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साहित्य जगत में पहली बार प्रयोगात्मक रूप में रचित दोहा संग्रह ‘151 गुलाब के फूल, 151 पलाश के फूल’ का लोकार्पण संपन्न



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सी एम पपनै

नई दिल्ली। पावन पर्व लोहड़ी के सुअवसर पर 13 जनवरी को आईटीओ स्थित हिंदी भवन में देश के लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों में प्रमुख और साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त डॉ दिविक रमेश की अध्यक्षता व मुख्य अतिथि राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय संस्थान पूर्व निर्देशक प्रोफेसर डाक्टर राजेश कुमार तथा विशिष्ट अतिथियों में प्रमुख डॉ लालित्य ललित, डॉ संजीव कुमार, डॉ रनविजय राव, डॉ आशा जोशी, राम अवतार बैरवा, आलोक शुक्ला, डॉ मनोज कामदेव, डॉ ओम प्रकाश प्रजापति के सानिध्य में इंडिया नेटबुक्स एवं द इनक्रेडिबल पहाड़ी के सौजन्य से उत्तराखण्ड मूल के दिल्ली में प्रवासरत लेखक, कवि व अग्रणी दोहाकार सुरेन्द्र सिंह रावत की नवीनतम दोहा संग्रह पुस्तक ‘151 गुलाब के फूल, 151 पलाश के फूल’ का भव्य लोकार्पण संपन्न हुआ। दो सत्रों में अयोजित दूसरे सत्र में लब्ध प्रतिष्ठित कवियों द्वारा स्वरचित कविता पाठ किया गया।

प्रथम सत्र पुस्तक लोकार्पण का श्रीगणेश मंचासीन अतिथियों के कर कमलों दीप प्रज्ज्वलित कर तथा उत्तराखण्ड की सुप्रसिद्ध ‘शकुन आखर’ गायिका किरन पंत द्वारा कर्ण प्रिय सरस्वती वंदना गायन के साथ किया गया। लोकार्पण आयोजन समिति द्वारा पुस्तक रचयिता सुरेंद्र सिंह रावत के कर कमलों सभी मंचासीन मुख्य व विशिष्ट अतिथियों के साथ-साथ अन्य आमंत्रित अतिथियों में प्रमुख चारु तिवारी, डॉ मनोरमा, डॉ बिहारी लाल जालंधरी, सी एम पपनै, रमेश कांडपाल जी इत्यादि को शाल ओढ़ा कर व पुष्पगुच्छ तथा पुस्तकें प्रदान कर सम्मानित किया गया। सभी मंचासीनों व आमंत्रित अतिथियों का परिचय देकर प्रयोगात्मक रूप में रचित पुस्तक ‘151 गुलाब के फूल, 151 पलाश के फूल’ का लोकार्पण मंचासीनों साहित्यकारों के कर कमलों किया गया।

मुख्य अतिथि डॉ राजेश कुमार सहित सभी मंचासीनों द्वारा रचित पुस्तक के बावत सटीक व सार्थक टिप्पणियों में कहा गया, पुस्तक रचयिता सुरेंद्र सिंह रावत की मेहनत रंग लाई है। यह पहली किताब है जिसमें हिंदी व अंग्रेजी का प्रयोग हुआ है, प्रयोग अच्छा लगा। इस किताब की खूबी है हिंदी पहले है अंग्रेजी बाद में। शुद्ध वाक्यों में बहुत कुछ कहने की रचनाकार ने कोशिश की है। रचयिता को समाज में हो रहे हर चीज की चिंता रही है। लगभग विसंगतियों पर रचनाकार की नजर गई है। रचनाओं में सौंदर्य बोध है। रचित हर दोहा कुछ न कुछ संदेश देता नजर आता है। पुस्तक में हर उस विषय को उठाने की कोशिश की गई है जो समाज के लिए संदेश परख है।

लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकारों द्वारा कहा गया, गुलाब सौम्यता का प्रतीक है, कांटो के बीच रहता है। पलास में क्रांति है, ज्वाला है जो चुनौती देता नजर आता है। दोनों ही फूल भगवान को चढ़ाए जाते हैं। पुस्तक का शीर्षक रावत जी के मन में कैसे आया। छह खंडों में प्रकाशित पुस्तक पढ़ कर समझ में आया। रचित पुस्तक में रचनाकार का दुःख प्रकट होता नजर आता है, दुख रहा है, रिश्ते क्यों बिखर रहे हैं? समाज में ऐसा बदलाव क्यों? युवा पीढ़ी में आए बदलाव पर भी दोहे हैं। कुछ दोहे बहुत अच्छे हैं।

