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देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर

दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर का गौरवशाली इतिहास

टाण्डा सेरा (तल्ला सलाण) पट्टी पैनो, तहसील एवं ब्लॉक रिखणीखाल

पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड)

 

आलेख: धीरेन्द्र सिंह रावत (ग्राम चाँदपुर)

मंदिर स्थापना सन 1823

(आज से दो सौ साल पहले)

 

स्थापना द्वारा

पंडित स्व. छविराम जदली

(ग्राम बराई)

 

 

यह प्रकाशन मेरी पिछले तीन दशको की गहन खोज (Research), अपने क्षेत्र के अनेको बुजुर्गो (जिनकी उम्र बहुत ही अधिक हैं),

अति वरिष्ठ उच्च-शिक्षित, धार्मिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यक व्यक्तित्व, विश्वसनीय नागरिकों की ऐतिहासिक जानकारी, ज्ञप्ति, ऐतिहासिक साक्ष्य एवं भू-अभिलेखों पर आधारित हैं।

 

ग्राम जुकणियाँ, ग्राम चाँदपुर और ग्राम बराई की सीमा पर बहुत ही खूबसूरत मंदाल नदी के तट पर स्थित बहुत ही आलौकिक, नयनाभिराम, रमणीय, लोचन-सुखदायक, मनभावन, नव्य एवं दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर जो कि ग्राम जुकणियाँ की सरहद पर स्थापित हैं, इस पुनीत भव्य शिवालय का बहुत ही भावुक, विधि-संबंधी, धार्मिक, मार्मिक, जीवनीक, निरूपणायक और गौरवशाली इतिहास रहा हैं.

 

दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर के इतिहास को अच्छी तरह से समझने के लिए मैं मंदिर विषय से हटकर कुछ अलग छोटे-छोटे विषयों पर भी प्रकाश डालना जरूरी समझता हूँ. क्योंकि कही ना कही ये सब छोटे-छोटे विषय आपस में एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.

 

दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर को क्षेत्रीय जनता एवं अनंत शिव-भक्तों ने आज ही नहीं बल्कि सदियों से अपने दिल में अमिट रूप में अंकित करके रखा हुआ हैं. हाँ ये बात जरूर हैं कि भोलेनाथ के इतने ख़ास महत्व वाले मंदिर के इतने बड़े धार्मिक और गौरवशाली इतिहास को आज तक किसी ने भी जनता के सामने लिखित रूप में नहीं रखा.

 

इस निमित मैं अपने आप को बहुत ही सौभाग्यशाली समझता हूँ, कि आज मैं (धीरेन्द्र सिंह रावत) पहली बार दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर के धार्मिक, मार्मिक और गौरवशाली इतिहास को अपनी लेखनी से आप सभी शिव-भक्तों के सामने अंकित कर रहा हूँ. मैं आप सभी शिव-भक्तों से निवेदन करता हूँ कि आप देश-दुनिया में जहाँ कही भी रहते हो, दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर पर मेरे इस लेख को मुद्रित (Print) करवाकर अपने घर में पवित्र स्थान पर रख सकते हैं, जिससे कि कालांतर में हमारी आने वाली पीढ़ियां भी दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर के गौरवशाली इतिहास को जान और समझ सके.

 

आज से दो सौ वर्ष पहले सन 1823 में पहली बार क्षेत्र के बहुत ही प्रसिद्ध पुजारी, जाने-माने ब्यवसायी एवं हमारे क्षेत्र के धनी व्यक्तियों में से एक पंडित स्व. छविराम जदली, एवं उनके पुत्रों स्व. तारादत्त जदली , स्व. हरिदत्त जदली (ग्राम बराई) पट्टी पैनो रिखणीखाल पौड़ी गढ़वाल वालो द्वारा जुकणियाँ स्यार में टाण्डा महादेव मंदिर की स्थापना की गयी. पंडित स्व. छविराम जदली, को क्षेत्र में सिपाही नाम से भी पुकारा जाता था, क्योंकि उस समय पूरे क्षेत्र में बहुत ही गिने-चुने लोगो में से एक, वे सेना से सेवानिवृत सिपाही थे. बराई गांव में आज भी कई स्थानों को सिपाही का भीड़ु (दीवार), सिपाही का खिलांण, सिपाही का थामण, सिपाही की गोट, सिपाही का जिंगला आदि नामों से जाना जाता हैं. वर्तमान समय में भी बराई गांव का आदरणीय जदली परिवार पूरे क्षेत्र में नरंकार देवता के एकमात्र पुजारी हैं.

