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‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ का वार्षिक आयोजन संपन्न 

सी एम पपनैं

 

नई दिल्ली। उत्तराखंड के प्रबुद्घ प्रवासियों द्वारा दिल्ली एनसीआर में वर्ष 1987 में गठित सामाजिक व सांस्कृतिक संस्था ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ द्वारा आयोजित 18 और 19 अक्तूबर की सायं मंडी हाउस स्थित एलटीजी सभागार में भव्य वार्षिक आयोजन ‘आवाहन-2024’ संपन्न हुआ।

 

वार्षिक आयोजन के इस अवसर पर 18 अक्टूबर की सायं पहाड़ी सोल से जुड़े संगीतकार राकेश भारद्वाज ‘राही’ के संगीत निर्देशन में उत्तराखंड अंचल के सदाबहार लोकगीतों की प्रस्तुति ‘लोक के रंग फ्यूजन के संग’ में उत्तराखंड के युवा गायकों में प्रमुख सौरभ मैठाणी, सत्यम तेजवान, उषा पांडे, दीपा पंत तथा भुवन रावत द्वारा अंचल के लोकगीत प्रस्तुत किए गए।

वार्षिक आयोजन की दूसरी सायं 19 अक्टूबर को ‘भाव राग ताल नाट्य अकादमी’, पिथौरौरागढ़ द्वारा मंचित नाटक ‘बाघैन’ तथा ‘संभव परिवार मंच’, देहरादून द्वारा मंचित एकांकी नाटक ‘फट जा पंचधार’ का मंचन क्रमशः युवा नाट्य निर्देशक कैलाश कुमार तथा अभिषेक मेंदोला के निर्देशन में मंचित किए गए।

दो दिनी वार्षिक आयोजन ‘आवाहन-2024’ का श्रीगणेश मुख्य अतिथियों में प्रमुख चंद्र सिंह दासपा, संजय गर्ग, टी सी उप्रेती, डॉ.हरि सुमन बिष्ट, सुशीला रावत, बिट्टू उप्रेती, संजय जोशी, संस्था महासचिव मनोज चंदोला द्वारा गूंज रहे ढोल व दमाऊ की गूंज के मध्य दीप प्रज्वलन की रश्म अदायगी तथा ‘फोक फ्यूजन’ के तहत रमेश उप्रेती और किरण पंत की अगुवाई वाले सांस्कृतिक ग्रुप ‘पंखारू’ द्वारा शुभ मांगल समूह गीतों के गायन के साथ किया गया। तत्पश्चात उत्तराखंड अंचल के अनेकों सुप्रसिद्ध सदाबहार लोकगीतों को ‘फोक फ्यूजन’ के तहत प्रस्तुत किया गया। खचाखच भरे सभागार में बैठे श्रोताओं खास कर युवा प्रवासी पीढ़ी को प्रस्तुत गीतों ने अति प्रभावित किया। युवा लोककर्मी भुवन रावत द्वारा ठेठ पहाड़ी अंदाज में गाई न्यौली-

बरखा लागी अरखा-गरखा,

पाख थन्यारि रुवींछौ ,

जैकौ सुवा परदेशा,

विकी सुवा वैं छौ…..।

 

छपेली-

गोपुली गोपुली बौराणि गोपुली,

बिनसर नि जाये धुरा,

गोपुली त्यर धुरा जाणलै गोपुली,

गोपुली,म्यर पराणि झुरा….।

ने खचाखच भरे सभागार में बैठे सभी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध किया, तालियों की गड़गड़ाहट कर सभागार को गुंजायमान किया। इस आंचलिक लोकगायक के लोकगायन ने श्रोताओं पर गहरी छाप छोड़ी।

वार्षिक आयोजन के इस अवसर पर ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ द्वारा मुख्य अतिथियों में प्रमुख रमा उप्रेती, प्रेम बहुखंडी, हेम पन्त, चंद्र सिंह दासपा तथा संस्था अध्यक्ष टी सी उप्रेती तथा उपाध्यक्ष आदित्य कश्यप के कर कमलों आंचलिक और भारतीय रंगमंच में विगत दो वर्षों में प्रतिष्ठित संगीत नाटक अकादमी सम्मान प्राप्त रंगकर्मियों में प्रमुख जहूर आलम, राकेश भट्ट, कैलाश कुमार तथा भूपेश जोशी को शाल ओढ़ा कर व स्मृति चिह्न प्रदान कर ‘अभिव्यक्ति गौरव सम्मान 2024’ से सम्मानित किया गया। शास्त्रीय गायन-नृत्य और लोक नृत्य नाटिकाओं में प्रभावशाली भूमिका निभाते वाले जगदीश ढौंडियाल को विशेष रूप से सम्मानित किया गया।

