हिमालय बचाओ-गंगा बचाओ’ के संवेदनशील मुद्दे पर बढ़ाया गया कदम
सी एम पपनैं
नई दिल्ली। वैश्विक हिमालय संगठन (आह्वान) बैनर तले ‘हिमालय बचाओ-गंगा बचाओ’ के संवेदनशील मुद्दे पर 11 अगस्त दिन में उत्तराखंड सदन चाणक्य पुरी में ‘भविष्य की चुनौतियां और हमारी भूमिका’ विषय पर उत्तराखंड के प्रमुख प्रबुद्ध प्रवासी जनों के मध्य गहन विचार विमर्श किया गया। उत्तराखंड टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय के सानिध्य तथा अक्षरधाम दिल्ली प्रमुख कोठारी मुनि वत्सल स्वामी जी की प्रभावी उपस्थिति में हिमालय और गंगा के अस्तित्व से जुड़े संवेदन शील मुद्दे पर व्यापक चिंतन मनन करने हेतु उपस्थित करीब एक सौ प्रबुद्ध जनों के मध्य में से सैंतीस चिंतकों द्वारा उक्त विषय पर विचार व्यक्त किए गए।
संबंधित विषय पर चर्चा पूर्व वैश्विक हिमालय संगठन मुख्य आयोजक किशोर उपाध्याय तथा मनवर सिंह रावत द्वारा अक्षरधाम दिल्ली प्रमुख कोठारी मुनि वत्सल स्वामी जी का स्वागत अभिनन्दन शाल ओढ़ाकर तथा पुष्प गुच्छ प्रदान कर किया गया। चर्चा का शुभारम्भ करते हुए विधायक टिहरी, किशोर उपाध्याय द्वारा कहा गया, आगामी माह नवंबर में उत्तराखंड राज्य गठन के पच्चीस वर्ष हो जायेंगे। अवगत कराया गया आज जिस अति महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा होनी है इस पर 1985-86 से कार्य कर रहे हैं। जम्मू कश्मीर से अरुणांचल प्रदेश तक लोगों को जगाने का कार्य किया है।
किशोर उपाध्याय द्वारा कहा गया, अगर हिमालय ही नहीं बचेगा तो उसका वैश्विक फलक पर क्या असर होगा समझा जा सकता है। कहा गया, हम इतने शक्ति शाली नहीं हैं गंगा को बचा लेंगे। हिमालय शक्ति का श्रोत है। विश्व को समृद्धि दे सकता है। गंगा व हिमालय को बचाने के लिए विश्व के धर्मियों को इकठ्ठा करना जरूरी है। यह वह समय नहीं है, समय जाया किया जाए। रणनीति क्या हो सकती है, कम शक्ति लगा कर हिमालय और गंगा को बचाया जा सके। ऐसा होने पर उत्तराखंड सबसे ज्यादा लाभान्वित होगा। हमारे पास कोई ऐसा सूत्र हो कि देश के नीति नियोजन कर्ताओं को बता सके, समझा सके, अब हिमालय और गंगा को बचाने का समय आ गया है, पर्वतीय अंचल विनाश के कगार पर खड़ा है।
अक्षरधाम दिल्ली प्रमुख कोठारी मुनि वत्सल स्वामी जी द्वारा कहा गया, उत्तराखंड से कहीं से भी धूल ले रहे हैं, माथे पर रख रहे हैं, वह विभूति है। स्वामी नारायण जी के जीवन वृतांत पर प्रकाश डालते हुए मुनि वत्सल स्वामी जी ने कहा, उत्तराखंड की भूमि में चार धाम हैं, दर्शन कर लाभ कमाऐ। गंगा जल की एक बूंद मिल जाए प्रसाद स्वरूप पवित्रता का आभास होता है। उत्तराखंड पवित्र नदियों की भूमि है। पवित्र जल ही जीवन रहा है।