 

मंदिर स्थापना से कुछ वर्ष पहले ग्राम जुकणियाँ बड़ा के पंडित स्व. रामदयाल देवरानी, के पिताजी स्व. श् ज्ञानादत्त देवरानी , उनके दादा जी और उनके अन्य देवरानी परिवारों द्वारा संतान प्राप्ति हेतु पुण्य श्रद्धा भाव से जुकणियाँ स्यार में कुछ जमीन ग्राम बराई के पुजारी जी स्व. श्री तारादत्त जदली जी के परिवार को दान स्वरुप भेंट की गयी थी.

 

मंदिर का नाम “टाण्डा महादेव” क्यों पड़ा ?

 

ध्यान देने वाली बात ये हैं कि आज से दो सौ साल पहले इस जगह का नाम टाण्डा स्यार नहीं था बल्कि केवल जुकणियाँ स्यार था, जहाँ पर उस मंदिर स्थल वाले एक ऊँचे खेत में स्थायी रूप में एक टंड्या वाङु (मचान) बना रहता था. मंदिर बनने से पहले इस जगह का नाम केवल जुकणियाँ स्यार ही था।

 

गढ़वाली बोली में टाण्ड का मतलब होता हैं टंड्या, वाङु या जिसे हिंदी भाषा में मचान भी कहते हैं. आज भी जिस जगह पर मंदिर स्थापित हैं, केवल वह जगह टाण्डा स्यार के अन्य खेतो से कुछ ऊंचाई पर स्थित हैं, इसलिए ऊंचाई की वजह से स्यार में खेती-बाड़ी का काम करने वाले ग्राम जुकणियाँ के किसान लोग इस जगह पर टंड्या, वाङु या मचान बनाकर वहां पर अपना राशन-पानी रखना और उस ऊँची जगह का लाभ पाकर, जहाँ से स्यार के अन्य सारे खेत साफ नजर आये, जंगली जानवरों (सुंगर, गूणी, बांदर, चखुला) आदि को भगाकर अपनी खेती की रक्षा किया करते थे. भविष्य में उस जगह पर मंदिर स्थापित होने की वजह से उस जगह का नाम “टाण्डा महादेव मंदिर” पड़ गया, और अगल-बगल के खेतो (पूरे जुकणियाँ स्यार) को भी टाण्डा स्यार नाम से पुकारने लगे.

 

पंडित स्व. छविराम जदली क्योंकि मंदाल पार दूसरे गांव बराई के थे और उनको स्व. ज्ञानादत्त देवरानी के परिवार द्वारा दान स्वरूप प्राप्त मात्र एक खेत पर खेती करने के लिए मंदाल पार करके टाण्डा स्यार आना कुछ प्रायोगिक (Practical) भी नहीं लगा, इसलिए उन्होंने उस भूमि पर महादेव जी का मंदिर बनाने का फैसला लिया।

 

पुराने ज़माने में पैसा किसी के भी पास भी नहीं होता था. जिसके पास तिजारत (खेती, बाड़ी, पालतू जानवर आदि) होते थे, उसी को धनी आदमी माना जाता था.

 

क्योंकि उस समय दुकानों में भी वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System) ही काम करता था. पैसा किसी भी आम आदमी के पास ना तो था और ना ही पैसे की खास जरूरत पड़ती थी. आप अपनी जरूरत की हर वस्तु कपडा, चाय, चीनी, गुड़, नमक तेल आदि हर सामान अपना दूसरा अनाज दुकान में वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System) से जमा करके वस्तु मूल्यांकन के बाद उसके बदले कुछ भी दूसरा सामान सामान खरीद सकते थे. जैसे आपने भी देखा होगा कि आज से कुछ वर्षो पहले तक भी आपके समय में भी आप ओगल के बदले दुकान से नमक लेकर आ जाते थे. यही तो वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter System) हैं.