वार्षिक आयोजन ‘आवाहन-2024’ के भव्य आयोजन के अंतर्गत पहले दिन पहाड़ी सोल से जुड़े संगीतकार राकेश भारद्वाज ‘राही’ के संगीत निर्देशन में उत्तराखंड के सदा बहार लोक गीतों की प्रस्तुति ‘लोक के रंग फ्यूजन के संग’ के अंतर्गत प्रस्तुत आंचलिक लोकगीतों में-

 

1- उत्तराखंड मेरी मातृभूमि….। 2- घुघुति नि बासा….। 3- रंगीली बिंदी घाघरी काई….। 4- जरा माठु चला दे…। 5- हे दीदी, हे भूलू, हे ब्वारी…। 6- गाड़ो गुलोबंदा….। 7- ये दर्जी दीदा… 8- लौंडा चन्दना…। 9- जय हो बद्री विशाल….। 10- भाना रे रंगीली भाना….। 11- मोहना तू बैठी रैछे मय्यार दिल मा..। 12- धम धमा हुड़की बाजी…। 13- हाय तेरी रुमाला…। 14- रुपसा रमौली घुंघुर नि बजा…। 15- ओ लाली ओ लाली…। 16- चैता को चैत्याला…। 17- बेडू पाको…। इत्यादि इत्यादि लोकगीतों ने श्रोताओं के मध्य संगीत की अनियंत्रित गूंजती धुनों द्वारा समा बांधने की कोशिश की गई।

आयोजिक कार्यक्रम संगीतकार राकेश भारद्वाज ‘राही’ द्वारा इस अवसर पर कहा गया, उत्तराखंड के लोकगायकों में अब लोकगायन की पारंपरिक विधा लगभग समाप्त हो चुकी है। दो चार लोकगायक हैं जिनके लोकगायन में गायकी का वह पुराना अंदाज व ठेठ गायन शैली बची हुई है। अंचल के आज के युवाओं की चाहत भी बदल चुकी है, इसीलिए उन्होंने फोक फ्यूजन पर कार्य करना आरम्भ किया है। आज की युवा पीढ़ी इस विधा को बहुत पसंद कर रही है। याद रहे राकेश भारद्वाज ‘राही’ उत्तराखंड के सुविख्यात लोकगायक चंद्र सिंह राही के पुत्र हैं। गायन विधा के क्षेत्र में राकेश भारद्वाज ‘राही’ राही परिवार की चौथी पीढ़ी से ताल्लुख रखते हैं जो अंचल की पारंपरिक गायन व संगीत की विधा को पश्चिमी गायन व संगीत में तब्दील कर अपनी पहचान बनाने में जुटे हुए हैं। धीरे धीरे सफलता के मुकाम पर चढ़ते नजर आ रहे हैं।

 

वार्षिक आयोजन की दूसरी सायं 19 अक्टूबर को पहला नाटक युवा नाट्य निर्देशक कैलाश कुमार के निर्देशन में ‘भाव राग ताल नाट्य अकादमी’, पिथौरौरागढ़ के बैनर पर मंचित किया गया।

 

‘बाघैन’ नामक मंचित नाटक उत्तराखंड पहाड़ी अंचल की पृष्ठभूमि पर नवीन जोशी द्वारा रचित तथा प्रीति रावत द्वारा नाट्य रूपांतरित किया गया नाटक है। मंचित नाटक में नाटक की कहानी नाटक के मुख्य पात्र सेना के सेवा निवृत बुजुर्ग सिपाही आनंद सिंह के इर्द गिर्द घूमती नजर आती है।

 

आनंद सिंह का मल्ला-सेरा अपने गांव की मिट्टी से अथाह प्रेम है। वह अपने गांव में मनुष्य के तौर पर अपने पालतू शेरू नामक कुत्ते के साथ जीवन व्यतीत करता नजर आता है। सेना का यह सेवा निवृत सैनिक कर्तव्य निष्ठ है। आत्मनिर्भरता से परिपूर्ण है। नियमों, कानूनों को तरजीह देने वाला कर्मठ व्यक्ति है।

 

गांव में एकांत जीवन व्यतीत कर रहे इस बुजुर्ग आनंद सिंह की यादों में उसकी पत्नी और उसके गांव के पुराने साथी सोते उठते हमेशा याद आते जाते रहते हैं। पूरे गांव में अकेले जीवन व्यतीत कर रहे आनंद सिंह को उसकी बेटी आग्रह कर शहर ले जाना चाहती है, आनंद सिंह किसी तरह बात मान कुछ दिन शहर जाने के लिए तैयार भी हो जाता है, लेकिन कुछ अड़चनों से यह संभव नहीं हो पाता है। बेटी और पिता का भावुक रिश्ता पुरानी यादें मंचित नाटक को मार्मिकता की ओर बढ़ा श्रोताओं को झकझोरने और सिसकने वाली स्थिति की ओर ले जाने में सफल होता नजर आता है।