स्वामी जी द्वारा कहा गया, हर वस्तु व हर विधा का आविष्कार उत्तराखंड में हुआ है। उत्तराखंड में जन्मा एक व्यक्ति सम्पूर्ण जीवन में एक वृक्ष का आजीवन पूरा उपयोग करता है। लगाए गए वृक्षों का बहुत बड़ा महत्व है। एक व्यक्ति एक पेड़ लगाए, उसकी रक्षा करे। कहा गया, ऋषि परंपरा में जल और वृक्षों की पूजा होती है। हिमालय और गंगा के महत्व को ऋषि मुनियों ने अच्छी तरह समझा है। पूजा की है। उसका सदैव संरक्षण और संवर्धन किया है। कहा गया, आध्यात्मिक विकास से भारत का विकास संभव है। गंगा की आरती के महत्व को समझना होगा। गंगा के प्रति आस्था बढ़ाने का काम पूरे विश्व में हो।
संबंधित विषय पर प्रमुख रूप से विचार रखने वालों में मदन मोहन सती, डॉ.हरि सुमन बिष्ट, वासवानंद ढौंडियाल, सुनील नेगी, दुर्गा सिंह भंडारी, चंद्र मोहन पपनैं, राजकुमार, राजीव साहनी, मनवर सिंह रावत, पूरन नैलवाल, अमरचंद, दिनेश ध्यानी, देवेंद्र जोशी, देवेन एस खत्री, अजय सिंह बिष्ट, रमेश चंद्र घिल्डियाल, प्रतिबिंब बड़थ्वाल, मंगल सिंह नेगी, यशोदा घिल्डियाल, अर्जुन सिंह राणा, अनिल पंत, आजाद सिंह नेगी, कमल सिंह नेगी इत्यादि इत्यादि द्वारा कहा गया, हमारे बुजुर्गो की अनेकों पीढ़ियां हिमालय को समर्पित रही हैं। हिमालय और गंगा पर कभी आंच नहीं आई।
वक्ताओं द्वारा कहा गया, संस्कृति नीचे से ऊपर नहीं, ऊपर से नीचे को प्रवाहित होती है। कहा गया, पहले खेत जोते जाते थे, पोली मिट्टी वर्षा जल सोकती थी, पानी जमीन के अंदर बैठता था। अब बंजर होती जमीन में वर्षा जल सीधा बह कर गाड़-गधेरों-नदियों में चला जाता है। आज पानी ही नहीं पूरी परंपरा को बचाने की जरूरत है। हिमालय न हो तो अच्छे जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है। त्याग की जरूरत है, परंपराओं को बचाने की जरूरत है।
प्रबुद्ध वक्ताओं द्वारा कहा गया, तापमान बढ़ने का नतीजा है, हर वर्ष गंगोत्री ग्लेशियर दस मीटर पीछे खिसक रहा है। जंगल का घनत्व सिकुड़ रहा है। विकास के नाम पर लाखों पेड़ काटे जा रहे हैं, स्थानीय लोगों को अपनी नितांत जरूरत के लिए एक पेड़ तक नसीब नहीं हो रहा है। जंगल कटने से बचाए जाए। चीड़ के पेड़ घातक हैं उनका विनाश कर बाज़, बुरांश व अन्य चौड़ी पत्ती के पेड़ों को प्राथमिकता दी जाए। अंचल में स्थानीय कामगारों की संख्या नगण्य हो गई है। बाहरी बढ़ती भीड़ पर नीति नियोजन करना जरूरी है, जागरुक होना होगा।
कहा गया, आज मनुष्य प्रकृति पर विजय हासिल करना चाहता है। हर किसी चीज पर नीति बनाई जा रही है, हिमालय के संरक्षण पर कब नीति नियोजन किया जाएगा? जीवन से जुडे़ इस अति संवेदन शील मुद्दे पर नीति जरूर बननी चाहिए। कहा गया, पलायन से ज्यादा नुकसान हो रहा है। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव पूरे विश्व पर पड रहा है। उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति अलग है। अंचल के गांव खतरे में हैं।