 

आज से लगभग दो सौ साल पहले हमारे पूरे क्षेत्र में पंडित स्व. श्री छविराम जदली जी ही बड़े स्तर के ब्यवसायी थे. उनके परिवार का ल्वीणा (गौजड़) रथुवाढाब जंगल के पार जंगल में खर्क (असंख्य जानवरो का बेड़ा – Fleet of Innumerable Animals) हुआ करता था, जिसमें अनेको कर्मचारी काम किया करते थे. उनके पास अच्छी नस्ल के घोड़े, खच्चर, गाय, भेड़, बकरी, कुत्ते आदि बहुत बड़े लाभ के ब्यवसाय के रूप में हुआ करते थे. पंडित स्व. श्री छविराम जदली जी क्योंकि बड़े आदमी थे, इसलिए वे कभी भी पैदल नहीं चलते थे. वे केवल घोड़े में ही एक जगह से दूसरी जगह जाया करते थे. उस जमाने में उनकी शान की सवारी का घोडा, मतलब आज का Rolls Royce, Bugatti, BMW, Mercedes आदि.

 

आज की पीढ़ी की जानकारी के लिए पुजारी पंडित स्व. श्री छविराम जदली के परिवार के बारे में बताना भी बहुत जरूरी हैं. पंडित स्व. श्री छविराम जदली के दो पुत्र थे.

 

पंडित स्व. छविराम जदली के जेष्ठ पुत्र का नाम स्व. तारादत्त जदली , जिनके पुत्र स्व. योगेश्वर प्रसाद जदली और उनके पुत्र कृष्ण कुमार जदली (कृषि), सुदर्शन कुमार जदली , वेद प्रकाश जदली , सतीश जदली हैं, जो कि आज उनकी वर्तमान पीढ़ी हैं.

 

पंडित स्व. छविराम जदली के कनिष्क पुत्र का नाम स्व. हरिदत्त जदली था। उनके तीन पुत्र हुए स्व. सीताराम जदली , स्व. जोगेस्वर प्रसाद जदली एवं दामोदर प्रसाद जदली , जो अभी भी हैं. स्व. सीताराम जदली की पुत्रियाँ श्रीमती सिद्धी देवी , श्रीमती विद्या देवी एवं श्रीमती सरोजनी देवी हैं. स्व. जोगेस्वर प्रसाद जदली के पुत्र दीपक जदली हैं. दामोदर प्रसाद जदली के पुत्र विनोद जदली एवं मनोज जदली हैं, जो आज की पीढ़ी में अभी भी हैं.

 

ऐसा भी माना गया हैं कि मंदिरों का निर्माण हमेशा आम जनता से चन्दा दान धनराशि एकत्र करके और भिक्षा मांगकर ही करना चाहिए, तभी वह मंदिर अधिक फलदायी होता हैं. मंदिरों को हमेशा ही सार्वजनिक रूप ही दिया जाना चाहिए, कभी भी ब्यक्तिगत रूप नहीं। यहाँ तक कि यह भी माना जाता हैं कि कभी भी अपने घर में बहुत बड़ा मंदिर स्थापित नहीं करना चाहिए। घर के मंदिर का और एक गांव के ब्यक्तिगत भैंरो देवता के मंदिर का स्वरुप छोटा ही ठीक रहता हैं. किसी भी धनी ब्यक्ति को अपने अकेले स्वयं के पैसे से पूरे मंदिर का निर्माण नहीं करना चाहिए। पंडित स्व. छविराम जदली क्योंकि पैसे से बहुत धनी थे, उन्होंने टाण्डा महादेव मंदिर का निर्माण उस जमाने में अकेले अपने पैसे से किया। टाण्डा महादेव मंदिर उस समय केवल पत्थरों और पटवल्ला (खपरैल) का ही था. स्व. छविराम जदली एवं उनके पुत्र स्व. तारादत्त जदली के नाम का टाण्डा महादेव मंदिर स्थापक के रूप में स्मारक शिला कुछ दशको पहले तक भी टांडा महादेव मंदिर में विराजमान थी, शायद मंदिर समिति से जुड़े वरिष्ठ बुजुर्गो को इस बात का ज्ञान होगा।

 

अब इस बात में कितनी सच्चाई हैं ये तो केवल भगवान भोलेनाथ को ही पता होगा, लेकिन कुछ लोगो और जदली परिवार के भी कुछ सदस्यों का यह भी मानना हैं कि, क्योंकि पंडित स्व. छविराम जदली ने टाण्डा महादेव मंदिर अकेले स्वयं के पैसे से ही बना दिया था, इसीलिए मंदिर निर्माण के तुरंत बाद उनके परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु बहुत ही कम उम्र में ही हो गयी.