साहित्यकारो द्वारा कहा गया, हिंदी साहित्य रचनाकर सुरेन्द्र सिंह रावत के मन मस्तिष्क में रहा है। हिंदी में गुढ़ता है, अंग्रेजी में वह भाव उभर नहीं पाए हैं। रचनाकार हिंदी, अंग्रेजी व कुमाऊनी बोली-भाषा के मर्मज्ञ हैं। अपनी अंचल की भाषा में भी साहित्य सृजन करे।

साहित्यकारो द्वारा कहा गया, साहस रचनाकार का ही नहीं प्रकाशक का भी है। यह एक प्रयोग है। दोहा लिखना बड़ी चुनौती है। दोहा सवाल भी है, जवाब भी है। दोहे के भाव अंग्रेजी में नहीं पढ़े जा सकते हैं। रावत जी के हिंदी के भाव बहुत अच्छे हैं। अनुवाद चुनौती है। विदेशी बोली भाषाओं में भाव नहीं हैं। रचनाकार ने अंग्रेजी अनुवाद के बावत कोशिश की है, मूल बाते छूट जाने से प्रयास धरा रह गया। लिखना पढ़ना छापना चुनौती है। दो लाइनों में संसार रचना होता है। रावत जी ने बखुबी रचा है। दोहे में कथ्य के साथ तथ्य को बदला है। सुरेंद्र जी ने जीवन और जगत तथा आज की परिस्थितियों पर दोहे लिखें हैं। विभिन्न पहलुओं को छुआ है। पुस्तक द्वी भाषित है। बेहतर पुस्तक है। दोहे में कभी मात्राएं गिराई नहीं जाती तेरह, ग्यारह की मात्राओं में लिखना बड़ी बात है।

मंचासीन साहित्यकारो द्वारा दोहाकार सुरेन्द्र सिंह रावत की कुछ प्रमुख प्रभावशाली व संदेश परख दोहों का पाठ कर उक्त रचनाओं की खूबी के बावत अपने विचार व्यक्त किए। ‘151 गुलाब के फूल, 151 पलाश के फूल’ प्रकाशित प्रयोगात्मक द्वि-भाषीय पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई। रचित रचनाओं को एक अभिनव प्रयास की श्रेणी की प्रस्तुति माना गया व कहा गया, किताबों का जरूर पठन-पाठन करना चाहिए। पुस्तकें खरीदनी, चाहिए उपहार में देनी चाहिए।

पुस्तक लोकार्पण आयोजन की अध्यक्षता कर रहे डॉ दिविश रमेश द्वारा कहा गया, गजल, कविता महाकाव्य सबसे पहले कविता है, कविता नहीं तो कुछ नहीं है। छन्द है तो छन्द होना चाहिए। उन्होंने कहा, कालीदास को पढ कर उनके भावों को देख चकित रह जाते हैं। अभिव्यक्ति कौशल होना चाहिए। जो कहना चाह रहे हैं वही नहीं पहुंच रहा है तो कुछ नहीं। पारंगत होना जरूरी है। सवाल यह नहीं है आप किस विधा में लिख रहे हैं। रचना आंदोलन समाजिक होता है। श्रम पर भी कवियों ने प्रयोग किए हैं। यह हमेशा याद रखना चाहिए मैं किस रूप में लिख रहा हूं। अगर आप पहले से आगे बढ़े हैं योगदान है। बड़े कवियों के समक्ष आपने नाखून बराबर भी लिख दिया तो आप सफल हो गए। टक्कर समकालीन से नहीं, पुराने कवियों से है। त्रुटि नहीं रहनी चाहिए। समय सजग रूप में नहीं आया तो बात नहीं बनती है।

