनी वह चालू वित्त वर्ष का पूर्ण बजट पेश करने की तैयारियों में जुट गईं। संसद का बजट सत्र 22 जुलाई से शुरू होने जा रहा है, उसी दिन आर्थिक समीक्षा संसद के पटल पर रखी जायेगी और 23 जुलाई को बजट पेश किया जायेगा।
पिछले सप्ताह ही जाने माने अर्थशास्त्रियों की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बजट पूर्व बैठक हुई। इस बैठक को बजट तैयारियों के सिलसिले में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अर्थशास्त्रियों ने सरकार को इंटरमीडिएट सामान पर आयात शुल्क कम करने और ब्याज दरों को नीचे लाने का सुझाव दिया ताकि घरेलू स्तर पर विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिल सके। उन्होंने पूंजीगत व्यय बढ़ाने और महंगाई को काबू में रखने का भी सुझाव दिया ताकि मांग प्रभावित नहीं हो। हालांकि, यह माना जा रहा है कि बजट में सरकार अपने दो प्रमुख सहयोगी दलों तेलुगू देशम और जनता दल (यूनाइटेड) की मांगों को देखते हुये कोई कदम उठा सकती है। जिस प्रकार की रिपोर्टें आ रही हैं उनके मुताबिक आंध्र प्रदेश में एक बड़ी रिफाइनरी और पेट्रो रसायन परिसर बनाने की घोषणा बजट में की जा सकती है, वहीं बिहार के लिये भी विशेष पैकेज सहित किसी न किसी बड़ी योजना की घोषणा बजट में हो सकती है, जिससे कि इन राज्यों में विकास तेज हो और रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिल सके।
आगे बढ़ने से पहले अंतरिम बजट पर एक नजर डालते हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की समाप्ति के समय एक फरवरी 2024 को कुल 47.66 लाख करोड़ रूपये का अंतरिम बजट पेश किया गया। इससे पिछले वित्त वर्ष में 45 लाख करोड और उससे पिछले साल करीब 42 लाख करोड़ रूपये का बजट था। पूंजीगत व्यय की बात करें तो, सरकार ने पिछले कुछ बजटों में पूंजी व्यय
में काफी वृद्धि की है। जब पहली बार नरेन्द्र मोदी की सरकार ने सत्ता संभाली थी तब जुलाई 2014 में जो पहला पूर्ण बजट पेश किया गया उसमें कुल पूंजी व्यय दो लाख 26 हजार 781 करोड़ रूपये रहा था। तब बजट का आकार 17 लाख 94 हजार 892 करोड़ रूपये था। वहीं, वर्ष 2023-24 के बजट में पूंजीगत व्यय को पहली बार दस लाख करोड़ रूपये पर पहुंचा दिया गया। फरवरी में पेश अंतरिम बजट में इसे और बढ़ाकर 11.11 लाख करोड़ रूपये कर दिया गया। वहीं बजट का आकार भी इस दौरान 47.66 लाख करोड़ रूपये तक पहुंच गया।
अब देश में लागू मौजूदा आयकर दरों की बात करते हैं। व्यक्तिगत आयकर की दो प्रणालियां चल रहीं हैं। पुरानी चली आ रही प्रणाली में ढाई लाख रूपये सालाना की आय कर मुक्त है। ढाई से पांच लाख रूपये पर पांच प्रतिशत, पांच लाख से दस लाख तक की आय पर 20 और दस लाख रूपये सालाना से उपर की आय पर 30 प्रतिशत की दर से कर देय है। वहीं 60 से 80 वर्ष तक के वरिष्ठ नागरिकों की तीन लाख रूपये तक की वार्षिक आय कर मुक्त है जबकि 80 वर्ष के बुजुगों की पांच लाख रूपये तक की आय को कर मुक्त रखा गया है। इसके उपर वही 20 और 30 प्रतिशत की दर से कर देय है। वर्ष 2020 में नई वैकल्पिक कर प्रणाली शुरू की गई। तब इसमें छह स्लैब थे जिन्हें पिछले बजट में घटाकर पांच कर दिया गया। यह सभी आयु वर्ग के लिये समान रूप से लागू है। इसमें तीन लाख रूपये तक की आय करमुक्त, तीन से छह लाख रूपये पर पांच प्रतिशत, छह लाख से नौ लाख रूपये पर 10 प्रतिशत, नो लाख से 12 लाख रूपये पर 15 प्रतिशत और 12 से 15 लाख रूपये की वार्षिक आय पर 20 प्रतिशत, वहीं 15 लाख रूपये से अधिक की आय पर 30 प्रतिशत की दर से आयकर है। पुरानी कर प्रणाली में तमाम तरह की छूट जैसे डेढ़ लाख रूप्ये तक के निवेश पर कर छूट, मकान के किराये पर छूट, आवास रिण के ब्याज पर कर छूट तथा अन्य कई तरह की छूट लागू हैं। सामान्य तौर पर इसमें पांच लाख रूपये तक की सालाना आय पर कर नहीं लगता है, जबकि 2023-24 के बजट में वित्त मंत्री ने नई कर प्रणाली के तहत सात लाख रूपये तक की व्यक्तिगत आय को कर मुक्त रखने की घोषणा की। स्लैब को छह से घटाकर पांच कर दिया और तीन लाख तक की आय को करमुक्त रखा गया। इसमें 50 हजार रूपये की मानक कटौती भी शुरू कर दी गई जबकि पारिवारिक पेशनधारकों के लिये 15 हजार रूपये की मानक कटौती लागू की गई। वास्तव में सरकार नई कर प्रणाली को ही बढ़ावा देना चाहती है, नई प्रणाली में कर की दरें अपेक्षाकृत कम हैं लेकिन इसमें विभिन्न प्रकार की कर छूट नहीं मिलतीं है।
व्यक्तिगत आयकर पर लगने वाले अधिभार की सबसे उंची दर को भी 37 से घटाकर 25 प्रतिशत कर दिया गया। खुदरा व्यवसायों के लिये अनुमानित कराधान की सीमा को दो करोड़ से बढ़ाकर तीन करोड़ रूपये और पेशेवरों के लिये 50 लाख से बढ़ाकर 75 लाख रूपये कर दिया गया। वहीं मोदी सरकार का दावा है कि उसने कंपनी कर की दर को 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत कर दिया। जबकि विनिर्माण क्षेत्र में आने वाली नई कंपनियों के लिये उसने 15 प्रतिशत की दर रखी है।
इन सब के बीच देश का एक बड़ा मध्यम वर्ग है जो कि मौजूदा स्थिति में कहीं न कहीं मायूसी से घिरा है। उसे लगता है कि उसके लिये सरकार के खजाने में कहीं कोई राहत नहीं है। यह सही है कि करदाता देश के आर्थिक विकास में योगदान करता है। उसे इस पर गर्व होना चाहिये, वह देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में महत्वपूर्ण भागीदार है। लेकिन आम करदाता का मानना है कि कहीं न कहीं उसे भी राहत मिलनी चाहिये। एक सुझाव यह भी है कि नई कर प्रणाली में 30 प्रतिशत की सबसे उंची दर को 15 लाख रूपये से अधिक की आय के बजाय 25 लाख रूपये वार्षिक से अधिक की आय पर लगाया जाना चाहिये। इससे विभिन्न आय वर्ग में कर दरों को और अधिक तर्कसंगत बनाया जा सकेगा।