 

अगर स्व. छविराम जदली के नाम का टाण्डा महादेव मंदिर स्थापक के रूप में स्मारक शिला फिर से मंदिर परिसर में स्थापित किया जा सकता हैं तो अति उत्तम होगा, भले ही इसका सर्वाधिकार केवल वर्तमान मंदिर समिति को ही हैं.

 

आज से दो सौ साल पुराने उस काल-खंड के उपरान्त कालांतर में समय-समय पर क्षेत्रीय जनता आपस में मिलकर टाण्डा महादेव मंदिर की मरम्मत और नवनिर्माण कार्य अनेको बार करती आ रही हैं. जिसमें ग्राम जुकणियाँ बड़ा के समस्त देवरानी, सुन्द्रियाल और चतुर्वेदी परिवारों द्वारा सामूहिक रूप से अनेकों बार, स्व. कृपाल सिंह नेगी (चाँदपुर) की रामलीला कंपनी के द्वारा, स्व. महेश चंद्र शास्त्री (जुकणियाँ बड़ा) और पूरे क्षेत्र के अनेको शिव भक्त-गण, महिला शक्ति, युवा शक्ति, ग्राम जुकणियाँ, बराई, धूरा, ल्वीठा, डोबरिया, चाँदपुर, बड़खेत, झुन्डाई, गौछेणा, कालो-अदाली, तिमलसैंण, बगेड़ा आदि, अन्य आप सभी, जिनके नाम मैं यहां पर भूलवश अंकित नहीं भी कर पाया हूँ, आप सभी ने भगवान् भोलेनाथ के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धा, भक्ति भाव, जन-एकता, सहभागिता और सहकारिता का शानदार उदाहरण पेश किये हैं.

 

लगभग सन 1940 से लेकर लगभग सन 1985 तक स्व. कृपाल सिंह नेगी (पदान जी ग्राम चाँदपुर) वालों ने अपने क्षेत्र के बहुत बड़े-बड़े कलाकारों को एक साथ जोड़कर बहुत ही प्रसिद्ध रामलीला कंपनी का संचालन किया. स्व. नेगी जी रामलीला मंचन में रावण का बहुत ही बेहतरीन अभिनय किया करते थे. उस ज़माने में मनोरंजन के अन्य साधन ना होने की वजह से स्व. नेगी जी की रामलीला कंपनी क्षेत्र के अनेको स्थानों और शादी ब्याह में भी रामलीला का मंचन किया करती थी.

 

स्व. श्री कृपाल सिंह नेगी , वर्तमान में क्षेत्र के अति वरिष्ठ कांग्रेसी नेता भूपेंद्र सिंह नेगी (ग्राम चाँदपुर) के दादा जी थे. किसी ज़माने में मंदिर परिसर के ही अंदर स्व. श्री कृपाल सिंह नेगी जी (ग्राम चाँदपुर) की दुकान भी हुआ करती थी, जिसको उन्होंने बहुत समय बाद में अपने स्वयं के खेतों (चाँदपुर सारी) में स्थान्तरित कर दिया, जहाँ पर उनकी दुकान आज भी स्थित हैं.

 

दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर के इतिहास के साथ-साथ मंदिर से अलग विषय जैसे रामलीला मंचन आदि का विवरण मैं इसलिए भी दे रहा हूँ, क्योंकि ये सभी क्षेत्र के बड़े-बड़े सामाजित कार्यकर्ता किसी ना किसी रूप में दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर के संरक्षण और संवर्धन के लिए भी समानांतर(Parallel) रूप में काम किया करते थे.