डॉ दिविश रमेश द्वारा कहा गया, सभी वक्ताओं ने रावत जी की रचनाओं की तारीफ की है, वे इस रूप में सफल हैं। पहले भी प्रयोग हुए हैं, आज भी हो रहे हैं। डॉ दिविश रमेश ने कहा, वे अनुवाद के पक्षधर हैं। अनुवाद को लेकर विवाद भी हुए हैं। रचना का अनुवाद होता ही नहीं है लेकिन व्यवहार में होता है। रचित पुस्तक में दोहे अच्छे हैं जिनकी जीवन में जरूरत पड़ेगी। परिवर्तन समय की बड़ी मांग है, वही विकास है। इस पर रावत जी ने सौंदर्य के माध्यम से ध्यान दिलाया है। रचित दोहे पढ़ने योग्य हैं। डॉ दिविश रमेश ने कहा, प्रकाशित पुस्तक में डाक्टर मनोज कामदेव की भूमिका अवश्य पढ़ी जाए। आज बढ़े चलो नहीं, बढ़े चले जरूरी है। उन्होंने कहा, मां को नहीं दुत्कारना चाहिए चाहे वह फ्रेंच हो, जर्मन हो, उर्दू या अन्य कोई और, भाषाओं के चरण स्पर्श करो अपनी बोली-भाषा को जरूर याद करो। साहित्य मनुष्यता को बचाता है। अनुवाद शब्दस: नहीं हो सकता है। कोई आपकी आलोचना करता है सही भाव से उसे सम्मान दीजिए। रचनाकार सुरेंद्र सिंह रावत को बधाई देकर व अच्छी रचनाओं का सृजन करने की बात कह कर डॉ दिविश रमेश ने अपना अध्यक्षीय उद्बोधन समाप्त किया।

पुस्तक लोकार्पण के इस अवसर पर पुस्तक रचयिता सुरेंद्र सिंह रावत द्वारा अपनी स्वयं की रचना यात्रा के बावत कहा गया, कभी कविताएं लिखी, कभी गजले। दो लाइन में लिखना हो तो दोहा विधा में लिखना अच्छा लगा। रचयिता सुरेंद्र सिंह रावत ने कहा, दोहा अपने आप निकल आता है। कुछ लिखे, कुछ अपने आप आ गए। कुछ प्रयोग किया। प्रयोग किया अंग्रेजी में लिखूं। अंग्रेजी अनुवाद में अर्थ का अनर्थ हो गया। अंग्रेजी अनुवाद का सिर्फ साठ प्रतिशत छन्द अनुवाद हो पाया। कुछ दोहों में भावना उजागर हुई है, कुछ प्रयोग है। पुस्तक रचयिता ने कहा, कभी-कभी दिनों तक लिखा नहीं गया, कभी धड़ाधड़ लिखा गया। पुस्तक रचयिता द्वारा प्रकाशक डॉ संजीव कुमार के प्रति पुस्तक प्रकाशन हेतु तथा सभी उपस्थित साहित्यकारो, कवियो व उपस्थित अतिथियों के प्रति छोटे कार्यक्रम को बड़ा बनाने हेतु आभार व्यक्त किया गया।

पुस्तक लोकार्पण समारोह के द्वितीय सत्र में आमंत्रित कवि-कवियित्रियों में अपर्णा थपलियाल, शालिनी मिश्रा, पूजा श्रीवास्तव, लक्ष्मी अग्रवाल, शालिनी शर्मा, मनीषा जोशी मणि, राजू पाण्डे़, भूपेन्द्र राघव, राजेश श्रीवास्तव, संदीप बिश्नोई, नीरज कुमार, राम शब्द बेनूर, उषा श्रीवास्तव उषाराज, फौ़ज़िया अफजा़ल, बबली सिन्हा वान्या, नूतन नवल, संतोष संप्रीति, सुकृति श्रीवास्तव, निधी भार्गव मानवी, सीमा सागर शर्मा, किरन पंत , रिचा जोशी, पृथ्वी सिंह केदारखण्डी इत्यादि द्वारा प्रभावशाली अंदाज में स्वरचित गीत, दोहे, गजल, मुक्तक, छंद, छणिकाएँ, कविताओं आदि रचनाओं का पाठ कर समा बांधा गया, हिन्दी भवन कक्ष को साहित्य मय बनाया गया।

डॉ संजीव कुमार, निर्देशक इंडिया नेटबुक्स और पुस्तक प्रकाशक द्वारा सभी अतिथियों व कवि-कवियित्रियों का कार्यक्रम में सहभाग करने व सफल बनाने के लिए आभार व धन्यवाद व्यक्त कर आयोजन समापन की घोषणा की गई।

अयोजित पुस्तक लोकार्पण समारोह के प्रथम सत्र का मंच संचालन रिचा जोशी द्वारा तथा द्वितीय सत्र कवि सम्मेलन का मंच संचालन पूजा श्रीवास्तव व उषा श्रीवास्तव उषाराज द्वारा बखूबी प्रभावशाली अंदाज में किया गया।
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