 

मंचित नाटक में उत्तराखंड राज्य गठन के मूल उद्देश्यों, विकास के मुद्दे, शिक्षा, बेरोजगारी, लादी जा रही विनाशकारी नीतियों, लंगूर, बंदर, सुअर बाघ इत्यादि के भयावह डर के साथ-साथ अन्य अनेकों मूलभूत समस्याओं और मुद्दों पर भी नाटक के मर्मस्पर्शी संवादों के माध्यम से ध्यान आकर्षित करने का सटीक प्रयास किया गया है, जो मंचित नाटक की महत्ता को बढ़ाता नजर आता है।

 

मंचित नाटक में पिरोए गए कोरस लोगों की भावनाओं को छूते नजर आते हैं। पिरोया गया संगीत नाटक के अनुकूल था। नाटक को एडिट कर नाटक का समय कम कर और अधिक प्रभावी बनाया जा सकता था। व्यक्त संवादों में गति का अभाव दृष्टिगत था। युवा निर्देशक कैलाश कुमार द्वारा नाटक को एक ऊंचाई तक ले जाने का सफल प्रयास आंका जा सकता है। सूबेदार आनंद सिंह की भूमिका में दीपक मंडल, गोबिंदी प्रीति रावत, सोबन सिंह तथा लक्ष्मण सिंह की भूमिका में सुनील उप्रेती ने अपने अभिनय व व्यक्त संवादों से दर्शको को प्रभावित किया।

 

मंचित दूसरा एकांकी नाटक ‘फट जा पंचधार’ हिंदी के सुप्रसिद्ध कहानीकार विद्यासागर नौटियाल की कहानी पर आधारित था। मंचित एकल प्रस्तुति को ‘संभव’ नाट्य संस्था देहरादून द्वारा मंचित किया गया था। जिसमें रंगमंच की एक सुपरिचित युवा रंगकर्मी व सुपरिचित अदाकारा कुसुम पंत द्वारा अति प्रभावशाली व यादगार भूमिका का निर्वाह कर मंचित नाटक को ऊंचाई प्रदान की गई। श्रोताओं को अपने अभिनय व व्यक्त संवादों से कुसुम पंत द्वारा हतप्रभ किया गया, यादगार छाप छोड़ी गई।

 

मंचित एकांकी नाटक में केन्द्रीय पात्र ‘रक्खी’ नामक एक युवती है। जिसका पूरा जीवन त्याग, प्रेम, बलिदान, शोषण, उत्पीड़न उपेक्षा, तिरस्कार, घृणा के अनेक धरातलों से गुजरता है। आखिर में एक अंधी अंधेरी गुफा के मुहाने पर खत्म होने की कगार पर आकर मार्मिक चीत्कार, झुंझलाहट, दहाड़ व आर्तनाद का रूप ले लेता है। और फूटता है, उस विशेष स्थान पर जिसे पंचधार के नाम से जाना जाता है। इस जगह पर पंच गांव की सीमा मिलती है। जहां सदियों से दोहरे मापदंड, खोखली मानसिकता, गिरते जीवन मूल्यों, नारी दोहन, दलित उत्पीड़न की दुर्गधंमय जलवायु वातावरण को दूषित करती आ रही है। अस्वीकार्य व्यवस्थाओं के रहते मानवीय संवेदनाओं के कपाट जहां पर खुलते ही नहीं। ‘रक्खी’ के लिए जब सब कुछ सहना असहनीय हो जाता है तो वो एक ऐसे भूकंप, प्राकृतिक आपदा का आह्वान करती है, चिल्ला-चिल्ला कर उन पापी मान्यताओं को श्राप देती है कि यह पंच धार नामक स्थान दुनिया के नक्शे से सदा के लिए मिट जाय ताकि फिर किसी ‘रक्खी’ का जीवन बर्बाद न हो पाए। नारी जीवन के दर्शन की पड़ताल करता यह एक दुःखांत चित्रण करता नाटक है, ‘फट जा पंचधार’।

 

आयोजक ‘अभिव्यक्ति कार्यशाला’ द्वारा मंचित दोनों नाटकों के निर्देशकों को संस्था अध्यक्ष टी सी उप्रेती के कर कमलों स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। आयोजक संस्था द्वारा अयोजित ‘आवाहन 2023-2024’ जो एक लोक उत्सव के तहत उत्तराखंड अंचल की लोक विद्याओं को सहेजने का एक दो दिनी आयोजन था, एक सफल उद्देश्यपूर्ण आयोजन कहा जा सकता है। आयोजित आयोजन का मंच संचालन चारू तिवारी, मनोज चंदोला तथा लक्ष्मी रावत द्वारा बखूबी प्रभावशाली अंदाज में किया गया।

 

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