 

बहुत वर्षो तक टाण्डा महादेव मंदिर को स्थाई साधु नहीं मिल पाया. कई बाबा आते थे और कुछ समय रूककर कही और चले जाते थे. लेकिन सन 1950 के बाद मंदिर के बगल में धर्मशाला में एक बहुत ही अच्छे बाबा आये, उनका नाम “बाबा आत्मापुरी जी” था. बाबा जी काफी छोटे कद के थे, इसलिए स्थानीय जनता उनको “बूटी बाबा” जी के नाम से भी पुकारती थी. कुछ समय पश्चात एक और साध्वी “माता मंगला भारती जी” भी मंदिर में आई. ये दोनों बहुत ही अच्छे थे और स्थानीय जनता इन दोनों को बहुत ही अधिक पसंद करती थी. ये आने जाने वाले किसी भी राहगीर को बिना खाना खिलाए नहीं जाने देते थे और लोगो की बहुत मदद भी करते थे. बाबा आत्मापुरी जी के स्वर्गवास के बाद भी साध्वी माता मंगला भारती जी सन 1980 के दशक तक टाण्डा महादेव मंदिर की सेवा करती रही. साध्वी माता मंगला भारती जी ने एक गाय भी पाल रखी थी. साध्वी माता मंगला भारती जी के गले में रुद्राक्ष की बहुत सारी मालाएँ हुआ करती थी और साध्वी माता मंगला भारती जी क्षेत्र के हर किसी शादी-ब्वाह, पूजा पाठ और हर समारोह में शामिल हुआ करती थी. एक बात आज भी इस लेखक को (यानी मुझे) भी याद हैं कि साध्वी माता मंगला भारती जी शादी-ब्याह में मांगल (मंगल गीत) भी लगाती थी, जो कि मैंने स्वयं भी देखा हैं.

 

बाबा जी क्षेत्र में किसी के भी बीमार होने पर जड़ी बूटियों से उनका इलाज भी किया करते थे (नाला की भी तंत दवे दींदा छाई, अगर दाग लगी ग्या ता लूण मन्त्रदा छाई) और घर-घर जाकर नाली मिटाते थे.

 

जैसे कि आपको पता ही होगा कि हर महीने की चतुर्दशी को शिवरात्रि आती हैं, लेकिन अधिकतर लोगो को यही मालूम हैं कि शिवरात्रि साल में एक ही बार मनाई जाती हैं, जिसे हम महा शिवरात्रि कहते हैं. लेकिन उस ज़माने में दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर में हर महीने की चतुर्दशी को शिवरात्रि का पवित्र पर्व मनाया जाता था.

 

सन 1980 के दशक में साध्वी माता मंगला भारती जी का भी स्वर्गःवास हो गया. आज भी मंदिर से मंदाल नदी के लिए उतरने वाली सीढ़ियों के बगल में बाबा आत्मापुरी जी और माता मंगला भारती जी की पवित्र समाधि स्थित हैं.

 

एक बात की मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि अगर आप सच्चे श्रद्धा-भाव से भोलेनाथ जी की पूजा करो, आपके जीवन की सारी मुशीवतें दूर हो जाती हैं. अगर आप मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्री राम की दिल से पूजा करो तो बजरंगबली हनुमान जी आप पर बहुत प्रसन्न होते हैं. अगर आपने बजरंगबली हनुमान जी को खुश कर दिया, तो आप उनसे दुनिया की जो भी चीज़ (संतान, धन, दौलत, गाडी, बँगला, वैभव, कीर्ति, यश आदि जीवन की अनंत खुशियाँ) मांगो वो आपको गारंटी के साथ मिलती ही हैं. आप इस काम को आजमा के देख लो, जरूर कृपा होगी.

 

आज से लगभग तीन दशक पहले 1994 में बड़कासैंण स्कूल के रामलीला मंचन में जो भी दान धनराशि एकत्र हुई, हमारी रामलीला कमेठी ने उस धनराशि से नागेंद्र सिंह नेगी (बड़खेत तल्ला) के सानिध्य में टाण्डा महादेव मंदिर में जीर्णोद्धार का थोड़ा-बहुत काम करवाया था. मंदाल नदी से सीढ़ियां ऊपर चढ़कर जहां पर आज स्व. महेशानंद देवरानी के नाम का द्वार स्थापित हैं, वहाँ पर हमने एक प्रवेश द्वार की स्थापना भी करवाई थी, लेकिन कुछ समय बाद उसकी मरम्मत ना होने की वजह से वह भी टूट गया.