कहा गया, हिमालय और गंगा को बचाना अलग-अलग है। हिमालय को बचाने का मतलब है, गांवों को बचाना। देश के दो तिहाई लोग गंगा से पल रहे हैं। गांवों से पलायन का मसला पानी के श्रोतों का सूखना भी रहा है। विकास की अनियंत्रित अंधी दौड़ में जो विनाश हो रहा है इस पर सोचना चाहिए। 2013 की केदारनाथ आपदा से सबक लेना होगा। कहा गया, विकास नदियों के किनारे हो रहा है। सारा मलवा नदियों में समाया जा रहा है। पहले गांव नदियों की जद से दो तीन किलोमीटर दूर बसाए जाते थे। अब नदी किनारे विकास को अंजाम दिया जा रहा है। गंगा और अन्य नदियों के स्वभाव को लोग नहीं जान रहे हैं, उससे अनभिज्ञ हैं।
प्रबुद्ध जनों द्वारा कहा गया, संवेदनशील क्षेत्र में होटल व रिजॉर्ट बनाए जा रहे हैं। प्रकृति का अनियंत्रित दोहन किया जा रहा है। समय आ गया है, सोच को व्यापक बनना पड़ेगा। जल संरक्षण के लिए काम करना होगा।
कहा गया, उत्तराखंड के नदियों का पानी अंचल के काम नहीं आ रहा है। टिहरी बांध के पानी का उपयोग बाहरी शहरों के लिए हो रहा है। अंचल के उच्च हिमालयी गांव पानी से वंचित हैं।
प्रबुद्ध वक्ताओं द्वारा कहा गया, यूएनओ ने भी गंगा व हिमालय पर चिंता व्यक्त की है। कहा गया, उत्तराखंड प्राकृतिक संसाधनों से सम्पन्न है, उनका अनियंत्रित दोहन प्रदेश व जन के हित में नहीं हो रहा है, उसका लाभ राज्य को नहीं मिल रहा है। ग्रीन बोनस व पानी की रायल्टी से राज्य अछूता है। वक्ताओं द्वारा कहा गया, उक्त मुद्दों को व्याप्त राजनीति से ऊपर उठ कर जनहित में माननीय प्रधानमंत्री के समक्ष उठाना जरूरी है। सदन के पटल पर रखना जरूरी है। वैश्विक धरोहर हिमालय के साथ-साथ अंचल के जल, जंगल व जमीन को बचाना नितांत जरूरी है।
कहा गया, हिमालय विश्व की धरोहर है। उसकी जैव विविधता खत्म हो रही है। उसकी मौलिकता को बरकरार रखने के लिए आज पूरे विश्व का दायित्व बनता है, हिमालय को बचाने हेतु आगे आए।
कहा गया, उत्तराखंड जीरो कार्बन डाइऑक्साइड क्षेत्र घोषित होना चाहिए। हिमालय भारत का मुकुट है। गंगा और यमुना उत्तराखंड की बेटी हैं। मुकुट की लाज रखना और बेटी की रक्षा करना जरूरी है। हिमालय संरक्षित रहेगा, गंगा का प्रवाह स्वच्छ और साफ रहेगा तभी भारत समृद्ध और संपन्न बना रह सकता है। हिमालय खत्म होने पर दिल्ली भी खत्म हो जाएगा। सवाल है हिमालय और गंगा को कैसे बचाए?
प्रबुद्ध जनों के विचार सुन सर्वसम्मति से तय किया गया, हिमालय और गंगा के संरक्षण हेतु एक कमेटी गठन की नितांत आवश्यकता है। कमेटी गठन हेतु मनवर सिंह रावत और किशोर उपाध्याय को जिम्मेवारी सौंपी गई।