 

मैं आप लोगों के संज्ञान में ये बात भी लाना चाहता हूँ कि श

नागेंद्र सिंह नेगी केवल आज ही नहीं बल्कि पिछले तीस साल पहले से दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर के संरक्षण और संवर्धन हेतु पुण्य कार्य करते आ रहे हैं. उसके पश्चात अनेक बार स्व. महेश चंद्र शास्त्री (जुकणियाँ बड़ा) वालो द्वारा मंदिर मरम्मत एवं धर्मशाला का निर्माण भी करवाया गया.

 

आज से दो वर्ष पूर्व सन 2021 में स्व. महेश चंद्र शास्त्री (जुकणियाँ बड़ा) के दिल में टाण्डा महादेव मंदिर के नवनिर्माण का विचार आया. शास्त्री ने अपने बड़े भाई जगदीश देवरानी जी, अपने अन्य सभी भाईयो, ग्राम प्रधान जुकणियाँ, अपने समस्त ग्रामवासियों और क्षेत्रवासियो की सहमति और उनका विश्वास प्राप्त किया.

 

उस समय स्व. श्री शास्त्री को ज्ञांत हुआ कि तत्काल में ही नागेंद्र सिंह नेगी (बड़खेत तल्ला) के सौजन्य से सौलीखांद बाजार में एक विशाल हनुमान मंदिर का निर्माण हुआ हैं. इसलिए सबसे पहले शास्त्री जी अपने गांव के कुछ लोगो, ग्राम प्रधान और अपने करीबी मित्र शिक्षाविद सतेंद्र सिंह रावत (ग्राम गौछेणा) के साथ में हनुमान मंदिर सौलीखांद गए. मंदिर दर्शन करने के बाद, स्व. श्री शास्त्री हनुमान मंदिर सौलीखांद में नागेंद्र सिंह नेगी द्वारा करवाए गए दर्शनीय कार्य से बहुत ही प्रभावित हुए.

 

स्व. श्री शास्त्री ने अपने ग्राम प्रधान, जुकणियाँ बड़ा और क्षेत्र के कुछ अन्य जागरूक लोगो को मंदिर में बुलाकर टाण्डा महादेव मंदिर के नवनिर्माण का कार्य प्रारम्भ करने हेतु, हनुमान मंदिर सौलीखांद के कार्य को नेगी जी की पूर्व-अर्हता एवं लोकप्रियता को मध्यनजर रखते हुए नागेंद्र सिंह नेगी जी (बड़खेत तल्ला) को टाण्डा महादेव मंदिर के कार्य को प्रारम्भ करने के लिए कुछ नगद धनराशि देते हुए श्री नेगी जी को इस कार्य का संचालक नियुक्त किया। उस के तुरंत बाद स्व. महेश चंद्र शास्त्री जी ने मुझे भी (हिन्दुस्तान से बाहर – क्योंकि मैं इंडिया में नहीं रहता हूँ) दूरभाष पर बात करके इस पुण्य कार्य में नागेंद्र सिंह नेगी का बढ़-चढ़ कर साथ देने की प्रेरणा दी। स्व. शास्त्री जी ने मुझे कहा कि आप दोनों ही इस पुण्य काम को अच्छे से संचालित कर सकते हो.

उसके बाद मैंने अपने अनेक अन्य मित्रों की मदद से आप अधिक से अधिक लोगों को देश-दुनिया के अलग-अलग कोने से आज की इंटरनेट की ख़ास संचार तकनीकी व्हाट्स एप्प (Social Media) का सदुपयोग करके टाण्डा महादेव मंदिर नवनिर्माण मुहिम में जोड़ा और अगर मैं दिल से कहूं तो आप सबने मिलकर दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर को इतना विशाल भव्य ऐतिहासिक वर्तमान स्वरुप देकर तो सच में कमाल ही कर दिया.

 

उसके पश्चात नागेंद्र सिंह नेगी (बड़खेत तल्ला) के कुशल संचालन में सबसे पहले ग्राम जुकणियाँ छोटा के ग्रामवासियों के सहयोग से जुकणियाँ छोटा के जंगल से होते हुए मंदिर तक रोड पहुंचाई गयी और तदोपरांत मंदिर नवर्निर्माण का कार्य प्रारम्भ हुआ.

 

मंदिर नवर्निर्माण कार्य प्रारम्भ हुआ ही था कि दुर्भाग्य से चार मई 2021 (04/05/2021) को स्व. महेश चंद्र शास्त्री जी का स्वर्गवास हो गया. उसके पश्चात स्व. श्री शास्त्री के सुपुत्र करन देवरानी (जो कि दिल्ली में उच्च इंजीनियरिंग पद पर कार्यरत हैं), उन्होंने अपने पूज्य पिताजी के द्वारा किये गए प्रयास को कही और अधिक ताकत से पूरा करने में अपने परिवार, मंदिर समिति और आप सभी लोगो का भरपूर साथ दिया.

 

आज से पहले टाण्डा महादेव मंदिर परिसर कुछ छोटा हुआ करता था. ग्राम जुकणियाँ बड़ा के हरीश सुन्द्रियाल , मनीष सुन्द्रियाल , उदयराम देवरानी, स्व. रामदयाल देवरानी की सुपुत्री श्रीमती उर्मिला देवी आदि परिवारों ने मंदिर से सटी हुई अपनी जमीन को मंदिर के नाम दान करके मंदिर की चाहरदीवारी (Boundry Wall) का बाहर की तरफ और अधिक विस्तार करने की भी इजाजत दी और मंदिर परिसर को और अधिक विस्तृत करवाने का पुण्य कार्य किया। दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर नवनिर्माण और मंदिर तक वाहन संपर्क मार्ग (रोड) पहुंचाने के दौरान ग्राम जुकणियाँ बड़ा के अनेको परिवारों की भूमि को भी प्रयोग में लाया गया.

ग्राम प्रधान (जुकणियाँ) के द्वारा मुझे प्राप्त अभिलेख के अनुसार भूमि-दानदाताओ के परिवारों के हर एक परिवार के कुछ मुख्य-मुख्य लोगो के नाम कुछ इस प्रकार से हैं, रामानंद देवरानी, केवलराम देवरानी, बच्चीराम देवरानी , श्रीकृष्ण चंद्र देवरानी जी, रामचंद्र देवरानी , मंगतराम देवरानी, गुणानंद देवरानी , पीताम्बर दत्त देवरानी , रामदयाल देवरानी , ज्ञानचद्र देवरानी , सुरेशानंद सुन्द्रियाल , श्रीराम सुन्द्रियाल , गिरधारी लाल सुन्द्रियाल, बुद्धिबल्लभ सुन्द्रियाल, चिरंजीव लाल , श्री धर्मानंद , बीरेंद्र कुमार देवरानी , जगदीश प्रसाद , विष्णुदत्त , पांतीराम देवरानी , सीताराम देवरानी , गीताराम देवरानी , जयानंद देवरानी , मंगलानन्द देवरानी , चिरंजीलाल देवरानी आदि.

ग्राम प्रधान (जुकणियाँ) ने यह भी कहा हैं कि अगर भूलवश किसी भी भूमिदानदाता का नाम अंकित नहीं भी हो पाया हो तो संसोधन करवाया जा सकता हैं, उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूँ.

 

कहते हैं भूमिदान महादान होता हैं. मैं अपने इस लेख के माध्यम से दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर नवनिर्माण हेतु भूदान जैसे पुण्य कार्य के लिए आप सभी भूमिदानदाताओ का आभार प्रकट करता हूँ. मैं ब्यक्तिगत तौर से मंदिर समिति से विनम्र निवेदन भी करता हूँ कि उक्तलिखित सभी भूमिदानदाताओ ने नाम की सूची टाण्डा महादेव मंदिर परिसर में किसी एक उचित जगह पर दर्शाने का कष्ट करें।

 

दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर का धार्मिक महत्व:

 

दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर का बहुत बड़ा धार्मिक महत्व हैं. टाण्डा महादेव की असीम कृपा से हमारे क्षेत्र के अनगिनत शिव-भक्तों के जीवन में बहुत बड़े-बड़े चमत्कार हुए हैं. असंख्य लोगों को टाण्डा महादेव मंदिर में पूजा-पाठ के फलस्वरूप संतान की प्राप्ति हुई हैं. ग्राम बराई के एक दम्पति ने 1950 के दशक में एक के बाद एक लगातार अपने 4-5 पुत्रों को खो दिया था। जरा सोचो उस दम्पति को आगे क्या उम्मीद रहेगी, जिनकी लगातार 4-5 संतान चली जाये। उनके ग्राम जुकणियाँ बड़ा के कुल पुरोहित जी ने सलाह दी कि अगर आप टाण्डा महादेव मंदिर में शिवार्चन करवाते हो तो आपकी सारी संतान वापिस आपके ही घर में पुनर्जन्म ले लेगी। शिवार्चन करवाने के बाद वही हुआ उनकी सारी संतान वापिस आ गयी.

 

आज वह परिवार बहुत ही खुशहाल हैं और लगातार टाण्डा महादेव मंदिर की सेवा में लगा रहता हैं. इसके अलावा भी दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर की अनोखी अनुकम्पा हम सभी क्षेत्रवासियो पर हमेशा ही रही हैं. आप भी अगर दिल से दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर में पूजा अर्चना करते हो तो आपके सारे कष्ट दूर होंगे और आपको मनवांछित फल की प्राप्ति होगी।

 

और जिस तरह से आप सभी लोग भली-भांति जानते ही हो कि पिछले साल 2021 से 2022 तक स्व. महेश चंद्र शास्त्री (जुकणियाँ बड़ा) की पुण्य प्रेरणा, नागेंद्र सिंह नेगी (बड़खेत तल्ला) के कुशल संचालन और देश-विदेश से आप सभी महान दानदाताओं के दृढ़ संकल्प और पुण्य-पुरुषार्थ की बदौलत आज आपके सामने दिव्य एवं नव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर अपने बहुत ही विशाल ऐतिहासिक गौरवशाली स्वरुप में देखने को मिल रहा हैं. ग्राम जुकणियाँ बड़ा के पूज्य आचार्य पंडित संतोष कुमार देवरानी (सुपुत्र स्व. कीर्तिराम देवरानी ) ने अपने सभी भाईयों और पूरे परिवार की तरफ से भगवान् भोलेनाथ की विशाल शोभायमान मूर्ति के साथ में भगवान् शिव का समस्त शिव-परिवार एवं अन्य सभी मूर्तियां टाण्डा महादेव मंदिर को भेंट स्वरुप समर्पण की।

 

 

दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर के गौरवशाली इतिहास को आज की पीढ़ी और युग युगांतर तक आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए मेरी पिछले तीन दशको की गहन खोज (Research), अपने क्षेत्र के अनेको बुजुर्गो जिनकी उम्र बहुत ही अधिक हैं, अति वरिष्ठ उच्च-शिक्षित, धार्मिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-साहित्यक व्यक्तित्व, विश्वसनीय नागरिकों की ऐतिहासिक जानकारी, ज्ञप्ति, ऐतिहासिक साक्ष्य एवं भू-अभिलेखों को मैं मूल आधार मानता हूँ.

 

यह आलेख लिखकर मेरा उद्देश्य केवल दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर के गौरवशाली इतिहास को आप लोगो तक पहुँचाना, मंदिर और सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार मात्र हैं. मेरा यह आलेख अलग-अलग स्रोतों से, अलग-अलग कालखंड में प्राप्त जानकारी पर आधारित हैं. मेरे इस आलेख में अगर कही पर भी आपको तुर्टि नजर आती हैं तो, उसके लिए में क्षमा प्रार्थी भी हूँ. अगर आप लोगो में से किसी भी सज्जन के पास दिव्य धाम टाण्डा महादेव मंदिर के गौरवशाली इतिहास के बारे में और अधिक सटीक रोचक जानकारी उपलब्ध हो तो कृपया मुझ से साझा करने का कष्ट करें।

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